एक्रीटार्क-एडियाकारन कल्प में उनका महत्व


एडियाकारन एक्रीटार्कों के प्रलेख विश्व में आस्ट्रेलिया, चीन, रूस, साइबीरिया, कनाडा, आदि सथानों से मिलते हैं। भारत में निम्न हिमालय की क्रोल बेल्ट से भी इनके प्रलेख हैं। हाल में हो रहे अध्ययन के अनुसार इस प्रकार के एक्रिटार्क्स क्रोल बेल्ट के निचले स्तर से प्राप्त हुए हैं। क्रोल बेल्ट का निचला शैल समूह-क्रोल ‘ए’ या ‘मही शैल समूह’, चीन के दोउशान्तुओं शैल समूह से काफी साम्यता रखता है।

पृथ्वी की उत्पत्ति (4500 अरब वर्ष) से लेकर 543 अरब वर्ष की समयावधि पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा अंतराल है, जिसे कैम्ब्रियनपूर्व महाकल्प के रूप में जाना जाता है। इस समयकाल में पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई (लगभग 3.3 अरब वर्ष पूर्व)। 543 अरब वर्ष के लगभग आरंभ हुआ पुराजीवी या पेलियोजोइक महाकल्प का। इसका प्रथम चरण कैम्ब्रियन कल्प कहलाता है। लगभग 650 से 543 अरब वर्ष का काल एडियाकारन कल्प के रूप में जाना जाता है। यह समय कुंजी है कैम्ब्रियन कल्प में जैविक विस्फोट की। इस समय पृथ्वी, समुद्र और वायुमंडल में हुए अनेक परिवर्तनों ने रचना की कैम्ब्रियन के विकसित होते जैविक समाज की। एडियाकारन कल्प में भी जैविक स्तर पर कई परिवर्तन हुए। साइनोबैक्टीरिया व शैवाल से आगे पादप राज्य में विकास हुआ ससीम केंद्र की शैवालों का, विशेषत: बड़े एक्रीटार्कों का और जीव जगत में एडियाकारन जीवाश्मों का इसमें अलंकृत एक्रीटार्क विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि इस तरह के एक्रीटार्क न तो पहले न ही बाद के स्तरों में मिलते हैं।

एक्रीटार्क एक कोष्ठक, सूक्ष्म, एक केंद्रीय गुहा वाले, एक से अनेक पर्ती, सादे या अलंकृत, ऐसे जीवों का समूह है जिनका जैविक संसार के किसी भी और समूह से कोई साम्य नहीं है। आमतौर पर इन्हें पादप प्लवक की श्रेणी में रखा जाता है पर कुछ वैज्ञानिक इन्हें मेटाजोअन प्राणी जगत के अंडे भी मानते हैं। आकार व अलंकरण के आधार पर इन्हें मुख्यत: दो समूहों में विभाजित किया गया है, जैसे-

(1) स्फीरोमॉर्फ एक्रीटार्क्स : ये गोलाकार/गेंदाकार, अनअलंकृत, एक पर्तीय, सादे एक्रिटार्क्स हैं जोकि लगभग 3000 अरब वर्ष से लेकर आज तक पाये जाते हैं। इनका (व्यास) 60 से लेकर 5000 माइक्रोन तक देखा गया है।

(2) नान स्फीरोमॉर्फ एक्रीटार्क्स : ये भिन्न आकार के व विविध प्रकार के अलंकरणों से सज्जित होते हैं। इनके पुन: अलग-अलग प्रकार हैं-

अलंकृत एक्रिटार्क्स : ये गेंदाकार, एक से अनेक पर्त वाले, विविध अलंकरण व प्रवर्धों वाले होते हैं। इनके प्रवर्ध नुकीले, बाल-नुमा, गुम्बद नुमा, नलिकाकार, शांक्वावकार आदि प्रकार के होते हैं। अलंकृत एक्रीटार्क्स लगभग 1600 अरब वर्ष पूर्व से लेकर आज तक मिलते हैं। परंतु कैम्ब्रियन पूर्व महाकल्प और विशेषत: एडियाकारन कलप के एक्रीटार्क्स की एक अलग ही पहचान व संरचना है, जो उन्हें इस काल के लिये सूचक जीवाश्म बनाती है।

हर्कोमार्फ एक्रीटार्क्स : ये सह-पोलिगोनल आकार के होते हैं। इनका आशय उभरी हुई कलगियों द्वारा पोलिगोनल आकार के क्षेत्रों में विभाजित होता है। यह लगभग 700 अरब वर्ष पूर्व के प्रस्तरों से भी मिले हैं। पर इस समय में इनके मिलने के बहुत कम प्रलेख हैं। यह मुख्यत: कैम्ब्रियन से विकसित व अधिक संख्या में पाये जाते हैं।

