01. स्थिति एवं विस्तार :
छत्तीसगढ़ प्रदेश की अपवाह प्रणाली इसके आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कृषि के साथ-ही-साथ निर्माण एवं वृहत उद्योगों के लिये जल की आवश्यकता सदैव बनी रहती है। जिसकी पूर्ति प्रदेश की नदियों द्वारा ही सम्भव है। क्षेत्र की प्रमुख नदी महानदी है, जो रायपुर उच्च भूमि में सिहावा पहाड़ी से निकलकर उत्तर पश्चिम की ओर बहती हुई बस्तर जिले में प्रवेश कर कुछ दूरी तक प्रवाहित होने के बाद उत्तर-पूर्व की ओर मुड़कर रायपुर जिले में प्रवेश करती है। भारत के मध्यपूर्व में छत्तीसगढ़ प्रदेश 17046’ उत्तरी अक्षांश से 240 06’ उत्तरी अक्षांश तथा 800 15’ पूर्वी देशांश से 84051’ पूर्वी देशांश तक 1,35,191 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। इस प्रदेश के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश का 4.11 प्रतिशत भाग समाहित है। 1 नवम्बर 2000 को मध्य प्रदेश से विभाजित छत्तीसगढ़ देश का नवगठित 26वाँ राज्य है। इस राज्य के अन्तर्गत 3 सम्भाग, 16 जिले, 93 तहसीलें, 146 विकासखण्ड हैं।
राज्य के बिलासपुर सम्भाग में 8 जिले कोरिया, सरगुजा, जशपुर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर तथा कवर्धा, रायपुर संभाग में 5 जिले रायपुर, दुर्ग, राजनांदगाँव, महासमुंद तथा धमतरी और बस्तर संभाग में 3 जिले बस्तर, कांकेर तथा दंतेवाड़ा सम्मिलित हैं। राज्य की सीमा का निर्धारण उत्तर में उत्तर-प्रदेश, उत्तर-पूर्व में बिहार, पूर्व में उड़ीसा, दक्षिण पूर्व तथा दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण पश्चिम में महाराष्ट्र और पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम में मध्य प्रदेश के द्वारा होता है।
02. भू-वैज्ञानिक संरचना :-
क्षेत्र विशेष की भू-वैज्ञानिक संरचना उस क्षेत्र की आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की निर्धारक होती है। विकास का आधार होने के साथ खनिज संसाधन, प्राकृतिक वनस्पति तथा मृदा निर्धारण में भी भू-वैज्ञानिक संरचना विशेष महत्त्वपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना के अन्तर्गत आद्यमहाकल्प, धारवाड़ क्रम, कडप्पा क्रम, गोंडवाना क्रम तथा दक्कन ट्रैप के शैल समूह सम्मिलित हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है -
क. आद्य महाकल्प शैल समूह :- इस शैल समूह की चट्टानें जशपुर जिले की कुनकुरी तथा बागीचा तहसीलों, सरगुजा जिले के सूरजपुर तथा रामानुजगंज तहसीलों के उत्तरी भाग के कुछ क्षेत्रों, बिलासपुर जिले के उत्तरी क्षेत्र पेण्ड्रा रोड तथा कोटा तहसीलों में, कोरबा जिले के अन्तर्गत कटघोरा में, पूर्वी राजनांदगाँव, दक्षिणी दुर्ग, महासमुन्द तथा धमतरी जिले के दक्षिणी भाग, कांकेर और दंतेवाड़ा जिले की बीजापुर, कोन्टा तथा भोपाल पट्टनम तहसीलों में विस्तृत हैं। इस समूह में अवर्गीकृत क्रिस्टलीय नाइस तथा ग्रेनाइट चट्टानें सम्मिलित हैं।
ख. धारवाड़ शैल समूह :- धारवाड़ शैलें कायान्तरित अवसादी शैलें हैं, जिनमें भ्रंशन तथा उत्तर दक्षिण अक्ष वाले वलन पाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश में धारवाड़ क्रम की चट्टानों का विस्तार सरगुजा जिले के उत्तरी भाग में (जहाँ स्लेट तथा फाइलाइट शैलों के साथ क्वार्टजाइट तथा पैठिक लावा निर्मित शैलें मिलती हैं), बिलासपुर जिले में पेण्ड्रा के कुछ भाग में, रायगढ़ जिले के पूर्वी लैलुंगा क्षेत्र में, रायपुर जिले के दक्षिण बिलाईगढ़ तहसील के सोनारवान तथा देवरी क्षेत्र में, राजनांदगाँव जिले के उत्तरी पश्चिमी भाग में तथा दुर्ग जिले के दक्षिणी भाग में है।
