एक और कुसहा का इंतजार?

नेपाल सरकार के विरोध के कारण कोसी में पायलट चैनल का निर्माण ठप है। अगर गतिरोध दूर नहीं हुआ तो कोसी एक बार फिर कुसहा की प्रलय-कथा को दोहरा सकती है। एक बार फिर कोसी नदी में सब कुछ उसी तरह हो रहा है जैसे तीन साल पहले हुआ था। नेपाल के सप्तरी जिले में भीमनगर कोसी बैराज के अधिकारियों से मिली सूचना के मुताबिक, इस बार मानसून से पहले ही कोसी मैया ने पूर्वी तटबंध पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। बैराज के पास डाउनस्ट्रीम के अलावा अपस्ट्रीम में पूर्वी तटबंध के कम-से-कम 16 बिंदुओं पर खतरा अभी से मंडराने लगा है। नदी अपने मूल प्रवाह से खिसकने का संकेत दे रही है, लेकिन इसे नियंत्रण में लाने के प्रयास गतिरोध की भेंट चढ़ गये हैं। प्रवाह को मूल स्थान की ओर ले जाने के लिए बिहार सरकार ने अप्रैल के पहले सप्ताह में पायलट चैनल का निर्माण आरंभ किया था, जिसे नेपाल के स्थानीय प्रशासन ने 14 अप्रैल को गैर-कानूनी कहते हुए बंद करा दिया।

इससे नीतीश सरकार की समस्या काफी बढ़ गयी है। गौरतलब है कि सन् 2008 में भी मानसून से पहले भीमनगर बैराज के पास नदी के पूरबी तटबंध पर खतरे के संकेत उभरने लगे थे, जिसे अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया। उस समय भी नेपाल के स्थानीय प्रशासन ने तटबंध की मरम्मत में अड़ंगा लगा दिया था। काफी समय बाद बिहार सरकार ने केंद्र को चिट्ठी लिखी और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। केंद्र सरकार भी खामोश बैठी रही और कोसी ने कुसहा में तटबंध को तोड़ अपना रास्ता ही बदल डाला। नतीजे में नेपाल और बिहार के पूर्वोत्तर इलाकों में जो जल-प्रलय मचा, उससे पूरी दुनिया अवगत है। लेकिन लगता नहीं कि कुसहा हादसे से सरकारों (बिहार, नेपाल और केंद्र सरकार) ने कोई सबक लिया है। पायलट चैनल विवाद इसका ताजा उदाहरण है। दो महीने के बाद भी विवाद को सुलझाया नहीं जा सका है। इसके कारण नदी के प्रवाह को तटबंधों के बीच मूल स्थान पर लाने की योजना अधर में लटक गयी है।

कोसी परियोजना मुख्यालय, बीरपुर के अधिकारियों ने जब कई बार ताकीद की, तो राज्य सरकार ने इस पर संज्ञान लिया। डेढ़ महीने के बाद मुख्यमंत्री और जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने तटबंध का दौरा किया और सर पर मंडराते खतरे को खुद अपनी आंखों से देखा तो उन्हें संकट की गंभीरता का आभास हुआ। इसके बाद मुख्यमंत्री कुछ गंभीर हुए और 31 मई को विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को चिट्ठी भेजी। नीतीश ने लिखा कि 'विदेश मंत्रालय पायलट चैनल पर नेपाल से बात करे और मसले को सुलझाये, क्योंकि बैराज के डाउनस्ट्रीम में नदी पूरब की ओर खिसक रही है। विनाशकारी बाढ़ से बचने और नदी को तटबंधों के बीच लाने के लिए पायलट चैनल की सख्त आवश्यकता है।' इस पत्र पर विदेश मंत्रालय में क्या कार्रवाई हुई, यह तो पता नहीं चल सका, लेकिन नेपाल के सप्तरी जिले के सीडीओ (चीफ डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर) कैलाशनाथ खरेल ने सात जून को 'द पब्लिक एजेंडा' को बताया कि 'उन्हें काम की इजाजत देने के लिए ऊपर से कोई निर्देश नहीं मिला है, इसलिए यथास्थिति बरकरार है।'

खरेल ने ही 14 अप्रैल को यह कहते हुए काम बंद करवा दिया था कि इसके लिए भारत सरकार ने नेपाल से अनुमति नहीं ली है, जो 'कोसी संधि- 1954' का उल्लंघन है। हाल के वर्षों में भारत-नेपाल के बीच नदियों को लेकर कई विवाद सामने आये हैं, लेकिन कुसहा हादसे के बाद 'कोसी संधि' का विवाद लगातार गहराता गया है। सन् 2009 में कुसहा में टूटे तटबंध को बांधने की 139 करोड़ रुपये की परियोजना भी विवाद के कारण कई बार रूकी। लेकिन बाद में दोनों देशों को एहसास हुआ कि कोसी की विभीषिका से लोगों को बचाने के लिए आपसी समन्वय जरूरी है। इसलिए सहमति से कोसी हाई लेवल कमेटी (केएचएलसी) का गठन हुआ, जिसमें तय किया गया कि हर साल मानसून से पहले कमेटी अपनी सिफारिश देगी। जल संसाधन मंत्री चौधरी का कहना है कि केएचएलसी के निर्देश पर ही पायलट चैनल के लिए काम शुरू किया गया। चौधरी ने 'द पब्लिक एजेंडा'से कहा,'हां, कटाव का खतरा मंडरा रहा है। नेपाल का स्थानीय मीडिया और लोग यह अफवाह फैला रहे हैं कि पायलट चैनल से उस इलाके में बाढ़ का खतरा बढ़ जायेगा।

हम संभावित खतरे से निपटने के लिए वैकल्पिक उपाय कर रहे हैं।' दूसरी ओर नेपाल सरकार का कहना है कि चैनल का निर्माण केएचएलसी के अंतर्गत नहीं आता। गौरतलब है कि कुसहा कटाव के बाद नदी को वापस पुराने प्रवाह में लाने के लिए भी एक पायलट चैनल का निर्माण हुआ था और उस समय भी नेपाल ने विरोध किया था। विवादों के बावजूद तब चैनल समय पर बना लिया गया था। बहरहाल, पुराने पायलट चैनल गाद से भर गये हैं। साथ ही बैराज के डाउनस्ट्रीम में लगभग 12 किलोमीटर तक नदी का तल गाद के कारण ऊंचा हो गया है। इसलिए कोसी अब दक्षिण की ओर बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मानसून से पहले पायलट चैनल का निर्माण नहीं हुआ तो फिर कुसहा जैसा हादसा हो सकता है। जाहिर है, सरकार को किसी भी स्थिति में जून से पहले पायलट चैनल को पूरा करना होगा। लेकिन इसकी संभावना कम होती जा रही है। अब कोसी के लगभग 15 लाख लोगों के साथ-साथ नीतीश सरकार के सामने खतरे की घंटी बजने लगी है। हाल के दिनों में नीतीश सरकार बार-बार चुनौतियों से घिर रही है। अगर कोसी में कुछ हुआ तो सरकार की साख जाती रहेगी।
 

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