एक सवारी भविष्य के लिए

साइकिल की सवारी पर्यावरण के लिए बेहतर
साइकिल की सवारी पर्यावरण के लिए बेहतर

पर्यावरण और सेहत के लिए फ़ायदेमंद साइकिल की सामुदायिक संस्कृति कई देशों में बहुत लोकप्रिय है लेकिन भारत में योजना बनने के बावजूद उस पर अमल होना कठिन लगता है। अगर शहरों में रहने वाले पांच प्रतिशत लोग भी रोजाना की भागदौड़ में साइकिल का इस्तेमाल करें तो साल में पांच हजार करोड़ रुपये का पेट्रोलियम बचाया जा सकता है और इस तरह तकरीबन 200 लाख टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोका जा सकता है।' यह केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का आकलन है, जो इन दिनों चीन और पश्चिमी देशों में प्रसिद्ध सामुदायिक साइकिल योजना को आजमाने का प्रयास कर रहा है। मंत्रालय का कहना है कि केंद्र सरकार साल के अंत तक देश के दस बड़े शहरों में 'नेशनल पब्लिक साइकिल स्कीम' की शुरुआत करेगी। इसके तहत बड़े शहरों के प्रमुख नागरिक परिवहन केंद्रों, मसलन बस स्टॉप, मेट्रो स्टेशन, रेलवे स्टेशन आदि पर सार्वजनिक साइकिल स्टैंड बनेंगे। इन स्टैंडों में बड़ी संख्या में आधुनिक मॉडल की साइकिलें रहेंगी। मामूली रकम देकर कोई भी व्यक्ति इन साइकिलों से एक जगह से दूसरी जगह जा सकता है।

मंत्रालय के विशेष अधिकारी (ट्रांसपोर्ट) संजीव कुमार लोहिया के अनुसार, ' ये साइकिल स्टैंड सिटी बस की तरह काम करेंगे। कुछ स्टेशन होंगे, जहां उम्दा साइकिलें रहेंगी। लोग एक स्टेशन से साइकिल लेकर उसे दूसरे स्टेशन पर छोड़ सकेंगे। साइकिलों में जीपीएस सिस्टम लगा होगा, जिसकी मदद से परिचालन व्यवस्था नियंत्रित की जायेगी।' शुरुआत दिल्ली, मुंबई, भोपाल, बंगलुरू, पुणे, पटना, जयपुर समेत दस शहरों से होगी और बाद में योजना अन्य शहरों में भी चलाई जायेगी। मंत्रालय की एक उपसमिति योजना का अध्ययन कर रही है, जो 31 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट देगी। मंत्रालय के अनुसार, सितंबर तक सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली जायेंगी।हालांकि योजना की विस्तृत रूपरेखा अभी तैयार नहीं हो सकी है, लेकिन इसका उद्देश्य स्पष्ट है। शहरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है। नतीजे में मोटरवाहनों की संख्या भी तेज रफ्तार से बढ़ रही है और प्रदूषण में भारी इजाफा हो रहा है। साइकिल परिवहन को बढ़ावा देकर न सिर्फ हवा को जहरीली होने से बचाया जा सकता है, बल्कि कई अन्य लाभ भी उठाये जा सकते हैं।

साइकिल परिवहन हमारी जेब के लिए ही नहीं, सेहत, पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षा और रोजगार सृजन के लिए भी उपयोगी है। एक अध्ययन के मुताबिक, साइकिल से एक हजार किलोमीटर की यात्रा करने में जितनी ऊर्जा की खपत होती है, वह एक लीटर पेट्रोल से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बराबर है। दस किलोमीटर साइकिल चलाकर एक व्यक्ति आर्थिक रूप से 50 रुपये की बचत कर सकता है और मुफ्त में शारीरिक व्यायाम के लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि साइकिल चलाने वाले लोग ज्यादा तंदुरुस्त होते हैं और ऐसे लोगों के शरीर में इंसुलिन और रक्तचाप संतुलित रहता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो साइकिल मधुमेह और हृदय रोग को दूर रखने में सहायक है। अमेरिका के हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (एचएसपीएच) के एक शोध के अनुसार, 'साइकिल की सवारी करने वाले लोग दुपहिये मोटरवाहन सवारों की तुलना में 28 प्रतिशत कम सड़क हादसों का सामना करते हैं।' बहुत-से लोग साइकिल को भविष्य की सवारी मानते हैं। इसके वाजिब कारण हैं। अध्ययनों से यह बात साफ हो चुकी है कि जीवाश्म ईंधनों के बेइंतिहा इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

