दिल्ली में अब पानी के निजीकरण की तैयारी

हंगामे की शुरुआत, कांग्रेस में ही झलके मतभेद


पानी के निजीकरण की कोशिश तो सालों पहले ही शुरू हो गई थी। लेकिन कांग्रेस में ही विद्रोह हो जाने से इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। पिछले दो-तीन साल से इसे फिर से अंजाम देने की तैयारी है। यह बिजली के निजीकरण की ही तर्ज पर किया जाएगा। पहले निजीकरण की भूमिका बनाई जा रही है। फिर तमाम सुधार के नतीजों को बताते हुए उसे निजी हाथों में दिया जाएगा। जल बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे भीष्म शर्मा बताते हैं कि उन्हें इसकी भनक पहले ही मिल गई थी। उन्होंने कहा कि निजी कंपनियां निजीकरण से पहले यह सुनिश्चित कराना चाहती हैं कि दिल्ली के पानी पर केवल उसी का अधिकार हो। इसीलिए सितंबर 2005 में दिल्ली जल बोर्ड (संशोधन) विधेयक विधानसभा में लाया गया। इसे कांग्रेस सदस्यों के विरोध के कारण ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

बावजूद इसके निजीकरण की शुरुआत तो हो ही रही है। रिसाव (लीकेज) कम करने और समान वितरण के लिए नांगलोई, वसंत विहार, मालवीय नगर में निजी क्षेत्र की भागीदारी कराई जा रही है। दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रमेश नेगी ने बताया कि जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनयूआरएस) के तहत निजी क्षेत्र की भागीदारी करवाई जा रही है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने शुक्रवार को विधानसभा में बताया कि बिजली की तरह पानी के वितरण का काम निजी हाथों को सौंपा जाएगा। इसके लिए जापान की एक कंपनी से पायलट प्रोजेक्ट बनवाया गया है। उस पर अगले महीने विधायकों की राय ली जाएगी। लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल इस तरह की योजना से अनभिज्ञ हैं। उनके मुताबिक ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए। जिससे आम जनता को परेशानी हो। भीष्म शर्मा ने तो इस मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ने और इसकी शिकायत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से करने की बात कही है।

पहली बार 1998 में सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने साल भर में बिजली पर श्वेत पत्र जारी करने और सुधार की प्रक्रिया जारी करने की घोषणा की। तब बताया गया कि बिजली चोरी 50 फीसद है और बिजली बोर्ड का घाटा करीब एक हजार करोड़ सालाना है। बिजली चोरी कम करने और प्रणाली ठीक करने के नाम पर अंधाधुंध खर्च हुए और आखिरकार 2002 में बिजली का निजीकरण हो गया। इसके लिए निजी कंपनियों को करोड़ों की सबसिडी दी गई। करोड़ों के दफ्तर 99 साल के लीज पर दिए गए। महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देने का काम सरकार ने करना शुरू किया (बाद में भारी विरोध पर उसे बंद किया गया) वैसे बाद में केवल इसी काम के लिए एक कंपनी बनाने का प्रयास सफल नहीं हो सका। बिजली चोरी रोकने के लिए निजी कंपनियों को पुलिस फोर्स उपलब्ध कराई गई। कानून में बदलाव करके उन्हें कई अधिकार दिए गए। इसके अलावा तमाम अघोषित सुविधाएं दी गईं जिस पर विधानसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी), सीएजी, सीवीसी से लेकर अदालत ने एतराज किए।

इंतहा तो तब हुई, जब समझौते के हिसाब से पांच साल बाद दाम घटाने के बजाए बढ़ाने की कोशिश की, तब के डीईआरसी में सरकार के पक्ष के लोग भरे जाने लगे हैं। यह लोगों को आज तक समझ में नहीं आ रहा है कि जब चोरी 50 से घटकर 15 और 20 फीसद तक आ गई है तो दाम क्यों नहीं घटने चाहिए। जबकि यही कहा जाता रहा है कि एक फीसद चोरी कम होने का मतलब करीब 92 करोड़ रुपए की बचत होती है। इस हिसाब से इन कंपनियों को हर साल तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का लाभ हो रहा है। प्रणाली बेहतरी के नाम पर निजी कंपनियों से अधिक सरकार ने अरबों रुपए खर्च डाले हैं।

इसी तरह जल बोर्ड के निजीकरण की भूमिका भी मुख्यमंत्री ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही कर दी थी। तब डीईआरसी की तर्ज जल बोर्ड के लिए भी नियामक आयोग गठित करने का प्रस्ताव किया। लेकिन वह प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाया। फिर यह कहकर कि दिल्ली के भूजल का अवैध दोहन रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। दिल्ली जल बोर्ड बनने के बाद भी पानी का मालिक केंद्रीय भूजल प्राधिकरण है। उपराज्यपाल के माध्यम से भूजल दोहन की अनुमति देने का अधिकार क्षेत्रीय उपायुक्त को मिला हुआ है। लेकिन अवैध दोहन पर कठोर सजा नहीं है। 2005 में इसी बारे में विधानसभा में विधेयक आया।

