चूँकि राजधानी राजधानी होती है और फिर दिल्ली में तो दो-दो सरकारें बैठी हुई हैं, इसलिए छोटी सरकार की ओर से बुलाई गई किसान रैली में ऐन भीड़ और भाषण के बीच किसान गजेन्द्र की खुदकुशी न भूतो न भविष्यति जैसी दुर्घटना बनकर सत्ता सियासत के होश उड़ाने का सबब बन गई। यही वजह है कि संसद से सड़क तक गजेन्द्र की गूँज सबको बेचैन किए हुए है। एक खुदकुशी अनेक सवाल लेकर हाजिर है और ये आड़े-तिरछे सवाल सत्ता सियासत को कील की तरह चुभते हुए छलनी किए जा रहे हैं...राजधानी दिल्ली में एक रैली में जान देकर राजस्थान के दौसा जिले का किसान गजेन्द्र सिंह अब तक देश भर में खुदकुशी कर चुके किसानों का प्रतीक प्रतिनिधि बन गया है। वर्ना अब तक इसी रबी फसल की बर्बादी के बाद कितने ही किसानों की जान जा चुकी है, मगर संसद से सड़क तक ऐसा कोहराम नहीं मचा, जैसी गूँज गजेन्द्र की खुदकुशी की है।
अकेले महाराष्ट्र में ही पिछले तीन महीनों में छह सौ किसानों की खुदकुशी-मौत का आँकड़ा सामने आ चुका है, लेकिन लगता है कि साल-दर-साल किसानों की मौत अब एक सामान्य और अनिवार्य परिघटना का हिस्सा बन चुकी है। चूँकि राजधानी राजधानी होती है और फिर दिल्ली में तो दो-दो सरकारें बैठी हुई हैं, इसलिए छोटी सरकार की ओर से बुलाई गई किसान रैली में ऐन भीड़ और भाषण के बीच किसान गजेन्द्र की खुदकुशी न भूतो न भविष्यति जैसी दुर्घटना बनकर सत्ता सियासत के होश उड़ाने का सबब बन गई। यही वजह है कि संसद से सड़क तक गजेन्द्र की गूँज सबको बेचैन किए हुए है।
एक खुदकुशी अनेक सवाल लेकर हाजिर है और ये आड़े-तिरछे सवाल सत्ता सियासत को कील की तरह चुभते हुए छलनी किए जा रहे हैं। इस खुदकुशी पर राजनीति न करने की दुहाई देते हुए भी खूब राजनीतिक दाँव चले जा रहे हैं। गृह मन्त्री राजनाथ सिंह के लोकसभा में दिए गए बयान पर आम आदमी पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केन्द्र सरकार पर हमला बोला। आम आदमी पार्टी के हाजिर जवाब और सदाबहार मुस्कराहट वाले कुमार विश्वास ने चेहरा लटकाते हुए कहा कि गृह मन्त्री ने सदन में झूठ बोलकर देश को गुमराह किया है।
कुमार विश्वास ने कहा कि गृहमन्त्री ने सदन में बयान दिया कि आप के कार्यकर्ताओं ने गजेन्द्र को पेड़ से पुलिस को उतराने नहीं दिया। जबकि पार्टी के दूसरे नेता संजय सिंह ने कहा कि बुधवार को जो घटना हुई, वह देश के अन्नदाता की पीड़ा को दर्शाता है। लेकिन इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच खुद गजेन्द्र सिंह के भाई बिजेन्द्र ने दावा किया है कि गजेन्द्र दिल्ली में आप के नेता और उपमुख्यमन्त्री मनीष सिसोदिया के सम्पर्क में थे। यही नहीं बिजेन्द्र ने तो यह भी कहा है कि गजेन्द्र का सम्पर्क सभी पार्टियों के नेताओं से था और वे सबको पगड़ी बाँधते थे। भाई के मुताबिक गजेन्द्र विशेष तौर पर रैली में इसलिए गए थे, ताकि किसानों को मुआवजा मिल सके।
बहरहाल, खुदकुशी करने वाले तीन बच्चों के बाप गजेन्द्र का दाह संस्कार गुरुवार को उनके गाँव में उमड़ी भारी भीड़ की उपस्थिति में कर दिया गया। वहाँ पूर्व मुख्यमन्त्री समेत कितने ही नेता पहुँच गए। क्या ऐसा ही किसान की हर खुदकुशी के बाद होता है? अगर नहीं होता तो यह मानना पड़ेगा कि गजेन्द्र की खुदकुशी को राजनीति का ईन्धन बनाया जा रहा है, जिसमें जाहिर है कि सियासत को झुलसना ही पड़ेगा। अगर गजेन्द्र की अन्त्येष्टि के समय भीड़ ने यह नारा लगाया है कि गजेन्द्र का यह बलिदान-नहीं भूलेगा हिन्दुस्तान तो इसमें चाहे जितनी भावुकता हो, लेकिन खुदकुशी की यह आँच सत्ता-सियासत को लम्बे समय तक झुलसाएगी जरूर।
