दो दशकों से गंगा के लिये संघर्ष करता मातृ सदन

दो दशकों से गंगा के लिये संघर्ष करता मातृ सदन
दो दशकों से गंगा के लिये संघर्ष करता मातृ सदन

मातृ सदन द्वारा पिछले २० वर्षों में लगभग 65 सत्याग्रह किये जा चुके हैं  चूँकि मातृ सदन एक ऐसी अध्यात्मिक संस्था है जो कि पर्यावरण हित में ही कार्य करती है इन की कार्य प्रणाली महात्मा गाँधी से प्रेरित सत्याग्रह के आधार पर है.

गत दो दशकों से गंगा  को खनन एवं बांधों की विभीषिका से अवगत कराने के साथ साथ इस पर रोक लगाने के लिए अनेक संघर्ष किये.

कुछ समय पूर्व 22 जून 2018 से अनशनरत सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के प्रथम सदस्य सचिव, आई आई टी कानपुर  के प्रोफेसर डॉ जी डी अग्रवाल / स्वामी सानंद जी को उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जबर्दस्ती उठा कर अस्पताल में भर्ती कर दिया और 24 घंटे के अन्दर ही उनकी मृत्यु का ऐलान कर दिया| इसी तरह वर्ष 2011 में स्वामी निगमानंद को भी अस्पताल में भर्ती करके उनकी मौत का ऐलान किया था.

दोनों बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी, जिसने सत्याग्रह के महत्त्व को कभी नहीं समझा| हिंसा के बल पर दो पर्यावरण विद्यों को जीवन से हाथ धोना पड़ा| किन्तु मातृ सदन कभी पीछे हटने वाला नहीं है स्वामी सानंद जी की मृत्यु के बाद ब्रहमचारी आत्मबोधानंद ने तपस्या शुरू की जो की 6 महीने से ज्यादा 194 दिन तक चली जब नमामि गंगे के डायरेक्टर द्वारा उनको लिखित  आश्वासन  दिया गया कि उनको मांग पूरी होगी और इस मामले को माननीय प्रधानमंत्री को भी संज्ञानित किया गया है| कार्यवाही करने के लिए 7 दिन का समय माँगा| किन्तु जब 7 दिन 7 महीने में बदल गए और सरकार चुपचाप बैठी रही तो मातृ सदन की ब्रह्मचारिणी पद्मावती ने सत्याग्रह करने की ठानी और 15 दिसम्बर 2019 से सत्याग्रह शुरू किया| सिर्फ नींबू, शहद और जल पर गुजारा किया, अन्न त्याग किया| उनके साथ जो दुर्व्यवहार हुआ वो सबको ज्ञात ही है| किस प्रकार नारी संत का अपमान उन्हें गर्भवती बता कर किया गया, ये बेहद शर्मनाक है| इससे सरकार की कुटिल नीयत का पता चलता है.

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने गंगा को अविरल बनाने के लिए निरंतर प्रयास किया. उनकी मांग थी कि गंगा के आस-पास बन रहे हाइड्रॉइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को बंद किया जाए और गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम को लागू किया जाए. 

मुख्य रूप से उनकी चार मांगे थीं. 

पहली, गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराया जाए. इस ड्राफ्ट के प्रस्तावकों में स्वामी सानंद खुद भी थे. यदि ऐसा न हो सके तो इस ड्राफ्ट के अध्याय–1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरंत लागू और प्रभावी बनाया जाए. 

दूसरी, अलकनन्दा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर तथा मंदाकिनी पर प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना निरस्त की जाए. 

तीसरी, गंगा की सहायक नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं को निरस्त किया जाए. हरिद्वार में खदान पर पूर्ण रोक लागू हो, यह तीसरी मांग थी. 

चौथी,  मांग ‘गंगा भक्त परिषद‘ का गठन है.

बड़े ही विस्मय और खेद की बात है कि सरकार अपने लिखित आदेशों से पलट गयी| जल शक्ति मंत्रालय ने रायवाला से भोगपुर तक खनन पर बैन लगा दिया किन्तु बाद में अपने ही फैसलों को दरकिनार करते हुए दोबारा खनन शुरू कर दिया इसी मुद्दे को राज्य सभा में उठाया गया तो जवाब मिला कि मातृसदन के संपर्क और उनसे विचार करके ही कार्य होगा, किन्तु हकीकत में ऐसा कुछ नहीं हुआ| वर्तमान में भी ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद जी की इन्ही मांगो को लेकर दिनांक 23 फरवरी 2021 से सत्याग्रह पर हैं| 7 दिन बीत जाने के बाद भी उनकी नहीं सुनी गयी तो उन्होंने8 मार्च 2021 से उग्र तपस्या का ऐलान कर दिया है, जिसके अनुसार वे 8 मार्च से जल का भी त्याग करेंगे

ऐसी विकट परिस्थिति में क्या सरकार उनकी बात सुनेगी?

गंगा किनारे अनेको शहर बसे हुए हैं खासकर हरिद्वार जहाँ पर प्रत्येक 12 वर्ष में महाकुम्भ होता है, गंगा से लाखों परिवारों की रोजी रोटी चलती है वे भी इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जब गंगा लुप्त हो जाएगी तो उनका जीवन कैसे चलेगा.

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Post By: Shivendra
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