दण्डकारण्य में धारवाड़ शैलों के वृहत क्षेत्र हैं, जैसे दन्तेवाड़ा में बैलाडीला की पहाड़ी, नारायणपुर में अबूझमाड़ पहाड़ी के उत्तर में रावघाट पहाड़ी और नारायणपुर, भनुप्रतापपुर में आरीडोंगरी आदि पहाड़ियाँ। छत्तीसगढ़ में धारवाड़ क्रम की चट्टानों का महत्त्व लौह अयस्क के संचित भण्डार के कारण है। दल्लीराजहरा तथा बैलाडीला क्षेत्र का लौह अयस्क का जमाव धारवाड़ शैल समूह में ही पाया गया है।
ग. कडप्पा शैल समूह : छत्तीसगढ़ बेसिन के अधिकांश में विस्तृत कडप्पा शैल समूह प्रदेश का सर्वप्रमुख शैल समूह है। इसका विस्तार बेसिन के अतिरिक्त जगदलपुर के आस-पास पाया जाता है।
कडप्पा शैल समूह के दो मुख्य भाग है : निचली चन्द्रपुर सीरीज तथा ऊपरी रायपुर सीरीज। चन्द्रपुर सीरीज 60 से 300 मीटर मोटी है। इसमें बलुआ पत्थर, क्वार्टजाइट तथा कांग्लोमिरेट चट्टानें पाई जाती हैं। रायपुर सीरीज के अन्तर्गत मुख्य रूप से शैल तथा चूना पत्थर की चट्टानें मिलती हैं। इसमें चूना पत्थर संस्तर की मोटाई कहीं-कहीं 650 मीटर तक है। यहाँ का चूना पत्थर सीमेंट ग्रेड का है जो प्रदेश में सीमेंट उद्योग के विकास का मुख्य आधार है।
घ. गोंडवाना शैल समूह : गोंडवाना शैल समूह का निर्माण ऊपरी कार्बोनिफेरस युग से जुरासिक युग के बीच हुआ है। छत्तीसगढ़ में गोंडवाना शैल समूह के दो प्रकार पाये जाते हैं -
(1) निचला गोंडवाना समूह :- इस समूह की चट्टानें कोरबा जिले के उत्तरी पूर्वी भाग, कटघोरा तहसील के उत्तरी भाग के कुछ क्षेत्रों, रायगढ़ जिले के उत्तर पश्चिम तथा मध्य भाग अर्थात घरघोड़ा तथा धरमजयगढ़ तहसील तथा कोरिया जिले के दक्षिणी भाग तथा सरगुजा जिले के कुछ भाग में पाई जाती हैं।
(2) ऊपरी गोंडवाना समूह :- कोरिया जिले के उत्तरी भाग, कोरबा तथा रायगढ़ जिले के उत्तरी मध्य भाग ऊपरी गोंडवाना शैल समूह के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं, जिनमें मुख्यतः बालुका पत्थर, शेल तथा कोयले के संचित भण्डार पाये जाते हैं, जिससे इनका आर्थिक महत्त्व अधिक है।
ड. दक्कन ट्रैप :- ज्वालामुखी उद्भेदनों से निर्मित बेसाल्ट चट्टानें जिन्हें दक्कन ट्रैप कहा जाता है, मुख्यतः प्रदेश के बिलासपुर एवं राजनांदगाँव जिले के मैकल श्रेणी के पूर्वी भाग तथा कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ में विस्तृत हैं। इनमें बेसाल्ट की तहें मुख्य रूप से क्षैतिजिक हैं।
3. स्थलाकृति :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश स्थलाकृतिक दृष्टि से विषम है। इसका मध्यवर्ती भाग मैदानी और शेष भाग पठारी है। अतः इसे स्थलाकृति की दृष्टि से मैदानी एवं पठारी क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है - 1. उत्तरी उच्च भूमि, 2. मेकल पर्वत श्रेणी, 3. छत्तीसगढ़ का मैदान, 4. दक्षिणी उच्चभूमि
1. उत्तरी उच्च भूमि :- उत्तरी उच्च भूमि एक प्राचीन भूखण्ड है, जिसके अन्तर्गत उत्तर में सरगुजा-रायगढ़ पठार के अन्तर्गत देवगढ़ उच्च भूमि, रायगढ़ का पठार, मैनपाट (1152 मीटर) छुरी की पहाड़ियाँ (300-1000 मीटर), सरगुजा बेसिन, हसदो बेसिन तथा पेंड्रा लोरमी पठार सम्मिलित है। इस क्षेत्र में कोयले के निक्षेप अधिक पाये जाते हैं।
2. मैकल श्रेणी :- मैकल श्रेणी सतपुड़ा पर्वत का पूर्वी कगार है जो छत्तीसगढ़ मैदान के पश्चिम में राजनांदगाँव जिले में विस्तृत है। इसकी ऊँचाई मैदान से पश्चिम की ओर बढ़ती हुई 1000 मीटर से भी अधिक हो जाती है। इस श्रेणी का ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है, जिसकी सबसे ऊँची चोटी लीलवानी (1126 मीटर) है।
