दुधारू पशुओं की प्रमुख नस्लें एवं दूध व्यवसाय हेतु उनका चयन


यदि पशु की वंशावली उपलब्ध हो तो उनके बारे में सभी बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। लेकिन हमारे यहाँ वंशावली रिकॉर्ड रखने का प्रचलन नहीं है, जिसके कारण अनेक लक्षणों के आधार पर ही पशु का चुनाव करना पड़ता है। अच्छे डेरी फार्म से पशु खरीदने में यह सुविधा प्राप्त हो सकती है।

एक ही जाति के पालतू पशुओं के उस समूह को नस्ल कहते हैं जिनके सदस्यों में एक विशेष प्रकार का समान गुण हो एवं जिसके आधार पर उन्हें अन्य पशुओं से अलग जाना एवं पहचाना जा सके। हमारे देश में गायों की लगभग 30 एवं भैसों की 15 प्रजातियों का वर्णन है। परन्तु इनमें दूध देनेवाली नस्लों की संख्या सीमित है। हमारे किसान बन्धुओं जिनकी इच्छा दूध व्यवसाय से जुड़ने की हो, उनके लिये दुधारू पशुओं की नस्लें एवं चयन की जानकारी होना महत्त्वपूर्ण है। दुधारू पशुओं का चयन उनके जातिगत गुणों दुग्ध उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता इत्यादि के आधार पर किया जाता है।

गायों की प्रमुख देशी नस्लें


1. साहिवाल: यह लम्बे सिर, छोटे सींग, मध्यम आकार, लाल रंग, ढीले चमड़े एवं लम्बे थनों वाली नस्ल है जो प्रति ब्याँत (300 दिन) लगभग 1900 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है।

2. लाल सिन्धी- यह गहरे लाल एवं भूरे रंग की मध्यम आकार की गाय है, जिसका सींग छोटा तथा कान बड़ा होता है। यह प्रति ब्याँत लगभग 1600 लीटर दूध देती है।

3. गीर- यह सफेद चित्तियों से युक्त लाल रंग की मध्यम आकार की नस्ल है जो गुजरात की गीर पहाड़ियों में पायी जाती है जिसका सींग माध्यम आकार का, पीछे की ओर मुड़ा हुआ, कान लम्बे लटकते हुए एवं पूँछ कोड़े जैसी होती है। यह प्रति ब्याँत लगभग 1500 लीटर दूध देती है।

4. थपाकर- यह गठीले शरीर, लम्बा चेहरा, मध्यम आकार के सींग, लम्बे काले गच्छों से युक्त पूँछ एवं बड़े कान वाली गाय है जो राजस्थान के थार मरुस्थल एवं कच्छ में पाई जाती है। यह प्रति ब्याँत लगभग 2200 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है।

दुकाजी नस्लों में हरियाणा, काॅकरेज एवं देवनी भी दूध उत्पादन की दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि हमारे राज्य की भौगोलिक एवं जलवायु की दृष्टिकोण से हरियाणा नस्ल की गाय उपयुक्त है।

5. हरियाणा नस्ल- इस नस्ल की गाय का रंग सफेद या हल्का धुसर, चेहरा लंबा एवं माथा चौड़ा, सींग छोटा अन्दर की तरफ मुड़ा हुआ और पूँछ लम्बी होती है। यह प्रति ब्याँत लगभग 900 लीटर दूध देती है।

इन नस्लों के अलावा हमारे देश में अधिक दूध देने वाली कुछ विदेशी नस्लें भी हैं जिनका देशी नस्लों के साथ संकरण कर अधिक दूध देने वाली संकर नस्लें तैयार की जाती हैं।

प्रमुख विदेशी नस्लें


1. जर्सी- इस नस्ल का मूल स्थान जर्सी द्वीप है। इस नस्ल का रंग हल्का लाल या बादामी होता है। जिस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं। सींग छोटे अन्दर की ओर मुड़े हुए तथा माथा, कंधा एवं पीठ समतल होता है। ये लगभग 30 माह के भीतर बच्चा देती है तथा ब्याँतार लगभग 13-14 माह का होता है। यह प्रति ब्याँत औसतन 4500 लीटर दूध देती है।

