धरा पर जीवन

जीवन के आधार


‘जीवन’ और ‘सजीव’ शब्द आज बहुत सामान्य है। हम इन्हें सहज रूप से ही समझते हैं, और हम, सामान्यता बगैर किसी त्रुटि के, ‘सजीव’ और ‘निर्जीव’ के बीच में भेद कर सकते हैं। इन सबके बावजूद भी उन लक्षणों को पहचान पाना बहुत आसान नहीं है जो ‘सजीव’ को ‘निर्जीव’ से अलग करते हैं।

जब बच्चों से ऐसे गुणों को बताने के लिए कहा जाता है जो सजीव को निर्जीव से भिन्नता प्रदान करते है, बहुधा उनका जबाव होता है कि सजीवों में वृद्धि होती है। वे कह सकते हैं कि एक कुत्ता जीवित है क्योंकि वह चलता है परन्तु गति तो एक बैटरीचालित खिलौने में भी होती है। इसी तरह आरोही निक्षेप, किसी गुफा की छत से रिसने वाले पानी से निर्मित खनिज तत्त्वों की संरचना और निलम्बी निक्षेप, आरोही निक्षेप के विपरीत गुफा के फर्श से उठने वाली खनिजीय संरचना, में भी वृद्धि होती है और इन्हें शक्ति प्राप्त करने के लिए बैटरी की आवश्यकता भी नहीं होती है। बादलों मे भी गति होती है और उनका आकार भी बदलता रहता है। बच्चे कह सकते हैं कि एक बिल्ली का बच्चा जीवित है क्योंकि यह छूने पर गर्म महसूस होता है। पर इस आधार से, एक मेंढ़क, जो छूने पर ठंडा महसूस होता है, क्या जीवित नहीं है? थोड़े अधिक बड़े बच्चे यह तर्क दे सकते हैं कि एक सजीव किसी बाहरी उद्दीपन पर प्रतिक्रिया देता है तो क्या एक बर्फ का खण्ड, जो ऊष्मा उद्दीपक या गर्मी के सम्पर्क में आने पर पिघल जाता है, जीवित है?

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सहज ज्ञान को विस्तार से परिभाषित करने को कहा जाए तो यह एक मुश्किल काम होता है।

सजीव को परिभाषित करना


जीवन से संबंधित विषय के अध्ययन से जुड़े विज्ञानियों ने ऐसे विशिष्ट गुणों की पहचान की है जो सजीवों में समान रूप से पाए जाते हैं और उन्हें निर्जीवों से अलग बनाते हैं।

सजीवों में निम्नलिखित गुण समान रूप से पाए जाते है:


- इनकी संरचना अत्यन्त सुसंगठित एवं जटिल होती है।

- ये उद्दीपनों पर प्रतिक्रिया देते हैं।

- ये अपनी प्रतियां तैयार करने में सक्षम हैं।

- इनमें वृद्धि एवं विकास होता है।

- इनमें अपने पर्यावरण के अनुकूल रहने अथवा ढल जाने की क्षमता होती है।

- ये एक विशिष्ट रासायनिक संघटन को बनाए रखते हैं जो इनके वातावरण से भिन्न होता हैं।

- ये ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं।

कभी-कभार एक निर्जीव रचना भी उक्त गुणों में से कुछ को प्रदर्शित कर सकती है परन्तु निर्जीवों में कभी भी उपर्युक्त सभी गुण नहीं पाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, यद्यपि एक रोबोट की संरचना अत्यन्त जटिल होती है, ये उद्दीपनों पर प्रतिक्रिया देता है और ऊर्जा का प्रयोग करता है, परन्तु ये प्रजनन, वृद्धि अथवा विकास नहीं कर सकता है।

फिर भी, विषाणुओं को परिभाषित करते समय हमें एक बार ठिठकना पडे़गा। विषाणु ऐसी संरचनाएं हैं जो सजीवों और निर्जीवों को विभेदित करने वाली सीमा रेखा पर पाई जाती है। विषाणुओं में सजीवों और निर्जीवों दोनों के ही कुछ गुण पाए जाते हैं। इसी कारण विषाणुओं को इस पुस्तक के दायरे से बाहर रखा गया है।