3. छत्तीसगढ़ का मैदान :- छत्तीसगढ़ का मैदान अर्थात ‘छत्तीसगढ़ बेसिन’ अथवा ‘महानदी बेसिन’ लगभग 32 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। इस मैदान की उत्पत्ति एवं विकास कडप्पा समूह के क्षैतिजिक अवसादी शैलों पर महानदी तथा सहायक नदियों के अपरदन के फलस्वरूप हुआ है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई पूर्वी सीमा पर महानदी के निकास पर 220 मीटर से लेकर उच्चभूमि की सीमा पर लगभग 330 मीटर तक है। इस क्षेत्र का धरातल समतल तथा औसत ढाल 10 से भी कम है। यह मैदान नदियों द्वारा निम्नांकित उपविभागों में विभक्त है -
क. हसदो मांद का मैदान :- छत्तीसगढ़ के मैदान का पूर्वी भाग हसदो मांद नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र है।
ख. बिलासपुर का मैदान :- आगर, मनियारी, अरपा तथा लीलागर नदियों के जलोढ़ से आच्छादित यह क्षेत्र मैदान का उत्तरी भाग है।
ग. शिवनाथ पार का मैदान :- यह क्षेत्र शिवनाथ नदी के पश्चिम में स्थित है तथा मैकल श्रेणी से निकलने वाली अमनेर, हांप, सुरही इत्यादि नदियों से अपवाहित है। इन नदियों ने मैकल से दक्कन ट्रैप की काली मिट्टी को बहाकर इस क्षेत्र में जमा किया है।
घ. महानदी-शिवनाथ दोआब :- यह मैदान का दक्षिणी मध्यवर्ती भाग है इसके मध्य से होकर खारुन नदी बहती है।
ङ. महानदी पार क्षेत्र :- यह महानदी के पूर्व में स्थित एक संकरा क्षेत्र है, जो महानदी तथा उसकी पूर्वी सहायक नदियों द्वारा निर्मित है।
1. दक्षिणी उच्च भूमि :-
(क) दुर्ग रायपुर उच्च भूमि : दुर्ग-रायपुर उच्च भूमि (300-600) महानदी बेसिन का दक्षिणी भाग है, जिसके अन्तर्गत रायपुर सम्भाग का दक्षिणी भाग अर्थात राजनांदगाँव, दुर्ग उच्च भूमि तथा रायपुर उच्च भूमि सम्मिलित है। दुर्ग उच्च भूमि क्षेत्र लौह अयस्क से समृद्ध क्षेत्र है, जहाँ स्थित राजहरा की लौह अयस्क खदानों से भिलाई इस्पात संयंत्र को लौह अयस्क की आपूर्ति की जाती है। यह उच्च भूमि दक्षिण में क्रमशः बस्तर के पठार (दण्डकारण्य) में मिल जाती है।
(ख) दण्डकारण्य का पठार :- दण्डकारण्य का भू-भाग छत्तीसगढ़ प्रदेश का अत्यन्त पिछड़ा हुआ क्षेत्र है, जो बस्तर जिले में विस्तृत है। इस क्षेत्र में उच्चावच अधिक है जिनके विस्तृत भागों की ऊँचाई 150 मीटर से लेकर 800 मीटर तक है। दण्डकारण्य को निम्नांकित उच्चावच प्रदेशों में बाँटा जा सकता है -
क. उत्तरी मैदान, ख. उत्तर-पूर्वी पठार, ग. अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ, घ. दक्षिणी पठार, ङ. दक्षिणी मैदान, च. इन्द्रावती का मैदान, छ. बैलाडीला की पहाड़ी, ज. दन्तेवाड़ा का मैदान।
क. उत्तरी मैदान :- दण्डकारण्य का उत्तरी मैदान परलकोट, प्रतापपुर, कोयलीबेड़ा, अन्तागढ़, कांकेर रेखा तक 25 किमी. चौड़ाई में विस्तृत है। जिसकी ऊँचाई 300 से 500 मीटर के बीच है, जो मुख्यतः ग्रेनाइट तथा नीस शैलों से निर्मित है।
ख. उत्तर पूर्वी पठार :- दण्डकारण्य का उत्तरीपूर्वी पठार मुख्यतः कोण्डागाँव तथा जगदलपुर में विस्तृत है। जगदलपुर से दक्षिण पश्चिम में यह पठार क्रमशः तुलसी डोंगरी तथा टंगरी डोंगरी की पहाड़ियों तक विस्तृत है, जहाँ इसकी ऊँचाई 800 मीटर के लगभग है।
