माना जाता है कि डेंगू मूल रूप से स्वाहीली भाषा (अफ्रीका) का शब्द है हालाँकि इसमें मतैक्य नहीं है। केन्या और तंजानिया जैसे देशों में इसका उच्चारण ‘डिंगी पेपो’ के तौर पर होता था। कबीलाई सभ्यताओं में इसे बुरी आत्मा का प्रकोप माना गया। तीन सदी पहले 1789 में बेंजामिन रश ने सबसे पहले इसकी पहचान की थी। उन्होंने इसे हड्डी-तोड़ बुखार का नाम दिया। हड्डियों में दर्द इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। करीब सवा सौ साल बाद बीसवीं सदी में डेंगू के किसी मच्छर से होने का पता लगा। ‘एजीड इजिप्टी’ नामक मच्छर के काटने से डेंगू होने का पता चलने के बाद इस दिशा में बचाव के काफी काम हुए हैं। साल दर साल डेंगू के बढ़ते प्रकोप, तिसपर राज्य और केन्द्र की बेपरवाही कोढ़ में खाज का काम करती है। इन्हीं मुद्दों पर केन्द्रित है हमारा यह विशेष पन्ना।
देश में खासकर दिल्ली में डेंगू का प्रकोप इसी तरह साल दर साल बढ़ता रहा तो वह साल ज्यादा दूर नहीं कि दिल्ली विश्व भर में डेंगू की राजधानी के तौर पर कुख्यात हो जाएगी। कभी चुनिंदा राज्यों तक सीमित डेंगू धीरे-धीरे बाकी राज्यों में भी अपना डंक फैला रहा है।
देश में किसी भी मौसमी बुखार के प्रकोप से किसी को भी हैरानी नहीं हो सकती। यह स्वाभाविक है। हैरानी है तो इस बात की कि इस प्रकोप की पूर्व सूचना के बावजूद नाकामी की जो तस्वीर सरकार ने पेश की वह कितने ही लोगों की मौत का बायस बन गई। अपने बच्चों की डेंगू से मौत के सदमे को न झेलते हुए एक माँ-बाप ने घर की छत से छलाँग लगा कर अपनी जान दे दी। डेंगू के प्रकोप की यह तस्वीर भयावह तो है ही, साथ में सरकार के लिए शर्मनाक भी।
लेकिन इससे भी शर्मनाक यह है कि जब देश की राजधानी में डेंगू का दानव बेखौफ तांडव कर रहा था, राज्य सरकार बजाय उससे निपटने के आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हुई थी। लोगों की सेहत की कीमत पर यह राजनीतिक खिलवाड़ निंदनीय अश्लीलता से कम नहीं। आम आदमी पार्टी जरा याद करने की कोशिश करें कि इससे पहले अपने संघर्ष के दिनों में कितनी समस्याओं के लिए उसने दिल्ली की कांग्रेस सरकार के अलावा किसी को दोषी पाया। शहर में बिजली हो, पानी हो कानून, व्यवस्था हो, शिक्षा हो या कोई भी मुद्दा हो, हमला दिल्ली सरकार पर ही होता है। लेकिन अब तो दिल्ली की सरकार पाक-साफ है क्योंकि डेंगू पर नियन्त्रण तो नगर निगम को करना है। इसमें भी केन्द्र की सरकार का जिम्मा है। तो फिर दिल्ली सरकार की जिम्मेवारी क्या है? सोचने की बात है।
हालाँकि आम भाषा में डेंगू के नाम से प्रचलित हो चुके ‘डेंगी बुखार’ का अवतरण तीन शताब्दी पूर्व हुआ माना जाता है। अफ्रीकी देशों में इसे ‘डिंगी पेपो’ के नाम से जाना जाता है। लेकिन 1789 में इसकी पहचान करने वाले बेंजामिन रश में इसे ‘हड्डी तोड़’ बुखार का नाम दिया। सर्वविदित है कि यह ‘एडीज एजिप्टी’ नामक मच्छर से फैलता है। अपने देश में पिछले एक दशक में डेंगू ने हाथ-पांव फैलाने शुरू किये और कुछ ही सालों में जानलेवा रूप अख्तियार कर गया। आमतौर पर डेंगू जानलेवा नहीं है। लेकिन पिछले कुछ सालों से इसने मारक रूप ले लिया है। दिल्ली में इसने इस बार अब तक का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अब तक 27 मौतें हो चुकी हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्रालय की मानें तो देश में अब तक डेंगू के 25,000 से ज्यादा मामले आ चुके हैं। दिल्ली में इसकी संख्या सबसे ज्यादा 5471 दर्ज की जा चुकी है। अब तक 57 मौतें हो चुकी हैं जिनमें आधी से ज्यादा केरल व दिल्ली में हैं। दिल्ली के अलावा डेंगू महाराष्ट्र, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात को भी अपनी चपेट में ले चुका है। यह माना जाता है कि हर साल डेंगू से संक्रमित लोगों की संख्या 20,000 को पार कर जाती है। इस बार यह संख्या काफी पहले ही पार हो गई थी।
