ढेकी बोले जाय अकास।
अब नाहीं बरखा के आस।।
शब्दार्थ- ढेकी-वनमुर्गी।
भावार्थ- वनमुर्गी पक्षी यदि आकाश में (जमीन से थोड़ा ऊपर) उड़-उड़कर बोले तो वर्षा नहीं होगी अर्थात् सूखा पड़ने वाला है, वर्षा की कोई उम्मीद नहीं है।
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