ग. अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ :- दण्डकारण्य के मध्य पश्चिमी भाग में अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ विस्तृत हैं, जिसका अधिकांश भाग नारायणपुर के दक्षिण पश्चिम भाग में पाया जाता है तथा शेष भाग दक्षिण की ओर बीजापुर की उत्तरी पट्टी है। नारायणपुर से दक्षिण की ओर इस पहाड़ी क्षेत्र की लम्बाई 100 किमी तथा चौड़ाई 60 किमी. है। अबूझमाड़ा का स्थानीय उच्चावच 150 से 300 मीटर के मध्य है।
घ. दक्षिणी पठार :- दन्तेवाड़ा के अधिकांश भाग, बीजापुर तथा कोन्टा के उत्तरी भाग में दक्षिणी पठार विस्तृत है। जो सामान्यतः 300 से 600 मीटर ऊँचा है। इस पठार के दक्षिण पूर्वी किनारे पर टिकनपल्ली की पहाड़ियाँ हैं।
ङ. दक्षिणी मैदान :- दण्डकारण्य का दक्षिणी मैदान गोदावरी तथा उसकी सहायक सबरी नदी का मैदान है। यह मैदान इस प्रदेश की दक्षिणी सीमा से उत्तर की ओर दक्षिण पठार तथा उत्तर पूर्वी पठार तक विस्तृत है। इस मैदान की ऊँचाई 150 से 300 मीटर के मध्य है, जिसकी चौड़ाई 25 किमी. है।
च. इन्द्रावती का मैदान :- दण्डकारण्य के उत्तर-पूर्वी पठार का जगदलपुर स्थित विस्तृत भाग कडप्पा शैलों की क्षैतिज परतों से निर्मित समतल भू-भाग है जिसे इन्द्रावती का मैदान कहा जाता है। इन्द्रावती नदी इस मैदान में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से ऊँचाई 600 मीटर है।
छ. बैलाडीला की पहाड़ी :- दन्तेवाड़ा तहसील की पश्चिमी सीमा पर बैलाडीला की पहाड़ी उत्तर-दक्षिण दिशा में विस्तृत है, जिसकी ऊँचाई 1200 मीटर है। इस क्षेत्र में लौह अयस्क के निक्षेप प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
ज. दन्तेवाड़ा का मैदान :- दक्षिणी पठार का उत्तरी पूर्वी भाग दन्तेवाड़ा तहसील में नीचा होकर मैदानी हो गया है इसे ही दन्तेवाड़ा का मैदान कहा जाता है।
2. अपवाह :
जल मानव-जीवन का प्रमुख आधार है। वस्तुतः जल के बिना जीवन सम्भव नहीं है। अतः जल को आधारभूत एवं प्रमुख भौगोलिक संसाधन के रूप में स्वीकार किया गया है। भूतल पर जल प्रवाह प्रणाली का स्वरूप महत्त्वपूर्ण है। प्रवाह प्रणाली एक विशेष प्रकार की व्यवस्था होती है जिसका निर्माण एक नदी की धाराओं के सम्मिलित रूप से होता है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश की अपवाह प्रणाली इसके आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कृषि के साथ-ही-साथ निर्माण एवं वृहत उद्योगों के लिये जल की आवश्यकता सदैव बनी रहती है। जिसकी पूर्ति प्रदेश की नदियों द्वारा ही सम्भव है। क्षेत्र की प्रमुख नदी महानदी है, जो रायपुर उच्च भूमि में सिहावा पहाड़ी से निकलकर उत्तर पश्चिम की ओर बहती हुई बस्तर जिले में प्रवेश कर कुछ दूरी तक प्रवाहित होने के बाद उत्तर-पूर्व की ओर मुड़कर रायपुर जिले में प्रवेश करती है। महानदी अपनी सहायक नदियों के साथ पादपाकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी शिवनाथ है, जो राजनांदगाँव उच्च भूमि से निकलकर लीलागर, अरपा, मनियारी, हाप, सुरही, अमनेर, खारून इत्यादि सहायक नदियों के साथ बिलासपुर जिले के पश्चिम भाग तथा सम्पूर्ण राजनांदगाँव तथा दुर्ग जिले में प्रवाहित होती है। महानदी की अन्य सहायक नदियाँ उत्तर से आकर मिलने वाली हसदो तथा मांद एवं दक्षिण से आकर मिलने वाली पैरी, जोंक, सुरंगी और तेल हैं। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के 58.48 प्रतिशत क्षेत्र के जल का संग्रहण महानदी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा किया जाता है।
