देहरादून का पानी हुआ जहरीला

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वैसे तो बरसात में पानी गंदला ही आता है, किन्तु सरकार का दावा रहता है कि वे लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। ऐसा शायद राजनीतिक बयानबाजी हो सकती है। मगर जल संस्थान और स्पैक्स संस्था पानी की शुद्धता को लेकर आमने-सामने जरूर है। कुछ जगहों पर जरूर सरकारी स्तर से शुद्ध पेयजल की कसरत पूरी होती होगी तो कुछ जगहों पर कागजी खाना-पूर्ती करके शुद्ध पेयजल की इतिश्री कर दी जाती होगी। यह कोई आरोप नहीं है बल्कि लोक समाज में पानी की समस्या को लेकर कटुसत्य है। पर बात जब राजधानी की हो तो यह हजम नहीं होती, की जहाँ का शुद्ध पेयजल अब 32 गुना अशुद्ध हो चुका है। यह तब हुआ जब देहरादून में राजधानी का कामकाज आरम्भ हुआ है। इधर जल संस्थान स्पैक्स संस्था के सैंपलों को अखबारी बयानबाजी कह रहा है तो वहीं स्पैक्स संस्था राजधानी देहरादून के पानी को पीने योग्य नहीं बजाय जहरीला बता रही है। पानी गंदला है, यह तो सर्वमान्य है, बीमारियाँ भी तेजी से बढ़ रही है, यह भी जगजाहिर है। पर शुद्ध पानी कहाँ मिलेगा, बीमारियाँ कब कम होगी, ये सवाल आज भी बरकरार है।

ज्ञात हो कि राजधानी देहरादून के 60 वार्डों में स्पैक्स संस्था ने पेयजल के 76 सैंपल लिये हैं, जिनमें से 74 नमूने फेल हो गये। यहाँ बताया गया कि सामान्य तौर पर पानी में क्लोरीन की मात्रा 0.2 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है। इसी तरह टोटल कॉलीफार्म की मात्रा भी 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है। लेकिन कई जगहों पर सुपर क्लोरिनेशन, फीकल कॉलीफार्म 32 गुना अधिक पाया गया, जबकि टोटल कॉलीफार्म भी मानकों के अनुरूप नहीं था। संस्था का दावा है कि प्राकृतिक संसाधनों पर हो रहे सर्वाधिक रसायनों के बेजा इस्तेमाल से जल जनित रोग 82 प्रतिशत बढ़ गये हैं। इनमें बाल रोगियों की संख्या अधिक है। हालात इस कदर है कि जहाँ भी संस्था ने पानी के सैंपल लिये वहाँ पर लोगों की पानी से संबंधित कोई ना कोई समस्या सामने आई है। जिसमें अशुद्ध पानी का मामला मुख्य था। संस्था से जुड़े जानकारों का मानना है कि कॉलीफार्म एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जो सिर्फ पानी में ही पाया जाता है।

इसमें फीकल कॉलीफार्म सबसे ज्यादा हानिकारक होता है। इस बैक्टीरिया से युक्त पानी पीने या खाना बनाने में इस्तेमाल करने से कई बार बीमारियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इसके इस्तेमाल करने से पहले पानी को उबालकर या छानकर प्रयोग में लाया जा सकता है। ताकि बैक्टीरिया का असर कम हो सके। उन्होंने बताया कि यदि पानी में क्लोरीन आता है तो कम से कम चार घण्टे बाद उक्त पानी का इस्तेमाल करना चाहिए। और सुपर क्लोरीन की दशा में पानी को इस्तेमाल करने पर 12 घण्टे का इन्तजार करना पड़ता है। इस दौरान पानी से नहाना, पीना, कपड़े धोना, खाना बनाना व बर्तन को साफ करने से बचे। क्योंकि ऐसे पानी के इस्तेमाल करने से खतरनाक बीमारियाँ जैसे त्वचा रोग, एसिडिटी, बाल झड़ना, बालों का सफेद होना, आँखों की बीमारी अल्सर आदि पैदा हो सकती है। यही नहीं पानी में फीकल कॉलीफार्म हो और उसे इस्तेमाल करना पड़े तो बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है। ऐसे पानी को 12 मिनट तक मंद आँच में उबालकर ठण्डा करें और छान करके प्रयोग करें। कोशिश करें कि नल से आने वाले पानी को उबालकर और छानकर ही प्रयोग करें। छानने के लिये किसी सूती कपड़े का ही इस्तेमाल करें। कहा कि यदि फीकल कॉलीफार्म युक्त पानी के प्रयोग करने पर कोई लापरवाही बरती गयी तो ऐसे में दस्त, उल्टी, पीलिया, हैजा, हैपेटाइटिस-बी, पेट में कीड़े, गैस, भूख ना लगना जैसी संक्रमण बीमारी का सर्वाधिक खतरा बढ़ जाता है।