नेट्रोमार्फ एक्रीटार्क्स : इनका आकार लंबा या यूजीफोर्म आकार का होता है, जोकि एक या दोनों सिरों पर कंटिका के रूप में निकला हो सकता है। कैम्ब्रियन पूर्व से कैम्ब्रियन के संक्रमण में इनका पहला प्रलेख मिलता है।

ऊमार्फ एक्रीटार्क्स : ये अंडाकार आकार के होते हैं और इनका एक सिरा काफी अलंकृत होता है। ये निम्न कैम्ब्रियन में बहुत ही विकसित व व्याप्त है।

पोलीगोनोमार्फ एक्रीटार्क्स : इनका आकार पोलीगोनल अथवा बहुकोणीय होता है। इनमें बहुत ही सादे प्रवर्ध मिलते हैं। ये कैम्ब्रियन व उनसे छोटे स्तरों में मिलते हैं।

प्रिज्मैटोमार्फ एक्रीटार्क्स : ये चतुष्फलकीय या अष्टफलकीय आकार के होते हैं। नियोप्रोटीरोजोइक कल्प में इनके पहले प्रलेख साईबेरिया से मिलते हैं।

टीरोमार्फ एक्रीटार्क्स : इन गेंदाकार एक्रीटार्क्स की विशेषता है इनका भूमध्यरेखीय वलन व प्रवर्ध। इनको स्फीरोमार्फ एक्रीटार्क्स के साथ रखा जा सकता है। कैम्ब्रियन पूर्व स्तरों से इनके संदेहात्मक प्रलेख पाये गये हैं पर निम्न कैम्ब्रियन में ये अधिक व्याप्त हैं।

एडियाकारन समय के एक्रीटार्क्स, जैसा कि पहले बताया गया है, एक विशेष महत्व रखते हैं। ये माप में बेहद बड़े, अधिक अपसरित, भिन्न अलंकरण व प्रवर्ध वाले और संख्या में अधिक हैं। इनको ‘‘लार्ज अकैन्थोमार्फिक एक्रीटार्क्स’’ या हाल में नव निर्मित नाम ‘‘लार्ज आरनामेंटेड एडियाकारन माइक्रोफॉसिल्स’’ (लोएम्स) भी कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति विश्वव्यापी हिमनदन ‘‘मैरिनोअन ग्लेसिएशन’’ के पश्चात (लगभग 650 अरब वर्ष) मानी गई है। एडियाकारन जीवाश्मों की उत्पत्ति से बस पूर्व ही इनका विलोपन होता है। अत: ये इस समय काल के सूचक जीवाश्म माने जा सकते हैं। पुन: कैम्ब्रियन में एक्रीटार्क्स का विकास हुआ। इस समय स्फीरोमार्फ व अकैन्थोमार्फ के अतिरिक्त अन्य एक्रीटार्क समूहों का भी विकास हुआ जोकि एडियाकारन एक्रीटार्क्स से माप में बहुत छोटे, व आकार, अलंकरण व प्रवर्ध में अधिक विविधता लिये हैं।

एडियाकारन एक्रीटार्कों के प्रलेख विश्व में आस्ट्रेलिया, चीन, रूस, साइबीरिया, कनाडा, आदि सथानों से मिलते हैं। भारत में निम्न हिमालय की क्रोल बेल्ट से भी इनके प्रलेख हैं। हाल में हो रहे अध्ययन के अनुसार इस प्रकार के एक्रिटार्क्स क्रोल बेल्ट के निचले स्तर से प्राप्त हुए हैं। क्रोल बेल्ट का निचला शैल समूह-क्रोल ‘ए’ या ‘मही शैल समूह’, चीन के दोउशान्तुओं शैल समूह से काफी साम्यता रखता है। यहाँ पाये जाने वाले एक्रीटार्क्स चीन के दोउशान्तुओं व आस्ट्रेलिया के पर्टअटाटाका शैल समूह में मिलने वाले एक्रीटार्क्स जैसे हैं। चीन व आस्ट्रेलिया के एडियाकारन स्तरों में उच्च कोटि के अध्ययन व अनुसंधान के बाद एक जीवस्तरिकी सहसंबंध स्थापित किया जा चुका है। भारत की क्रोल बेल्ट में हो रहा अध्ययन भारत में न केवल एडियाकारन एक्रीटार्क्स के पाये जाने को दर्शाता है वरन जैवस्तरिकी में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। यह अध्ययन विश्वव्यापी एडियाकारन जैवस्तरिकी जोनेशन स्कीम के बनाने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।

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रजिता शुक्ला
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून


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