लव तालाब में डेढ़ हेक्टेयर के क्षेत्र में पानी भरा है। इस रमणीक संरचना के आस-पास के किसानों ने गर्मियों में सब्जी की फसल सहित तीन-तीन फसलें ली हैं। यहाँ अब गर्मी में भी ट्यूबवेल पानी दे रहे हैं। तालाब के दोनों ओर 25-25 बीघा जमीन सिंचित हो रही है। जबकि, तालाब बनने के पूर्व गाँव के सभी नलकूप सूख जाया करते थे। लव तालाब के पास ही इसका भाई यानी कुश तालाब है। पानी आन्दोलन की जड़ें जमाने में पंचायत की एक पुरानी तलैया की भी सराहनीय भूमिका रही है।
हरनावदा यानी जंगलों से भरा गाँव। मोरों की शरण स्थली। लव-कुश नाम के दो तालाबों वाला गाँव। एक ऐसा गाँव जिसने तैंतीस साल पहले ‘पानी रोको’ के दर्शन किये थे। उसके चिन्ह आज भी मौजूद हैं।हरनावदा यानी डबरियों का गाँव। तलैया का गाँव। सूखे में भी रबी की फसल लेने वाला और जिन्दा नलकूप, जिन्दा कुएँ और जिन्दा समाज वाला गाँव।
...पूर्व ग्वालियर रियासत का उज्जैन से 21 किमी. दूर नरवर क्षेत्र का प्रमुख गाँव।
...लेकिन भाई साहब, इसकी एक और बड़ी पहचान तो हमने आपको अभी बताई ही नहीं है। ...आपने यह तो अवश्य सुना होगा कि मृत्युशैया पर कोई व्यक्ति अपनी अन्तिम इच्छा में प्रियजनों को अपनी सम्पत्ति का बँटवारा करने की बात कह जाता हो। या फिर इसी तरह की कुछ और भी बातें।
...लेकिन, यह तो बिरली बातों में ही सुना होगा कि कोई व्यक्ति अपनी अन्तिम इच्छा में अपनी जमीन पर विशाल तालाब बनाने की बात कह दुनिया छोड़कर चला जाये…!! और उसके परिवार वाले सादर भावनाओं के साथ उस तालाब को चन्द ही दिनों में तैयार करवा दें। पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं ने तो इस तरह के कार्य सम्भव हो, कराए होंगे- परन्तु एक किसान ऐसा कुछ कार्य करवा कर अमर हो जाये- यह तो अपने आप में बेमिसाल ही माना जाएगा।
जी हाँ, हरनावदा की एक बड़ी पहचान यह भी हो गई है। यहाँ के चिरौंजीलाल पण्ड्या ने अपनी अन्तिम इच्छा में यही जाहिर किया था। पानी आन्दोलन में इस जज्बे ने उत्प्रेरक का काम किया और हरनावदा अब पानीदार हो गया है। यहाँ की आर्थिक स्थिति में एक व्यापक बदलाव आ रहा है।
हरनावदा की कहानी बड़ी दिलचस्प है। श्री एम. एल. वर्मा और उदयराज पँवार हैं- “उज्जैन में पानी आन्दोलन के फैलाव के लिये स्थान-स्थान पर जल-सम्मेलन किये गए थे। घटिया के एक जल सम्मेलन में पानी-संवाद से श्री पण्ड्या इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सबके बीच में खड़े होकर पूछा कि मैं अपने ट्यूबवेल को रिचार्ज करना चाहता हूँ तथा साथ ही अपनी स्वयं की जमीन पर एक तालाब भी बनाना चाहता हूँ। इसके लिये मुझे तकनीकी मदद कौन उपलब्ध कराएगा।” परियोजना अधिकारी श्री नरेरा और श्री वर्मा ने अपनी मंजूरी दी और हरनावदा आकर तालाब के लिये जमीन देखी।
विधि को कुछ और ही मंजूर था! कुछ दिनों बाद चिरौंजीलाल पण्ड्या का स्वर्गवास हो गया। मृत्यु के पहले उन्होंने अपने घर के सभी परिजनों को एकत्रित किया और कहा कि मेरा सपना था कि गाँव के पानी आन्दोलन में खुद अपनी जमीन पर एक बड़ा तालाब बनवाऊँ। अतः मेरी इस इच्छा को अवश्य पूरा करना। उनके छोटे भाई गणेशीलाल पण्ड्या ने इस सपने को साकार करके ही दम लिया।
