डाकुओं को भी बनाया पर्यावरण प्रेमी, लगाए 26 लाख पौधे

डाकुओं को भी बनाया पर्यावरण प्रेमी, लगाए 26 लाख पौधे
डाकुओं को भी बनाया पर्यावरण प्रेमी, लगाए 26 लाख पौधे

वैसे तो पौधारोपण हम सभी करते हैं, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जिनके जीवन का उद्देश्य ही पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण है। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं, विष्णु लांबा, जिनकी प्रेरणा से अभी तक 50 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं। साथ ही वे नदियों को खनन मुक्त कराने और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने जुनून के चलते ही उन्होंने सुख्यात डाकुओं को भी पर्यावरण की मुहिम से जोड़ दिया। पर्यावरण को बचाने के लिए उन्होंने अपना घरबार भी छोड़ दिया। पर्यावरण के प्रति उनके जुनून को देखते हुए दुनिया अब उन्हें ट्रीमैन ऑफ इंडिया के नाम से जानती है। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश।

  • पर्यावरण संरक्षण का कार्य कब और कैसे शुरू हुआ ?

मेरा जन्म 3 जून, 1987 को राजस्थान के  टोंक जिले के मेहन्दवास थाना क्षेत्र से 3 किलोमीटर दूरी पर बसे गांव लाम्बा में हुआ था। बचपन से ही मुझे पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों से गहरा लगाव था। पौधे लगाना सात साल की उम्र में ही शुरु कर दिया था। जब मैं सात साल का था तब मैंने पहला पौधा अपने बाड़े (घर के पास स्थित जानवर रखने की जगह) में लगाया था। प्रकृति से लोगों को प्रेम होता है और कई लोग समय समय पर पौधे लगाते हैं, लेकिन मेरे सिर पर पौधे लगाने का जुनून सवार रहता था। यही कारण है कि मैं किसी के भी घर और खेत से पौधा चुराने में जरा-सी भी देर नहीं करता था। 

  • पेड़ चुराने की बात हमने पहली बार सुनी है, क्या इस ‘चोरी’ का परिजनों ने कभी विरोध नहीं किया ?

पेड़े-पौधें चोरी करने की मेरी इस आदत से सभी काफी परेशान हो गए थे। मेरी इन हरकतों से तंग आकर माता-पिता ने मुझे उनियारा तहसील के रूपपुरा गांव में रहने वाली बुआजी के यहां पढ़ने भेज दिया, लेकिन यहां भी प्रकृति के प्रति मेरा प्रेम कम नहीं हुआ। इसके कुछ समय बाद मैं अपने ताऊजी के साथ जयपुर आ गया। जयपुर आकर तत्कालीन कलेक्टर के जवाहर सर्किल स्थित घर में बनी नर्सरी से पौधे चुरा लिए। तब ताऊजी ने काफी डांटा था। वे मुझे कलेक्टर के पीए के पास ले गए थे, लेकिन पीए ने मुझे कोई सजा न देते हुए कहा कि ‘इन पौधों को लगाकर बड़ा करना ही इसकी सजा है।’’ हालांकि फिर मैंने पौधे चुराना छोड़ दिया था, लेकिन अंतिम बार वर्ष 2012 में राष्ट्रपति भवन से भी पौधा चुराया था।

  • प्रकृति प्रेम आप में बचपन से ही थे, लेकिन अपना पूरा जीवन पेड़ों को समर्पित करने का निर्णय कब लिया ?

बचपन से ही पेड़-पौधों और साधु-संन्यासियों के प्रति मेरा झुकाव रहा है। माता सुशीला देवी बचपन में रामायण और महाभारत की कथा सुनाया करती थी। इन कथाओं का ही मुझ पर असर हुआ। पिता श्रवणलाल शर्मा गांव में स्थित चारभुजा मंदिर के महंत है। एक तरह से घर में बचपन से ही धार्मिक माहौल था। पढ़ाई में कमजोर होने के कारण पिता ने गांव के तालाब किनारे स्थित बालाजी मंदिर के रामचंद्र दास महाराज के पास मुझे भेज दिया था। यहां पूरा दिन महाराज के पास रहता था, कई बार तो रात को भी यहीं रुक जाता था। इस पूरी दिनचर्या ने मुझे सन्यास लेने की ओर धकेल दिया था। उसी दौरान टोंक में बनास नदी के किनारे संत कृष्णदास फलहारी बाबा के संपर्क में आया और साधू दीक्षा लेने की जिद करने लगा। महाराज ने कहा कि तुम्हे बिना भगवा धारण किए ही बहुत बड़ा काम करना है। उस साधू की बातों से प्रभावित होकर मैंने साधू दीक्षा लेने का विचार त्याग दिया और अपना जीवन पेड़ों को समर्पित कर दिया।

  • जिनके पास जाने से सरकार भी डरती थी, ऐसे कुख्यात डाकुओं को क्या वास्तव में पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा ?

