दूषित भोजन का केवल एक ही उपाय है उसे फेंक दीजिए। उसे फ्रिज या अलमारी में रखना ठीक नहीं क्योंकि वह ठीक भोजन को भी खराब कर सकता है।
भोजन जीवित रहने के लिये अनिवार्य है। परन्तु जब भी मुँह में हम कुछ डालते हैं तो यह सम्भावना अवश्य रहती है कि शरीर को पोषित करने के साथ-साथ भोजन हमें हानि भी कर सकता है, क्योंकि जो कुछ भी हम खाते हैं, उसके बारे में हमारा ज्ञान अधूरा ही होता है। हमें मालूम नहीं होता कि जब हमारा भोजन खेत में था तो उस पर कौन से कीटनाशक रसायन छिड़के गये जब वह गोदाम में था तो कितने चूहों और कीड़ों ने उसे खाया और कई बार यह भी मालूम नहीं होता कि पकाते समय भोजन जिन हाथों और बर्तनों के सम्पर्क में आया वे कितने साफ थे। इसके अतिरिक्त भोजन पर मक्खियाँ बैठकर उसे दूषित कर सकती हैं, भोजन अधिक समय तक रखने से दूषित हो सकता है और यदि लालच में आकर किसी व्यापारी ने भोजन में मिलावट की है तो खाद्य सामग्री उस कारण से भी हानिकारक हो सकती है। जीवाणु और फफूंद कैसे दूषित करते हैं इस लेख में इसी की जानकारी दी जा रही है।बात दरअसल ऐसी है कि जो भोजन हमारा पोषण कर सकता है उसी भोजन पर छोटे-छोटे जीव भी पल सकते हैं नानाप्रकार के छोटे-छोटे जीव हमारे वातावरण में चारों ओर सब जगह उपस्थित हैं। यदि उन्हें कहीं भी भोजन पड़ा मिल जाये, और उनके फलने-फूलने के लिये हालात सही हों तो वे भोजन में फलने फूलने लगते हैं। जीवाणु और फफूँद इतने सर्वव्यापी हैं कि भोजन उनसे पूरी तरह सुरक्षित रखना तो असम्भव है, इसलिये हमारा प्रयत्न यही होना चाहिए कि परिस्थितियाँ उनके पनपने के लिये अनुकूल न हों।
विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों के पनपने के लिये परिस्थितियाँ एक जैसी नहीं होती। परन्तु फिर भी कुछ सामान्य बातें कह सकते हैं, जो भोजन को दूषित करने वाले अधिकार जीवाणुओं और फफूँद के अनुकूल होती हैं। इन सभी जीवों को जल चाहिए, इसीलिये सुखाया हुआ भोजन प्रायः जल्दी खराब नहीं होता। दूध जल्दी खराब होता है, खोया देर से खराब होता है और दूध के पाउडर को सबसे लम्बे समय तक ठीक रख सकते हैं क्योंकि पाउडर में जल सबसे कम होता है। भोजन को दूषित करने वाले अधिकांश जीव सामान्य तापमान पसंद करते हैं। अधिकांश को लगभग 35 या 40 डिग्री सेन्टीग्रेड का तापमान सबसे अच्छा लगता है। यह गर्मियों का तापमान होता है इसलिये भोजन गर्मियों में जल्दी दूषित हो जाता है। तापमान का प्रभाव मुख्यतः जीवाणुओं के प्रजनन पर होता है। यूँ तो कई जीवाणु 3 डिग्री सेंटीग्रेड पर भी जीवित रहते हैं परन्तु इतने कम तापमान पर उनका प्रजनन नहीं होता और इसलिये उनकी जनसंख्या नहीं बढ़ती।
ज्यों-ज्यों तापमान बढ़ता है जीवाणुओं के प्रजनन की गति बढ़ती जाती है और प्रायः 30 और 40 डिग्री के बीच अधिकतम हो जाती है। तापमान और अधिक बढ़ने पर प्रजनन की गति फिर कम हो जाती है और लगभग 50 डिग्री सेंटीग्रेड पर उनकी मृत्यु हो जाती है। परन्तु सारे जीवाणु मारने के लिये प्रायः भोजन को 15-20 मिनट के लिये कम से कम 70-80 डिग्री तक गर्म करना पड़ता है। कुछ जीवाणु ऐसे भी होते हैं जोकि 2 घण्टे तक उबलते पानी में रह कर भी नहीं मरते। उबलते पानी का तापमान 100 डिग्री होता है। जीवाणुओं का ऐसा ढीठ रूप जो उबलते पानी में भी नहीं मरता ‘स्पोर’ कहलाता है। संक्षेप में, ठण्ड में प्रजनन कम होता है परन्तु जीवाणु मरते नहीं। जीवाणुओं की परिस्थितियों में अम्ल की सान्द्रता भी शामिल है। जीवाणु खटाई पसन्द नहीं करते। इसलिये अचार और सिरका इत्यादि को दूषित नहीं करते। परन्तु फफूँद अम्ल पसंद करते हैं, इसलिये अचार को भी दूषित कर सकते हैं इसका अर्थ यह नहीं कि खटाई हो तो फफूँद नहीं उगेंगे।
