वायु में फैली धूल और रेत का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इससे हर साल लगभग 200 करोड़ टन धूल और रेत हमारे वातावरण में घुस जाती है। इसका परिणाम यह है कि हर साल करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि उपजाऊ नहीं रहती है। इसकी तुलना में गीजा के 350 पिरामिडों का वजन बराबर है। यह जानकारी यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) की रिपोर्ट से मिली है। रिपोर्ट के अनुसार इंसानी गतिविधियों के कारण धूल और रेत के तूफानों में करीब 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। इन गतिविधियों में खनन, अत्यधिक पशु चराई, भूमि उपयोग में बदलाव, अनौपचारिक कृषि, जंगलों का कटाई, जल संसाधनों का अपव्यय आदि शामिल हैं।
धूल और रेत के तूफानों से न केवल भूमि की उपज कम होती है, बल्कि दुनिया को कृषि और आर्थिक रूप से भी बड़ा झटका लगता है। यह चेतावनी उज्बेकिस्तान के समरकंद में चल रही यूएनसीसीडी की पांच दिवसीय बैठक में दी गई है। इस बैठक का उद्देश्य दुनिया भर में भू-क्षरण को रोकने के लिए किए गए प्रयासों का मूल्यांकन करना है।
वायु में फैली धूल कैसे हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और जलवायु पर असर डालती है। धूल के कण वायु में घूमते हुए हमारी सांस की नली में पहुंचते हैं और हमें श्वास-रोग, एलर्जी, आँखों की सूजन और त्वचा की खराश जैसी समस्याएं पैदा करते हैं। धूल के कण वायु में घूमते हुए हमारी सांस की नली में पहुंचते हैं और हमें श्वास-रोग, एलर्जी, आँखों की सूजन और त्वचा की खराश जैसी समस्याएं पैदा करते हैं। धूल के कण वायु में घूमते हुए हमारी सांस की नली में पहुंचते हैं और हमें श्वास-रोग, एलर्जी, आँखों की सूजन और त्वचा की खराश जैसी समस्याएं पैदा करते हैं।
वायु में फैली धूल कहां से आती है और इसके कौन-कौन से प्रकार होते हैं। वायु में फैली धूल का मुख्य स्रोत रेगिस्तान, खेत, सड़क, निर्माण क्षेत्र और उद्योग हैं। वायु में फैली धूल को आमतौर पर दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: जैविक धूल और अजैविक धूल। जैविक धूल में पौधों, फूलों, पत्तियों, फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस, पशुओं के बाल और त्वचा के टुकड़े आदि शामिल होते हैं। अजैविक धूल में मिट्टी, रेत, खनिज, धातु, सीमेंट, धुआं, राख, कार्बन, टायर के टुकड़े आदि शामिल होते हैं।
यूएनसीसीडी के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में हर साल करीब 10 लाख वर्ग किमी भूमि उपजाऊ नहीं रहती है। 2015 से 2019 के बीच की जांच से पता चला है कि अब तक 42 लाख वर्ग किमी भूमि इसका शिकार हो चुकी है, जो पांच मध्य एशियाई देशों के क्षेत्रफल के बराबर है।
धूल के प्रकोप को रोकने के उपाय
वनों की सुरक्षा और वृक्षारोपण: वनों की कटाई से धूल का प्रकोप बढ़ता है, क्योंकि वन जमीन को बांधे रखते हैं और बारिश के पानी को सोखते हैं। इसलिए, हमें वनों की सुरक्षा करनी चाहिए और अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए।
खेती की उचित पद्धतियां: : खेती के लिए जमीन को बार-बार खोदना, जल संरक्षण की अनदेखी, जमीन को उर्वर बनाने के लिए जैविक खाद का उपयोग न करना और जमीन को बर्बाद करने वाले फसलों को लगाना धूल का प्रकोप बढ़ाता है। इसलिए, हमें खेती की उचित पद्धतियां अपनानी चाहिए, जैसे जमीन को जैविक खाद से उर्वर बनाना, जल संरक्षण करना, जमीन को बचाने वाले फसलों को लगाना और जमीन को बार-बार न खोदना।
जलवायु परिवर्तन को रोकना: जलवायु परिवर्तन से धूल का प्रकोप बढ़ता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से बारिश की मात्रा और तापमान में असंतुलन होता है, जिससे जमीन सूख जाती है और धूल उड़ने लगती है। इसलिए, हमें जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रदूषण को कम करना चाहिए, जो कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। हमें अधिक से अधिक रीन्यूएबल एनर्जी का उपयोग करना चाहिए, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा और जैव ऊर्जा।
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