डग-डग डबरी

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उज्जैन जिला लगातार तीन वर्षों से सूखे की मार झेल रहा है। पीने के पानी के लिए हाहाकार की स्थिति निर्मित हो जाती है। बेचारे किसानों के सामने तो रबी फसलों के लिए पानी का इतंजाम कैसे करें? यह समस्या आन पड़ती है। जिले में 150 फिट की गहराई का पानी समाप्त हो चुका है। कहीं-कहीं तो 500-600 फिट पर भी पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। अनेक किसान नलकूप से पानी प्राप्त करने की चाहत में कर्ज से लद गए। लेकिन उन्हें पानी नसीब नहीं हुआ। ऐसे अनेक किसान जमीन और नलकूप के मालिक होने के बाद भी मजदूरी कर इस कर्ज को पटा रहे हैं। दूसरी तरफ जल विद्युत उत्पादन में भी कमी होने तथा विद्युतपूर्ति में कठिनाईयों के कारण बिजली भी नहीं मिल पा रही है। इतनी भयावह स्थिति को देखते हुए उज्जैन जिला वर्ष 2003 पंचायत, जिला प्रशासन व जनसहयोग से डबरी निर्माण वर्ष के रूप में मना रहा है। जो पानी रोको अभियान का उल्लेखनीय, प्रशंसनीय व प्रेरणास्पद प्रयास साबित हो रहा है। इसके अन्तर्गत डबरी बनाने के लिए शासन द्वारा जितना संभव हो रहा संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। उल्लेखनीय यह है कि यहां व्यापक सहभागिता से अब तक 3700 डबरियाँ तैयार हो चुकी हैं। अब तक तथ्यों के अनुसार यह संवर्धन के लिए स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार श्रेष्ठ प्रयास माना जा रहा है। इसलिए यूँ कहा जा सकता है कि उज्जैन में डबरियों की सफलता पानी के प्रकाश स्तम्भ की भूमिका अदा कर रही है। जिसे समाज को एक दूसरे से हाथ बंटाते हुए दूर-दूर तक फैलाना है। डबरियाँ जिले के कृषि व आर्थिक विकास में भी सहायक सिद्ध हो रही हैं।
 

डबरी क्या है?


खेत का पानी खेत में रोकने की संरचना का नाम डबरी है। एक डबरी का 10 हजार 907 घनफुट क्षेत्र रहता है, इसके लिए 33 फिट चौड़ा, 66 फिट लंबा तथा 5 फिट गहरा गड्ढा बनाकर तथा पत्थर से पीचिंग तैयार की जाती है। डबरी निर्माण में जमीन की कीमत सहित 21 हजार रूपये लागत आती है।

डबरी निर्माण-तकनीकी जानकारी
• आकरः 66 फीट लम्बाई, 33 फीट चौड़ाई, 5 फीट गहराई (20 मीटर लम्बाई, 10 मीटर चौड़ाई, 10.5 मीटर गहराई)
• मिट्टी की खुदाईः10890 घनफीट (300 घनमीटर)
• पींचिंग कार्यः 22 सेंटीमीटर मौटाई (10 इंच)
• ड्राय पिक्ड अप बोल्डर में प्रत्येक बोल्डर की मोटाई 22 सेंटीमीटर

 

कैसे हुई शुरूआत?


उज्जैन में कुछ सहकारी राशि की सहायता से ग्रामीण समाज में अपनी जमीनों पर एक साल के भीतर 3000 से ज्यादा डबरी बना दी। यह ‘खेत का पानी खेत में और गाँव का पानी गाँव में’ की दिशा में प्रेरणास्पद अनुभव रहा। जिला प्रशासन से समाज के साथ पानी संवाद में एक ही मुद्दा रखा कि गाँवों की केवल सहकारी जमीन पर पानी रोकने से भूमिगत जलस्तर नहीं बढ़ने वाला है। इसके लिए किसानों को आगे आना

डबरी निर्माण के उद्देश्य
• कृषकों की असिंचित भूमि पर सिंचाई प्रबंध।
• अल्प वर्षा में खरीफ फसल का बचाव एवं रबी की फसल सम्भव।
• कृषि उत्पादन में वृद्धि।
• खेत का पानी खेत में रोकने हेतु सहायक।
• व्यक्तिगत जल संग्रह ढांचों के निर्माण हेतु जागृति।
• डबरी की मेढ़ पर फलदार पौधे एवं तुवर की फसल लगाई जा सकती है।
• नलकूपों एवं कुओं के भू-जल स्तर में वृद्धि।

