एक चित्र : दो पट

रात का निस्तब्ध छाया वन,
न कुछ-सा नदी-तट पर वृक्ष
जैसे एक मुट्ठी-भर अँधेरा,
पास ही सिर डालकर सोई हुई-सी नदी
गाढ़े कोहरे को ओढ़कर चुपचाप-
(जैसे किसी फोटोग्राफ का धुँधला नेगेटिव)

सुबह सब कुछ पुनः आभासित,
समूचा दृश्य तीखी रोशनी में
जी उठे चलचित्र-सा रंगीन-
चंचल पल्लवों में किरण-कोलाहल,
हजारों पंछियों का बसा पूरा शहर!
बरगद का पुराना पेड़,
सरयू तीर...

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