क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करना

क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करना
क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करना

क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करने से पहले यह अच्छी तरह सुनिश्चित कर लें कि खाद पूरी तरह तैयार हो गयी है। केंचुए अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ऊपर से नीचे की ओर कचरे को खाना आरम्भ करते हैं अतः खाद पहले ऊपरी भाग में तैयार होती है। अपशिष्ट पदार्थों के वर्मीकम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाने पर खाद दुर्गंध रहित हो जाती है तथा दानेदार व गहरे रंग की दिखाई देने लगती है। छूने पर तैयार खाद चाय के दानों के समान लगती है। वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगभग 3 महीने का समय लग जाता है।

वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगा समय केंचुओं की नस्ल, परिस्थितियों, प्रबन्धन तथा कचरे के प्रकार पर निर्भर करता है। वर्मीकम्पोस्ट जैसे-जैसे तैयार होती जाये  उसे धीरे-धीरे एकत्र करते रहना चाहिए। तैयार खाद हटा लेने से उस क्षेत्र में वायुसंचार बढ़ जाता है जिससे केंचुआ खाद निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। तैयार केंचुआ खाद हटाने में विलम्ब होने से केंचुए मरने लगते हैं और उस क्षेत्र में चीटियों के आक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। केंचुआ खाद हटाने के लिए 5 से 7 दिन पहले पानी का छिड़काव बन्द कर देना चाहिए ताकि केंचुए खाद में से निकल कर नीचे की ओर चले जायें। खाद को हाथ से या लकड़ी की फट्टी से क्यारी के एक कोने में एकत्र करें और ढेर में इकट्ठा करने के 4-5 घण्टे बाद खाद को वहाँ से हटा लें। जब 3/4 भाग तक खाद अलग हो जाये तब क्यारी में पुनः अधगला अपशिष्ट (कचरा) डालकर पानी का छिड़काव कर दें। ऐसा करने से खाद बनने की प्रक्रिया पुनः आरम्भ हो जाती है।

केंचुआ खाद की छनाई व पैकिंग क्यारियों से खाद अलग करने के पश्चात 3-4 दिन तक उसे छाया में सुखाया जाता है। इसके बाद 3 मिली मीटर छिद्र की छलनी से खाद को छान लिया जाता है। छनाई करते समय छोटे केंचुए, कोकून तथा अन्य अनुपयोगी सामग्री खाद से अलग हो जाती है। छनाई के बाद खाद को छोटे-छोटे थैलों में भर लिया जाता है। थैलियों में भराई के समय केंचुआ खाद में नमी की मात्रा 15 से 25 प्रतिशत के आसपास होनी चाहिए।

केंचुआ खाद का भण्डारण

 केंचुआ खाद बनाने के बाद अधिकांश लोग इसके रखरखाव व भण्डारण पर प्रर्याप्त ध्यान नहीं देते, नतीजन इस खाद के भौतिक व जैविक गुण प्रायः नष्ट हो जाते हैं और यह पौधों के लिए अधिक प्रभावशाली एवं लाभदायक नहीं रहती। केंचुआ खाद के उचित रखरखाव व खुले भण्डारण के दौरान निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए :

वर्मीकम्पोस्ट में पाये जाने वाले असंख्य सूक्ष्म जीवों, कोकून तथा अण्डों को जीवित (viable) व सक्रिय (active) रखने के लिए इसमें 25 से 30 प्रतिशत के आसपास नमी बनाये रखने हेतु कम्पोस्ट में आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें।

