दुनिया के 2 बिलियन लोग पीते हैं गंदा पानी

दुनिया के 2 बिलियन लोग पीते हैं गंदा पानी
दुनिया के 2 बिलियन लोग पीते हैं गंदा पानी

22 मार्च 1993 को दुनिया ने पहली बार ‘विश्व जल दिवस’ मनाया था। तब से हर साल निरंतर रूप से मनाए जा रहे जल दिवस का मकसद लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरुक करना तथा सभी देशों के हर व्यक्ति को साफ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। इसके लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं। विभिन्न देश अपने अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं। समस्या से निपटने के लिए सैंकड़ों सरकारी व गैर सरकारी संगठन धरातल पर कार्य करने में जुटे हैं। इस कार्य के लिए इन संगठनों को करोड़ों रुपये की फंडिंग भी की जाती है, लेकिन जल दिवस मनाते हुए करीब 27 साल होने वाले हैं, जल संकट की स्थिति सुधरने के बजाए और बिगड़ती जा रही है। जो इस बात का प्रमाण है कि जल को संरक्षित करने के लिए वैश्विक स्तर पर जरूरत के मुताबिक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। जिस कारण दुनिया भर के देशों के सामने जल संकट भयावह रूप ले चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जल प्रदूषण के कारण हर साल करीब 4.6 मिलियन लोगों की जान जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2017 में विश्व की 71 प्रतिशत जनसंख्या (5.3 बिलियन) को स्वच्छ जल की आपूर्ति की जा रही है, जबकि 785 मिलियन लोगों के पास बुनियादी पेयजल सुविधाओं का अभाव है। इनमें वे 144 मिलियन ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो सतही जल पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा 2 बिलियन लोग ऐसे हैं, जो ऐसा पानी पीने के लिए मजबूर हैं, जो मल के कारण प्रदूषित हुआ है। प्रदूषित पानी का असर इतने व्यापक स्तर पर फैल रहा है कि इसके कारण होने वाले वाली बीमारियों से हर साल 4.6 मिलियन लोग जान गवा रहे हैं। जल प्रदूषण के कारण भारत में होने वाली मौतों की संख्या तीन लाख के करीब है। इसके अलावा भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 445 नदियों में से 275 नदियों प्रदूषिण हैं। विश्व भर के कुल जल का 5 प्रतिशत जल ही भारतीय नदियों में हैं, लेकिन विश्व की नदियों में जितना गाद, मल आदि प्रदूषण बहाया जाता है, उसका 35 प्रतिशत सेडिमेंट भारतीय नदियों में बहता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में जल गंभीर रूप से प्रदूषित है। 

भारत में गंगा, गोमती, यमुना जैसी नदियां औद्योगिक वेस्ट और सीवर के कारण गंभीर रूप से प्रदूषण हो चुकी हैं। तालाबों को डंपिंग मैदान के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है। भारत मे कचरा प्रबंधन की व्यवस्था अपेक्षाकृत काफी कम है। देश के लोगों में भी स्वच्छता के लिए जागरुकता की कमी है। पढ़े लिखे होने के बावजूद भी खुले में या जलस्रोतों में कूड़ा फेंक देते हैं। हांलाकि स्वच्छ भारत अभियान के कारण लोगों में थोड़ा बदलाव देखा गया है, लेकिन भारत में जो कचरा एकत्रित किया भी जाता है, उसके प्रबंधन की व्यवस्था अपर्याप्त है। एक अनुमान की मुताबिक भारत की छोटी बड़ी करीब 4500 नदियां सूखी चुकी हैं। जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। बड़े शहरों में भूजल समाप्त होने की कगार पर है। शिमला, चेन्नई, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली आदि में जल संकट का हाल हम प्रत्यक्ष तौर पर और नीति आयोग की रिपोर्ट में भी देख ही चुके हैं। इस वर्ष भी समस्या गहराने की संभावना है। तो वहीं देश के तीन करोड़ ग्रामीण भी गंदा पानी पीने पर मजबूर हैं। 

वास्तव में जल बचाने के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता दोनों पर ही समान रूप से ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए हमें नियमित तौर पर पौधरोपण करना होगा। प्रयास करने होंगे कि वैज्ञानित पद्धति को अपनाते हुए ही पौधारोपण किया जाए, और मिश्रित पौधारोपण को तवज्जों दी जाए। इसके लिए पहाड़ी स्थानों पर भी वृहद स्तर पर वृक्ष लगाए जाने चाहिए। वृक्ष वातावरण को बनाए रखने और जल को भूमि के अंदर ले जाने तथा मृदाअपरदन को रोकने का काम करते है। इसके अतिरिक्त वर्षा जल संरक्षण पर जो दिया जाना चाहिए। घरों में भी जल संरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे जल संकट से निपटा जा सकता है, लेकिन साफ पानी सुनिश्चित करने के लिए खुले और जलस्रोतों में गंगदी फेंकने से बचना होगा। ज्यादा से ज्यादा एसटीपी बनाकर एक बूंद भी गंदा पानी नदियों में बहाने से रोका जाए। कैमिकलयुक्त कचरा नदियों में डालने पर कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हो। तभी तक पानी को बचाने के साथ ही उसे साफ भी रख पाएंगे। वरन् आने वाले समय में हर व्यक्ति को जल संकट के भयावह रूप का सामना करना पड़ेगा। 


लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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