जीवाश्म ईंधनों के भंडार तीन-चार दशकों में प्रायः समाप्त हो जायेंगे। ऐसी परिस्थिति में वैकल्पिक साधनों की जरूरत पड़ेगी। चूंकि साइकिल में किसी तरह के बाहरी ईंधन का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए पूरी संभावना है कि आने वाले समय में कम दूरी के परिवहन के लिए यह एक श्रेष्ठ वाहन होगा। यही कारण है कि बीते वर्षों में दुनिया के कई देशों ने साइकिल की उपयोगिता को समझा है। चीन और कई पश्चिमी देशों में सामुदायिक साइकिल परिवहन खूब लोकप्रिय हो चुका है। नीदरलैंड्स, स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड जैसे देशों में तो साइकिल की सवारी करने वाले लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। एचएसपीएस के अध्ययन के अनुसार, अमेरिका की 62 प्रतिशत काउंटियों (प्रांत) में साइकिल परिवहन स्कीम चल रही है। सन् 2006 से 2008 के दरम्यान कैलिफोर्निया के सान जोसे में साइकिल से काम पर जाने वालों की संख्या में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सामुदायिक साइकिल योजना के मामले में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन को अब 'साइकिलों का शहर' तक कहा जाने लगा है। शहर के 36 प्रतिशत लोग कार्यालय, स्कूल, कॉलेज, बाजार आदि साइकिल से ही जाते हैं। शहर के लोग एक दिन में लगभग 13 लाख किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करते हैं।

यहां साइकिल के लिए अलग से साइकिल सड़क पथ बने हुए हैं। साइकिल की सवारी को बढ़ावा देने के लिए नियमित अंतराल पर साइकिल प्रतियोगिता का आयोजन होता रहता है। कोलंबिया की राजधानी बोगोता इस मामले में दुनिया का दूसरा सबसे चर्चित शहर है। बोगोता की पांच फीसद आबादी स्थानीय परिवहन के लिए साइकिल का इस्तेमाल करती है। पूरी व्यवस्था कैच ऐंड ड्रॉप (एक जगह से लेकर दूसरी जगह पर छोड़ने की पद्धति) पर आधारित है। सामुदायिक साइकिल मामले में चीन के शहर हांगचू, शांघाई आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। हांगचू शहर में 66 हजार से ज्यादा साइकिलें सामुदायिक सवारी के लिए उपलब्ध हैं। यहां हर 100 मीटर पर सार्वजनिक साइकिल स्टैंड बने हुए हैं, जहां से लोग साइकिल लेकर दूसरे स्टॉप तक जा सकते हैं। इसके लिए शहर में विशेष साइकिल पथ बनायी गयी है।

पेरिस, कनाडा, लंदन, मांट्रियल, मेक्सिको सिटी, वाशिंगटन, मियामी, मेलबॉर्न आदि शहरों में भी सामुदायिक साइकिल परिवहन सेवा लोकप्रिय हो चुकी है। हमारे देश के किसी शहर में बड़े पैमाने पर ऐसी स्कीम नहीं दिखती। हमारे शहरों में साइकिल पथ देखने को नहीं मिलते, लेकिन छिटपुट सफलता जरूर मिली है। कुछ समय पहले दिल्ली में विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से ऐसी ही एक योजना शुरू की गयी थी, जो काफी सफल रही। हाल के दिनों में बंगलुरू में साइकिल संस्कृति खूब लोकप्रिय हुई है।गौरतलब है कि प्रसिद्ध साइकिलचालक शमीम रिजवी बंगलुरू के ही हैं। रिजवी दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल प्रतियोगिता 'रेस अक्रॉस अमेरिका' में भाग ले चुके हैं। बंगलुरू में प्रायः हर महीने साइकिल प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। साइकिल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए गो ग्रीन, ग्रो साइकिलिंग, राइड अ साइकिल फाउंडेशन जैसी कई गैर-सरकारी संस्थाएं जोर-शोर से अभियान चला रही हैं। साइकिल भले ही भविष्य की सवारी हो, लेकिन खाती-पीती अमीर मानसिकता वाले लोग शायद आसानी से इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
 

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