एनजीटी के आदेशों के बीच फँसा प्रतिबन्धित क्षेत्र का मामला

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
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नई दिल्ली! उत्तराखण्ड में गंगा के किनारे पर प्रतिबन्धित और विनियामक क्षेत्र का दायरा कितना होना चाहिए, यह मामला दो आदेशों के बीच फँस गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के दो आदेशों और उसी बीच जारी की गई सरकारी अधिसूचना की वजह से अभी तक गंगा किनारे स्पष्ट प्रतिबन्धित दायरा तय नहीं हो पाया है। याचिकाकर्ता ने इसमें स्पष्टता की माँग की है।

पीठ ने इस मामले पर केन्द्र व राज्य के सम्बन्धित प्राधिकरणों से जवाब माँगा है। मामले पर अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी।

जस्टिस जावेद रहीम की अध्यक्षता वाली पीठ में याचिकाकर्ता एमसी मेहता ने याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि ट्रिब्यूनल ने पहली बार 10 दिसम्बर, 2015 को अपना फैसला सुनाया था। गोमुख से हरिद्वार तक गंगा किनारे प्रतिबन्धित क्षेत्र तय करने के लिये एनजीटी ने आदेश में कहा था कि नदी के मध्य से 100 मीटर की दूरी तक दोनों ओर प्रतिबन्धित क्षेत्र होगा। जहाँ किसी भी तरह का स्थायी और अस्थायी निर्माण नहीं किया जा सकेगा। वहीं इस प्रतिबन्धित क्षेत्र के बाहर 300 मीटर तक पीठ ने नियामक क्षेत्र बनाने का आदेश दिया था। इसमें सरकार होने वाले हर कार्य को विनियमित करेगी। इस आदेश के आधार पर उत्तराखण्ड सरकार की ओर से 29 नवम्बर 2017 को अधिसूचना जारी की गई।

बाद में 15 दिसम्बर, 2017 को एनजीटी में अपील की गई कि पहाड़ पर नदी के मध्य बिन्दु से 100 मीटर की दूरी मापना काफी मुश्किल और जटिल है। इसके बाद पीठ ने कहा था कि पहाड़ी क्षेत्र में नदी के दोनों किनारे से 50 मीटर का क्षेत्र पूर्ण प्रतिबन्धित होगा। वहीं इस 50 मीटर के बाद से 100 मीटर तक रेग्युलेटरी जोन होगा।

मैदानी भाग में या फिर पहाड़ी क्षेत्र में ही जहाँ नदी की चौड़ाई 70 मीटर से अधिक होगी, वहाँ नदी के किनारे से 100 मीटर का दायरा पूर्ण प्रतिबन्धित क्षेत्र और उसके बाद 300 मीटर तक रेग्युलेटरी जोन घोषित होगा। पीठ ने इसी आदेश के आधार पर सरकार को अधिसूचना जारी करने के लिये कहा था।
 

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