एक चिन्तनीय बात यह भी है कि देश में डेंगू के बहुत से मामले ऐसे भी हैं जो सरकारी आँकड़ों में दर्ज भी नहीं होते। बेशुमार निजी प्रयोगशालाएँ जो रक्त की जाँच करके डेंगू के संक्रमण की पुष्टि करती है, अपनी जानकारी सिर्फ मरीज तक ही महदूद रखती हैं। बहुत से मरीज भी डेंगू होने पर उसे छुपाने के ही प्रयास में रहते हैं। एक अरसे से देश में रुढ़िवादिता के कारण बीमारी को बताने के बजाए छुपाने में ही विश्वास रखा जाता है। खासतौर पर तब जबकि अफ्रीकी देशों की कबीलाई सभ्यता में डेंगू को बुरी आत्माओं का प्रकोप माना जाता है।
बहरहाल, सरकार चाहे जो मर्जी आँकड़े पेश करे लेकिन यह भी सच है कि पिछले तीन साल में देश में डेंगू के मामलों में कई गुणा वृद्धि हो गई है। जो आँकड़ा 2012 तक 20 हजार के आस-पास सिमटा था, 2013 में बढ़कर 75 हजार और 2014 में 40 हजार पार कर गया। इस साल सरकार के मुताबिक, यह संख्या 25 हजार का आँकड़ा पार कर चुका है। लेकिन इन सब पुष्ट आँकड़ों के बीच राष्ट्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्रालय ने एक अध्ययन में यह नतीजा निकालकर हड़कम्प मचा दिया कि देश में हर साल पाँच से छह लाख के बीच होती है। लेकिन बहुत से मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते। इस तरह यह तय है कि डेंगू देश में हर साल एक महामारी की तरह अपना प्रकोप दिखा रहा है और यह सब जानते-बूझते भी सरकारें तभी जागती हैं जब यह अपना हमला पूरी ताकत से कर देता है।
ऐसा नहीं है कि डेंगू कोई सिर्फ हमारे ही देश में अपना प्रकोप दिखाता है। इसका समान हमला सभी देशों में होता है। आँकड़े बताते हैं कि पूरे विश्व में 122 देश इसकी चपेट में आ चुके हैं। ये आज से एक दशक पहले डेंगू का यह दानव इंडोनेशिया में 800 लोगों के प्राण निगल गया था। जबकि इतना ही समय पहले ब्राजील में भी दस लाख से ज्यादा लोग इसके संक्रमण के शिकार हुए थे। इसी तरह फिलीपींस, थाईलैंड, चीन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर भी डेंगू से प्रभावित रहे। लेकिन यहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं व सरकारी जागरुकता के कारण जानी नुकसान उतना नहीं हुआ जीतना हमारे देश में। खास बात यह भी है कि इन देशों में ज्यादातर डेंगू के संक्रमण से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या में कमी आती गई। जबकि हमारे यहाँ यह हर साल पहले से बढ़ जाती है।
डेंगू के इस प्रलयकारी हमले के कारण अगर सबका ध्यान यहाँ की स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकारी क्षमता पर जा रहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। सरकार खासकर दिल्ली में पहले यही तय कर पाती कि यह कौन करेगा। जितना पैसा (500 करोड़) सरकार अपनी आत्ममुग्धता के कारण अपनी वाहवाही और महिमामंडन में इस्तेमाल कर रही है, उसका आधा भी डेंगू के खिलाफ जागरुकता फैलाने या स्वास्थ्य सुविधाओं का दर्जा बढ़ाने में करती तो शायद कितने ही लोग इसके प्रकोप से बच गए होते। लेकिन सरकार की चिन्ता अपने कसीदे पढ़ने में ज्यादा और लोगों की सेहत तय करने में कम दिखाई देती है। आफत आने के बाद हड़कम्प मचाने से अच्छा कि सरकार पहले ही इस पर अपनी रणनीति बनाती। मुनाफाखोर तो आफत की इस घड़ी में भी अपने गल्ले को भरने में जुट जाते हैं। निजी प्रयोगशालाओं में डेंगू का परीक्षण 2000-3000 रुपए तक में किया गया।
