dadaji ramaji khobragade
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के नांदेड़ गांव में करीब डेढ़ एकड़ वाले किसान दादाजी रामाजी खोब्रागड़े ने खेती करते हुए अपने अनुभव और पारखी दृष्टि से धान की ऐसी किस्म विकसित करने में सफलता पाई जो ऊंचे दर्जे की अधिक उपज देने वाली थी। एचएमटी धान महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, और आंध्रप्रदेश में बहुतायत में उपयोग किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से इस धान को विकसित करने वाले किसान की हालत में कोई सुधार नहीं आया है और वह आज भी अपने छोटे जमीन के टुकड़े पर गुजर कर गुमनामी की जिंदगी जी रहा है।
छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध चावल है एचएमटी। बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा कि यह महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़ में आया है। इसे एक बेहद मामूली किसान ने विकसित किया है जिसका नाम है दादाजी रामाजी खोब्रागड़े। एचएमटी चावल का इस्तेमाल करने वाला आम आदमी उनके बारे न जाने यह तो समझ में आता है लेकिन धान के अनुसंधान की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले विश्वविद्यालय के लिए भी यह नाम अजनबी सा है। दादाजी खोब्रागड़े की कहानी इस बात की एक झलक है कि फसलों की अलग-अलग किस्मों का संरक्षण और संवर्धन करने वाले किसानों की पेटेंट के इस युग में क्या हैसियत है? महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में एक छोटे किसान हैं दादाजी रामाजी खोब्रागड़े। देश के लाखों किसानों की तरह वे भी अपने खेत में नए-नए प्रयोग करते थे। इस प्रक्रिया में उन्होंने धान की नई और अधिक उपज देने वाली किस्म खोजी और उसे विकसित किया।ये धान था एचएमटी जो आज महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, और आंध्रप्रदेश में बहुतायत में उपयोग किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से इस धान को विकसित करने वाले किसान की हालत में कोई सुधार नहीं आया है और वह आज भी अपने छोटे जमीन के टुकड़े पर गुजर कर गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। अलबत्ता, पंजाब राव कृषि विद्यापीठ, अकोला ने इस पर अपना लेबल लगाने के लिए किसान के अनुसंधान के नाम पर इस किस्म के बीज ले लिए और शुद्ध कर पीकेवी-एचएमटी के नाम से अधिकृत रूप से जारी कर दिया। किसान को उसकी खोज और योगदान से वंचित कर दिया और उसका उल्लेख तक नहीं किया। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले का नागभिड़ तालुका के नांदेड़ गांव के करीब डेढ़ एकड़ वाले किसान दादाजी रामाजी खोब्रागड़े ने खेती करते हुए अपने अनुभव और पारखी दृष्टि से 1983 से 1989 के दौरान धान की ऐसी किस्म विकसित करने में सफलता पाई जो ऊंचे दर्जे की अधिक उपज देने वाली थी।
इस किस्म की गुणवत्ता और उत्पादकता को देखकर आसपड़ोस के किसान भी खोब्रागडे़ से बीज लेकर अपने खेत में उगाने लगे। ज्यादा उपज होने पर इस बार अपने ही गांव के भीमराव शिंदे को भी करीब एक क्विंटल बीज दिया। भीमराव ने अपने खेत में इसे लगाया तो अच्छा उत्पादन हुआ। एक क्विंटल धान चार एकड़ में बोने पर उत्पादन हुआ 90 बोरा यानी करीब 75 क्विंटल। घर की जरूरत से ज्यादा धान होने पर शिंदे इस धान को बेचने के लिए तलौदी कृषि उपज मंडी लेकर गए। यह पहला मौका था जब खोब्रागड़े का धान बाजार पहुंचा।
जब 1990 को तलौदी मंडी में धान का बोरा खुला तो व्यापारियों की आंखें चमक गई। वे पूछने लगे यह कौन सी किस्म का धान है? शिंदे ने बताया कि उनके गांव के एक छोटे कास्तकार ने इस धान को विकसित किया है। शिंदे की बात पर व्यापारियों को भरोसा नहीं हुआ। उन्होंने इस धान को लेकर दूसरे धान से मिलान किया पर उनसे यह धान मेल नहीं खाया। व्यापारी परेशान हो गए। उनकी चिंता यह थी कि इस धान का कोई नाम नहीं है। इसे कैसे बेचा जाए? क्योंकि बिक्री से पहले मंडी के रजिस्टर व रसीद में इसकी किस्म का नाम दर्ज कराना जरूरी होता है। सो व्यापारियों ने इस धान को एक लोकप्रिय कलाई घड़ी का नाम एचएमटी दे दिया। यह किस्म भी अपनी मूल किस्म की तरह लेकिन कुछ भिन्नता लिए महीन, ज्यादा उपज और संभावना वाली साबित हुई। किसानों और उपभोक्ताओं ने इसे बेहद पसंद किया। इससे इस धान को अच्छा मूल्य मिलना निश्चित हो गया। दो वर्षों में यह धान की प्रजाति किसानों में काफी लोकप्रिय हो गई। बाजार तथा उपभोक्ताओं में उसकी खासी मांग देखी गई। महीन, बारीक चावल होने से व्यापारिक मांग की संभावना को देखकर इस किस्म को मिल वालों ने भी क्षेत्र में फैलाया।
![अपने खेत में एचएमटी धान की फसल को देखते दादाजी रामाजी खोब्रागड़े अपने खेत में एचएमटी धान की फसल को देखते दादाजी रामाजी खोब्रागड़े](/sites/default/files/hwp/import/images/dadaji ramaji khobragade1.jpg)
एचएमटी की विदर्भ में मूक क्रांति के कारण क्षेत्र में स्थित पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला पर किसानों की मांग के मद्देनजर इसको अधिकृत रूप से जारी करने का दबाव भी बनने लगा। विद्यापीठ के दो कृषि वैज्ञानिक वर्ष 1994 में प्रयोग और अनुसंधान के लिए खोब्रागड़े से उस धान के बीज ले गए। इसे उन्होंने लिखित रूप से स्वीकार भी किया है। बाद में वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होंने उस धान की किस्म को शुद्ध बनाया। शुद्धिकरण के बाद पंजाबराव कृषि विद्यापीठ अकोला ने उसे पीकेवी-एचएमटी का नाम दिया तथा 1998 में यह प्रजाति अधिकृत रूप से जारी की। यह बीज राज्य बीज निगम के जरिये बेचा जा रहा है। जबकि दादाजी खोब्रागड़े इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करने के बावजूद आज भी उसी हालत में गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
Path Alias
/articles/ecaematai-dhaana-kao-vaikasaita-karanae-vaalaa-kaisaana-gaumanaamai-maen
Post By: Hindi