पृथ्वी की सतह पर अचानक महसूस किये जाने वाले कम्पनों को हम भूकम्प या भूचाल कहते हैं। यहाँ उत्तराखण्ड के लोग स्थानीय भाषा में इन्हें चलक कहते हैं जिसका तात्पर्य है कि यहाँ के लोग भूकम्प के झटके प्रायः महसूस करते रहे हैं।
इन कम्पनों के कारण कभी-कभी घरों, मकानों एवं अन्य संरचनाओं को भारी नुकसान होता है परन्तु भूकम्प के यह झटके हमेशा ही इतने तेज नहीं होते हैं। यह इतने धीमे भी हो सकते हैं कि संवेदनशील उपकरण न होने पर हमें इनके आने का पता ही न चल पाये। आपको शायद विश्वास न हो पर हमारे द्वारा महसूस न किये जाने वाले यह छोटे भूकम्प काफी बड़ी संख्या में नियमित रूप से आते हैं।
भूस्खलन या बाढ़ की तरह हमें अपने आस-पास भूकम्प आने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं दिखायी देता है और फिर यह आते भी तो काफी लम्बे समय के बाद हैं। शायद इसी के कारण कई बार लोगों को ऐसा लगने लगता है कि उनका क्षेत्र पहली बार भूकम्प से प्रभावित हो रहा है। ऐसे में भूकम्प के कारणों की खोज में वह प्रायः पिछले कुछ समय में क्षेत्र में हुयी घटनाओं की विवेचना करते हैं और भूकम्प को क्षेत्र में घटित किसी अपशकुन या मान्यता के टूटने या अन्य किसी असामान्य घटना से जोड़ कर देखने लगते हैं और इसे दैवीय प्रकोप मान लेते हैं।
भूकम्प आने के सबसे पुराने अभिलेख ईसा पूर्व 1831 में चीन के सैन्डोंग प्रान्त से मिलते हैं और ईसा पूर्व 780 में झो (Zhou) साम्राज्य के समय से चीन में आये भूकम्पों के नियमित अभिलेख उपलब्ध हैं। ईसा पश्चात 132 में हॉन साम्राज्य के समय में झांग हेंग (Zhang Heng; 79-139 AD) ने भूकम्पीय गतिविधियों के साथ ही भूकम्पीय तरंगों की दिशा का पता लगाने वाला यंत्र बना लिया था। हेंग का मानना था कि भूकम्प हवा की गतिविधियों के कारण आते हैं और उनके द्वारा बनाये गये यांत्रिक उपकरण (जिसे हम भूकम्प संसूचक या seismocope कहते हैं) में लगे हुये धातु के 08 ड्रैगनों में से भूकम्पीय तरंगों की दिशा वाले ड्रैगनों के मुँह से जुड़ी नली से होकर काँसे की गेंद नीचे बने धातु के 08 मेंढ़कों में से उस दिशा वाले मेंढ़क के मुँह में गिर जाती थी। हेंग का बनाया यह उपकरण 600 किलोमीटर दूर आये भूकम्प का भी पता लगा सकता था। |
कोई ठीक-ठाक कारण समझ में न आने की वजह से भूकम्प के साथ अनेकों किवदंतियां जुड़ गयी हैं और इसे प्रायः ईश्वरीय प्रकोप के रूप में देखा जाता रहा है। कहीं पृथ्वी को कछुए या मछली की पीठ के ऊपर स्थित बताया गया है तो कहीं नाग के फन के ऊपर। इन प्राणियों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों को ही लोगों के द्वारा भूकम्प के लिये उत्तरदायी माना जाता रहा है। इस प्रकार की मान्यता केवल हमारे यहाँ ही नहीं है। दुनिया भर में लोगों ने अपनी मान्यताओं व परम्पराओं के अनुसार भूकम्प के कारणों की विवेचना के प्रयास कुछ-कुछ हमारी तरह ही किये हैं।
भूकम्प चाँद पर भी आते हैं पर उनकी आवृत्ति या बारम्बारता तथा परिमाण पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों की अपेक्षा काफी कम होता है। पृथ्वी व चाँद के मध्य की दूरी के बढ़ने व घटने के कारण उत्पन्न होने वाले बलों को इन भूकम्पों भूकम्पों के लिये उत्तरदायी माना जाता है। चाँद पर आने वाले इन भूकम्पों का केन्द्र (hypocenter) अपेक्षाकृत काफी गहरायी में होता है और यह ज्यादातर चाँद की सतह और केन्द्र के बीच स्थित होता है। |
भूकम्प के कारणों के बारे में ठीक से कुछ समझ में न आ पाने की वजह से अपने आस-पास होने वाली प्राकृतिक घटनाओं में से भूकम्प के कारणों के बारे में हम सबसे बाद में पता लगा पाये। आपको शायद विश्वास न हो पर 1950-60 तक हम भूकम्प के कारणों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते थे। तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों के बाद भी भूकम्प से जुड़े कई प्रश्नों के सटीक उत्तर आज भी हमारे पास नहीं हैं।
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) |
|
क्रम |
अध्याय |
1 |
|
2 |
|
3 |
|
4 |
|
5 |
|
6 |
|
7 |
|
8 |
|
9 |
|
10 |
|
11 |
|
12 |
भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
13 |
|
14 |
|
15 |
|
16 |
|
17 |
|
18 |
|
19 |
|
20 |
TAGS |
bhukamp in hindi, bhukamp ke kaaran in hindi, bhukamp ke prakaar in hindi, bhukamp se bachane ke upaay in hindi, bhukamp se bachaav in hindi, earthquake in hindi, uttrakhand bhukamp in hindi, bhuchal in hindi, |
/articles/earthquake