देवभूमि पर भूमाफिया का कसता शिकंजा

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्थित कुल चार सौ छिहत्तर तालाबों में से केवल दो सौ छह तालाबों का विकास करोड़ों रुपए खर्च करके दिल्ली सरकार के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग और डीएसआइडीसी ने किया है जिनमें से एक सौ सत्रह सूखे पड़े हैं और नवासी में जल (शायद अधिकतर में गंदा) भरा हुआ है।

अतिक्रमण एवं अनधिकृत कब्जेदारों ने राष्ट्रीय धरोहर गंगा को भी कहां छोड़ा है। इस पावन नदी पर हमारे परम संतों ने ही कब्जा डालना शुरू कर दिया है। गंगा पर ही कंक्रीट ढालकर गंगा आरती से अपनी आभा बिखेरने वाले यह मल्टीनेश्नल ‘महाराज’ देश के बड़े उद्योगपतियों सहित ‘महान’ नेताओं को गंगा आरती में बुलाकर अपने प्रभाव से इजाफा करते रहते हैं और स्थानीय प्रशासन मूक बना रहता है। यही वजह है कि भूमाफियाओं ने बैरागी कैंप तक का बड़ा हिस्सा बेच डाला है।

प्रमुख हिंदू तीर्थ हरिद्वार की हर की पौड़ी पर भू-माफियाओं की गिद्ध दृष्टि पड़ गई है। आस्था का प्रतीक कुशावृत घाट गुपचुप बेच डाला गया और मामला लोगों की नजर में तब आया जब नगरपालिका प्रशासन को दाखिल खारिज के लिए पत्रावली मिली। हालांकि जिलाधिकारी सैंथिल पांडियान ने पूरे मामले को गंभीरता से लिया है और जांच बैठा दी है। कुशावृत घाट की जिम्मेदारी इंदौर के खासगी देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटेबिल ट्रस्ट के पास थी। ट्रस्ट के सचिव करमजीत सिंह राठौड़ ने ट्रस्टी सतीशचंद्र मल्होत्रा को अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी दे दी। उसने वर्ष 2009 में कुशावृत घाट के 13,370 वर्गफुट हिस्से की रजिस्ट्री निकिता सिखौला पत्नी श्री राघलेंद्र सिखौला और अनिरुद्ध दत्तक पुत्र मनुराम सिखौला के पक्ष में कर दी। उसके बाद संबंधित पक्षों ने चुप्पी साध ली और पूरी लिखा-पढ़ी अपने पक्ष में कराते रहे। जब केवल नामांतरण होना शेष था कि मामले का भांडा फूट गया। जिलाधिकारी ने इस मामले में प्रथम दृष्टया लापरवाही बरतता दिखने वाले एकाउंट अफसर को स्थानांतरित कर दिया।

कहते हैं कि कुशावृत घाट का अस्तित्व गंगा के अवतरण से भी पूर्व हो चुका था। भगवान दत्तात्रेय ने यहां तपस्या की थी और भगीरथ के प्रयासों से पृथ्वी पर अवतरित गंगा शिव की जटाओं से मुक्त होकर जब यहां पहुंची तो दत्तात्रेय का आसन बहा ले गई। कुपित होकर उन्होंने गंगा की धारा रोक दी। गंगा वृत्ताकार घूमने लगी। भगीरथ ने प्रार्थना कर येन-केन-प्रकारेण नदी को मुक्ति दिलाई। उसी वृत्ताकार गति के कारण इस घाट का नाम कुशावृत पड़ा। करीब डेढ़ सौ साल पहले इंदौर के होल्कर स्टेट की धर्मपरायण रानी अहिल्या बाई होल्कर ने इस घाट की मरम्त कराई और यहीं धर्मशाला भी बनवाया। यह भूमि नगर पालिका की नजूल भूमि बताई जाती है। इससे पूर्व नगर के कनखल स्थित शंकराचार्य चौक पर रोटरी रंगशाला की भूमि भी खुर्द-बुर्द करने की शिकायत मिली थी। इस मामले में चौकीदार को मारपीट कर भगाने के बाद इस रंगशाला का कब्जा जमा लेने की बात सामने आई थी। जिसके विरोध में रोटरी के तत्कालीन अध्यक्ष हरेंद्र गर्ग ने कनखल थाने में चोरी, लूट, डकैती और जबरन कब्जे में रिपोर्ट दर्ज कराई। यह मामला अब भी कोर्ट में चल रहा है।