गंगा की सहायक नदी सोन प्रदेश की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर पेंड्रा पठार में अपवाहित होती है, जो 13.24 प्रतिशत क्षेत्र का जल संग्रहण करती है। सोन की प्रमुख सहायक नदी रिहन्द है। प्रदेश के पश्चिमी किनारे पर मैकल श्रेणी में नर्मदा नदी की सहायक बंजर का अपवाह क्षेत्र है तथा दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर राजनांदगाँव उच्च भूमि में गोदावरी नदी की सहायक कोटरी तथा बाघ नदी अपवाहित होती है जिसका अपवाह क्षेत्र प्रदेश के 3.6 प्रतिशत भाग में है।
गोदावरी नदी दण्डकारण्य की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर 15 किमी. की लम्बाई में भद्रकाली के पास से बहती है। गोदावरी की प्रमुख शाखा इन्द्रावती नदी दण्कारण्य के मध्य में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई गोदावरी नदी में मिल जाती है। इन्द्रावती की सहायक नदियाँ नारंगी, बोरचित्र, गुडरा, निबरा हैं जो उत्तर दिशा की ओर से आकर इसमें मिलती हैं। प्रदेश की दक्षिण पूर्वी सीमा पर गोदावरी की सहायक नदी सबरी का अपवाह क्षेत्र है।
दण्डकारण्य में मुख्यतः वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप पाया जाता है। भू-वैज्ञानिक एकरूपता इसका प्रमुख कारण है क्योंकि अधिकांश प्रदेश ग्रेनाइट तथा नाइस शैलों से बना है।
3. जलवायु :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश की जलवायु उष्णार्द्र अथवा उपार्द्र प्रकार की है। थार्नथ्वेट के वर्गीकरण के अनुसार यह प्रदेश CA’W (Tropical subhumid with rainfall deficient in winter) तथा कोपेन के अनुसार AW (Tropical wet and dry climate) तथा CWg (Humid mesothermal warm climate with dry winter) वर्गीकरण के अन्तर्गत आता है। कर्क रेखा पर स्थित होने के फलस्वरूप यह प्रदेश गर्म है अतः ग्रीष्म ऋतु अत्यधिक गर्म व शीतऋतु थोड़ी ठंडी होती है। समुद्र से दूर स्थित होने के कारण छत्तीसगढ़ प्रदेश समुद्र के समकारी प्रभाव से दूर है।
क. तापमान :- 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होता है तथा 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है, फलस्वरूप तापमान में वृद्धि होती है। अतः मार्च से जून तक सम्पूर्ण प्रदेश में तापमान बढ़ने लगता है। औसत तापमान सबसे अधिक रायगढ़ में 46.10 सेंटीग्रेड तथा सबसे कम 42.20 सेंटीग्रेड कांकेर में रहता है। प्रदेश में सबसे अधिक तापमान मई माह में (450 सेंटीग्रेड) होता है।
जून में मानसून के आगमन के साथ ही तापमान में कमी दृष्टिगोचर होती है। आर्द्रता तथा मेघाच्छादित आकाश के कारण जून की अपेक्षा जुलाई के तापमान में कमी आती है। इस समय प्रदेश का तापमान 26.250 सेंटीग्रेड होता है। सितम्बर तक तापमान में अधिक भिन्नता नहीं होती है।
ख. वर्षा :- प्रदेश में वर्षा मानसूनी प्रकृति की है तथा वर्षा की औसत मात्रा 1627 मिमी. है। रायपुर में 1388.2, कांकेर में 1394.8, जगदलपुर में 1534.1, अम्बिकापुर में 1404.8; चांपा में 1429.1, पेंड्रा में 1462 तथा रायगढ़ में 1627 मिमी. औसत वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा (94 प्रतिशत) जून से अक्टूबर के मध्य बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाओं द्वारा होती है। प्रदेश में मानसून का आगमन 10 से 15 जून तक होता है। जुलाई तथा अगस्त सर्वाधिक वर्षा के महीने हैं। राजनांदगाँव जिले के पश्चिम में स्थित मैकल श्रेणी का पूर्वी भाग अरब सागरीय मानसूनी हवाओं के मार्ग में अवरोध डालकर इस क्षेत्र में वृष्टि छाया का प्रभाव उत्पन्न करता है। 10 अक्टूबर के आस-पास प्रदेश से मानसून लौट जाता है।