2. हौल्सटी- फ्रीजियन-मूल रूप से नीदर लैण्ड में पायी जाने वाली नस्ल की गाय बहुत बड़ी, काली एवं सफेद रंग की होती है। यह विश्व की सबसे अधिक दूध देनेवाली नस्ल है, जिसका औसत दूध उत्पादन 7000 लीटर प्रति ब्याँत होता है। ब्याँत अन्तराल एवं बच्चा देने की प्रथम आयु लगभग जर्सी के समान होती है।

3. ब्राउन स्विस- इनका मूल स्थान स्विटजरलैण्ड है। ये बड़े डील डौल वाली हल्के भूरे रंग की होती है, जिनकी पीठ एवं गर्दन ऊपर से सीधी होती है। यह प्रति ब्याँत लगभग 5000 लीटर दूध देती है। ब्याँत अन्तराल, बच्चे देने की प्रथम आयु लगभग जर्सी के समान होती है।

संकर गाय


1. करन फ्रीज- राष्ट्रीय दुग्ध अनुसन्धान संस्थान, करनाल द्वारा थपारकर एवं हाॅल्सटीन फ्रीजियन नस्ल के संयोग से विकसित की गयी है। इस नस्ल के गाय के शरीर पर काला धब्बा एवं कभी-कभी पूर्णतः काला शरीर एवं लाल पर सफेद धब्बा पायी जाती है। यह प्रति ब्याँत लगभग 3700 लीटर देती है।

2. करन स्विस- राष्ट्रीय दुग्ध अनुसन्धान संस्थान, करनाल द्वारा ब्राउन स्विस एवं साहिवाल लाल/सिन्धी नस्ल के संयोग से विकसित की गई। इस नस्ल की गाय लाल रंग की होती है। यह औसतन लगभग 3300 लीटर दूध प्रति ब्याँत देती है।

भैसों की प्रमुख नस्लें


1. मुर्रा- इस नस्ल की भैसों का मूल स्थान हरियाणा एवं पंजाब का पश्चिमी इलाका है। ये विशाल गहरे काले रंग, धमाकादार सींग, गर्दन एवं सिर अपेक्षाकृत लम्बा, अयन (धन) पूर्ण विकसित, पूँछ बालों के गुच्छों से भरे हुए, आगे की तरफ पतली एवं पीछे से भारी होती है। यह लगभग तीन साल में प्रथम बच्चा एवं प्रति ब्याँत लगभग 2000 लीटर दूध देने वाली नस्ल है।

2. मेहसाना- इस नस्ल का मूल स्थान गुजरात राज्य का मेहसाना जिला है। इनका आकार मध्यम, थूथना चौड़ा नथुना खुले हुए तथा रंग काला होता है। इनकी गर्दन पतली, पीठ सीधी, सींग छोटे मुड़े हुए एवं पतली, पीठ सीधी, सींग छोटे मुड़े हुए एवं स्तन लंबे हैं। शरीर मध्यम आकार का होने के कारण खान-पान कम खर्चीला होता है। यह प्रति ब्याँत औसतन 2000 लीटर तक दूध दे सकती है।

3. सूरती- इस नस्ल का विकास गुजरात राज्य के खैरा एवं बड़ौदा जिलों में हुआ है। मध्यम आकार, सिर लम्बा,सींग हँसिया आकार का, रंग भूरा या हल्का काला एवं जबड़े तथा छाती पर दो सफेद धारियों का पाया जाना इस नस्ल की पहचान है। यह नस्ल प्रति ब्याँत औसतन 1800 लीटर दूध देती है।

4. नीली- राबी- इस नस्ल की भैंस पंजाब में पायी जाती है। इस नस्ल की भैंस का रंग काला तथा ललाट, चेहरा, थूथना एवं पैर पर उजला रंग का पाया जाना पहचान है। यह प्रति ब्याँत लगभग 1750 लीटर दूध देती है।

दुधारू पशु खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातेंः


दुधारू पशु का मूल्याकंन उनके दुग्ध उत्पादन क्षमता, प्रतिवर्ष बच्चे देने की क्षमता तथा लम्बे, स्वास्थ्य एवं उपयोगी जीवन से किया जाता है। अच्छे दुधारू पशुओं को खरीदते समय किसान भाइयों को निम्नलिखित गुणों पर ध्यान दिया जाना चाहिये-

