गोमती गंगा यात्रा अपनी तरह की एक अनूठी ज्ञान यात्रा साबित हुई। यात्रा पीलीभीत से करीब 30 किलोमीटर दूर हिमालय की तलहटी में बसे कस्बानुमा गांव माधौ टाण्डा से 27 मार्च को सुबह शुरू हुई और तीन अप्रैल को वाराणसी के कैथी में समाप्त हुई। ऐसा मानते हैं कि लखनऊ, सुल्तानपुर और जौनपुर में शहर के बीचोंबीच बहने वाली गोमती नदी माधौ टाण्डा के गोमत ताल से भूगर्भ जलधारा के रूप में निकलती है और करीब 13 जिलों को सीमाओं को छूती हुई कैथी में गंगा में विलीन हो जाती है। लखनऊ में गोमती अक्सर सुर्खियों में रहती है लेकिन बाकी जिलों में ऐसा नहीं है। सो, लखनऊ में बैठकर हम पूरी तरह जान भी नहीं पाते कि गोमती जहां से निकली है वहीं इसके सीने पर कितने घाव दे दिए गए हैं? क्यों उसका पानी लखनऊ आकर ठहर गया है और क्यों राजधानी से बाहर निकलते ही वह चंद लम्हों के लिए खुली हवा में सांस लेती है और फिर किस अवसाद में घिरकर गंगा की गोद में समाने की छटपटाती हुई भागती है।
यह अनुठा संयोग हुआ कि पहली बार गोमती के बहाने जल, जंगल, जमीन और आदमी के रिश्ते को समझने की कोशिश कर रहे पर्यावरणविदों विज्ञानियों, छात्रों और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह साझा पहल की कि गोमती के बारे में कोई बात करने के पहले गोमती की वास्तविक पीड़ा को समझा जाए और गोमती मित्र मंडल के रूप में उसके मित्रों की एक टोली बनाई जाए। एक रणनीति बनाकर गोमती नदी के साथ सामान्य रिश्ते बहाल करने के समाज और सरकार के साझा प्रयास हों।
यह विचार 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर होटल दयाल पैराडाइज में आयोजित एक संगोष्ठी में सबसे पहले सार्वजनिक हुआ। हालांकि यह विचार एक लंबे मंथन का नतीजा था। ठीक इसी समय यमुना बचाओ यात्रा चल रही थी। गंगा में मिलने वाली यमुना और गोमती जैसी सभी करीब एक हजार नदियों, इनकी सहायक नदियों और इनके जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा का जल संचित कर भूगर्भ को संरक्षित करने की योजनाएं भी तैयार हो रही थी।..,और इसी समय जापान में कुदरत के चौतरफा कोप की खबरे रोज अखबारी सुर्खियां बन रही थीं। जापान में भूकंप, सुनामी ज्वालामुखी और परमाणु विकरण के रूप में पेश आई दैवीय दुर्घटना कुदरत और इंसान के बीच विकास और सुविधाओं की अंधी दौड़ से बिगड़े रिश्तों को सुधारने की जरूरत बयान कर रही थी।
उ.प्र. जल बिरादरी से जुड़े सीडीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र मेहरोत्रा, लोकभारती के संगठन सचिव बृजेंद्र पाल सिंह, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरोनमेंटल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वेंकेटश दत्ता, विनोबा सेवा आश्रम के निदेशक रमेश भैया ने गोमती-गंगा यात्रा की रूपरेखा तैयार की। इसमें गोमती मित्र मंडल, कबीर शांति मिशन, गायत्री परिवार, माई क्लीन इंडिया, शुभ संस्कार समिति, जयंत फाउंडेशन के साथ पर्यावरणीय दृष्टि से नदी का अध्ययन करने के लिए एनबीआरआई व आईआईटीआर के एक दल को शामिल किया गया। हालांकि कुछ कारणों से इन दोनों संस्थानों का कोई दल यात्रा में साथ नहीं जा