4. प्राकृतिक वनस्पति :-
किसी भी प्रदेश की वनस्पति मुख्य रूप से वहाँ की जलवायु द्वारा निर्धारित होती है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु के कारण उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
छत्तीसगढ़ का महानदी का मैदान प्राचीन काल से ही मानव का आवास स्थल रहा है। अतः इन भागों के उर्वर मिट्टियों और समतल धरातल वाले क्षेत्रों से वनों को साफ कर कृषि कार्य किया जा रहा है। अतः वन केवल कृषि अयोग्य ऊबड़-खाबड़ धरातल वाली उच्च भूमियों तक सीमित रह गए हैं।
प्रदेश में सर्वाधिक वनों का विस्तार बस्तर जिले में है। छत्तीसगढ़ के कुल वन क्षेत्र का 40.42 प्रतिशत वन आरक्षित, 52.46 प्रतिशत संरक्षित वन तथा 7.10 प्रतिशत अवर्गीकृत वन हैं।
वनों के प्रकार एवं विवरण :- चैम्पियन तथा सेठ के वर्गीकरण के आधार पर इस क्षेत्र में उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन पाये जाते हैं। जिन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
क- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र पर्णपाती वन : इन वनों का विस्तार उत्तरी क्षेत्र के चम्मारवार डिवीजन के उत्तर पश्चिम में सम्पूर्ण दक्षिणी सरगुजा जिले तथा जशपुर जिले के तपकारा रेंज में है। पूर्वोत्तर में कोरबा तथा कटधोरा का अधिकांश क्षेत्र इस वन से आवृत्त है।
ख- उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पर्णपाती वन : छत्तीसगढ़ क्षेत्र के उत्तरी भाग में रायगढ़, उत्तर पूर्वी बिलासपुर, रायपुर, महासमुन्द तथा भानुप्रतापपुर, नारायणपुर तहसील के उत्तर पश्चिम भाग तथा जगदलपुर के पूर्वी भाग में जिले के मैनपुर तथा धमतरी में उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पर्णपाती वन पाये जाते हैं।
साल वन :- साल के वन प्रदेश के 2/3 क्षेत्र में विस्तृत हैं, जिन्हें 2 भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
क- आर्द्र साल वन :- ये वन सम्पूर्ण जशपुर क्षेत्र, दक्षिणी सरगुजा, बिलासपुर के उत्तरी पूर्वी भाग, पूर्वी कांकेर, माकड़ी, गीदम, देवभोग तथा गरियाबन्द में पाये जाते हैं।
ख- शुष्क साल वन :- ये वन रायगढ़ जिले के उत्तरी क्षेत्र तथा रायपुर के सरायपाली तथा मैनपुर में पाये जाते हैं।
सागौन वन :- छत्तीसगढ़ के पश्चिमी एवं दक्षिणी पश्चिमी भागों में 85,151 हेक्टेयर में सागौन वन फैले हुए हैं, जिन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है -
क- आर्द्र सागौन वन : ये वन बस्तर के उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्र नारायणपुर, दन्तेवाड़ा, गीदम, कांकेर, अंतागढ़ कोंटा तथा रायपुर संभाग में डोंगरगढ़, अम्बागढ़ चौकी, छुरा तथा डौन्डी लोहारा में पाये जाते हैं।
ख- शुष्क सागौन वन : ये वन रायपुर सम्भाग के अन्तर्गत धमतरी, कवर्धा, गण्डई, राजनांदगाँव तथा बस्तर सम्भाग के भानुप्रतापपुर, अंतागढ़ एवं कांकेर में पाये जाते हैं।
मिश्रित वन : ये वन छत्तीसगढ़ के समस्त क्षेत्र, मुख्यतः कटघोरा, सोनाखान, महासमुन्द, मानपुर, पश्चिमी बैहरामगढ़ तथा बीजापुर में पाये जाते हैं।
5. जनसंख्या वितरण :
छत्तीसगढ़ प्रदेश में जनसंख्या का वितरण असमान है। उच्चभूमि तथा वनाच्छादित क्षेत्रों में जनसंख्या विरल तथा समतल मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का संकेन्द्रण अधिक है। क्योंकि मैदानी भागों में भूमि संसाधन आधार सशक्त है। वस्तुतः कृषि भूमि की उपलब्धि इस कृषि प्रधान प्रदेश में जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाला सर्वप्रमुख कारक है।