(i) शारीरिक संरचना- दुधारू पशुओं का शरीर आगे से पतला तथा पीछे से चौड़ा, नथुना खुला हुआ, जबड़ा मजबूत पेशीवाला, आँखे उभरी एवं चमकदार, त्वचा पतली, पूँछ लम्बी, सींगों की बनावट नस्ल के अनुसार, कन्धा शरीर से भली-भाँति जुड़ा हुआ, छाती का भाग विकसित, पीठ चौड़ी एवं समतल तथा शरीर छरहरा होना चाहिये दुधारू गाय की जाँघ पतली एवं गर्दन पतली लम्बी एवं सुस्पष्ट होनी चाहिये। पेट काफी विकसित होना चाहिये। अयन (थन) की बनावट समितीय, त्वचा कोमल होना चाहिये। चारों चूचक एक समान लबें एवं मोटे, एक दूसरे से समान दूरी होना चाहिये।

(ii) दुग्ध उम्पादन क्षमताः- खरीदने से पूर्व उसे स्वंय दो तीन दिन तक दुहकर भली-भाँति परख लेना चाहिये। दूहते समय दूग्ध की धार सीधी गिरनी चाहिये तथा दूहने के बाद थन सिकुड़ जाना चाहिये। अयन में दूध की शिराएँ उभरी हुई अच्छी तरह से विकसित दिखाई देनी चाहिये।

(iii) वंशावली- यदि पशु की वंशावली उपलब्ध हो तो उनके बारे में सभी बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। लेकिन हमारे यहाँ वंशावली रिकॉर्ड रखने का प्रचलन नहीं है, जिसके कारण अनेक लक्षणों के आधार पर ही पशु का चुनाव करना पड़ता है। अच्छे डेरी फार्म से पशु खरीदने में यह सुविधा प्राप्त हो सकती है।

(iv) आयु- सामान्यतः पशुओं की जनन क्षमता 10-12 वर्ष की आयु के बाद समाप्त हो जाती है। तीसरे-चौथे ब्याँत तक दुग्ध उत्पादन चरम सीमा पर रहता है जो धीरे-धीरेे घटते जाता है। अतः दुग्ध उत्पादन व्यवसाय के लिये 2-3 दाँत वाले कम आयु के पशु अधिक लाभदायक होते हैं। दुधारू पशुओं में स्थाई एवं अस्थाई दो प्रकार के होते है। स्थाई दाँत मटमैले सफेद रंग के उपर से नीचे की तरफ पतले गर्दन का आकार लिये हुए जबड़े से जुड़े होते हैं जबकि अस्थाई दाँत सफेद बिना गर्दन के जबड़े से लगे होते हैं। 6 (छः) साल के बाद मवेशियों के सामने के दो( इनसाइजर) दाॅत धीरे-धीरे घिसनें लगते हैं जिससे अपेक्षाकृत कम नुकीले एवं छोटे दिखाई देते हैं। 10-11 साल की आयु होने तक चारों इनसाइजर दाँत घिसकर छोटे हो जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ लगभग सभी दाँत घिसकर चौकोर हो जाते हैं तथा दो दाँतों के बीच में फर्क दिखाई देने लगता है।

(v) स्वास्थ्य- पशु का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिये तथा स्वास्थ्य के बारे में अगल-बगल के पड़ोसी से जानकारी भी अवश्य लेनी चाहिये। टीकाकरण एवं अब तक हुई बीमारियों के बारे में सही-सही जानकारी होने से उसके उत्तम स्वास्थ्य पर भरोसा किया जा सकता है।

(vi) जनन क्षमता- आदर्श दुधारू गाय वही होती है जो प्रतिवर्ष एक बच्चा देती है। पशु क्रय करते समय उसका प्रजनन इतिहास अच्छी तरह जान लेना चाहिये। यदि उसमें किसी प्रकार की कमी हो तो उसे कदापि नहीं खरीदना चाहिये। क्योंकि ये कभी भविष्य में समय पर पाल न खाने, गर्भपात होने, स्वास्थ्य, बच्चा नही होने, प्रसव में कठिनाई होने इत्यादि कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

 

पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

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