1. वर्मीकम्पोस्ट को कभी भी खुले स्थान पर ढेर के रूप में भण्डारित न करें। खुला रखने से इसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणू, कोकून्स एवं अण्डे तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं अतः भण्डारण सदैव छायादार व अंधेरे वाले स्थान पर ही करें।
2. यदि कम्पोस्ट का अधिक समय तक भण्डारण करना हो तो नम व छायादार स्थान पर उचित आकार के गड्ढे बनाकर करें। गड्ढों में वर्मीकम्पोस्ट भर कर सूखी घास एवं बोरियों से ढक दें। आवश्यकता होने पर सूखी घास एवं बोरियों पर पानी छिड़क कर नमी बनाये रखें। इस तरह कम्पोस्ट का भण्डारण करने से उसके पोषक तत्व एवं सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता सुरक्षित बनी रहती है।

3. वर्मीकम्पोस्ट को यदि कमरों में भण्डारित करना हो तो पहले कमरों तथा खिड़कियों की अच्छी तरह सफाई करें और खाद भरने के बाद दरवाजे तथा खिड़कियों को अच्छी तरह बन्द कर दें। यदि कमरे में रखी कम्पोस्ट को बोरियों से ढक दिया जाय और खाद की तह की ऊँचाई सिर्फ दो फुट ही रखी जाय तो कम्पोस्ट अधिक दिनों तक सुरक्षित रहती है।

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स्रोत-केचुंए खाद का भंडारण एवं परिवहन 

वर्मी कम्पोस्ट को पुष्ट खाद बनाना

1. जैव उर्वरकों के साथ प्रयोग 

ऐजेक्टोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, फास्फोरस घुलनशील जैव उर्वरक, पोटैशियम घुलनशील जैव उर्वरक, पौध वृद्धि हार्मोन्स इत्यादि प्रत्येक की 1 लीटर या 1-2 किलो मात्रा एक टन तैयार वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उपलब्धता बढ़ती है।

2. जैव नियंत्रकों के साथ प्रयोग -

नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशयुक्त जैव उर्वरक, पादप वृद्धि हार्मोन्स, ट्रायकोड्रमा मेटारीजीयम इत्यादि प्रत्येक की 1 लीटर या 1-2 किलो मात्रा एक टन तैयार वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उपलब्धता बढ़ने के साथ-साथ पौधों की बढ़वार होती है और पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

3. रॉक फास्फेट के साथ प्रयोग-

20: रॉक फास्फेट को एक टन तैयार वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने से फास्फोरस की मात्रा बढ़ती है

4. खनिज तत्वों के साथ प्रयोग-

 20:खनिज तत्वों को एक टन तैयार वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने से न केवल पोषक तत्वों की पूर्ति होती है बल्कि यह पादप वृद्धि हार्मोन्स को बढ़ाने में भी सहायक होता है।