मैं फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ से प्रेरित था। जिसके बाद मैंने राजस्थान के चम्बल से चित्रकूट तक फैले चम्बल के बीहड़ों की करीब दो साल तक खाक छानी और पूर्व कुख्यात डाकुओं  को अपनी मुहिम से जोड़ा। मैंने मलखान सिंह, गब्बर सिंह, रेणु यादव, सीमा परिहार, मोहर सिंह, जगदीश सिंह, पंचम सिंह, सरू सिंह, पहलवान सिंह, बलवंता सहित कई पूर्व कुख्यात डाकुओं से मुलाकात की और उनके साथ भी रहा। मैंने 20 मार्च, 2016 को जयपुर में पर्यावरण को समर्पित पूर्व डाकुओं के महाकुम्भ ‘पहले बसाया बीहड़-अब बचाएंगे बीहड़’ समारोह के माध्यम से सभी पूर्व दस्युओं को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाई। इस तरह का आयोजन दुनिया में पहली बार जयपुर में आयोजित किया गया था

  • अभी तक कितने पौधे लगा चुके हैं। उनमें से कितने पौधे जीवित हैं ?

मैं ये तो नहीं कहूंगा कि मैंने खुद पेड़ लगाए हैं, लेकिन मेरे माध्यम या प्रेरणा से अभी तक 26 लाख पौधे लगाए गए हैं, जबकि विभिन्न सरकारी परियोजनाओं आदि में कटने से 13 लाख पेड़ों को बचाया है। साथ ही अभी तक 11 लाख पौधे निःशुल्क वितरित किए जा चुके हैं। एक प्रकार से अभी तक कुल 50 पेड़ लगाए गए हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य पांच करोड़ पेड़ लगाने का है। साथ ही इन पेड़ों को हम जिंदा भी रखते हैं, यानि बड़े होने तक इनकी पूरी देखभाल की जाती है। 

  • क्या पौधों को केवल मानसून व बरसात में ही लगाया जा सकता है ?

मानसून या बरसात में ही पेड़ों को लगाने की लोगों में मानसिकता बन गई है, जबकि ऐसा नहीं है। पौधों को लगाने का वैज्ञानिक तरीका होता है और साल में इन्हें किसी वक्त लगाया जा सकता है, लेकिन इनकी पर्याप्त देखरेख करनी पड़ती है। हालांकि, मानसून में पेड़ों को पनपने में आसानी होती है, इसलिए लोगों का ऐसा मानना है। 

  • कहते हैं ‘बिन पानी सब सून’, तो क्या आपने जल संरक्षण दिशा में भी कार्य किया है या वृहद स्तर पर पौधारोपण का सकारात्मक असर जल पर भी पड़ा है ?

जल संरक्षण की दिशा में भी हमने काफी कार्य किए हैं। बनास नदी के किनारे कमजोर हो गए थे, हमने यहां 15 किलोमीटर की बेल्ट में देशी पौधे लगाए, ताकि कटाव न हो और किनारे सुरक्षित रह सके। इन पेड़ों के साथ हमने फलदार वृक्ष भी लगाए। इससे किसानों की आमदनी भी हो जाती है। इसके अलावा वडोदरा में नाला बन चुकी विश्वामित्र नदी को उसके पुराने स्वरूप में लाने का प्रयास किया जा रहा है। यहां भी पौधारोपण का कार्य जारी है। शिप्रा नदी के किनारे हजारों पौधों का रोपण किया था, तो वहीं नर्मदा नदी को कचरामुक्त करने और पौधारोपण का कार्य जारी है। जयपुर में एक नाला था, जिस पर कई रसूकदारों के कब्जे थे। नाले की पर्याप्त सफाई न होने के कारण स्थानीय लोगों के लिए ये समस्या बन गया था। नाले के मामले को लेकर हाईकोर्ट में पीआईएल डाली तो पता चला कि ये नाला नहीं बल्कि द्रव्यवती नदी है, जो अब नाला बन चुकी है। कोर्ट से केस जीतने के बाद द्रव्यवती नदी में काफी सुधार आया है और कभी नाला कही जाने वाली इस नदी में अब नाव भी चलती है।  

  • किन 56 क्रांतिकारी परिवारों को आपने खोजा था ?

मैंने देश के 22 राज्यों में भ्रमण कर 56 से अधिक क्रांतिकारियों के परिवारों को तलाश कर शहीदों के जन्म और बलिदान स्थलों पर पौधारोपण जैसे कार्य कर देशभर में पर्यावरण का संदेश दिया। ये सभी सन 1857 की क्रांति से लेकर 1947 के भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों के परिवार शामिल हैं। मैंने देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला आदि से शहीदों के परिजनों को मिलवाकर उनकी समस्याओं से अवगत करवाया। साथ ही भारत के इन महान क्रांतिकारी परिवारों के सम्मान में सैकड़ों कार्यक्रम करवाकर जनता में प्रकृति और संस्कृति का संदेश देते हुए राष्ट्र प्रेम की अलख जगाई ।

  • पौधा चोर से ‘ट्री मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि कैसे मिली ?

सभी क्रांतिकारी परिवारों को ढूंढ़ने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को एक पोस्टकार्ड भेजा जिसमें सारी जानकारी थी। उन्हें ये काम पसंद आया तो उन्होंने सभी क्रांतिकारी परिवारों के साथ राष्ट्रपति भवन बुलाया था। इन परिवारों ने ही राष्ट्रपति को मेरा परिचय कराया और कहा कि लोग इन्हें पौधा चोर कहते हैं। तभी महामहीन ने कहा कि ‘नो, इट्स ट्रीमैन’। उन्होंने अपने संबोधन में मुझे ट्रीमैन कहकर बुलाया। मीडिया ने भी इसे सकरात्मकता से प्रकाशित किया और तभी से पौधा चोरी करने वाला एक लड़का ‘ट्रीमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाने लगा।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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