देशव्यापी लॉकडाउन में नदियों की गुणवत्ता में नहीं हुआ सुधार :जल शक्ति मंत्रालय

देशव्यापी लॉकडाउन में नदियों की गुणवत्ता में नहीं हुआ सुधार :जल शक्ति मंत्रालय
देशव्यापी लॉकडाउन में नदियों की गुणवत्ता में नहीं हुआ सुधार :जल शक्ति मंत्रालय

देशव्यापी लॉकडाउन में नदियों की गुणवत्ता में नहीं हुआ सुधार :जल शक्ति मंत्रालय (फोटोःइंडिया वाटर पोर्टल )

जल शक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल  ने कहा कि मार्च और अप्रैल 2020 के दौरान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) द्वारा नदियों  के पानी की गुणवत्ता की निगरानी की गई ताकि कोविड -19 के कारण हुए लॉकडाउन से नदियों में पड़े प्रभाव का आकलन किया जा सके।और यह  कार्य  19 प्रमुख नदियों - ब्यास, ब्रह्मपुत्र, बैतरनी, ब्राह्मणी, कावेरी, चंबल, गंगा, घग्गर, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, माही, नर्मदा, पेन्नार, साबरमती, सतलुज, स्वर्णरेखा, तापी और यमुना पर किया गया था।

नदियों के पानी की गुणवत्ता का यह आकलन पीएच, डिसॉल्व्ड ऑक्सीजन (डीओ), बायो-केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फेकल कोलीफॉर्म जैसे मापदंडों की निगरानी पर आधारित था।राज्य मंत्री प्रलाह्द पटेल  ने कहा नदियों पर की गई जांच के परिणामों के मुताबिक़, कुछ नदियां (ब्राह्मणी, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, तापी और यमुना) के  पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है,जिसका कारण औद्योग से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ में कमी आना, मानवीय गतिविधियां, मवेशी आंदोलन, आदि नहीं  है।

उन्होंने  ने कहा कि ब्यास, चंबल, सतलुज और स्वर्णरेखा नदियों  के पानी की गुणवत्ता में  सुधार नहीं हुआ है गंगा और उसकी सहायक नदियों के विभिन्न हिस्सों में जल गुणवत्ता के मानकों में सुधार की अलग-अलग स्तिथि देखी गई, वही साबरमती और माही नदियों के पानी की गुणवत्ता किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ। 

कुल मिलाकर ऎसी कोई स्थिति नहीं देखी गई जिससे ऐसा कहा जाये कि लॉकडाउन से नदियों का पानी साफ़ हुआ है  उन्होंने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और  एसपीसीबी/पीसीसी  साथ मिलकर देश में नदियों और अन्य जल निकायों की पानी की गुणवत्ता की निगरानी जांच स्टेशनों के माध्यम से नियमित रूप से करते है. 

सितंबर,2018 की सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार 323 नदियों में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड के स्तर के आधार पर 351 प्रदूषित नदी पट्टियों की पहचान की गयी है जो जैविक प्रदूषण की चेतावनी देता है 


उन्होंने  कहा  इन नदियों में प्रदूषण के मुख्य स्रोत शहरों से निकलने वाले अशोधित और आंशिक रूप से शोधित औद्योगिक कचरे तथा सीवेज हैं और  यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वे प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए नदियों, जल निकायों और जमीनों  में  पहले से  निर्धारित मानदंडों के अनुसार सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार सुनिश्चित करें। 

पटेल ने कहा कि जल शक्ति मंत्रालय की राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) ने अब तक 16 राज्यों में फैले 77 शहरों में 34 नदियों पर प्रदूषित हिस्सों को कवर किया है, जिसमें परियोजनाओं की स्वीकृत लागत 5965.90 करोड़ रुपये और सीवेज उपचार क्षमता 2522.03 बनाई गई है

उन्होंने कहा कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 30,235 करोड़ रुपये की लागत से 4948 एमएलडी के सीवेज ट्रीटमेंट  और 5213 किलोमीटर के सीवर नेटवर्क सहित कुल 346 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

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Post By: Shivendra
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