केंचुआ खाद से लाभ

  1.  वर्मीकम्पोस्ट एक संतुलित खाद है इसमें नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश की मात्रा गोबर की खाद से अधिक होती है, इसके अलावा सूक्ष्म पोशक तत्व जैसे जिंक, तांबा, कैल्शियम,गंधक व कोबाल्ट भी मिलते है।
  2.  केंचुआ खाद में पौधों के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व (Nutrients) पर्याप्त एवं सन्तुलित मात्रा में मौजूद होते हैं जो पौधों को सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं अतः वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है।
  3.  वर्मीकम्पोस्ट में ऑक्सिन्स (Auxins), जिब्रेलिन्स (Gibberalins),साइटोकाइनिन्स (Cytokinins),विटामिन्स,अमीनोअम्ल आदि अनेक तरह के जैव-सक्रिय पदार्थ (Bio- active compounds) पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं जिनसे पौधों में सन्तुलित बढ़वार तथा अधिक उपज देने की क्षमता का विकास होता है।
  4. वर्मीकम्पोस्ट जलग्राही (Hygroscopic) होती है जो वातावरण से नमी व सिंचाई के रूप में पौधों को दिए गये पानी को सोख कर भूमि से वाष्पीकरण (Evaporation) तथा निक्षालन (Leaching) द्वारा पानी के नष्ट होने को रोकती है अतः वर्मीकम्पोस्ट का खेत में उपयोग करने पर पौधों में बार-बार या अधिक मात्रा में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती।
  5.  वर्मीकम्पोस्ट में अनेक तरह के सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु (N-fixing Bacteria), फॉस्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphorus Solubilizing Bacteria), पौधों की बढ़वार में वृद्धि (Promote) करने वाले जीवाणु, एक्टीनोमाइसिटीज, फफूँद और सैलूलोज व लिगनिन को विघटित करने वाले पॉलीमर्स भारी संख्या में मौजूद रहते हैं। ये सूक्ष्म जीव भूमि में मौजूद पेड़-पौधों के अवशेष तथा अन्य जैविक कचरे (waste) को सड़ाने व पौधों की बढ़वार में सहायक होते हैं।
  6.  वर्मीकम्पोस्ट में उपस्थित एक्टीनोमाइसिटीज एन्टीबायोटिक पदार्थों का सृजन करते हैं जिनसे पौधों में कीट व्याधियों के आक्रमण से बचाव की क्षमता (Resistance Power) बढ़ जाती है।
  7.  वर्मीकम्पोस्ट में 7 गुना एक्टीनोमाइसिटीज होता है और वे सभी पानी में घुलनशील है और पौधों को तुरन्त प्राप्त हो जाते है।
  8.  केचुए गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खाकर उसे लाभदायक ह्यूमस मे परिवर्तित कर देते है।
  9.  केंचुए के शरीर से कई प्रकार के एन्जाइम जैसे पैप्टेज प्रोटीन पाचन के लिए, एमाइलेज-स्टार्च व ग्लाइकोजन पाचन के लिए, लाइपेज वसा पाचन के लिए,सेलूलोज पाचन के लिए, इनवर्टेज शर्करा पाचन के लिए तथा कैंटाइनेज काइटिन पाचन के लिए कार्य करता है अतः स्राव के रूप में उत्पादित एंजाइमों से केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव होता है।
  10. . वर्मीकम्पोस्ट के कणों (Particles) पर पेराट्रोपिक झिल्ली (Peratropic Membrane) मौजूद होती है जिससे कम्पोस्ट में मौजूद नमी का शीघ्रता से वाष्पीकरण द्वारा ह्रास (Loss) नहीं होता और भूमि में दिए गये पानी को अधिक समय तक रोकने में मदद मिलती है।
  11.  खाद के कणों पर म्युकस जैसा पदार्थ लिपटा हुआ होने की वजह से यह मृदा में हवा का आवागमन एवं जल धारण क्षमता बढाता है तथा भारी मिट्टीयों में जल निकास सुधार करता है।
  12.  वर्मीकम्पोस्ट में खरपतवारों के बीज नहीं होते अतः खेत में इसका उपयोग करने पर किसी भी तरह के खरपतवार की समस्या नहीं होती। इसके विपरीत गोबर के खाद (FYM) एवं अन्य कम्पोस्टों के उपयोग से खेत में खरपतवार अधिक उगते हैं।
  13.  वर्मीकम्पोस्ट में मनुष्य तथा पौधों को नुकसान पहुँचाने वाले किसी भी तरह के जीवाणु (Pathogens) उपस्थित नहीं होते।
  14.  वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के भौतिक गुणों जैसे रन्ध्रावकाश (Porocity), जलधारण क्षमता (Water Holding Capacity), मृदा संरचना (Soil structure), सूक्ष्म-जलवायु (Micro-climate), तत्वों को रोकने व पोषण क्षमता (Nutrients Retention) एवं Supplying Capacity), रासायनिक गुणों जैसे कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात में कमी (Reduction in C:N ratio), कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सुधार (improvement in decomposition of organic matter) और जैविक गुणों जैसे-नाइट्रोजन स्थिरीकरण (N-fixing) एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphorus Solubilizing Bacteria), पॉलीमर्स, एक्टीनोमाइसिटीज आदि की संख्या में पर्याप्त सुधार होता है परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता (Fertility) लम्बे समय तक कायम (Maintain) रहती है।
  15.  वर्मीकम्पोस्ट मे विद्युत आवेशित कण होते है जो पौधों को मृदा से पोषक तत्व लेने में मदद करते है।
  16.  वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के तापमान, नमी, स्वास्थ्य तथा पी. एच. नियंत्रित रहते हैं जिससे मृदा में ताप संचरण व माइक्रोक्लाइमेट की एकरूपता (Homogeneity) के लिए अनुकूलता पैदा होती है।
  17. वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता (Taste, Keeping Quality, Colour, Appearance) आदि में सुधार आता है, नतीजन उच्चगुणवत्ता वाले उत्पादों की भण्डारण क्षमता एवं ऊँचे मूल्य पर बिक्री होने से आय में भारी वृद्धि होती है।
  18.  मूल्य कम होने के कारण खेती में वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से फसलों की उत्पादन लागत में कमी आती है।
  19.  केंचुओं के शरीर का 85 प्रतिशत भाग पानी का बना होता है इसलिए सूखे की स्थिति में अपनें शरीर का 60 प्रतिशत वनज में पानी का ह्रास भी हो जाए तो भी केंचुआ जिन्दा रह सकता है। मरने के बाद भी उनके शरीर से जमीन को सीधे नत्रजन मिलती है।
  20. वर्मीकम्पोस्ट बनाने या केंचुआ पालन से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिलती है।

