प्रस्तावना
नगर के मध्य कुओं, तालाबों, मंदिरों तक जल-जीवन को बचाने के लिए अपने पारंपरिक जल-संरक्षण के विधियों के पुनरुत्थान की पहल में भागीदारी का न्यौता देते हुए पुनः जल में भरी गगरियों को जय-सागर तालाब में रखकर पूजन के साथ पानी पुनरुत्थान पहल में भागीदारी का संकल्प लेकर लिए गए जल को वापस उसी में छोड़ा गया। इस कलश यात्रा का उद्देश्य “पानी पुनरुत्थान पहल” जय सागर तालाब में श्रमदान अनुष्ठान का संदेश भागीदारी के लिए नगरवासियों को प्रेरित करना था। पदयात्रा का शुभारंभ सिंधोलिया गांव से शुरू हुआ टोली नं. 1 के कार्यक्रम जैसा ही लगभग टोली नं. 2 में भी रहा टोली नं. 2 की विशेषता यह रही कि पंचायती राज व स्थानीय सरकारी कर्मचारी पदयात्रा में विशेष रूप से शामिल रहे। सभी जगह आम सभा की बैठकों में स्थिती थोड़ी तनावपूर्ण भी रही क्योंकि ग्रामीणों ने कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों से शिकायतें की ये कर्मचारी, जनप्रतिनिधी अतिक्रमण हटाने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं लेते हैं।
धार्मिक आस्था से जन्मा शब्द पदयात्रा, कड़ी शारीरिक मेहनत करके अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने का तरीका सदियों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। GVNML का धर्म से कोई विरोध या घृणा नहीं है बस इतना है कि हम अपने इष्टदेव को या देवताओं की संख्या थोड़ी बढ़ाकर हमारे जीवनदायी संसाधनों को भी देवता माने जैसे पेड़, तालाब, गोचर, पनघट इत्यादि।
GVNML ने 27 वर्ष पूर्व यह सोचा था कि राजस्थान वासियों ने अपनी ऐसी परंपरा को छोड़ दिया है जिसके सहारे राजस्थान में जीवन संभव था। मरू प्रदेश में पानी नहीं, पशुओं के चरने के लिए घास नहीं, अनाज उत्पादन के लिए सिंचाई की व्यवस्था नहीं आदि आदि परंतु यहां की संस्कृति ने, समाज ने यहां कि विषम परिस्थितियों में भी धरती से जुड़कर पानी को संजोकर जीवन की प्यास बुझाई है इसके बहुत सारे उदाहरण देखे जा सकते हैं जैसे यहां के लोकगीतों में पानी, यहां के तालाब बनाने की कला, तालाब को सुंदर बनाने के लिए उस पर छतरी बनाना, घाट बनाना जैसलमेर के गडीसर तालाब को देखा जा सकता है। श्री अनुपम मिश्र जी की पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” इस पृष्ठभूमि का सटीक उदाहरण है।
GVNML ने 1986 में बहुत ही साधारण सोच के साथ हम यहां के वासी हैं और यहां की धरती विषम परिस्थितियों में कष्ट उठाकर हमें जीवन देती है उसके बदले हम धरती कि सेवा करने के बजाए उसको गंदा करना, खनन करना, धरती के गर्भ से पानी निकालना, धरती के श्रृंगार रूपी वृक्षों को निर्ममता से काटना आदि। इन सब को मद्देनज़र रखकर GVNML ने 1986 में पहली पदयात्रा शुरू की थी और सर्वप्रथम वृक्षों को तालाबों को, गोचरों को पूजा व लोगों को यह संदेश दिया कि कैसे हम इन संसाधनों को बचाकर अपने जीवन को सुखी व उतरजीवी बना सकते हैं और यह सिलसिला शुरू हुआ जो आज एक संस्कृति के रूप में लोगों के अपने एजेंडे के रूप में मध्य राजस्थान के लगभग 125 गाँवों में एक धुन, एक लोक अभियान, एक हवा के रूप में चल रही है।
27 वर्ष पूर्व शुरू हुए अभियान में क्या बदलाव आए
पिछले 5 वर्षों में पदयात्रा में किए गए नवाचार
1. स्थानीय तालाबों में पुष्कर जल अर्पण :