...यह एक विशाल तालाब है। इसके पास पानी के अलावा किसी आत्मा के पर्यावरण-गाँव और जल प्रेम की भी अनुभूति का अहसास भी आप कर सकते हैं। गणेशीलाल पण्ड्या कहते हैं- “मोटे तौर पर यह तालाब पौने दो लाख रुपए में बना है। साधन सब हमारे पास मौजूद थे। केवल जेसीबी मशीन और कुछ श्रमिक बाहर से बुलाये गए थे। यह तालाब 22 बीघा जमीन पर बना हुआ है। 50 हजार प्रति बीघा के हिसाब से इस जमीन की कीमत ही 11 लाख रुपए के करीब है।”
...इस तालाब से 4 नलकूप चालू हो गए, जो बरसात के बाद ही बोल जाया करते थे। ये समीप के ही हैं। हो सकता है, कुछ आगे भी और नलकूप रिचार्ज हो रहे हों। इन नलकूपों से जुड़े किसान अपनी जमीन से अब तीन-तीन फसलें ले रहे हैं। रबी, खरीफ के अलावा गर्मी में इन ट्यूबवेल वालों ने सब्जियों की भी भरपूर फसल ली है। इसके पहले ये किसान केवल खरीफ की ही फसल ले पाते थे। इन नलकूपों से करीब 30 एकड़ क्षेत्र में सिंचाई हो रही है।
हरनावदा में आपको चारों ओर मोर नजर आएँगे। वृक्षों की संख्या भी इस गाँव के सौभाग्य का एक हिस्सा है। पण्ड्या जी के तालाब के आस-पास झाड़ों के झुण्ड में गाँव के सारे मोर विचरण करते हैं।
हरनावदा के समीप के गाँव पिपलौदा द्वारकाधीश में आपको - तालाबों में राम-दरबार के दर्शन कराए थे।
अब यहाँ आपको भगवान राम के पुत्र लव-कुश से मिलवाएँगे। ये भी तालाब के रूप में मौजूद हैं।
लव तालाब में डेढ़ हेक्टेयर के क्षेत्र में पानी भरा है। इस रमणीक संरचना के आस-पास के किसानों ने गर्मियों में सब्जी की फसल सहित तीन-तीन फसलें ली हैं। यहाँ अब गर्मी में भी ट्यूबवेल पानी दे रहे हैं। तालाब के दोनों ओर 25-25 बीघा जमीन सिंचित हो रही है। जबकि, तालाब बनने के पूर्व गाँव के सभी नलकूप सूख जाया करते थे। लव तालाब के पास ही इसका भाई यानी कुश तालाब है। पानी आन्दोलन की जड़ें जमाने में पंचायत की एक पुरानी तलैया की भी सराहनीय भूमिका रही है। व्यवस्था और समाज ने मिलकर इसकी सफाई, दुरुस्तीकरण और गहरीकरण किया। इससे मवेशियों को पानी मिला, साथ ही आस-पास के नलकूप भी जिन्दा हो उठे। पानी आन्दोलन के अध्ययन के दौरान एक बात अवश्य सामने आई कि गाँव में जल संवर्धन का एक ही बेहतर कार्य और उससे फसल उत्पादन से लेकर तो समस्त सामाजिक-आर्थिक बदलाव यदि समाज के सामने आते हैं तो जल संचय अभियान गति पकड़ने लगता है।
हरनावदा में डबरी निर्माण ने भी अनेक परचम लहराए हैं। यहाँ अभी तक 70 डबरियाँ बन चुकी हैं। श्री गणेशीलाल पण्ड्या के अलावा सर्वश्री नागेश्वर, दयाराम, शिवनारायण जागीरदार, अतुल, दशरथ और बाबूलाल पण्ड्या प्रमुख डबरी निर्माता हैं। यहाँ आँकड़ा जल्दी ही सौ की संख्या पार करने जा रहा है।
