ऐसे समय में जब भारत की अर्थव्यवस्था कुलांचे मार रही है, पूरी दुनिया भारत को आर्थिक महाशक्ति के तौर पर स्वीकार रही है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 2047 तक विकसित भारत का सपना 140 करोड़ भारतवासियों की आंखों में पल रहा है तो उस दौर में भी विकास के नित नए कीर्तिमान रचते भारत में जल संकट एक कड़वी सच्चाई है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हम सभी इस तथ्य से भली भांति अवगत हैं कि भारत में पीने के पानी के स्रोत सीमित हैं। एक राष्ट्र के रूप में जैसे-जैसे देश प्रगति कर रहा है, विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने के करीब पहुंच रहा है। जल-संकट दिनों-दिन गंभीर होता जा रहा है। जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि, कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में पानी की बढ़ती मांग और जलवायु परिवर्तन जल-संसाधनों के उपलब्ध स्रोतों को प्रभावित कर रहे हैं। देश में जिस तेजी से भूजल का दोहन हो रहा है, उससे 2025 तक औसत प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1341 क्यूबिक मीटर और 2050 तक तो यह और कम होकर 1140 क्यूबिक मीटर रह जाने की आशंका जताई जा रही है। देश के कई राज्य तो अभी से ही स्वच्छ पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। अंधाधुंध भूजल दोहन अब गले की हड्डी बन चुका है। 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी।
संकट और बेंगलुरु
भारत के आईटी हव बेंगलुरु के हालिया संदर्भ में जल संकट की समस्या और प्रासंगिक हो जाती है। बैंगलुरु में पानी का एक टैंकर, की 500 रुपये में बिकता था, 2000 रुपये में बिक रहा है। कालोनियों से लेकर नामी-गिरामी सोसायटी तक में पानी के लिए लंबी लाइन लग रही है। यह लाइनें चिंता के लकीरें बढ़ाने वाली हैं, लेकिन ठीक इसी समय गोवा, हरियाणा, दादर और नगर हवेली समेत कई अन्य राज्यों द्वारा जल क्षेत्र में हासिल उपलब्धियां भविष्य के प्रति आश्वस्त करती हैं, जल संकट से निपटने के लिए प्रत्येक ग्रामीण घर तक पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को इंगित करना अनिवार्य है, जल संकट से निपटने और जल संरक्षण की अलख जगाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने 2019 में पहली बार अलग ‘जल शक्ति मंत्रालय’ का गठन किया। मंत्रालय ने जल जीवन मिशन के जरिए 2024 तक ग्रामीण भारत के प्रत्येक घर को नल से स्वच्छ जल मुहैया कराने के लिए की प्रतिबद्धता जताई है।
जल जीवन मिशन के तहत गोवा की उपलब्धियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है। गोवा वैश्विक स्तर पर भारत की प्रकृति का मानक बन गया है। यह देश का पहला राज्य है, जिसने शत-प्रतिशत ग्रामीण घरों तक नल से जल की आपूर्ति सुनिश्चित की। गोवा में 2.30 लाख ग्रामीण परिवारों को शुद्ध जल की आपूर्ति हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2019 के दिन लाल किले के प्राचीर से मिशन का शंखनाद किया। इसका उद्देश्य गुणवत्ता और पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी घर-घर पहुंचाना था। इसमें कोई संदेह नहीं की गोवा के मुख्यमंत्री डॉ प्रमोद सावंत ने प्रधानमंत्री के विजन को न केवल पूरा किया बल्कि ईमानदारी के साथ योजना को जमीनी स्तर पर भी लागू किया। उत्तरी गोवा के एक 1.65 लाख घरों, साउथ गोवा के 98 हजार घरों में शुद्ध जल की आपूर्ति हो रही है। यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 15 अगस्त 2019 तक गोवा में नल कनेक्शन 24% ही था।
‘नल से जल’ सफल पहल
आज गोवा के सभी स्कूल, आंगनबाड़ी, सार्वजनिक संस्थान, इमारतें स्वास्थ्य केंद्र, समुदाय केंद्र, आश्रमशालाओं समेत अन्य सरकारी कार्यालय में नल कलेक्शन लग चुका है। गोवा की इस उपलब्धि से ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण की भावना भी सुदृढ़ हुई है। गोवा के सभी गांव में ‘ग्राम जल और स्वच्छता’ या ‘पानी समितियां’ का गठन किया गया इन समितियां में आधी आबादी का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया। प्रत्येक गांव में पांच महिलाओं को जल परीक्षण के लिए प्रशिक्षित किया गया। गोवा में जल क्षेत्र में हुई क्रांतिकारी सुधारों का सकारात्मक असर अन्य सेक्टरों पर भी पड़ा है। गोवा कभी सब्जियों-फलों के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र पर निर्भर करता था, आज ना केवल घरेलू मांग की 931 किलो सब्जियां निर्यात की, पिछले साल यह मात्र 20 हजार 709 किलो थी। आज गोवा में ऐसे आउटलेट की संख्या 950 तक पहुंच चुकी है। जहां लोग जहां से लोग आसानी से सब्जी खरीद सकते हैं।
मुख्यमंत्री सावंत के नेतृत्व में गोवा जल क्षेत्र में ही नहीं अपितु अन्य सेक्टर में भी विकास की नहीं इबारत लिख रहा है। केंद्र की योजनाएं लागू करने के मामले में भी गोवा एक नजीर है। पूरे राज्य में उज्ज्वला योजना 100% लागू की गई। गोवा आज केरोसिन फ्री स्टेट है। शत प्रतिशत शौचालय निर्माण वाला यह पहला देश का पहला राज्य है।
लेखक संजीव कुमार मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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