धेनुएँ

ओ रँभाती नदियो,
बेसुध
कहाँ भागी जाती हो?
वंशी-रव
तुम्हारे ही भीतर है।
ओ, फेन-गुच्छ
लहरों की पूँछ उठाए
दौड़ती नदियो,

इस पार उस पार भी देखो,
जहाँ फूलों के कूल

सुनहले धान से खेत हैं।
कल-कल छल-छल
अपनी ही विरह व्यथा
प्रीति कथा कहती
मत चली जाओ!

सागर ही तुम्हारा सत्य नहीं!

वह तो गतिमय स्त्रोत की तरह
गति हीन स्ति-भर है!

तुम्हारा सत्य तुम्हारे भीतर है!
राशि का ही अनंत
अनंत नहीं,
युग का अनंत
बूंद-बूंद में है!

ओ दूध धार टपकाती
शुभ प्रेरणा धेनुओ,
तुम जिस वत्स के लिए
व्याकुल हो
वह मैं ही हूं!

मुझे अपना धारोपण प्रकाश
अनामय अमृत पिलाओ!

अपनी शक्ति
अपना जय दो!

मुझे उस पार खड़ी
मानवता के लिए
सत्य का वोहित्य
खेना है!

ओ तट सीमा में बहने वाली
सीमा हीन स्रोतस्विनियो,
मैं जल से ही
स्थल पर आया हूं!

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