राजस्थान व उत्तर भारत में पवित्र सरोवर श्री पुष्कर जी के प्रति बहुत गहरी मान्यता है। इस मान्यता को किसी तरह से प्रत्येक गांव में स्थित तालाब के साथ जोड़ दिया जाए तो शायद राजस्थान में पानी की समस्या 50 प्रतिशत तो हल हो ही जाएगी। अतः पुष्कर सरोवर का जल पदयात्रा प्रत्येक गांव के तालाब में गाँव वालों व पदयात्रियों द्वारा अर्पित किया जा रहा है इससे गांव में अपने सरोवर के प्रति सम्मान बढ़ने लगा है।
2. ढूंढाड़ व मारवाड़ रत्न पुरस्कार
आज का युवा पढ़ लिखकर राज्य को राजस्थान बोलने लगा है जबकि सैकड़ों वर्षों पूर्व से राजस्थान को विभिन्न हिस्सों के प्राकृतिक नामों से जाना जाता था जैसे ढूंढाड़, मारवाड़, मेवाड़ आदि और इन क्षेत्रों के रत्नों ने देश दुनिया में नाम कमाया है जैसे श्री लक्ष्मी निवास मित्तल, रघुहरि डालमिया आदि लेकिन ये लोग भी व्यक्तिगत उन्नति से आगे नहीं बढ़ पाए और जो गुमनाम रहे उन लोगों ने समाज को, राज को शिक्षा दी कि कैसे धरती की सेवा करके लोगों के जीवन में बेहतरी लाई जा सकती है। इन गुमनामों को ढूंढा GVNML की एक टीम ने और उन्हें धन्यवाद देने के लिए व समाज में ऐसे कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उन्हें ढूंढाड़/मारवाड़ रत्न से पदयात्रा समापन पर सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हुआ चयन के मापदंड बने, चयन कमेटी बनी तथा सम्मान के लिए कुछ राशि, सिर पर साफा, महिला हो तो चुनरी, श्रीफल, चांदी का मेडल व सॉल ओढ़ाकर पवित्र हाथों से पूरे सम्मान के साथ और ऐसे कार्य करते रहने के संदेश के साथ यह पुरस्कार दिया जाता है।
टोली नं. 1
गांव की सभी प्रमुख गलियों में पदयात्रा गई तथा गांव के मुख्य स्थान जंगल होल में एक बड़ी बैठक हुई जिसमें लगभग 60 प्रतिशत गांव की आबादी मौजूद थी इस बैठक में निम्न निर्णय रहे।
1. बगीची में विलायती बबूल बड़े हो गए हैं उनको जड़ सहित खुदवाने का निर्णय लिया गया।
2. तालाब की साफ सफाई व स्वच्छता के मुद्दे पर होली या दीपावली पर नियम/कानून बनाने का निर्णय लिया गया।
3. जंगल होल के पास पेड़ लगाए गए थे उनकी रखवाली के लिए स्थानीय कालू राम गुर्जर को जिम्मेदारी दी है तथा उसको 1000 रु. मासिक पारिश्रमिक गांव वालों द्वारा दिया जाएगा।
इसके बाद पदयात्री बीनीखेड़ा गांव के सार्वजनिक तालाब पर तालाब पूजन के लिए एकत्रित हुए, तालाब पूजन हुआ। इंद्र भगवान के जयकारे से गांव गूंज उठा, घर-घर यह संदेश पहुंच चुका था कि अब तालाब को गंदा नहीं करना है, तालाब पर अतिक्रमण नहीं करना है। यह सारा हुजूम पूजन के बाद तालाब की पाल पर कतारबद्ध हुआ और एक स्वर में संकल्प लिया कि गांव में संसाधनों के प्रति गांव वालों की क्या भूमिका होगी क्या आदर्श आचरण हमारे गांव वाले अपनाएंगे जिससे उनका जीवन और अधिक कष्ट नहीं भुगतेगा इसके पश्चात पदयात्रियों ने गांव द्वारा की गई तैयारियों का उपयोग करते हुए जलपान ग्रहण किया तथा अगले गांव महतगांव के लिए पदयात्रा रवाना हो गई। लगभग समान तरह के कार्यक्रम करती हुई पदयात्रा 3 बजे केरिया बुजुर्ग गांव के लिए प्रस्थान कर गई। केरिया गांव में विशेष उत्साह के साथ बड़ी संख्या में महिलाओं ने पदयात्रियों का स्वागत किया इसके पश्चात कार्तिक मास की देवउठनी ग्यारस अर्थात 13 नवंबर 13 को अंतिम गांव रहलाना में 350 महिला पुरुषों ने पदयात्रा का स्वागत किया, सूरसागर पर तालाब पूजन किया व बैठक की जिसमें पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य आदि ने भाग लिया।
इस तरह टोली नं. 1 ने 10 गाँवों के 1260 लोगों को पदयात्रा से जोड़कर शेष 6500 लोगों को भी गांव के संसाधनों का प्रबंधन में हुए फ़ैसलों, संदेशों से अवगत कराया। 10 तालाब पूजे गए। 747 लोगों ने शपथ ली तथा 995 पौधे लगाने की घोषणा लोगों ने की है।
