पोंधे जल-ग्रहण क्षेत्र, पुरंदर तालुका, जिला पुणे, महाराष्ट्र का मैदानी अध्ययन
द्वारा रैपिड हाईड्रोलॉजिकल मेपिंग पर आधारित अध्ययन
भारत वर्ष में अनेक विशाल क्षेत्र कठोर चट्टानों से आच्छादित हैं। ये चट्टान बहुत: आग्नेय एवं कायान्तरित मूल के हैं। देश के अनेक बंजर एवं अर्ध-बंजर क्षेत्रों में जल आपूर्ति ऐसी ही चट्टानों में संग्रहित भू-जल से होती है। यह कथन विशेषकर उन विशाल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सत्य है, जो कृषि एवं घरेलू उपयोग हेतु इस प्रकार के चट्टानों में संग्रहित भू-जल का दोहन करते हैं।
यह सर्व विदित है कि राष्ट्रीय जल संसाधन के परिपेक्ष्य में भू-जल एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है। फिर भी यह एक ऐसा स्रोत है जिसका घोर दुरुपयोग होता रहा है! देश में अनेक जल-ग्रहण क्षेत्र विकास परियोजनायें अपर्याप्त तथ्य से ग्रसित हैं, विशेषकर जल-भूविज्ञान की सही और पूर्ण जानकारी की कमी। इससे जल ग्रहण क्षेत्र में भूजल की समस्या का सही निपटारा करना कठिन हो जाता है, यद्यपि यही संसाधन अधिकांश जल-ग्रहण क्षेत्र विकास गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु है। जल-ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का उद्देश्य है उस जल वैज्ञानिक इकाई (Hydrological Unit) में सतह जल तथा भू-जल का संरक्षण।किसी भी क्षेत्र में जल संसाधनों के दीर्घकालीन नियोजन के लिए यह जरूरी है कि जल संरक्षण के उपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ-साथ जल के उपयोग पर भी गौर करें। “आपूर्ति” से संबंधित उपायों के साथ-साथ ‘मग’ के स्वरूप पर भी ध्यान दें। प्राय: ऐसा होता है कि किसी भी क्षेत्र में जल संसाधनों के सुचारू प्रबंधन में ही स्थाई जल संसाधन प्रबंधन की सही रणनीति निहित है।
इस दिशा में पहला कदम है कि जल संसाधनों के नियोजन हेतु वैचारिक ढांचा विकसित किया जावे। ऐसा करते समय मोटे मापदण्ड़ों पर आधारित अंगूठा-छाप योजना न बनाकर, स्थानीय परिस्थितियों को दृष्टिगत रखना होगा। GGP ऐसी ही रणनीति महाराष्ट्र के पुणे जिले के पुरंदर तालुका के पूर्वी भाग में लगभग 10-15 ग्रामों के एक समूह के लिए तैयार कर रहा है। इसमें परियोजना क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन इन संसाधनों की निरंतरता सुनिश्चित करने की दृष्टि से परिकल्पित किया गया है। जल-ग्रहण क्षेत्र की विकास से भी आगे बढ़तेहुए, न्यायसंगत और निष्पक्ष ढंग से यह जल संसाधन के प्रबंधन में संतुलन प्राप्त करने का प्रयास करता है।
जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन हेतु उच्च केन्द्र (ACWADAM) ने परियोजना क्षेत्र में भू-जल संसाधनों के लिए वैचारिक ढांचा विकसित करने में सहायक, वैज्ञानिक तथ्य प्रदान करने इस जाँच का बीड़ा उठाया। ये तथ्य दूरस्थ बोध (Remote Sensing) जैसी उन्नत तकनीक के बिना तीव्र भू-वैज्ञानिक एवं जल-भू-वैज्ञानिक मेपिंग पर आधारित हैं। इस प्रयास के परिणाम स्वरूप GGP को अपनी जल प्रबंधन रणनीति सुदृढ़ करने एक व्यापक दिशा-बोध प्राप्त हो सका। अगले कदम हेतु इसने सुझाया है कि जल संसाधन व्यवस्था का सतत निरीक्षण सुनिश्चित किया जावे ताकि वैचारिक ढाँचे में सुधार संभव हो और व्यापक जल संतुलन का लगभग पक्का अनुमान संभव हो, जिससे क्षेत्र के लिए GGP को जल प्रबंधन रणनीति के नियोजन और क्रियान्वयन में सहायता मिले, और कार्यक्रमों का जल संसाधन पर प्रभाव का सही स्वरूप और माप जाना जा सके।
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