धार्मिक नगरी में बढ़ते कब्जों और अव्यवस्थों से नागा संन्यासियों में खासा रोष है, क्योंकि उनके आराध्य देव दत्तात्रेय से जुड़ा घाट विवादों से घिर गया है। नागा संन्यासियों के अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री श्री महंत हरिगिरि ने चेतावनी दी है कि इस प्रकार के कब्जे बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। नागा सन्यासी आरपार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। राज्य बनने के बाद से ही सरकारी भूमि पर कब्जे की घटनाएं और धार्मिक संस्थाओं की जमीनों को खुर्द-बुर्द किए जाने के घटनाएं होती रही हैं। मिशन विशेष के लिए संस्थाओं को दी गई सरकारी जमीन मिशन पूरा होने के बाद सरकार को वापस करने के बजाय मिल-जुलकर खुर्द-बुर्द करने की कोशिश में राज्य के प्रभावशाली लोगों से लेकर भू-माफियाओं तक के तार जुड़े रहे हैं। एक तरफ राज्य में प्राकृतिक आपदा से बेघर-बार हुए लोगों को भूमि देने के लिए सरकार भूमि की अनुपलब्धता का रोना रोती है तो दूसरी तरफ सरकारी जमीनों पर कब्जे खाली कराने के बजाय कब्जेदारों से सांठ-गांठ कर ऐसी परिस्थितियां तैयार हो रही हैं कि कब्जेदार भूमि का कानूनी हकदार बन जाए।

उत्तरकाशी में पायलट बाबा द्वारा आश्रम के नाम पर जिले के कुमाल्टी गांव में कब्जा की गई भूमि से आश्रम का अवैध हिस्सा प्रशासन ने तोड़ा तो है लेकिन अब भी आश्रम का अस्तित्व बना हुआ है। पिथौरागढ़ के चंडाक क्षेत्र में पूर्व सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों द्वारा घेरी जा रही कुष्ठ रोग मिशन की भूमि बलपूर्वक खाली कराने की जगह सरकार ने नोटिस देकर अपना काम पूरा कर लिया है। तीर्थनगरी के बैरगी कैंप की अरबों की बेशकीमती भूमि पर कब्जेदारों ने प्लॉट बनाकर बेच डाला। ऋषिकेश के भरत मंदिर की खरबों की संपत्ति पर कब्जा जमाने वालों के कृत्य को भले ही सरकार ने गैरकानूनी करार दिया हो लेकिन सत्ता से सांठ-गांठ में माहिर कब्जेदारों की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ा। मंदिर की भूमि व संपत्ति का अंतरण विभिन्न नामों से करने पर सरकार की आपत्ति के बावजूद सात हजार करोड़ रुपए की भूमि का अंतरण कर लिया गया था। भरत मंदिर के पास 1937-38 के बंदोबस्त में जहां 11,561 बीघा भूमि थी वह 1963 में मात्र 404 बीघा ही रह गई। जबकि मंदिर के महंत को जमीन के अंतरण करने का अधिकार दिया ही नहीं गया था। जमीन टिहरी के राजा ने भरत मंदिर को दी थी। इस अवैध अंतरण की जांच के लिए जिलाधिकारी को जांच के आदेश दिए गए थे। तब कहा गया था कि इस मंदिर में सरकार को रिसीवर बैठा देना चाहिए ताकि महंतों की मनमानी से खुर्दबुर्द जमीन का अंतरण रोका जा सके।