टोली नं. 2
पदयात्रा का शुभारंभ सिंधोलिया गांव से शुरू हुआ टोली नं. 1 के कार्यक्रम जैसा ही लगभग टोली नं. 2 में भी रहा टोली नं. 2 की विशेषता यह रही कि पंचायती राज व स्थानीय सरकारी कर्मचारी पदयात्रा में विशेष रूप से शामिल रहे। सभी जगह आम सभा की बैठकों में स्थिती थोड़ी तनावपूर्ण भी रही क्योंकि ग्रामीणों ने कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों से शिकायतें की ये कर्मचारी, जनप्रतिनिधी अतिक्रमण हटाने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं लेते हैं।
बुंदेलखंड के किसान व संस्था जगत के लोग भी जुड़े पदयात्रा में
पदयात्रा के दो माह पूर्व सभी जानकारों, विषय से जुड़े लोगों तक पदयात्रा का कार्यक्रम पहुंच चुका था। राजस्थान के अलावा पड़ोसी राज्यों से भी पदयात्रा में जुड़ाव रहा। बुंदेलखंड क्षेत्र उत्तर प्रदेश से श्री केसर सिंह के नेतृत्व में 22 लोगों का एक दल पदयात्रा की दोनों टोलियों में विभक्त हुए व 3 दिन पदयात्री बनकर 10 गाँवों में गए, वहीं श्री माउ जी भाई, गुजरात के नेतृत्व में 8 लोगों का दल पदयात्रा से जुड़ा ये लोग 2 दिन पदयात्रा में रहे। दोनों पड़ोसी राज्यों से आए लोगों ने अपनी-अपनी जगह पर भी जाकर कुछ ऐसा करने का सोचा है। अब आगे देखना है कितना हो पाता है।
पदयात्रा एक नजर में
जन सहभागिता
कुल गांव का कवरेज – 18 गांव
कुल लोग जो पदयात्रा से जुड़े | महिला | 785 | पुरुष | 1260 | कुल लोग | 2045 |
तालाब पूजन में शामिल | महिलाएं | 794 | पुरुष | 1111 | कुल | 1905 |
गांव में रैली में | महिलाएं | 1342 | पुरुष | 1515 | कुल | 2857 |
पेड़ न काटने का संकल्प व पेड़ों के रक्षा सूत्र | ||||||
पेड़ों के रक्षासूत्र बांधने में | महिलाएं | 496 | पुरु | 911 | कुल | 1407 |
शपथ ग्रहण में | महिलाएं | 496 | पुरुष | 911 | कुल | 1407 |
गांव में बैठकों में | महिलाएं | 295 | पुरुष | 875 | कुल | 1170 |
गांव के लोगों द्वारा पेड़ लगाने की उद्घोषणा की गई
लोगों की सं.-368
पेड़ों की सं. - 1695
नीम-780, बरगद–90, पीपल-190, आंवला-30, अरडू-120, बेलपत्र-40, शीशम-350, नींबू-70, अन्य-25
श्रमदान की प्रकृति एवं कार्य
श्रमदान करने वाले लोग- 135
किया गया कार्य- पेड़ों के गट्टे बनाना, पेड़ लगाना, तालाब व घाट की सफाई, धर्मशाला की सफाई, कचरा निस्तारण, अतिक्रमण हटाना इत्यादि।
बैठकों (आम सभा) में प्रमुख निर्णय-
1. तालाबों से अतिक्रमण हटाने हेतु ग्रामीणों को समझाइस एवं प्रशासन से सहयोग द्वारा सीमाज्ञान करवाकर गांव के तालाब व गोचर का अतिक्रमण हटाना।
2. सभी गाँवों में आम रास्तों का सकरा होना व नालियों के पानी के कीचड़ होने कारण रास्तों से आना-जाना बहुत ही मुश्किल हो रहा है अतः ग्राम पंचायत से मिलकर सी सी रोड बनाने के प्रयास किए जाएंगे।
3. गर्मियों में पेयजल की समस्या के निपटारे के लिए दूदू बीसलपुर पेयजल परियोजना में ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियां, परियोजना को बढ़िया से लागू कर पेयजल व्यवस्था कराएगी।
4. तालाब के केचमेंट में बाड़े बनाकर अतिक्रमण हो रहे हैं अतः ग्राम वाइज युवा मंडल व ग्राम विकास समितियां तालाब के केचमेंट को अतिक्रमण से मुक्त कराना है।
पदयात्रा समापन एवं ढूंढाड़/मारवाड़ रत्न पुरस्कार वितरण समारोह
