डोंगी से चलना होगा

नवम्बर 2015 में चेन्नई बाढ़
नवम्बर 2015 में चेन्नई बाढ़

नवम्बर 2015 में चेन्नई बाढ़ (फोटो साभार - द हिन्दू)अनगिनत कवियों के साथ प्रेम करने वाले सदियों से यह दावा करते हैं कि वेनिस एक शहर नहीं है बल्कि एक जीवन्त सपना है। ठीक इसी तरह बेअदबी से लोग यह कहते होंगे कि मानसून के समय भारतीय शहर मात्र शहर नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर हैं। वेनिस के जलीय मार्गों की ख्याति पूरे विश्व में है और काफी बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ हर साल आते हैं। ठीक इसके उलट भारतीय शहर बारिश के संकेत मात्र से अनचाही नदियों में तब्दील हो जाते हैं।

कोलकाता में यह कहावत बहुत प्रचलित है कि जब भी मेंढक की पैंट गीली होती है तो शहर पानी से भर जाता है। चकाचौंध से भरी भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जाता है। कुछेक घंटों की बारिश हुई नहीं कि रोशनी से भरा यह शहर घुटने तक पानी से भर जाता है। चेन्नई, जो दो दशक पहले तक जलजमाव की समस्या से रूबरू नहीं हुआ था, 2015 की बाढ़ के बाद काफी बदल गया है।

देश के शहरों में बाढ़ की समस्या का कारण शहरी पारिस्थितिकी को जानबूझकर नजरअन्दाज किये जाने के साथ ही खामी भरा शहरी नियोजन है। नागरिकों को होने वाली समस्या के साथ ही इसके कई गम्भीर आर्थिक पहलू भी हैं। यूनाइटेड नेशंस एन्वायरनमेंट प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार वाहियात शहरी नियोजन के कारण देश हर साल जीडीपी का 3 प्रतिशत हिस्सा गवाँ सकता है।

जनसंख्या विस्फोट

भारत में आजादी के बाद शहरीकरण काफी तेजी से हुआ है। 1950 में देश की कुल जनसंख्या का मात्र 17 प्रतिशत हिस्सा शहरों में रहता था। जो आज बढ़कर एक तिहाई हिस्से से भी ज्यादा हो गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में आज 300 से ज्यादा शहर हैं जिनमें 50 ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या एक मिलियन से ज्यादा है। विश्व के दस सबसे बड़े शहरों में तीन दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता भारतीय हैं। इसके साथ ही विश्व के तीन सबसे तेजी से बढ़ने वाले शहर गाजियाबाद, सूरत और फरीदाबाद भारत में ही हैं। इसका कारण जनसंख्या विस्फोट है। चंडीगढ़, सुनियोजित होने के साथ ही देश के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है। इस शहर का नियोजन आधे मिलियन जनसंख्या को ध्यान में रखकर किया गया था लेकिन आज यहाँ डेढ़ मिलियन से ज्यादा लोग निवास करते हैं। पिछले साल अगस्त में हुई मूसलाधार बारिश के कारण शहर में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इस वर्ष जुलाई में हुई अत्यधिक बारिश के कारण हरा-भरा, वृक्षदार चौड़े रास्तों वाला सुनियोजित शहर, भुवनेश्वर भी पानी से लबालब हो गया था। यह कोई अचम्भे की बात नहीं है कि अनियंत्रित विकास वाले शहर गाजियाबाद और सूरत बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित रहते हैं।

लेकिन शहरों में बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए पारिस्थितिकी विशेषज्ञों और नियोजनकर्ताओं का कहना कि शहरों में बाढ़ का कारण मानवजनित है क्योंकि स्थानीय पारिस्थितिकी के साथ प्राकृतिक जल निकासी की व्यवस्था को नजरअन्दाज किया जा रहा है। इसके अलावा रियल एस्टेट के धंधे से जुड़े लोगों की असन्तोषी प्रवृत्ति, लालचीपन के साथ उनके और सरकारी अफसरों के बीच का अनैतिक जुड़ाव भी इस परिस्थिति के लिये बराबर रूप से जिम्मेवार है।

बंगलुरु में तेजी से हुए अनियंत्रित शहरी विकास के कारण झीलों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। बमुश्किल से मुट्ठी भर झील अभी भी जीवित हैं। एक दूसरे से जुड़ी इस प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था को अनियंत्रित शहरी विकास तेजी से निगल रहा है।

चेन्नई के सन्दर्भ में भी ठीक ऐसा ही कहा जा सकता है। एन्नोर क्रीक की स्थिति में हुई गिरावट ने इस महानगर के उत्तरी इलाकों में बाढ़ की सम्भावनाओं को बढ़ा दिया है। वहीं, पल्लिकरन्नई दलदल के लगातार सूखते चले जाने के कारण महानगर के दक्षिणी इलाके में जलजमाव की समस्या अवश्यम्भावी हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा के पैटर्न में दक्षिण एशिया में बदलाव हुआ है और वह पूर्व की तुलना में ज्यादा अप्रत्याशित और तीव्र हो गई है। यह समस्या दिनों-दिन और भी प्रचंड होती जा रही है।

अल्प और तीव्र

शोध यह दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे-जैसे सामने आते जा रहे हैं शहरों के साथ ही भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में बहुत कम समय में अत्यधिक बारिश की बात आम होती जा रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शहरी बाढ़ के दो कारण हैं। पहला, तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण पारगम्य मिट्टी के सतहों को अपारगम्य कंक्रीट की सतहों में बदला जाना और दूसरा बढ़ते तापमान के साथ अत्यधिक शहरी बारिश का गहरा सम्बन्ध।

ऐसे हालात में इससे पहले की बहुत देर हो जाये यह बेहद जरूरी हो गया है कि हम शहरों के बदलते स्वरूप और उसके विभिन्न पारिस्थितिकीय आयामों को ध्यान में रखते हुए एक बुद्धिमान शहरी नियोजन तैयार करें। भारत सरकार भी राष्ट्रीय शहरी योजना तैयार कर रही है। यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि योजना लोगों के साथ ही पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं पर केन्द्रित हो न की केवल अभियांत्रिक समाधानों पर।

हमारे देश में शहरी शासन व्यवस्था अपर्याप्त होने के साथ ही बहुत बुरी अवस्था में है। भारत में शहरी व्यवस्था को लेकर हर वर्ष किये जाने वाले सर्वे में जनाग्रह सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड गवर्नेंस (Janaagraha Centre for Citizenship and Governance) ने पाया कि शहरों में सेवा वितरण की खराब स्थिति, शहरी शासन के विफल होने का कारण है। इसे बदले जाने की जरूरत है। हमें कोयम्बटूर से सीख लेनी चाहिए जहाँ शहर के नागरिक जल निकायों को पुनर्जीवित करने में अपना योगदान देते हैं। यह अनूठा पहल है।

भारत, शहरी बदलाव के पड़ाव पर है जिसका हमें अच्छे से प्रबन्धन करना चाहिए। इसमें सतत पारिस्थितिकीय प्रबन्धन का ख़ास ख्याल रखा जाना चाहिए नहीं तो चेन्नई में हमें डोंगियों और गाजियाबाद में नावों के सहारे चलने की दुखदायी सम्भावनाओं से गुजरना होगा।

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अनुवाद: राकेश रंजन

 

 

 

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