अभी तो किसान रैली करने वाली सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और दिल्ली पुलिस ही इस खुदकुशी को लेकर आमने-सामने हैं, लेकिन आनेवाले दिनों में न जाने कौन-कौन अपनी सियासी कसर निकालने का दाँव चलेगा। बस, देखते रहिए।
अकेले महाराष्ट्र में ही पिछले तीन महीनों में छह सौ किसानों की खुदकुशी-मौत का आँकड़ा सामने आ चुका है, लेकिन लगता है कि साल-दर-साल किसानों की मौत अब एक सामान्य और अनिवार्य परिघटना का हिस्सा बन चुकी है। चूँकि राजधानी राजधानी होती है और फिर दिल्ली में तो दो-दो सरकारें बैठी हुई हैं, इसलिए छोटी सरकार की ओर से बुलाई गई किसान रैली में ऐन भीड़ और भाषण के बीच किसान गजेन्द्र की खुदकुशी न भूतो न भविष्यति जैसी दुर्घटना बनकर सत्ता सियासत के होश उड़ाने का सबब बन गई। यही वजह है कि संसद से सड़क तक गजेन्द्र की गूँज सबको बेचैन किए हुए है।
एक खुदकुशी अनेक सवाल लेकर हाजिर है और ये आड़े-तिरछे सवाल सत्ता सियासत को कील की तरह चुभते हुए छलनी किए जा रहे हैं। इस खुदकुशी पर राजनीति न करने की दुहाई देते हुए भी खूब राजनीतिक दाँव चले जा रहे हैं। गृह मन्त्री राजनाथ सिंह के लोकसभा में दिए गए बयान पर आम आदमी पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केन्द्र सरकार पर हमला बोला। आम आदमी पार्टी के हाजिर जवाब और सदाबहार मुस्कराहट वाले कुमार विश्वास ने चेहरा लटकाते हुए कहा कि गृह मन्त्री ने सदन में झूठ बोलकर देश को गुमराह किया है।
कुमार विश्वास ने कहा कि गृहमन्त्री ने सदन में बयान दिया कि आप के कार्यकर्ताओं ने गजेन्द्र को पेड़ से पुलिस को उतराने नहीं दिया। जबकि पार्टी के दूसरे नेता संजय सिंह ने कहा कि बुधवार को जो घटना हुई, वह देश के अन्नदाता की पीड़ा को दर्शाता है। लेकिन इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच खुद गजेन्द्र सिंह के भाई बिजेन्द्र ने दावा किया है कि गजेन्द्र दिल्ली में आप के नेता और उपमुख्यमन्त्री मनीष सिसोदिया के सम्पर्क में थे। यही नहीं बिजेन्द्र ने तो यह भी कहा है कि गजेन्द्र का सम्पर्क सभी पार्टियों के नेताओं से था और वे सबको पगड़ी बाँधते थे। भाई के मुताबिक गजेन्द्र विशेष तौर पर रैली में इसलिए गए थे, ताकि किसानों को मुआवजा मिल सके।
बहरहाल, खुदकुशी करने वाले तीन बच्चों के बाप गजेन्द्र का दाह संस्कार गुरुवार को उनके गाँव में उमड़ी भारी भीड़ की उपस्थिति में कर दिया गया। वहाँ पूर्व मुख्यमन्त्री समेत कितने ही नेता पहुँच गए। क्या ऐसा ही किसान की हर खुदकुशी के बाद होता है? अगर नहीं होता तो यह मानना पड़ेगा कि गजेन्द्र की खुदकुशी को राजनीति का ईन्धन बनाया जा रहा है, जिसमें जाहिर है कि सियासत को झुलसना ही पड़ेगा। अगर गजेन्द्र की अन्त्येष्टि के समय भीड़ ने यह नारा लगाया है कि गजेन्द्र का यह बलिदान-नहीं भूलेगा हिन्दुस्तान तो इसमें चाहे जितनी भावुकता हो, लेकिन खुदकुशी की यह आँच सत्ता-सियासत को लम्बे समय तक झुलसाएगी जरूर।
अभी तो किसान रैली करने वाली सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और दिल्ली पुलिस ही इस खुदकुशी को लेकर आमने-सामने हैं, लेकिन आनेवाले दिनों में न जाने कौन-कौन अपनी सियासी कसर निकालने का दाँव चलेगा। बस, देखते रहिए।
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Post By: birendrakrgupta