अभी दिल्ली के 70 फीसद इलाकों में ही जल बोर्ड की पाइप लाइन जा पाई है। बाकी इलाके के लोग ट्यूबवेल, हैंडपंप, कुओं आदि से ही पानी निकालते हैं। जिन इलाकों में कनेक्शन हैं भी, उनमें भी पानी पूरा नहीं मिल पाता। जलबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक मांग और आपूर्ति में करीब दो सौ एमजीडी का अंतर है। जल बोर्ड की पाइप लाइन ज्यादातर अनधिकृत बस्तियों, पुनर्वास कालोनियों, गांवों और गरीब आबादी में है। यहां कांग्रेस के मतदाता बड़ी तादाद में रहते हैं। कांग्रेस की जीत की भूमिका भी इन्हीं इलाकों से बनती है। भूजल के अवैध दोहन पर रोक के लिए लाए गए विधेयक में तरह-तरह के अधिकार दिए गए हैं। यहां तक कि दरवाजा तोड़ कर सारा समान जब्त करने से लेकर जुर्माना लगाने आदि का अधिकार सहज रूप से मिल जाने थे। बिल आते ही कांग्रेस में भूचाल आ गया। तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामबाबू शर्मा थे। उनके संरक्षण में मुकेश शर्मा, भीष्म शर्मा आदि ने खुलेआम बगावत कर दी। विरोध के कारण विधेयक प्रवर समिति को सौंपा गया और समिति ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। भीष्म शर्मा जल बोर्ड के उपाध्यक्ष थे। उनका आरोप है कि तब निजीकरण की पहली शर्त के तहत वह विधेयक लाया जा रहा था क्योंकि निजी कंपनी यह सुनिश्चित करना चाहती थीं कि दिल्ली में पानी का वे ही मालिक हों।

ऐसा न हो पाने पर दूसरा प्रयास शुरू हुआ है। ठीक उसी तरह जैसा बिजली के निजीकरण के समय हुआ था। दिल्ली में बिजली के मीटर 18 लाख हैं लेकिन पानी के नौ लाख। पहले जल बोर्ड ने मीटर लगाने का अभियान चलाया। फिर दिल्ली हाई कोर्ट ने मीटर को अनिवार्य करते हुए मीटर लगाने की जिम्मेदारी उपभोक्ता को दे दी। पहले तो मीटर बनना संभव न हो पाने पर विदेशी मीटर लाए जाने लगे थे, फिर प्लंबर जुटाए गए। बिजली चोरी की तरह पानी की चोरी रोकने के लिए पिछले साल से दिल्ली में चार जन अदालतें बनीं। महज तीन महीने में इन अदालतों के फैसले से 17 लाख रुपए जुर्माना वसूला गया। दिल्ली में 12 हजार किलोमीटर पाइप लाइन हैं। हर साल तीन हजार लाइन बदलने का काम चल रहा है। आधा बदलाव हो गया है। बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी का कहना है कि पानी की लाइनें जमीन के अंदर हैं। उसमें लीकेज का पता चलते काफी देर हो जाती है। इसलिए ठीक होने तक काफी पानी बर्बाद हो जाता है।

रमेश नेगी कहते हैं कि हर घर में कम से कम दो घंटे पानी हर रोज मिले, यह सुनिश्चित किया जा रहा है। मुनक नहर पूरा होने से 80 एमजीडी पानी आने लगेगा। इससे ओखला और द्वारका जल शोधन संयंत्र चालू हो जाएंगे। इसके लिए प्रधानमंत्री ने जीओम (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर) बनाया है। लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। भविष्य में रेणुका बांध से 275 एमजीडी पानी मिलना है। दिल्ली के पानी के लिए मास्टर प्लान 2021 बन रहा है। अनुमान है कि तब तक 1840 एमजीडी पानी की मांग हो जाएगी। अभी मांग करीब 1000 एमजीडी है, वही पूरी नहीं हो पा रही है। इस माहौल में अगर वितरण का काम कोई निजी कंपनी लेगी तो वह बिजली के निजीकरण से भी ज्यादा आसान शर्तों पर होगी। इसके संकेत भी आने लगे हैं। इसलिए तब ज्यादा विरोध होगा और हंगामे की शुरुआत अभी से होने लगी है।

पानी के निजीकरण पर सरकार की खिंचाई


दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली सरकार की पानी का निजीकरण करने के षड्यंत्र पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि पहले से ही लोग पानी के भारी भरकम बजट से परेशान हैं। कांग्रेस इसी प्रकार विश्वासघात करती रही, तो अगले साल पानी के दाम दुगने हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा 21 मार्च को पानी के निजीकरण के खिलाफ विधानसभा पर हल्ला बोलेगी।

भारत कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की दिल्ली राज्य कमेटी ने पानी सप्लाई के निजीकरण पर शीला सरकार की जमकर खिंचाई की है। पार्टी के सचिव पीएम एस ग्रेवाल ने एक बयान में कहा कि बिजली के बाद अब पानी से लोगों को महरूम करने की साजिश रची गई है। दिल्ली सरकार ने 2005 में विश्व बैंक के इशारे पर जल बोर्ड के दो जोनों में पानी सप्लाई का निजीकरण करने का प्रयास किया था। उस समय इसका व्यापक विरोध हुआ था। पार्टी का मानना है कि पानी जैसे जरूरी नागरिक सुविधाओं का निजीकरण करना जन-विरोधी नीति है। इस पर तुरंत रोक होनी चाहिए।

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