बायोस्फीयर या जीवमण्डल


रॉबर्ट हुकरॉबर्ट हुकजीवित संरचनाओं के अध्ययन के दौरान यह तथ्य दृष्टिगत रखना अत्यन्त आवश्यक है कि जीवित संरचनाएं और उनका निर्जीव पर्यावरण अटूट बंधन के साथ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है और कोई भी जीव अपने पर्यावरण के बिना नहीं रह सकता। जैव मण्डल की संकल्पना इसी तथ्य पर आधारित है। ‘बायोस्फीयर’ शब्द रूसी वैज्ञानिक व्लादिमिर वनरनाद्स्की द्वारा दिया गया था। यह ‘धरा का जीवन क्षेत्र’ है और इसमें सभी जीव रचनाएं एवं समस्त कार्बनिक तत्व सम्मिलित हैं। इस प्रकार से जीव मण्डल के अन्तर्गत भूमि, वायु एवं जल समाविष्ट हैं। जहां भी जीवन मौजूद हो सकता है, जीव मण्डल का क्षेत्र वहां तक फैल जाता है।

कोशिकाएं - जीवन की महत्वपूर्ण इकाई


रॉबर्ट हुक द्वारा चित्रित कॉर्क का आरेखरॉबर्ट हुक द्वारा चित्रित कॉर्क का आरेखएक बार सजीव और निर्जीव के गुणों को जानने और उनके बीच अन्तर को समझ लेने के बाद यह जानना आवश्यक है कि जीवित शरीर की संरचना क्या होती है। वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि जीव एक या एकाधिक रचनात्मक इकाई से मिलकर बनते हैं जिसे कोशिका कहा जाता है। दरअसल सन् 1665 में प्रकृति में रुचि रखने वाले अंग्रेज दार्शनिक रॉबर्ट हुक ने कॉर्क की परतों को अपनी सूक्ष्मदर्शी से देखा तो पाया कि कॉर्क छोटे –छोटे बारिक बॉक्स जैसे खण्डों से मिलकर बना है उन्होंने इन खण्डों को कोशिका नाम दिया। इसके बाद अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत किए गए।

कोशिका सिद्धांत के अनुसार सभी जीव संगठन की एक समान इकाई ‘कोशिका’ से मिलकर बने हैं। इस विचार को औपचारिक रूप से 1839 में जर्मन वनस्पति विज्ञानी थियोडोर श्लाइडेन और जर्मन शरीरक्रिया विज्ञानी मैथियास श्वान ने प्रस्तुत किया था। यह सिद्धांत ही आधुनिक जीव विज्ञान का आधार बना।

आरम्भिक कोशिकाएं


यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि शरीर रचना की मूल इकाई रातोंरात पृथ्वी पर नहीं आ गई होगी। कोशिका जैसी रचनाओं का विकास धरती पर जीवन के आरंभिक काल से ही शुरू हो गया था। इन्हें ‘प्री-साइट्स’ या कोशिका पूर्ववर्त्ती कहा गया। एक प्री-साइट को एक कोशिका जैसी संरचना, जिसका निर्माण पूर्ण या आंशिक अजैविक रूप से निर्मित तत्त्वों के अपने आप संगठित होने से हुआ हो, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इन प्री-साइट्स के प्रो-साइट्स या प्रोकैरयोट्स में विकसित होने के बाद ही धरती पर वास्तविक ‘जीवन’ का आरम्भ हुआ।