सका और अध्ययन दल की अगुवाई डॉ. दत्ता ने की और बाद में नदी से लिए गए नमूनों के विश्लेषण में अन्य संस्थानों ने भी मदद की। डॉ. दत्ता के अध्ययन दल में अंबेडकर युनिवर्सिटी के छात्र विनायक वंदन पाठक, शमशाद अहमद, आलोक कुमार, संदीप सिंह, अनुराग फांडेय ‘अनंत, जहांगीराबाद मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र अमित चौरसिया, सतीश कुमार यादव, हर्ष और सनी शामिल थे। ये छात्र नदी से ऑनस्पाट नमूने लेकर उनका विश्लेषण कर रहे थे। नदी पर डॉक्यूमेंटरी तैयार कर रहे थे और स्टिल फोटोग्राफी भी की। यात्रा शुरू होने से दो दिन पहले सिंचाई विभाग और भूजल विभाग के प्रमुख सचिव सुशील कुमार ने दोनों विभागों के स्थानीय अधिकारियों को यात्रा में विशेषज्ञ, तकनीकी सहायता और सुझाव परामर्श के लिए पत्र लिखा। मनरेगा कमिशनर ने भी अपने अधिकारियों को यात्रा के दौरान सहायता के लिए निर्देश दिए। यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों पर स्वामी आनंद स्वरूप, स्वामी विज्ञाननंद जी, आचार्य जितेंद्र जी ने मार्ग दर्शन किया। बृजेंद्र पाल, डॉ. नरेंद्र मेहरोत्रा, डॉ. वेंकटेश और उनकी टीम के अलावा शाहजहांपुर में सुखैता नदी पर श्रमदान के जरिए तीन ग्राम स्वराज्य पुल बनवाने वाले विनोबा सेवा आश्रम के रमेश भैया, पौधरोपण के लिए समर्पित आचार्य चंद्रभूषण, संत रामसेवक दास, गोपाल और श्रीकृष्ण पूरी यात्रा में साथ रहे। यात्रा माधौ टाण्डा से गोमती नदी तट और उसके निकट के स्थानों पर चौपहिया वाहनों, पद यात्रा, कुछ स्थानों पर नौका यात्रा, जन जागरण सभाएं और श्रमदान करने के साथ गोमती मित्र मंडल गठित करते हुए कैथी तक पहुंची। पूरी यात्रा में अध्ययन दल ने 30 स्थानों पर 60 से अधिक सैम्पल लिए। 20 स्थानों पर गोमती मित्रमंडलों का गठन हुआ। जल्द ही अध्ययन दल अपनी रिपोर्ट शासन को भी सौंपेगा और नदी के उद्गम, सहायक नदियों के संगम और गंगा से मिलन स्थल को इको फ्रेजाइल जोन घोषित कर इसे राज्य नदी के रूप में संरक्षित करने की मांग करेगा।
यह अनुठा संयोग हुआ कि पहली बार गोमती के बहाने जल, जंगल, जमीन और आदमी के रिश्ते को समझने की कोशिश कर रहे पर्यावरणविदों विज्ञानियों, छात्रों और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह साझा पहल की कि गोमती के बारे में कोई बात करने के पहले गोमती की वास्तविक पीड़ा को समझा जाए और गोमती मित्र मंडल के रूप में उसके मित्रों की एक टोली बनाई जाए। एक रणनीति बनाकर गोमती नदी के साथ सामान्य रिश्ते बहाल करने के समाज और सरकार के साझा प्रयास हों।
यह विचार 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर होटल दयाल पैराडाइज में आयोजित एक संगोष्ठी में सबसे पहले सार्वजनिक हुआ। हालांकि यह विचार एक लंबे मंथन का नतीजा था। ठीक इसी समय यमुना बचाओ यात्रा चल रही थी। गंगा में मिलने वाली यमुना और गोमती जैसी सभी करीब एक हजार नदियों, इनकी सहायक नदियों और इनके जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा का जल संचित कर भूगर्भ को संरक्षित करने की योजनाएं भी तैयार हो रही थी।..,और इसी समय जापान में कुदरत के चौतरफा कोप की खबरे रोज अखबारी सुर्खियां बन रही थीं। जापान में भूकंप, सुनामी ज्वालामुखी और परमाणु विकरण के रूप में पेश आई दैवीय दुर्घटना कुदरत और इंसान के बीच विकास और सुविधाओं की अंधी दौड़ से बिगड़े रिश्तों को सुधारने की जरूरत बयान कर रही थी।