सन 2001 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ प्रदेश की जनसंख्या 2,079,5,956 है, जो भारत की जनसंख्या (1,027,015,247) का 2.02 प्रतिशत है। इस प्रकार जनसंख्या की दृष्टि से देश में छत्तीसगढ़ का स्थान सत्रहवाँ है। प्रदेश की जिलेवार कुल जनसंख्या तालिका 1.1 में प्रदर्शित की गई है।
राज्य की जनसंख्या में 10,452,426 पुरुष तथा 10,343,530 स्त्रियाँ हैं। 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले जिले सरगुजा, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर-चांपा, रायगढ़, राजनांदगाँव, दुर्ग, रायपुर तथा बस्तर हैं। शेष सात जिले कोरिया, जशपुर, कवर्धा, महासमुन्द, धमतरी एवं कांकेर, तथा दंतेवाड़ा 10 लाख से कम आबादी वाले जिले हैं। जनगणनानुसार सबसे अधिक जनसंख्या वाला जिला रायपुर तथा सबसे कम जनसंख्या वाला जिला कवर्धा है।
तालिका 1.1 छत्तीसगढ़ प्रदेश : कुल जनसंख्या एवं जनसंख्या घनत्व वर्ष 2001 | ||||||
क्र. | जिला | पुरुष | स्त्रियाँ | कुल जनसंख्या | स्त्री/पुरुष अनुपात | जनसंख्या घनत्व |
01 | कोरिया | 300723 | 284732 | 585455 | 947 | 89 |
02 | सरगुजा | 999196 | 971465 | 1970661 | 972 | 125 |
03 | बिलासपुर | 1009007 | 984035 | 1993042 | 975 | 241 |
04 | कोरबा | 515467 | 496654 | 1012121 | 964 | 153 |
05 | जांजगीर-चांपा | 658377 | 657763 | 1316140 | 999 | 342 |
06 | जशपुर | 370287 | 369493 | 739780 | 998 | 127 |
07 | रायगढ़ | 633993 | 631091 | 1265084 | 995 | 179 |
08 | कवर्धा | 292054 | 292613 | 584667 | 1002 | 138 |
09 | राजनांदगाँव | 633292 | 648519 | 1281811 | 1024 | 159 |
10 | दुर्ग | 1413785 | 1387972 | 2801757 | 982 | 328 |
11 | रायपुर | 1520024 | 1489018 | 3009042 | 980 | 230 |
12 | महासमुन्द | 426011 | 434165 | 860176 | 1019 | 180 |
13 | धमतरी | 350962 | 352607 | 703569 | 1005 | 208 |
14 | कांकेर | 324678 | 326655 | 651333 | 1006 | 100 |
15 | बस्तर | 648068 | 654185 | 1302253 | 1009 | 87 |
16 | दंतेवाड़ा | 356502 | 362563 | 719065 | 1017 | 41 |
योग | 10,452426 | 10343530 | 20795956 | 990 | 154 | |
स्रोत : भारत की जनगणना, 2001 |
छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात 990 है, जबकि सम्पूर्ण देश का लिंगानुपात 933 है। प्रदेश के 7 जिलों कवर्धा, राजनांदगाँव, महासमुन्द, धमतरी, कांकेर, बस्तर तथा दन्तेवाड़ा में लिंगानुपात 1000 से अधिक है। सबसे कम लिंगानुपात कोरिया जिले में (947) है, जबकि सबसे अधिक लिंगानुपात राजनांदगाँव जिले में (1024) है। कोरिया, सरगुजा, बिलासपुर एवं कोरबा जिले में लिंगानुपात प्रदेश के लिंगानुपात (990) से कम पाया गया, जबकि शेष जिलों में यह स्थिति अच्छी रही।
क्रियाशील जनसंख्या का व्यावसायिक संगठन :-