सरकारी अस्पतालों में भीड़ के कारण बीमारी से हलकान मरीजों के पास लुटने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचता था। देश में प्राथमिक स्वास्थ सुविधाओं का कमजोर गठन लोगों की परेशानी को दोगुना कर देता है।
डेंगू से निपटना कठिन है, लेकिन असम्भव नहीं। इस दिशा में चीन, ब्राजील और थाईलैंड से सीख लेने की जरूरत है। लेकिन यह सीख भी कहीं इन मुल्कों के दौरों का बायस बनकर ही ना रह जाए। इन देशों ने अपने यहाँ के लोगों से डेंगू के मुद्दे पर ठोस और सीधा संवाद करके उसके फैलने को रोकने की दिशा में असाधारण कदम उठाए। इस मामले में जागरुकता को अपने इश्तिहारी परिवेश से बाहर निकल कर आम आदमी तक पहुँच बनानी होगी। डेंगू ऐसी समस्या है जिसका सीधा ताल्लुक मौसम से है और यह मौसम आने वाले दिनों में और खराब होने वाला है, लिहाजा ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने को ठोस कदम उठाने होंगे। वातावरण की शुद्धता बनाए रखने में हमारी नाकामी डेंगू ही नहीं और मौसमी बिमारियों को भी न्यौता देने वाली होगी। बीमारी से निपटने के लिए किसी भी राज्य सरकार को अपने संकुचित राजनीतिक दृष्टिकोण से ऊपर उठकर आपसी समझ से रास्ता तलाश करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर जो स्वास्थ्य सुविधाएँ और अध्ययन हैं उनका फायदा उठाना होगा ना कि अपनी आलोचनात्मक अँगुली उठाकर आरोप-प्रत्यारोप में उलझना होगा। जब तक सरकार की डिस्पेंसरी में पुख्ता व्यवस्था नहीं होगी, तब तक किसी भी बीमारी का मुकाबला सम्भव नहीं। यही नजरिया केन्द्र को भी अपनाना होगा। अपने शोध का लाभ किसी भी राज्य को राजनीति से ऊपर उठकर मुहैया कराना होगा आखिर यह किसी एक की नहीं वरन पूरे मुल्क की सेहत का सवाल है।
दुनिया भर में दहशत का दंश
इस बुखार के ज्यादातर मामले 1780 में एशिया, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका में सामने आए। डेंगू से अब तक दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें इंडोनेशिया में हुईं। उस दौरान वहाँ 80 हजार से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए थे। इससे पहले 2002 में रियो डी जेनेरो (ब्राजील) में 10 लाख लोग डेंगू से प्रभावित हुए। इनमें 16 लोगों की मौत हुई, बहुसंख्यक संक्रमित लोगों को बचा लिया गया। फिलीपींस में 2006 में 14 हजार मामले में 167 लोगों की जान गई। पाकिस्तान में 2006 के दौरान 5,000 से ज्यादा मामले सामने आए, इनमें लगभग 50 की मौत हुई। सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और चीन भी डेंगू से प्रभावित रहे हैं।
उत्तर भारत बना डेंगूसराय
डेंगू भारत के उत्तरी राज्यों में दस्तक देता है। इसमें दक्षिण का केरल अपवाद है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। इस साल के आँकड़े भी यही कहते हैं। शुक्रवार तक दिल्ली में डेंगू के कुल 5471 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
राज्य | संख्या | राज्य | संख्या |
नई दिल्ली | 5471 | तमिनाडु | 306 |
केरल | 713 | महाराष्ट्र | 226 |
गुजरात | 424 | उत्तरप्रदेश | 79 |
राजस्थान | 326 | हरियाणा | 65 |
पश्चिम बंगाल | 314 | कर्नाटक | 59 |
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