सूबे में गर्मी का चढ़ना शुरू ही हुआ है और नदियों के सूखने का सिलसिला जारी हो गया। इस समय 40 से अधिक नदियों सूख चुकी हैं। इन नदियों के बड़े हिस्से से पानी गायब है। कई नदियों में जो कुछ पानी है तो उनका बहाव पूरी तरह खत्म है। वहीं बड़ी संख्या में ऐसी नदियां भी हैं, जिनका पानी तेजी से खत्म हो रहा है। कई नदियों के कुछ हिस्से में पानी है, पर इसके बड़े हिस्से में धूल उड़ रही है।
कई नदियों में थोड़ा-बहुत पानी जलस्रोत बनकर या फिर नाले की तरह बह रहा है। हैरत की बात तो यह है कि अब मानसून के बाद ही नदियों के सूखने का सिलसिला शुरू हो जाता है। दिसंबर के बाद नदियों में पानी की मात्रा कम होने लगती है और फरवरी में ही उसके सूखने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। पहले नदियों में पानी की मात्रा मई में जाकर कम होती थी। दरअसल, 50-60 के दशक में पानी घटता था, उसकी कमी होती थी लेकिन पानी पूरी तरह खत्म नहीं होता। रात में कुआं तक रिचार्ज हो जाता था। नदियां कलकल बहती थीं। यहां तक कि 1967 के अकाल, 1972-73 और1992-93 के संकट के समय भी नदियों में पानी की ऐसी स्थिति नहीं थी। नदियों के सूखने का प्रतिकूल प्रभाव खेती और पेयजल पर पड़ सहा है। बड़े इलाके का भूजल काफी नीचे चला गया है। इसके कारण चापाकल सूख रहे हैं।
2011 में ही बिहार ने किया था आगाह
2011 में ही तत्कालीन जल संसाधन मंत्री दिजय चौधरी ने केन्द्र के समक्ष नदियों के संकट का मामला उठाया था। उन्होंने गाद की समस्या की गंभीरता से भी केंद्र को आगाह किया था। कहा था कि गाद से नदियां खत्म हो रही है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो उनका अस्तित्व नाहीं बचेगा।
नदियां सूख नहीं रहीं, खत्म हो रही। हैं। पर हमें इसकी चिंता नहीं। हमने खुद नदियों को संकट में डाला है। भूजल का अत्यधिक दोहन व जलस्रोतों को खत्म कर हमने इसकी पृष्ठभूमि तैयार की है। वेटलैंड खत्म हो रहे हैं. जो नदियों के जलस्तर को बनाए रखते थे। चौर, आहर, पईन, ताल तलैया, मन जैसे जलसोत कहां रह गए हैं। ये सब भूजल स्तर को बनाए रखते थे। आरके सिन्हा, नदी जल विशेष है
90 के दशक के बाद से बिगड़ने लगी स्थिति
नदियों का संकट 90 के दशक के बाद बढ़ने लगा था। इसका सबसे बड़ा कारण भूजल का अत्यधिक दोहन है। हमने जमीन के अंदर से बेतहाशा और अराजक तरीके से पानी निकाला है। नदियां जमीन को रिचार्ज करती हैं। वे भूजल का स्तर मेंटेन रखने में मदद करती हैं। लेकिन, हमने जब जमीन से ही पानी निकालना शुरू कर दिया तो नदियों का पानी भूतल में जाने लगा। परिणाम यह हो रहा है कि नदियों के सुखने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।
सूख चुकीं इन नदियों के बड़े हिस्से में पानी नहीं
पंचाने, घोबा, चिरैया, मोहाने, नोनाई, भूतही, लोकाईन, गोईठवा, चंदन, चीरगेरुआ, धर्मावती, हरोहर, मुहानी, सियारी, माही, थोमाने, अवसान, पैमार, बरनार, अपर किऊल, दरखा, कररुआ सकरी, तिलैया, मोरहर, जमुने, नून, कारी कोसी, बटाने, किउल, बलान, लखनदेई, खलखलिवा, काव, कर्मनाशा, कुदरा, सुअवरा, दुर्गावती, कमला धार, तीसभवरा, जीवछ, बाया, नून कठाने।
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