अगला प्रश्न यह उठता है कि यदि भोजन दूषित हो गया हो तो पता कैसे चलेगा। यदि भोजन के ऊपर रुई जैसा जाल बन गया हो तो एकदम पता चल जाता है कि उसे फफुँद ने दूषित कर दिया है - ऐसा आपने डबल रोटी पर कभी न कभी जरूर देखा होगा। यदि कोई द्रव्य पदार्थ धुँधला या गंदला हो जाए तो भी उसके दूषित होने का पता चल जाता है। भोजन के रंग-रूप या गंध में कोई भी परिवर्तन आ जाए तो उसे दूषित मान लेना चाहिए। अनाज खराब हो जाए तो कभी-कभी उनके ढेले बन जाते हैं। जैसे हम साँस में कार्बन डाइआक्साइड गैसें निकालते हैं, उसी प्रकार कई जीवाणु भी निकालते हैं। इसलिये यदि भोजन के किसी सील बंद डिब्बे का ढक्कन उभरा हुआ हो तो उसे दूषित मानना चाहिए। अंत में यह याद रखना चाहिए कि भोजन में कोई भी अंतर दिखाई न दे तो फिर भी वह दूषित हो सकता है, इसलिये यदि भोजन अधिक पुराना हो विशेषकर जीवाणुओं के पनपने के अनुकूल परिस्थितियों में रखा गया हो तो उनका सेवन नहीं करना चाहिए।
आप शायद यह भी जानना चाहेंगे कि यदि हम गलती से दूषित भोजन ले लें तो क्या होगा। जीवाणु हमें दो प्रकार से हानि पहुँचा सकते हैं। कुछ जीवाणु हमारे पेट और आँतों में अपना प्रजनन जारी रखते हैं और इन अंगों की क्रिया अस्त-व्यस्त कर देते हैं। कुछ और जीवाणु और भोजन को दूषित करने वाले सफेद फफूँद ऐसे जहरीले पदार्थ या टॉक्सिन बनाते हैं जो शरीर में कई प्रकार के विकार पैदा कर सकते हैं। जहरीले पदार्थ बनाने वाले जीवाणु अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि वे केवल पेट और आंतों को ही नहीं शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकते हैं। कई जहरीले पदार्थ विशेषकर तंत्रिका प्रणाली के लिये हानिकारक होते हैं। दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि दूषित भोजन को यदि अच्छी तरह गरम किया जाए तो जीवाणु तो मर जाते हैं परन्तु जहरीले पदार्थ अछूते रह जाते हैं, इसलिये दूषित भोजन गर्म करने के बाद भी हानिकारक हो सकता है दूषित भोजन सेवन करने का मुख्य परिणाम उल्टी और दस्त होते हैं परन्तु जहरीले पदार्थ वाले भोजन से अन्य कई प्रकार के विकार भी हो सकते हैं और कभी कभार मृत्यु भी हो सकती है।
यदि दूषित भोजन इतना हानिकारक हो सकता है तो यह जानना बहुत आवश्यक है कि दूषित भोजन के सेवन से कैसे बचा जाये। पहला उपाय यह कि यथा सम्भव भोजन को पका कर ही सेवन करना चाहिए ताकि जो जीवाणु उसमें पहले से ही हों वे मर जाएँ। दूसरा उपाय है भोजन को सुखाना ताकि जीवाणुओं को जल उपलब्ध न हो। तीसरा उपाय है यथा सम्भव भोजन में चीनी, नमक, सिरका या कोई और खटाई डालना ताकि जीवाणु उसमें पनप न सकें चौथा उपाय है भोजन को ठण्डा रखना। परन्तु इस सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं। पहली यह कि ठण्डा करने से दूषित भोजन को ठीक नहीं किया जा सकता क्योंकि ठण्ड से जीवाणु मरते नहीं, केवल उनका प्रजनन धीमा हो जाता है। दूसरी यह कि फ्रिज में भी भोजन को थोड़े से सीमित समय तक ही ठीक रखा जा सकता है। क्योंकि फ्रिज का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड के आस-पास होता है और इस तापमान पर जीवाणुओं का प्रजनन धीमा हो जाता है, बन्द नहीं होता। वास्तव में कुछ जीवाणु और फफूँद तो फ्रिज के तापमान पर काफी अच्छी तरह से फल-फूल सकते हैं। भोजन को सुरक्षित रखने का पाँचवां उपाय है उसे ठीक प्रकार के ढक कर या बंद डिब्बों में डालकर रखना। इससे भोजन कीड़ों और मक्खियों से बच जाता है। मक्खियाँ अपनी टांगों पर जीवाणु युक्त गन्दगी उठाकर लाती हैं और उसे भोजन पर छोड़ कर चली जाती हैं। दूषित भोजन से बचने का छठा उपाय है खाद्य सामान खरीदते समय सावधानी बरतना।
दूषित भोजन का केवल एक ही उपाय है उसे फेंक दीजिए। उसे फ्रिज या अलमारी में रखना ठीक नहीं क्योंकि वह ठीक भोजन को भी खराब कर सकता है।
(आकाशवाणी से साभार) शरीर क्रिया विज्ञान विभाग, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली-110029
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