कार्यक्रम शुरू होने से पहले नगर गांव के तालाब पूजन में पदयात्री, पुरस्कार के लिए चयनित लोग तथा कार्यक्रम के मेहमान सभी शामिल हुए जिसमें ऐसे लोग जो पदयात्रा में नहीं रहे और सीधे ही कार्यक्रम में आए उनका भी थोड़ा सा आमुखीकरण हो गया।
दक्षिण एशिया के देशों में पानी से जुड़े मुद्दों पर सिविल सोसायटी को साथ लेकर सरकारों, कंपनियों को हड़काने वाले श्री हिमांशु ठक्कर कि कार्यक्रम में उपस्थिती यह तय करती है कि जितना यह कार्य धरती से जुड़ा है उतना ही यह बड़े स्तर पर काम करने वालों को भी प्रभावित कर सकता है।
श्री माउ जी भाई विवेकानंद रिसर्च एवं ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भूज, गुजरात से श्री एम.एस. राठौड़ CEDSJ, श्री केसर सिंह हिंदी वाटर पोर्टल, श्री संग्राम सिंह प्रोफेसर, SKN कृषि कॉलेज जोबनेर, श्री अजयभान सिंह FES, राजस्थान के अलावा सेवा मंदिर, वेल्स फॉर इंडिया, ग्रामोत्थान, CRPR आदि संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।
सादगी भरे कार्यक्रम की शुरूआत टोली नायकों द्वारा पदयात्रा अनुभव प्रस्तुती से हुई। श्री रामेश्वर सैनी टोली नं. 1 से तथा श्री रामजी लाल टेलर टोली नं. 2 के बाद केसर सिंह व उनके साथ आए 30 लोग जो पदयात्रा से जुड़े रहे ने पदयात्रा के दौरान का अपना अनुभव बताया।
श्री लक्ष्मण सिंह जी ने किस तरह 26 वर्षों में पदयात्राओं के रूप, स्वरूप व मुद्दों में बदलाव आते हुए भी मूल सिद्धांत एक बना रहा स्पष्ट किया। इसके बाद महानुभावों ने पदयात्रा व इसकी वजह से धरती पर आए बदलाव को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।
समापन कार्यक्रम में एक घंटे ढूंढाड़ व मारवाड़ रत्नों को सम्मानित करने का रहा। पहला पुरस्कार श्री उमरावल गोधा को गया जो ढूंढाड़ रत्न की श्रेणी में आता था। श्री गोधा जी ने 4000 पेड़ खड़े किए। लगभग 2-2.5 करोड़ रुपए लगाकर गांव में स्कूल, हास्पीटल, बगीचा आदि बनवाए। श्री गोधा जी ने गांव को हराभरा किया विशेषकर तालाब की पाल, श्मशान, रास्ते आदि को छाया से आच्छादित कर दिया। इसी तरह श्री श्रवणजी जाट, कल्याणपुरा वालों ने व श्री रज्जाक शेख ने अपने-अपने गांव को हरा-भरा बनाने ढूंढाड़ रत्न पुरस्कार दिया गया। ग्राम आकोड़िया की प्रबंध कमेटी ने गांव के संसाधनों को सुव्यवस्थित करने व उनकी आय से संसाधनों के विकास का कार्य अनुकरणीय रहा। कमेटी को भी ढूंढाड़ रत्न से सम्मानित किया गया।
एकमात्र मारवाड़ रत्न श्री खींवसिंह जी को गया जो बिखरनियाकला, मेड़ता नागौर के रहने वाले हैं जिन्होंने पूरे गांव को बड़ (वटवृक्ष) से आच्छादित कर दिया, श्मशान, चारागाह, चौराहे, तालाब की पाल सब जगह मारवाड़ में मुश्किल से लगने वाला पेड़ बड़ बड़ी संख्या में लगा दिया। आपने 5 लाख रुपए की राशि से एक तालाब गहरा करवाया तथा गांव की सीमा पर एक नाड़ा बनवाया। इस तरह ढूंढाड़/मारवाड़ रत्न की गौरवगाथा व सम्मान के बाद श्री हिमांशु जी ने, राठौड़ साहब व श्री संग्राम सिंह जी ने पदयात्रा व रत्नों के प्रयास से राजस्थान के बड़े भू-भाग को हरा-भरा व पानीदार बनाने के काम कि खुशबू बड़े जतन से शब्दों को पिरोकर पेश की। पदयात्री, जनप्रतिनिधियों व अन्य ग्रामीणों ने इन सबको सुनकर जोश से ओतप्रोत होकर कार्यक्रम के समापन पर घर की ओर मुंह किया।
अगले वर्ष और अधिक ऊर्जा व लग्न के साथ पदयात्रा को संचालन करने का मन ही मन प्रण किया तथा मेहमानों ने ऐसे कार्यक्रम में शरीक होकर, बुलाने वालों को धन्यवाद व अपने आप को धन्य महसूस किया।
Path Alias
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