डबरी बनाते हुए सावधानियाँ
1. खोदी गई मिट्टी किनारे से 2 फीट दूर डालिए ताकि मिट्टी पुनः डबरी में नहीं जाए।
2. डबरी से अतिरिक्त पानी के निकासी की व्यवस्था करें। निकासी द्वार के दोनों किनारों पर बोल्डर से पीचिंग करें।
3. निकास नाली में कटाव रोकने हेतु पत्थर की पीचिंग करें।
4. डबरी में पानी आने के रास्ते में मिट्टी कटाव को रोकने हेतु पत्थरों की दीवार अथवा ग्वारपाठा (अन्य वनस्पतिक रूधन) लगाएं। इस कार्य से डबरी में केवल पानी आयेगा मिट्टी नहीं भरेगी।
5. डबरी की पाल पर घास लगाएं। मेड़ पर फलदार पौधे लगाए।

 

डबरी, बड़े तालाबों से क्यों बेहतर है? एक तुलनात्मक अध्ययन

 

विवरण

डबरी

तालाब

लागत

एक डबरी की निर्माण लागत रु. 7,700 के लगभग।

जल संसाधन विभाग की प्रचलित दरों के एक तालाब बनाने में रु. 15,000 तक के करीब। लगभग 51 प्रतिशत अधिक लागत है।

कृषकों का अंशदान

कुल लागत का 61 प्रतिशत

कुल लागत का शून्य प्रतिशत।

शासकीय अंशदान

कुल लागत का 39 प्रतिशत शासकीय अंशदान।

कुल लागत का शत प्रतिशत शासकीय अंशदान है।

सतही जल संग्रहण क्षमता

बराबर

बराबर

भू-जल पुनर्भरण का प्रतिशत

80 प्रतिशत

5 प्रतिशत

भूमि का अधिग्रहण

जरूरी नहीं।

जरूरी है।

भूमि का मुआवजा

शून्य

1.0 लाख प्रति हेक्टेयर

वृक्ष कटाई

जरूरी नहीं

जरूरी है।

 


इस तरह जल प्रबंध में “गाँव का पानी गाँव में, खेत का पानी खेत में” सिद्धांत पर जिन गाँवों में कार्य किया गया। वहाँ की तस्वीर ही बदल गई है, पर्यावरण समृद्ध हो गया है तथा गाँव के लोग आज पानी पर राज कर अपनी आर्थिक समृद्धि बढ़ाकर सुख का अनुभव कर रहे हैं।

 

डबरी ने पलटी किस्मत


उज्जैन जनपद के ग्राम मुंजाखेड़ी के किसान श्री हरिराम जाट ने सूखे से लड़ने का मन बनाया और गत वर्ष गर्मी में 3 हजार घनमीटर की एक बड़ी डबरी अपने खेत में बना डाली। कोई भी डबरी का कमाल हरिराम के खेत पर जाकर देख सकता है। एक अकेली डबरी से 45 बीघा में पहली बार बोई गई चने की फसल निकट भविष्य में उनकी किस्मत बदलने जा रही है।

नरवर वॉटर क्षेत्र में गत वर्ष पानी रोको अभियान के द्वितीय चरण में डबरी निर्माण आंदोलन जब चलाया गया तो हरिराम जाट भी डबरी निर्माण के लिए प्रेरित हुए। डबरी निर्माण करते समय उन्हें इस बात का यकीन नहीं था कि खेत के ऐसे कोने में जहां बरसात का पानी इकठ्ठा होता है, बनाया गया 660 फीट लंबा, 330 फीट चौड़ा, एवं 5 फीट गहरा गड्ढा उनकी किस्मत बदल सकता है। हरिराम ने बताया कि बारिश में उनकी डबरी चार-चार बार पूरी भरकर खाली हो गई तथा स्थिति यह है कि आज भी इन डबरी में 4 फीट पानी भरा हुआ है। बारिश समाप्त होने के बाद डबरी से हरिराम ने 10-10 हार्सपॉवर के ट्रेक्टर से चलने वाले इंजिन लगवाकर 45 बीघा में पलेवा कर दिया। उन्होंने बताया कि इनकी तीन पीढ़ियों से जिस भूमि पर कभी सिंचाई नहीं की, वहीं वह अब लहलहा रही है। यही नहीं उनकी डबरी में पानी रोको अभियान द्वितीय चरण में बनाये गये तालाबों व डबरी के कारण पानी से सोते फूट गए हैं।

 

डग-डग पर डबरियां :-


कमलसिंह के खेत में 10 डबरियाँ है, और उसके गाँव में लगभग 50-100 डबरियाँ है।

 

तकदीर चमकी


खाचरौद के ग्राम बोरखेरा मांगू पिता गोरू बंजारा ने कड़ी मेहनत से पत्थर तोड़कर डबरी बनाई। जिसमें अब तक लबालब पानी भरा हुआ है, और उसके खेत में लहसून की फसल उसकी तकदीर चमका रही है।

 

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