एक सूनी नाव

एक सूनी नाव
तट पर लौट आई।
रोशनी राख-सी
जल में घुली, बह गई,
बंद अधरों से कथा
सिमटी नदी कह गई,
रेत प्यासी
नयन भर लाई।
भीगते अवसाद से
हवा श्लथ हो गई
हथेली की रेख काँपी
लहर सी खो गई
मौन छाया
कहीं उतराई।
स्वर नहीं,
चित्र भी बहकर
गए लग कहीं,
स्याह पड़ते हुए जल में
रात खोई-सी
उभर आई।
एक सूनी नाव
तट पर लौट आई।

Path Alias

/articles/eka-sauunai-naava

Post By: admin
×