पूरे देश में जब भयंकर सूखा है, पूरा देश जब पानी के संकट से गुजर रहा है, ऐसे समय में सूखे के मुद्दे पर एक पानीदार चर्चा हुई दिल्ली के आईएसआई (इण्डियन सोशल ऑफ इंस्टीट्यूट) में आयोजक थे, ग्राम स्वराज और सीएसई। चर्चा का विषय रखा गया था- चूँकि दिल और दिमाग नहीं सूखा।
चर्चा में पत्रकार पी साईनाथ, अधिकवक्ता प्रशांत भूषण, कृषि विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा, सीएसई की सुनीता नारायण और स्वराज अभियान से योगेन्द्र यादव शामिल हुए।
पी. साईनाथ ने अपने विशेष अन्दाज में कहा, ‘प्रखण्ड विकास पदाधिकारियों के हाथ में ब्लॉक के डेवलपमेंट का काम है, वे ब्लाक डेवलपमेंट ऑफिसर की जगह ब्लॉक्ड डेवलपमेंटर ऑफिसर हो गए हैं। लातेहार में किसान राम लखन ने उन्हें तीसरी फसल के सम्बन्ध में बताया था। खरीफ, रबी के साथ-साथ देश के कई राज्यों में सूखा राहत के लिये जो रकम सरकार की तरफ से आती है, वह तीसरी फसल सरकारी अधिकारी काटते हैं। राम लखन से मिले तीसरी फसल के ज्ञान ने उन्हें अपनी किताब का नाम ‘एवरी बडी लव्स अ गुड डॉट’ रखने के लिये प्रेरित किया।’
पी साईनाथ ने कहा कि जिसे हम सूखा कह रहे हैं, यह सूखा से अधिक गम्भीर संकट है। एक मौसम में पानी की कमी को हम सूखा कहते हैं। लेकिन जिस तरह धरती से पानी कम हो रहा है। वह एक बड़ी समस्या है।
साईनाथ ने कहा- एक-एक करके सारे प्राकृतिक संसाधनों पर निजी कम्पनियों का कब्जा हो गया। ऑक्सीजन के अलावा पानी ही है, जो अब तक 90 फीसदी से अधिक जनता के अधिकार में है। अब उसे भी छीनने की कोशिश हो रही है।
उरूग्वे का उदाहरण देते हुए साईनाथ ने कहा कि 2004 में वहाँ की सरकार ने जनता से पूछा था कि क्या पानी को निजीकरण किया जाना चाहिए? वहाँ के लोगों ने एक स्वर में कहा- पानी कभी निजी हाथों में नहीं जाना चाहिए।
साईनाथ ने गन्ने के उदाहरण से समझाने की कोशिश की कि देश में कौन सी फसल कहाँ लगाई जानी चाहिए, इसे लेकर भी किसानों में समझ विकसित करने की जरूरत है। गन्ना की फसल में अधिक पानी खर्च होता है तो उसे महाराष्ट्र में लातूर में नहीं सोलापुर में लगाया जाना चाहिए।
पी. साईनाथ ने जिस तरह समाज के बीच बढ़ रही भेदभाव की दूरी को पानी के माध्यम से समझाया। उसके जरिए कोई पानी के माध्यम से सामाजिक गैर बराबरी को ठीक से समझ सकता है। देश का समृद्ध तबका पानी को अधिक इस्तेमाल करता है। इस बात को मुम्बई-पूणे और ठाणे के इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि ये तीन शहर महाराष्ट्र का आधा पानी इस्तेमाल कर लेते हैं। मराठवाड़ा जहाँ की आबादी 15 फीसदी है, उसके हिस्से महाराष्ट्र का मात्र 8.8 प्रतिशत पानी आता है और बीड के हिस्से तो एक फीसदी से भी कम पानी आता है। पी. साईनाथ ने बताया कि महाराष्ट्र नाबार्ड का आधे से अधिक पैसा मुम्बई में निवेश हो रहा है। यह जानकारी आप सबके साथ आपको चौंकाने के लिये साझा नहीं की जा रही बल्कि अब सोचने का समय आ गया है कि हालात कैसे बदलेगा?
