धरती का अस्तित्व खतरे में

प्लास्टिक
प्लास्टिक

जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका प्लास्टिक के कई अदृश्य खतरे हैं आज विज्ञान ने मानव के जीवन को और भी अधिक सरल और सुविधाजनक बना दिया है। विज्ञान और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग ने प्राकृतिक वातावरण को दूषित ही नहीं किया, बल्कि तकनीक के इसी अंधाधुंध प्रयोग ने धरती के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। इस संबंध में जो सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है, वह है प्लास्टिक का अधिक से अधिक प्रयोग।

हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका प्लास्टिक कई अदृश्य खतरों का कारण बनता जा रहा है। प्लास्टिक न केवल इंसानों, बल्कि प्रकृति और वन्यजीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है, जिसमें से आधा कूड़ा यानी करीब 3 हजार टन अकेले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु से ही निकलता है। इस प्लास्टिक कूड़े में से लगभग 0,376 टन कूड़ा एकत्रित नहीं हो पाता और खुले मैदानों में जहां-तहां फैला रहता है। हवा से उड़कर ये खेतों, नालों और नदियों में पहुंच जाता है तथा नदियों से समुद्र में। जहां लंबे समय से मौजूद प्लास्टिक पानी के साथ मिलकर समुद्री जीवों के शरीर में पहुंच रहा है।

वर्ष 205 में “साइंस जर्नल” में छपे आंकड़ों के अनुसार हर साल 5.8 से 2.7 मिलियन टन के करीब प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है। उधर मैदानों और खेतों में फैला प्लास्टिक कुछ अंतराल के बाद धीरे- धीरे जमीन के अंदर दबता चला जाता है तथा जमीन में एक लेयर बना देता है। इससे वर्षा का पानी ठीक प्रकार से भूमि के अंदर नहीं पहुंच पा रहा है और जो पहुंच भी रहा है, उसमें माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाने लगे हैं, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है।

दरअसल अधिकांश प्लास्टिक लंबे समय तक नहीं टूटते हैं, बल्कि ये छोटे छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर या इससे छोटा होता है। देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है।अब तक के अध्ययनों से यह साबित हो गया है कि दुनिया के महासागरों में साल 200 तक तकरीबन 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा मिल चुका है और दिन-ब-दिन इसमें बढ़ोत्तरी जारी है, जो खतरनाक संकेत है।

प्लास्टिक के दुष्प्रभाव

प्लास्टिक कूड़े से भूमिगत जल, जमीन, समुद्री जीव एवं पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है, क्योंकि कुछ प्लास्टिक जो 50 माइक्रोन से कम होते हैं और जिनका पुनरर्चक्रण नहीं हो पाता, वे सतह में लंबे समय तक रहने के कारण वातावरण को दूषित करते हैं। यदि प्रकृति से प्लास्टिक के कचरे की समस्या को दूर करना है, तो इसके लिए सरकार के साथ-साथ लोगों की भागीदारी जरूरी हो जाती है, जिसमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि प्लास्टिक शैलियों का निराकरण।

 

अधिकांश प्लास्टिक पॉलीप्रोपाइलीन से बना होता है, जिसे पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से बनाया जाता है। जो जलाने पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फर डाइऑक्साइड, डाइऑक्सिन, फ्यूरेन और भारी धातुओं जैसे खतरनाक रसायन छोड़ता है, जिस कारण सांस संबंधी बीमारियां, चक्कर आना और खांसी आने लगती है। और सबसे खतरनाक बात यह भी है कि भारत में प्लास्टिक का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है।

कूड़े को अलग करना है जरूरी प्लास्टिक वेस्ट से धरती की कोई भी सतह अछूत नहीं रही है। यहां तक की इसका दुष्प्रभाव धरती के भीतरी सतह तक पहुंच चुका है। धीरे-धीरे प्लास्टिक अपनी एक सतह बनाता जा रहा है, जिसके कारण वर्षा का पानी धरती के अंदर तक पहुंच नहीं पाता और इस कारण ग्राउंड वाटर की समस्या पैदा हो रही है।

जब कूड़े का सही ढंग से पृथक्करण नहीं हो पाता है, तब इस कूड़े का डिस्पोजल लैंडफिल के माध्यम से किया जाता है, जो कि बहुत ही खतरनाक है, क्योंकि लैंडफिल में लीचेट नामक एक रसायन निकलता है, जो कि भूजल को दूषित करता है एवं इसको खतरनाक भी बनाता है। इसके कारण यह पानी पीने लायक नहीं रहता है और इसी तरह अगर यह डिस्पोजल चलता रहा, तो धीरे-धीरे वह दिन दूर नहीं जब पूर्ण रूप से भूजल पानी पीने लायक नहीं बचेगा।

ऐसे प्लास्टिक जिनका पुनर्चक्रण संभव नहीं हो पाता है, उनका प्रयोग सड़क की सतह तैयार करने में और ईंधन उत्पादन में किया जाता है और इंसीनरेशन के माध्यम से उनका डिस्पोजल किया जाता है।इको ब्रिक प्लास्टिक कूड़े को पूर्ण रूप से तो खत्म नहीं करती, परंतु प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को कम जरूर करती है। यदि प्रत्येक नागरिक प्लास्टिक को इको ब्रिक के रूप में प्रयोग करे, तो वातावरण में प्लास्टिक के फैलाव को रोका जा सकता है व प्रत्येक घर के आंगन में, पार्को में प्रकृति की संदरता बढ़ाई जा सकती है। इससे वातावरण शुद्ध और प्रदूषण मुक्त हो सकेगा।

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Post By: Shivendra
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