कोशिका की भीतरी संरचना


जीव कोशिकाजीव कोशिकाकोशिका सभी जीवों की प्राथमिक रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है। यह जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) से भरी होती है। जीवद्रव्य एक संश्लिष्ट या मिश्रित, अर्द्ध-तरल, पारभासी पदार्थ है जो प्राणी एवं वनस्पति कोशिकाओं का जीवित तत्त्व है और किसी कोशिका के जीने से संबंधित आवश्यक कार्यों को प्रदर्शित करता है। कोशिका की संरचना एवं क्रियाविधि को तय करने के लिए आवश्यक सूचनाएं गुणसूत्रों में कैद कुछ अपवादों के साथ डी.एन.ए. या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक वनस्पति कोशिकावनस्पति कोशिकाएसिड में संचित रहती हैं जहां ये विशिष्ट प्रोटीनों से संबंधित रहती हैं। कोशिकांग किसी कोशिका के अन्दर मौजूद अलग-अलग संरचनाएं होती हैं जो विशिष्ट कार्यों को अंजाम देती हैं। ये कोशिकांग कई प्रकार के होते है। एक कोशिका के लिए कोशिकांग का वही महत्व है जो एक शरीर के लिए अंग का होता है।

पूर्ववर्ती कोशिका से कोशिका की उत्पत्ति


कोशिका रोग विज्ञान के जनक और अपने काल के अग्रणी मानव-विज्ञानी जर्मनी के डा॰ रूडोल्फ विरकोव ने यह विचार प्रस्तुत किया, “Omnis cellula e cellula”, जिसका अर्थ है कि सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से मौजूद कोशिकाओ से ही होती है। आज इस सिद्धांत पर सभी एकमत हैं कि कोशिका का निर्माण किसी अन्य कोशिका से विभाजन की क्रिया द्वारा होता है और कोशिकीय गतिविधियों के चलते कोशिका के अंदर ऊर्जा का प्रवाह होता है। कोशिकाओं के अंदर मौजूद आनुवंशिक सामग्री कोशिका विभाजन के समय पुत्री कोशिकाओं में पहुंच जाती हैं।

कोशिका सिद्धांत के अनुसार


1. सभी ज्ञात जीवित पदार्थ कोशिकाओं से बने हैं।

2. कोशिका सभी जीवित पदार्थों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।

3. सभी कोशिकाएं अपनी पूर्ववर्ती कोशिकाओं से कोशिका विभाजन द्वारा उत्पन्न होती हैं।

4. कोशिकाओं में आनुवंशिक सूचनाएं मौजूद होती हैं जो कोशिका विभाजन के समय आगे प्रसारित कर दी जाती हैं।

5. मूल रूप से रासायनिक संघटन के अनुसार सभी कोशिकाएं एक समान होती हैं।

6. जीवन के लिए समस्त ऊर्जा प्रवाह कोशिकाओं के भीतर ही होता है।

एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीव


अमीबा-एककोशिकीय जीवअमीबा-एककोशिकीय जीवएक ही कोशिका से बने हुए जीव एककोशिकीय कहलाते हैं। जिन जीवों की रचना एक से अधिक कोशिकाओं से मिलकर होती है, उन्हें बहुकोशिकीय कहा जाता है। अमीबा एककोशिकीय जीव है तो मानव बहुकोशिकीय। एककोशिकीय जीवों के भी दो प्रकार हो सकते हैं; प्रोकैरयोट्स जैसे जीवाणु, जिनमें गुणसूत्र एक पृथक केन्द्रक के भीतर फंसे नहीं होते, और यूकैरयोट्स जैसे यीस्ट, जहां गुणसूत्र केन्द्रक के अन्दर अव्यवस्थित होते हैं। कोशिका के केन्द्रक के बाहर मौजूद जीवद्रव्य को सायटोप्लाज्म या कोशिकाद्रव्य कहा जाता है।

बारीकी से देखने पर एक एककोशिकीय जीव भी आश्चर्यजनक रूप से रचनात्मक एवं क्रियात्मक भिन्नताएं प्रकट करता नजर आता है। फिर भी, एक ही कोशिका होने के कारण यहां इसकी अपनी सीमाएं हैं।