श्री गणेशीलाल पण्ड्या की डबरी से बीस बीघा जमीन में सिंचाई हो रही है। इससे रबी की फसल ली जा रही है। डबरी के आस-पास के सभी नलकूप चल रहे हैं। पहले यहाँ रबी के सन्दर्भ में स्थिति शून्य थी। बकौल पण्ड्या- “हम गाँव के लोग तो यही कहते हैं कि उज्जैन में निजी क्षेत्र में शुरू हुए डबरी आन्दोलन ने किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिये संजीवनी का काम किया है।” स्वयं पण्ड्या अपनी उसी डबरी से शरबती गेहूँ की फसल ले रहे हैं। यह प्रति बीघा दो क्विंटल के हिसाब से उत्पादित होगा। मोटे अनुमान के अनुसार प्रति बीघा दो हजार रुपए के हिसाब से रबी में खाली पड़ी रहने वाली जमीन से आय सम्भव हो सकेगी। आपका अनुभव है कि एक डबरी यदि दो बीघे में है तो वह कम-से-कम 10 बीघे के लिये पानी की व्यवस्था कर देती है। किसान डबरी बनाने में जितना पैसा खर्च करता है वह आसानी से तुरन्त ही निकल जाता है। सरकारी मदद भी बेकार नहीं गई है।
गाँव में दयाराम और उनके बेटे द्वारा बनाई गई डबरियों की भी धूम मची हुई है। इनसे बहुत अच्छा पानी रिचार्ज हुआ है। इनके आस-पास के बीस ट्यूबवेल जिन्दा हो गए। पिछले साल यहाँ कुछ नहीं था। सभी दूर सूखा ही सूखा था, लेकिन इस बार सूखे के बावजूद ट्यूबवेल का यूँ जिन्दा होना सुखद आश्चर्य की बात है। इन ट्यूबवेलों से मोटे अनुमान के मुताबिक 300 बीघा जमीन सिंचित हो सकती है। अधिकांश क्षेत्र में रबी की फसल भी ली जा रही है।
...आपको याद होगा, हमने शुरू में भी आपको कहा था- कोई तैंतीस साल पहले यह गाँव ‘पानी रोको’ से रूबरू हो चुका है! सन 1968 में राज्य शासन ने हरनावदा गाँव का चयन मध्य प्रदेश के उन गाँवों के लिये किया था, जहाँ पानी व मिट्टी के संरक्षण के लिये मेड़बन्दी का सरकारी अभियान चलाया जा रहा था। हरनावदा में कुछ समय के लिये इस कार्य के लिये एक दफ्तर की भी व्यवस्था की गई थी। स्व. मोतीलाल पण्ड्या (गणेशीलालजी के पिता) ने इस कार्य में महती भूमिका अदा की थी। गाँव में बाद में तो अनेक लोगों ने अपनी मेड़बन्दी तोड़ दी, लेकिन पण्ड्या परिवार के खेतों में यह अभी भी मौजूद है।
...उज्जैन के पानी आन्दोलन में हरनावदा का नाम एक और वजह से भी जाना जाता है। पण्ड्या परिवार की निजी जमीन पर बने इस तालाब को देखकर एक कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष महेश पटेल ने घोषणा की कि निजी भूमि पर उज्जैन जिले में बनाए गए सर्वश्रेष्ठ तालाब को एक लाख रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
...मोरों के इस गाँव में, डबरियों और वृक्षों के इस गाँव में - 100 ट्यूबवेल में से 60 जिन्दा हो गए हैं। मोटे तौर पर रबी की फसल का रकबा सूखे के बावजूद पानी आन्दोलन की वजह से पचास फीसदी बढ़ गया है।
...आप भूल गए, हमने कहा था- गाँव का जिन्दा समाज भी इसकी एक और पहचान है।
...कभी आप हरनावदा जाएँगे तो खुद महसूस करेंगे कि क्यों नहीं मेहमान बनेंगी यहाँ पानी की बूँदें। गाँव से जल्दी न जाने का आग्रह, किसी आग्रह के कच्चे इनसान को तो मुसीबत में डाल दे!
...फिर भला बूँदें किस खेत की मूली हैं, जो रुकने के आग्रह को टाल दें!
...और चलते-चलते आपको एक और बात बता दें।
...पानी आन्दोलन के सेहरे में एक और ‘मोर-पंख’ की भाँति श्री गणेशीलाल पण्ड्या अपनी निजी जमीन पर एक और तालाब बनाने का सपना जल्दी ही साकार करने जा रहे हैं।
बूँदों के तीर्थ (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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Post By: RuralWater
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