ड्रिप सिंचाई - महाराष्ट्र ने दिशा दिखाई


सिंचाईड्रिप सिंचाई की सबसे आधुनिक प्रणाली है। सिंचाई की यह तकनीक मुख्य रूप से जल-संरक्षण से जुड़ी हुई है। ड्रिप प्रणाली में पानी सीधे पेड़-पौधों की जड़ तक पाइप द्वारा पहुँचता है। यह पद्धति उन इलाकों के लिये बहुत उपयोगी है जहाँ कम वर्षा होती है अथवा पानी की कमी है। बावजूद इसके इन इलाकों में बेहतर गुणवत्ता वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।

पानी की सबसे ज्यादा खपत आज भी ‘कृषि’ के क्षेत्र में है। कुल पानी का 90 प्रतिशत हिस्सा कृषि के कार्यों में ही खप जाता है। जैसे-जैसे औद्योगिक विकास की गति तेज हो रही है कृषि के लिये उपलब्ध जल की मात्रा भी घट रही है। घटते हुए जल भण्डार के अधिकतम उपयोग पर बल दिये जाने से ड्रिप सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता बढ़ती जा रही है।

इस सिंचाई प्रणाली की शुरुआत आठवीं पंचवर्षीय योजना के तहत की गई। आठवीं योजना के तहत कुल 1.39 लाख हेक्टेयर इलाके में ड्रिप सिंचाई प्रणाली लागू करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि 12,000 हेक्टेयर क्षेत्र को ड्रिप प्रणाली के व्यावहारिक प्रदर्शन के लिये रखा गया है।

देश के कई भागों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर काम हो रहा है। इन राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों के नाम शामिल हैं।

इन राज्यों में महाराष्ट्र मील का पत्थर साबित हुआ है। महाराष्ट्र में आमतौर पर खेती का काम जून से अक्टूबर के बीच चलने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर करता है। बढ़ती हुई जरूरतों को केवल वर्षा के जल से पूरा नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में भूजल स्रोतों का बेहतर उपयोग आवश्यक है।

महाराष्ट्र में गन्ना, कपास और बागवानी उत्पाद जैसे अंगूर, सन्तरा, केला, आम, काजू, नारियल और अमरूद जैसी फसलों की सिंचाई के लिये पानी की जरूरत लगातार बनी रहती है। असमान तथा अनिश्चित वर्षा ने किसानों को बेहतर विकल्प की ओर प्रोत्साहित किया है। इस विकल्प के रूप में ‘ड्रिप सिंचाई’ को महाराष्ट्र के किसानों ने तत्परता से अपनाया है।

इस राज्य में ड्रिप सिंचाई की शुरुआत पिछले दशक के दौरान उस समय से हुई है जब राज्य सूखे से प्रभावित था। नासिक में 1986-87 के दौरान पड़े सूखे में अंगूर की खेती प्रभावित हो रही थी। उन परिस्थितियों में अंगूर के बागों को बचाने के लिये नासिक के जिला सहकारी बैंक ने ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के लिये जरूरतमन्द किसानों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई। संकट की इस घड़ी में ड्रिप सिंचाई के परिणाम बहुत ही उत्साहवर्धक रहे। इससे न केवल सिंचाई के लिये कम पानी का उपयोग करना पड़ा बल्कि उत्पादकता में भी वृद्धि हुई।

नासिक में हुए इस प्रयोग से प्रभावित होकर ही महाराष्ट्र सरकार ने 1986-87 में प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिये योजना का आरम्भ किया। राज्य सरकार इसी वर्ष (1986-87) से ही ड्रिप सिंचाई के लिये सब्सिडी (सहायता) उपलब्ध करा रही है। जबकि भारत सरकार का कृषि मंत्रालय बागवानी क्षेत्र में ड्रिप प्रणाली को प्रोत्साहित करने के लिये 1991-92 से ही शत-प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करा रहा है।

वर्ष 1994-95 से ड्रिप सिंचाई को राज्य में लोकप्रिय बनाने के लिये बड़े पैमाने पर योजनाएँ शुरू की जा रही हैं। करीब 43 करोड़ 10 लाख रुपए राज्य और केन्द्र सरकार से इन परियोजनाओं के लिये प्राप्त किये जाएँगे।

मुख्य रूप से इन नई परियोजनाओं का ध्यान गन्ने के खेतों में ड्रिप प्रणाली लागू करने पर केन्द्रित है। अब तक 101 सहकारी संगठनों और 4 निजी क्षेत्र की मिलों सहित 29 और चीनी मिलों में इस योजना को लागू करने की मंजूरी दी जा चुकी है।

महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में अब भी सूखे की स्थिति बनी हुई है। राज्य सरकार ने एक विशेष सब्सिडी कार्यक्रम की भी घोषणा की है जो ड्रिप सिंचाई के क्षेत्र में उपलब्ध कराई जाएगी। इस योजना के तहत 50 प्रतिशत तक सब्सिडी गन्ना उत्पादकों को उपलब्ध कराई जाएगी।

राज्य सरकार ने योजना के बेहतर संचालन के लिये कृषि मंत्रालय के निदेशक के अन्तर्गत एक कमेटी का गठन किया है, जो योजना के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश और आवश्यक नियम बनाएगी। इस बात पर लगातार बल दिया जा रहा है कि कम्पनियाँ गुणवत्ता में उत्कृष्ट उपकरणों का ही निर्यात करें। सम्बन्धित कमेटी व्यावहारिक कठिनाइयों और शिकायतों पर भी विचार करेगी और किसानों की सलाह को ध्यान में रखते हुए उचित कदम उठाएगी। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय भी लगातार ड्रिप सिंचाई यंत्रों का निर्माण करने वाले लोगों के बीच ‘एकरूपता’ लाने का प्रयास कर रहे हैं।

‘महाराष्ट्र’ की सफलता को देखते हुए अनेक राज्यों को भी अब सीधे तौर पर ड्रिप सिंचाई के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। देश के विभिन्न राज्यों में ड्रिप सिंचाई के लिये अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किये गए हैं। यह महाराष्ट्र के लिये 51,000 हेक्टेयर क्षेत्र, कर्नाटक में 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र, तमिलनाडु में 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश में 2,000 हेक्टेयर क्षेत्र, मध्य प्रदेश में 1,000 हेक्टेयर क्षेत्र निर्धारित किया गया है।

ड्रिप सिंचाई के क्षेत्र में महाराष्ट्र ने जो पद्चिन्ह छोड़े हैं वह सचमुच बाकी राज्यों के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।

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