सभी उच्च जीव बहुकोशिकीय हैं। इस हिसाब से ये कोशिका के आकार और प्रकार के कारण होने वाले बंधनों से उबर जाते हैं। बहुकोशिकीय जीवों में कुछ कोशिकाएं किसी कार्यविशेष को करने के लिए एक साथ मिलकर कार्य करती हैं। अपने कार्य को बेहतर ढंग से सम्पादित करने के लिए उनकी संरचना में भी बदलाव हो सकता है। उदाहरण के लिए तंत्रिका कोशिकाओं में लम्बे और शाखीय प्रवर्ध या कण्टक जो जड़ों की तरह दिखाई देते हैं, जबकि त्वचा की सतह पर पाई जाने वाली कोशिकाएं चपटी होती हैं और इनमें प्रवर्ध नहीं पाए जाते। इससे साबित होता है कि कोशिकाएं उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य के अनुसार खुद को ढाल लेती हैं। इससे उन्हें अपने कार्य को बेहतर ढंग से अंजाम देने में आसानी रहती है।

बहुकोशिकीय जीव के अंदर विशिष्ट कोशिकाएं


तंत्रिका कोशिकाएंतंत्रिका कोशिकाएं

गाल में अंदर की कोशिकागाल में अंदर की कोशिका

कोशिका मण्डल या कोशिकाओं की कॉलोनी


कभी-कभी एककोशिकीय संरचनाएं आपस में जुड़कर एक कॉलोनी या मण्डल बना लेती है जो बहुकोशिकीय जीवों की तरह कार्य करती है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, वॉलवॉक्स। यह हरा पौधा आमतौर पर झीलों और तालाबों में पाया जाता है। हर गुच्छा एक पिन के सिरे के बराबर होता है जो खोखले गोले के आकार में होता है। हर गुच्छे में 500 से 50,000 कोशिकाएं होती हैं। हर कोशिका अपनी सबसे करीबी कोशिका से कोशिकाद्रव्य की एक लड़ी की सहायता से जुडी होती है। हर कोशिका में दो बाल की तरह के कशाभ होते हैं जो गोले को ढंकने वाली बाहरी श्लेष्मक दीवार से बाहर निकले रहते हैं। एक साथ मिलकर ये कोशिकाएं अपने कशाभों को पतवार की तरह इस्तेमाल करती हैं जिससे कॉलोनी को अधिकतम सूर्य के प्रकाश वाले क्षेत्र में ले जाया जा सके।

कोशिका का जीवन काल


वॉलवॉक्स की कॉलोनीवॉलवॉक्स की कॉलोनीएक तरह से देखा जाए तो एककोशिकीय जीव अमर होते हैं। यदि अपने पर्यावरण से तालमेल नहीं बैठा पाने के कारण नष्ट न हो जाए या किसी शिकारी द्वारा हड़प न कर लिया जाए तो अधिकतर एककोशिकीय जीव दो पुत्री कोशिकाओं में विभक्त हो जाते हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है। परन्तु, वास्तव में प्रकाश, तापमान और भोजन की उपलब्धता जैसे कारक इस असीमित वृद्धि पर नियंत्रण रखते हैं।

बहुकोशिकीय जीव आमतौर से उम्र के चढ़ाव के साथ ही रोग एवं चोट से मृत हो जाते हैं, फिर भी अपने जीवनकाल में इनमें भी कोशिकाओं के कई जन्म हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, त्वचा की कोशिकाएं व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल में लगातार बदलती रहती हैं।

प्रजातियों की जीवन अवधि


विभिन्न बहुकोशिकीय जीवों द्वारा जीवन अवधि में अनगिनत भिन्नताएं प्रदर्शित की गई हैं। भीमकाय वृक्ष प्रजाति (स्कोविया) और रक्तदारू (रेडवुड) वृक्ष हजारों वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। मौसमी पौधे, जैसे सूरजमुखी की आयु एक वर्ष ही होती है। इसी प्रकार कछुआ जहां 150 वर्षों तक जीवित रह सकता है वहीं कुत्ता 10 वर्ष की उम्र में ही वृद्धावस्था को पहुंच जाता है। पिगमी गोबी नामक एक मछली तो औसतन 59 दिनों की ही जिदंगी जीती है परन्तु चाहे जीवन की अवधि लम्बी हो या छोटी, जीवन के सभी प्रकार एक विशालकाय कैनवास के हिस्से हैं जो इस धरा में सुन्दरता, स्फूर्ति, गतिशीलता और रंग भरते हैं।

 

 

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