उ.प्र. जल बिरादरी से जुड़े सीडीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र मेहरोत्रा, लोकभारती के संगठन सचिव बृजेंद्र पाल सिंह, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरोनमेंटल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वेंकेटश दत्ता, विनोबा सेवा आश्रम के निदेशक रमेश भैया ने गोमती-गंगा यात्रा की रूपरेखा तैयार की। इसमें गोमती मित्र मंडल, कबीर शांति मिशन, गायत्री परिवार, माई क्लीन इंडिया, शुभ संस्कार समिति, जयंत फाउंडेशन के साथ पर्यावरणीय दृष्टि से नदी का अध्ययन करने के लिए एनबीआरआई व आईआईटीआर के एक दल को शामिल किया गया। हालांकि कुछ कारणों से इन दोनों संस्थानों का कोई दल यात्रा में साथ नहीं जा सका और अध्ययन दल की अगुवाई डॉ. दत्ता ने की और बाद में नदी से लिए गए नमूनों के विश्लेषण में अन्य संस्थानों ने भी मदद की। डॉ. दत्ता के अध्ययन दल में अंबेडकर युनिवर्सिटी के छात्र विनायक वंदन पाठक, शमशाद अहमद, आलोक कुमार, संदीप सिंह, अनुराग फांडेय ‘अनंत, जहांगीराबाद मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र अमित चौरसिया, सतीश कुमार यादव, हर्ष और सनी शामिल थे। ये छात्र नदी से ऑनस्पाट नमूने लेकर उनका विश्लेषण कर रहे थे। नदी पर डॉक्यूमेंटरी तैयार कर रहे थे और स्टिल फोटोग्राफी भी की। यात्रा शुरू होने से दो दिन पहले सिंचाई विभाग और भूजल विभाग के प्रमुख सचिव सुशील कुमार ने दोनों विभागों के स्थानीय अधिकारियों को यात्रा में विशेषज्ञ, तकनीकी सहायता और सुझाव परामर्श के लिए पत्र लिखा। मनरेगा कमिशनर ने भी अपने अधिकारियों को यात्रा के दौरान सहायता के लिए निर्देश दिए। यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों पर स्वामी आनंद स्वरूप, स्वामी विज्ञाननंद जी, आचार्य जितेंद्र जी ने मार्ग दर्शन किया। बृजेंद्र पाल, डॉ. नरेंद्र मेहरोत्रा, डॉ. वेंकटेश और उनकी टीम के अलावा शाहजहांपुर में सुखैता नदी पर श्रमदान के जरिए तीन ग्राम स्वराज्य पुल बनवाने वाले विनोबा सेवा आश्रम के रमेश भैया, पौधरोपण के लिए समर्पित आचार्य चंद्रभूषण, संत रामसेवक दास, गोपाल और श्रीकृष्ण पूरी यात्रा में साथ रहे। यात्रा माधौ टाण्डा से गोमती नदी तट और उसके निकट के स्थानों पर चौपहिया वाहनों, पद यात्रा, कुछ स्थानों पर नौका यात्रा, जन जागरण सभाएं और श्रमदान करने के साथ गोमती मित्र मंडल गठित करते हुए कैथी तक पहुंची। पूरी यात्रा में अध्ययन दल ने 30 स्थानों पर 60 से अधिक सैम्पल लिए। 20 स्थानों पर गोमती मित्रमंडलों का गठन हुआ। जल्द ही अध्ययन दल अपनी रिपोर्ट शासन को भी सौंपेगा और नदी के उद्गम, सहायक नदियों के संगम और गंगा से मिलन स्थल को इको फ्रेजाइल जोन घोषित कर इसे राज्य नदी के रूप में संरक्षित करने की मांग करेगा।
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