उल्लेखनीय यह है कि जब राजधानी में शुद्ध पानी का इस्तेमाल वीआईपी भी नहीं कर पा रहे हैं तो आम नागरिकों को शुद्ध पेयजल मुहैया होना एक मखौल सा लग रहा है। स्पैक्स संस्था ने जब वीआईपी क्षेत्र में पानी के नमूने लिये तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं। यमुना कॉलोनी स्थित बाल विकास मंत्री रेखा आर्य के आवास पर पानी में 0.4 मिलीग्राम क्लोरीन की मात्रा पाई गयी है। जिलाधिकारी आवास में 1.4 मिलीग्राम, जिला जज के आवास पर टोटल कॉलीफार्म की अधिकतम मात्रा प्रति लीटर पर 12 प्रतिशत थी। वहीं फीकल कॉलीफार्म अधिकतम दो प्रतिशत था 100 मिलीलीटर पर। विधायक गणेश जोशी के आवास पर क्लोरीन की मात्रा 0.8 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गयी है।

जबकि सामान्य कॉलोनी जैसे बकरवाला, इन्द्रा कॉलोनी, सालावाला, विजय कॉलोनी, कालीदास मार्ग, अंसारी रोड, चक्खूवाला, डंगवाल मार्ग, ईदगाह, प्रकाशनगर, ब्रहमवाला खाल, नाला पानी, डोभाल वाला, अहीर मंडी, छबीलबाग, खुड़बुड़ा, राजीव कॉलोनी, शिवाजी रोड, बद्रीश कॉलोनी, डांडा धर्मपुर, लोहियानगर, निरजंनपुर, ऋषिविहार, सीमाद्वार, कारगी चौक, जीएमएस रोड, कौलागढ, विजय पार्क, लाडपुर, कर्जन रोड, सिरमौर मार्ग, पंडितवाड़ी, ईसीरोड, क्रास रोड जैसी पॉस कॉलोनियों की पाईपलाइन में प्रयुक्त पानी में क्लोरीन की मात्रा बिल्कुल भी नहीं पाई गयी। वहीं देहरादून की राजपुर रोड, रीठामंडी, सैयद मोहल्ला, भंडारीबाग, सहारनपुर रोड, इन्द्रेशनगर, रक्षा विहार, राजेन्द्रनगर, नेशविला रोड, ओल्ड डालनवाला, सरस्वती विहार, राजेश कॉलोनी, नरेन्द्रविहार, लक्खीबाग, टर्नर रोड, हाथीबड़कला, तरला आमवाला जैसी जगहों पर पानी में क्लोरीन की मात्रा अधिक पाई गयी है। इसके अलावा आकाशदीप कॉलोनी, कर्जन रोड, ईसीरोड, क्रॉसरोड, टीएचडीसी कॉलोनी, राजीवनगर, सालावाला, विजय कॉलोनी, कालीदास मार्ग, अंसारी रोड, चक्खूवाला, डंगवाल मार्ग, ईदगाह, प्रकाशनगर, ब्रहमवाला खाल, नाला पानी, डोभाल वाला, अहीर मंडी, छबीलबाग, खुड़बुड़ा, राजीव कॉलोनी, शिवाजी रोड, बद्रीश कॉलोनी, डांडा धर्मपुर, लोहियानगर, निरजंनपुर, ऋषिविहार, सीमाद्वार, कारगी चौक, जीएमएस रोड, कौलागढ, विजय पार्क में पानी के सैंपल में टोटल कॉलीफार्म की मात्रा मानकों के विपरित यानि 32 गुना अधिक पायी गयी।
 

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