तालिका 3: केंचुआ खाद एंव गोबर की खाद की तुलना

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तालिका 4: केंचुआ खाद व रसायनिक उर्वरक में तुलना

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केंचुआ खाद प्रयोग की मात्रा एवं प्रयोग विधि

प्रयोग की मात्रा

फसल के अनुसार केंचुआ खाद की प्रयोग की मात्रा 2-5 टन / एकड़ निर्धारित की जा सकती है। सामान्यतः विभिन्न फसलों में इसे निम्न मात्रा में प्रयोग किया जाता हैं:

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प्रयोग विधि

केंचुआ खाद की खेत स्तर पर प्रयोग की विधि अत्यन्त आसान है। इसको खेत में बुआई के समय एकसार रुप से बुरक कर प्रयोग किया जाता है। कुछ फसलों जैसे गन्ना इत्यादि में केंचुआ खाद को बुआई के समय नाली के साथ-साथ प्रयुक्त किया जाता है। खड़ी फसल में इसका प्रयोग सिंचाई से पूर्व खेत में जड़ों के पास समान रुप से बुरकाव करके किया जाता है। कुछ प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि यदि केंचुआ खाद के साथ अजोटोबैक्टर एवं पी०एस०बी०, 1 किग्रा. प्रति 40 किग्रा. केंचुआ खाद की दर से मिलाकर प्रयोग किया जाये तो इसकी क्षमता बढ़ जाती है। फलदार वृक्षों एवं प्लांटेशन फसलों में मुख्य तने से 3-4 फीट की दूरी पर तने के चारों तरफ गोलाकार नाली बनाकर केंचुआ खाद कर प्रयोग करते हैं तथा इसे मिट्टी से ढक देते हैं।

वर्मी कम्पोस्ट के महत्वपूर्ण उपयोग

1. गमलों में प्रयोग

गमलों की मिट्टी तैयार करने के लिए 10-30 भाग वर्मी कम्पोस्ट की मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला लेना चाहिए और इस मिट्टी से गमले भरकर तैयार कर लेना चाहिए। वर्मी कम्पोस्ट मिली मिट्टी को अधिक समय खुली धूप में नही छोडना चाहिए। मिट्टी व वर्मी कम्पोस्ट मिलाने का कार्य भी पक्के फर्श अथवा प्लास्टिक सीट पर यदि छायादार स्थान मे किया जाए तो अच्छा है। गमलो मे पौधे लगाकर हल्का पानी दे देना चाहिए पौध रोपण व पानी देने का कार्य सदैव सांयकाल ही करना चाहिए 30- 40 दिन बाद पुनः आवश्यकतानुसार वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग हल्की गुड़ाई के साथ किया जा सकता है।

