डूब जाएगी दुनिया

पिघलते ग्लेशियर्स का ड्रैकुला मुंह फाडे मालदीव को निगलने के लिए बढ़ रहा है। हालात इसी तरह रहे तो मालदीव जल प्रलय का पहला शिकार बन सकता है। मालदीव ने दुनिया को यही संदेश देने के लिए अपने कैबिनेट की बैठक समुद्र के भीतर की। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर इसी तरह पृथ्वी का वायुमंडल गरम होता रहा तो सन् २०२१ तक मालदीव समुद्र में समा जाएगा। १७ अक्टूबर को संपन्न हुई मालदीव कैबिनेट की यह बैठक करीब आधे घंटे तक समुद्र के भीतर चली।हिंद महासागर में स्थित छोटे से देश मालदीव में ग्लेशियर पिघलने के चलते जलप्रलय का खतरा सबसे पहले है। पिछले दिनों मालदीव के कैबिनेट की एक अनोखी बैठक समुद्र गहराइयों में हुई। संदेश यही था कि अगर नहीं चेते तो डूब जाएंगे। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद ने इस बैठक में साफ कहा- हम डूब रहे हैं।

मालदीव चाहता है कि दिसंबर में कोपेनहेगन में होने वाली बैठक में विश्व के नेता कार्बन उत्सर्जन में कटौती की संधि पर हस्ताक्षर करें। राष्ट्रपति ने इस बैठक में कहा,'अगर मालदीव को नहीं बचाया गया, तो कल दुनिया के बचने की भी उम्मीद मत कीजिए।' ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियर मालदीव और बांग्लादेश के लिए सबसे बडा खतरा बने हुए हैं। वैज्ञानिकों ने साफ कह दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग का पहला शिकार मालदीव ही बनेगा। खतरा सिर्फ मालदीव पर ही नहीं है, भारत के समुद्रतटीय इलाकों पर भी खतरा मंडरा रहा है। भारत के सुंदरवन डेल्टा के करीब सौ द्वीपों में से दो द्वीपों को समुद्र ने हाल ही में निगल लिया है और करीब एक दर्जन द्वीपों पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है। इन द्वीपों पर करीब दस हजार आदिवासियों की आबादी है। यदि ये द्वीप डूबते हैं तो यह आबादी भी डूब सकती है।

ग्लेशियर पिघलने के खतरे से भारत और चीन चेत गए हैं। हाल ही में दोनों देशों में इस मसौदे पर बैठक हुई और तय किया गया कि ग्लेशियर पिघलने का अध्ययन करने और वास्तविक स्थिति जानने के लिए दोनों देश एक दल भेजेंगे। दोनों देशों को ये पता है कि पिघलते ग्लेशियर से कई ऎसी नदियों में बाढ आ जाएगी, जिनके किनारे लाखों लोग बसते हैं। भारत और चीन के वैज्ञानिक और पर्वतारोही अब उन ग्लेशियरों पर जाएंगे, जहां से सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदियां निकलती हैं। तिब्बत के पर्वतों से बहकर आई ये दोनों नदियां गंगा और सिंधु नदियों के साथ मिलकर उत्तर भारत और पडोसी देशों के करोडों लोगों को पानी मुहैया कराती हैं।

पर्यावरण से जुडे मुद्दों पर काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक सदी के आखिर तक ग्लोबल वार्मिंग के चलते अफ्रीका में 18 करोड 40 लाख लोगों की मौत हो सकती है। अफ्रीका में बाढ, सूखा, अकाल और संघर्ष बढ रहे हैं जो लोगों की मौत का कारण बन सकते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियरों का खतरा रोकने के लिए पूरी दुनिया को एकगजुट होना होगा। क्योंकि पिघलते ग्लेशियर के खतरे का सामना आज तो केवल मालदीव ही कर रहा है, लेकिन अब भी हम नहीं संभले तो हो सकता है आने वाले वक्त में पूरी दुनिया ही डूब जाए!

 

पिघलते ग्लेशियर के इफेक्ट


पश्चिम बंगाल का सुंदर वन खतरे में
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक पश्चिम बंगाल के सुंदर वन इलाके का 15 फीसदी हिस्सा समुद्र में मिल जाएगा। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ पिघलनी शुरू हुई तो हालात और बदतर होंगे।

2000 द्वीप समुद्र में!
इंडोनेशिया के पर्यावरण मंत्री इस खतरे से आगाह करते हुए कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते अगले 30 सालों में उनके देश के 18 हजार द्वीपों में से करीब दो हजार द्वीप समुद्र में समा जाएंगे।

बढ जाएगा धरती का तापमान
आईपीसीसी की पेरिस में जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2100 में धरती का तापमान 1.8 से लेकर चार डिग्री तक बढ जाएगा। ये रिपोर्ट 113 देशों के 3750 पर्यावरण वैज्ञानिकों ने तैयार की है।

समुद्री सतह ऊपर उठी
ग्लेशियर पिघलने के चलते समुद्र सतह का स्तर छह मीटर तक बढ सकता है। 21वीं सदी के अंत तक समुद्र सतह एक मीटर तक बढ सकती है। पिछली एक सदी में समुद्र जल की सतह 15 सेंटीमीटर तक उठ चुकी है।

 

 

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