प्रशांत भूषण ने सूखा ग्रस्त इलाकों में बेरोजगारी और सूखे की दोहरी मार झेल रहे लोगों को मनरेगा में रोजगार देने की बात की। इस कानून में सूखे की स्थिति में सौ की जगह डेढ़ सौ दिन का रोजगार देने का निर्देश है। प्रशांत भूषण ने सूखा केइ लिये सरकार का दिशा-निर्देश पढ़ने की वकालत की और कहा कि जहाँ उस दिशा-निर्देश का पालन नहीं हो रहा, वहाँ आवाज उठाने की जरूरत है। इक्कीसवीं सदी में भी आँखों से देखकर पटवारी तय करता है कि फसल कितनी खराब हुई है। इस बात को सर्वोच्च न्यायालय में देश के सॉलीसिटर जनरल खड़े होकर बता रहे हैं। प्रशांत भूषण के अनुसार अब सेटेलाइट के जरिए ग्रॉस लॉस को समझा जा सकता है। यह तरीका अधिक विश्वसनीय और वैज्ञानिक होगा।
राहत के नाम पर होने वाले घोटालों लगातार आ रही रिपोर्ट और ग्राउंड से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुनकर अब राहत राशि देने के वर्तमान प्रक्रिया पर से लोगों का यकीन कम हुआ है। सुनीता नारायण कहती हैं कि अब हमें रिलिफ के लिये कोई नया मेकानिज्म बनाना होगा। सुनीता मानती है कि अभी सूखा है और आने वाले समय में यह सूखा खत्म भी हो जाएगा। हम पानी की कमी की चुनौती से निपट सकते हैं लेकिन शर्त यह है कि समाज से पानी को जोड़ना होगा और पानी से समाज को जुड़ना होगा। यदि पानी समाज से जुड़ गया तो सूखा नहीं आएगा। सुनीता के अनुसार- मनरेगा सूखे के नाम पर राहत नहीं था। यह सूखे के खिलाफ राहत था। दस साल हमने बर्बाद कर दिये। अब भी देर नहीं हुई है। मनरेगा के जरिए गाँव-गाँव में पानी का काम हो सकता है। सरकार को जल्द ही यह शुरूआत कर देनी चाहिए।
देविन्दर शर्मा ने इस सरकारी दावे को खारिज किया कि सारी समस्या सिंचाई की कमी की वजह से आ रही है। इजरायल के साथ ड्रिप इरिगेशन को समझने के लिये भारत ने हाथ मिलाया है। देविन्दर शर्मा के अनुसार यदि सिंचाई सभी समस्याओं का समाधान होता तो पंजाब में 98 फीसदी सिंचित कृषि जमीन है। लेकिन राज्य किसान आत्महत्या मेें पूरे देश के अन्दर दूसरे नम्बर पर आता है। पंजाब उर्वरक से लेकर ट्रैक्टर तक इस्तेमाल करने में अमेरिका से आगे है। लेकिन पंजाब कर्ज में डूआ हआ है। एक कर्ज चुकाने के लिये किसान यहाँ दूसरा और दूसरा कर्ज चुकाने के लिये तीसरा कर्ज ले रहा है।
योगेन्द्र यादव ने अन्तिम वक्ता के तौर पर कम शब्दों में सारे बिन्दूओं को समेटने का प्रयास किया। योगेन्द्र बताया कि वे लगातार अपनी यात्रा में सूखे की स्थिति को देखते हुए आ रहे थे लेकिन बुन्देलखण्ड की जितनी भयावह स्थिति दिखी, इतनी भयावह स्थिति को बुन्देलखण्ड में देखने के लिये हम तैयार नहीं थे।
योेगेन्द्र यादव ने कॉलेज और स्कूल के छात्रों का आह्वाहन किया कि वे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में इस गर्मी की छूट्टी से दस-बीस दिन निकाल कर जरूर जाएँ। यह यात्रा पर्यटन के लिये नहीं करे। श्री यादव का कहना है कि सूखा प्रभावित क्षेत्र में जब ये छात्र जाएँगे तो वहाँ स्थानीय लोगों के पास इन्हें समझाने के लिये कुछ नहीं होगा लेकिन इनके पास समझने के लिये वहाँ बहुत कुछ होगा।
योेगेन्द्र यादव ने कहा कि 21 से 30 मई तक योगेन्द्र यादव लातूर से लापोड़िया की यात्रा पर होंगे। यादव के अनुसार इस यात्रा में वे 150 से 200 किलोमीटर इस तपती गर्मी में पैदल भी चलेंगे। यदि अपने देश और समाज को जानने और समझने में जिनकी रुचि हो वह स्वराज अभियान के इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं।
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