2. खड़े पौधो में प्रयोग

प्रयोग के लिए चारों ओर 2 से 3 गहरा वृत्ताकार गड्ढ़ा बनाकर इसमें वर्मी कम्पोस्ट भर दें। गड्ढ़ा बनाते समय ध्यान रखें की पौधे की जड़ों को हानि न पहुँचे तत्पश्चात् कम्पोस्ट को गमलो की मिट्टी से ढ़क दें तथा पानी दे दें। गमलों में फूलों के लिए 150- 300 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट / गमला डालने की सिफारिश की जाती है।

3. सीड बेड में प्रयोग

उपरोक्त विधि द्वारा ही वर्मी कम्पोस्ट व मिट्टी को अच्छी तरह मिला कर उससे बेड तैयार की जा सकती है। इसमें बीज की बुआई फसल की प्रजाति के अनुसार की जानी चाहिए।

तालिका 5: विभिन्न फसलों में केंचुए खाद प्रयोग का समय एवं मात्रा

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केंचुआ खाद के उत्पादन का आर्थिक आंकलन

केंचुआ ग्रामीण कचरे को निष्पादित कर अच्छी गुणवत्ता युक्त खाद में बदलने का महत्वपूर्ण तथा लाभदायक साधन है। आर्थिक रुप से सक्षम केंचुआ खाद बनाने की इकाई में अनुमानतः लागत एवं आमदनी का ऑकलन निम्न प्रकार है।

वर्मीकम्पोस्टिंग इकाई का क्षेत्र -100 वर्गमीटर वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन 50 टन प्रतिवर्ष एवं केंचुओं का उत्पादन 45 क्विंटल (4.5 टन)

(क) अनावर्ती खर्च (Non-recuring expenditure)

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(ख) अवर्ती खर्च (recuring expenditure)

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प्रथम वर्ष का कुल खर्च (क+ख) = 30650 + 63825 = 94475 रु0

आय का विवरण 

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प्रथम वर्ष में शुद्ध आय: 400000 -194475=  205525 रु0, एक वर्ष के बाद अन्य वर्षों में शुद्ध आय: 400000 - 63825 = 3,36,175 रु०


नोटः

 

  1. प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में 2 कुन्तल कचरा भरा जाता है।
  2.  प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में एक किग्रा० केंचुए छोड़े जाते हैं।
  3. केंचुओं के 1 किग्रा0 वजन में केंचुओं की संख्या औसतन 1000 होती है।
  4.  प्रति वर्गमीटर क्षेत्र में भरे गये कुल कचरे से 70 प्रतिशत खाद तैयार होती है।
  5.  प्रतिवर्ष चार बार (चार चक्रों में) खाद तैयार होती है यानी खाद बनने में 3 माह का समय लग जाता है।
  6.  प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र से वर्ष के अन्त में कुल 50 किग्रा0 जीवित केंचुए प्राप्त होते हैं।
  7.  वर्मी बेडो के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र को ढकने के लिए कुल दो बोरियों की आवश्यकता होती है।
  8.  अच्छी व शीघ्र कम्पोस्ट तैयार करने के लिए वर्मीबैडों का आकार 3 मीटर ग 1 मीटर ग 0.75 मीटर रखा जाता है यानी एक बेड का कुल क्षेत्र 3 वर्ग मीटर होना चाहिए।
  9.  100 वर्ग मीटर क्षेत्र के शेड के नीचे 3 वर्ग मीटर आकार की कुल 30 क्यारियां बनाई जाती हैं जिनका कुल शुद्ध क्षेत्र फल 90 वर्ग मीटर होता है।

स्रोत-  राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र 

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Post By: Shivendra
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