देवभूमि पर जमीनों का अवैध कब्जादेवभूमि पर जमीनों का अवैध कब्जाराज्य के प्रख्यात पर्यटन शहर नैनीताल में ईसाई मिशनरियों की भूमि पर भी भूमाफियाओं की नजरें गड़ी हैं। ईसाई मिशनरियों की भूमि की व्यवस्था देखने वालों को साथ मिलकार यहां के एक ऐतिहासिक चर्च से लगी भूमि को हड़पने का एक मामला पिछले दिनों एक समाजसेवी के प्रयास से सामने आया। समाजसेवी एवं प्रख्यात इतिहासविद प्रो. अजय रावत ने बताया कि नैनीताल के मॉल रोड पर स्थित मैथॉडिस्ट चर्च एशिया का सबसे पुराना मैथॉडिस्ट चर्च है। यह विलियम बटलर द्वारा सन् 1858 में अमेरिकन मैथॉडिस्ट सोसाइटी द्वारा बनवाया गया था। 1860 में इसका लोकार्पण हुआ। बहरहाल, मई 2009 में इस चर्च की संपत्ति बरली बिशप विजय कुमार द्वारा बिंद्रा ट्रांसपोर्टर एंड बिल्डर के साथ एक एग्रीमेंट कर बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। डॉ. अजय रावत ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी पाई। कमिश्नर कुमाऊं को स्पष्ट किया गया कि यदि इस जगह पर इस एग्रीमेंट के अनुसार किसी बिल्डिंग का नक्शा पास हुआ तो यह डॉ. अजय रावत बनाम भारत सरकार की याचिका संख्या 694/93 का उल्लंघन होगा, क्योंकि इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल में झील के चारों तरफ वाणिज्यिक आवासों पर रोक लगा रखी है। जाहिर है, कमिश्नर ने इस एग्रीमेंट के तहत निर्माण पर रोक लगा दी। इसके बाद बिशप विजय कुमार ने चर्च के साथ लगी भूमि पर कम्यूनिटी सेंटर बनाने का आवेदन दिया। डॉ. रावत ने नियमों की दुहाई देकर बिशप की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। फिलहाल यह संपत्ति खुर्द-बुर्द होने से रुक गई है तथापि नैनीताल जिले की हल्द्वानी, भीमताल एवं अल्मोड़ा की मिशनरी संपत्तियों पर दांव लगाए जा रहे हैं। डॉ. अजय रावत के अनुसार नैनीताल की विशप्स स्कूल की संपत्ति पर भी भू-क्रेताओं की नजरें लगी हुई हैं लेकिन डॉ. रावत के प्रयासों के चलते मिशनरी संपत्तियों की जिम्मेदारी से जुड़े लोगों में डर है।

अतिक्रमण एवं अनधिकृत कब्जेदारों ने राष्ट्रीय धरोहर गंगा को भी कहां छोड़ा है। इस पावन नदी पर हमारे परम संतों ने ही कब्जा डालना शुरू कर दिया है। गंगा पर ही कंक्रीट ढालकर गंगा आरती से अपनी आभा बिखेरने वाले यह मल्टीनेश्नल ‘महाराज’ देश के बड़े उद्योगपतियों सहित ‘महान’ नेताओं को गंगा आरती में बुलाकर अपने प्रभाव से इजाफा करते रहते हैं और स्थानीय प्रशासन मूक बना रहता है। यही वजह है कि भूमाफियाओं ने बैरागी कैंप तक का बड़ा हिस्सा बेच डाला है। पुलिस विभाग को रिहायशी कॉलोनी उस पर बना दी गई है। सरकार और स्थानीय प्रशासन की बेबसी का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। पिछले अर्धकुंभ से पूर्व जिला प्रशासन ने खड़खड़ हरिद्वार में पीलीकोटी आश्रम की भूमि को अनियमितता के चलते सरकारी संपत्ति घोषित कर सरकार में समाहित कर लिया था। करोड़ों रुपए की इस संपत्ति का मामला अब भी कोर्ट में चल रहा है।

एक अन्य मामले में पिथौरागढ़ के चंडाक में 1996-97 से कुष्ठ रोग मिशन के लिए मिली जमीन पर मिशन का काम बंद है पर राज्य सरकार के नाम से दर्ज इस भूमि पर कुछ लोगों ने अवैध निर्माण कर इस पर कब्जा जमाने की कोशिश की। मामला सुर्खियों में आया तो जिला प्रशासन ने यहां हो रहे अवैध निर्माण को सील कर दिया। लेकिन कब्जा बना हुआ है और मिशन के अधिकारी भी अवैध कब्जों को लेकर कोई आपत्ति नहीं दिखा रहे। संभव है मिशन के अधिकारी भी कब्जाधारकों के संपर्क में हों। वैसे कब्जाधारक बड़े नेताओं के नजदीक बताए जा रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में तीर्थ की भूमि पर अवैध कब्जा हटाने में सरकार और प्रशासन अक्षम दिख रही है।

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