दृष्टि

नीचे प्रलय काष
प्रवाह था
कुछ लोग
ऊपर देख रहे थे
इन्द्रधनुष....

सवाल

कितना कुछ धुला
कितना बह गया
इस बारिश में

मगर कहां बहे
जस के तस रहे
औरतों के आंसू
भूखों की लाचारियां
आम अवाम की पेरशानियां.....

निपट

कभी सूखा
उघाड़ देता
एकबारगी

कभी बाढ़
लपेट लेतीं

मगर है गांव
जलमग्न
कोई देख नहीं पाएगा
भीतर-भीतर
वह कितना नग्न.......

पीठ पर पानी

पानी बरस रहा है
फिर पीट पीट कर
जिनके सिर पर ओट नहीं
डटे हुए हैं
कड़ी पीठ पर.......

चर्चित कवि । मोः 09930453711.

Path Alias

/articles/darsatai

Post By: pankajbagwan
×