सन 1991 की जनगणनानुसार छत्तीसगढ़ प्रदेश के सात जिलों में मुख्य कर्मियों की संख्या 74,16,609 है, जो कुल जनसंख्या का 42.10 प्रतिशत है। जिला स्तर पर मुख्य कर्मी रायगढ़ में 39.64 प्रतिशत, राजनांदगाँव में 49.49 प्रतिशत, दुर्ग में 42.36 प्रतिशत, रायपुर में 43.85 प्रतिशत, बस्तर में 43.97 प्रतिशत, सरगुजा में 35.93 प्रतिशत एवं बिलासपुर में 40.71 प्रतिशत है। कर्मियों में पुरुषों की प्रधानता है, जहाँ पुरुष कर्मी पुरुष जनसंख्या के 53.47 प्रतिशत है, वहीं स्त्री कर्मी स्त्री जनसंख्या के 30.56 प्रतिशत हैं। यह उल्लेखनीय है कि प्रदेश में स्त्री कर्मियों का अनुपात (30.56%) मध्य प्रदेश के अनुपात (22.82%) से काफी अधिक है। जो इस बात का द्योतक है कि यहाँ स्त्रियाँ बड़ी संख्या में उत्पादक कार्यों में संलग्न हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश की विशेषता है कि यहाँ स्त्रियाँ बड़ी संख्या में मजदूरी का कार्य करती हैं। कृषि मजदूरों में पुरुषों (9.42%) की तुलना में स्त्रियाँ (33.18%) अधिक है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कृषि प्रधान क्षेत्र है यहाँ का मुख्य व्यवसाय कृषि है, जिसमें 57.03% कर्मी काश्तकार तथा 23.06% कर्मी कृषि मजदूर के रूप में है अर्थात कुल 80.09% कर्मी कृषि कार्य में संलग्न हैं। गृह उद्योगों में 1.5% तथा शेष अन्य कार्यों में 18.41% कर्मी संलग्न हैं। इस प्रकार प्रदेश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना पिछड़ी अर्थव्यवस्था की द्योतक है, जिसमें उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा अन्य तृतीयक सेवाओं का महत्त्व अति न्यून है। कृषि मजदूरों की अधिकता तथा उसमें स्त्रियों की प्रधानता निर्धनता की परिचायक है।
कृषि एवं गृह उद्योग को छोड़कर अन्य कार्यों में लगी जनसंख्या का प्रतिशत दुर्ग में 29.98, रायपुर में 20.04, बिलासपुर में 18.93, सरगुजा में 15.67, रायगढ़ में 14.47% तथा राजनांदगाँव 13.94 तथा बस्तर में 11.03 है। दुर्ग में उच्च प्रतिशत का कारण औद्योगिक तथा खनन कार्यों का विकास है।
कृषि एवं गृह उद्योग में लगी जनसंख्या का प्रतिशत बस्तर में 88.95, राजनांदगाँव में 86.05, रायगढ़ में 85.52, सरगुजा में 84.32, बिलासपुर में 81.06, रायपुर में 79.95 तथा दुर्ग में 70.01 है।
इस प्रकार सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में कृषि एवं गृह उद्योगों को छोड़कर अन्य कार्यों में लगी जनसंख्या का प्रतिशत 18.42 तथा कृषि एवं गृह उद्योगों में लगी जनसंख्या का प्रतिशत 81.58 है।
6. कृषि :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश के निवासियों का सर्वप्रमुख व्यवसाय कृषि है। जिसमें यहाँ की लगभग 80% क्रियाशील जनसंख्या संलग्न है। यहाँ की कृषि जीवन निर्वाह प्रकार की है। 48.67% से अधिक भूमि पर खाद्य फसलें उत्पन्न की जाती हैं। खाद्य फसलों में धान सर्वप्रमुख फसल है। पर्याप्त उष्णता, वर्षा, उर्वर तथा अम्लीय मिट्टी धान की कृषि के लिये उपयुक्त है। मैदानी भागों में कृषि का विस्तार अधिक है जबकि उच्च भूमि में यह समतल क्षेत्रों तथा नदी श्रेणियों तक ही सीमित है।
कृषि भूमि उपयोग :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश भारत के प्रमुख कृषि क्षेत्रों में से एक है। यह 48,36,997 हेक्टेयर अर्थात 51.7% भूमि फसलों के निराक्षेत्रफल के अन्तर्गत है। निरा बोई गई भूमि वह भूमि है जिस पर अध्ययन वर्ष में फसलें उत्पन्न की गई हैं। प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में स्थित सभी जिलों में निरा बोई गई भूमि का विस्तार 50% से अधिक है। जबकि पठारी क्षेत्र बस्तर तथा सरगुजा में इस भूमि का विस्तार क्रमशः 37.23% तथा 45.13% क्षेत्र में ही सीमित है। निरा बोई गई भूमि का विस्तार दुर्ग में 69.83%, रायपुर में 62.73%, राजनांदगाँव में 60%, बिलासपुर में 54.27% तथा रायगढ़ में 52.03% क्षेत्र में है।
भूमि उपयोग :-
ग्रामीण प्रतिवेदनों के अनुसार प्रदेश का क्षेत्रफल 94,18,086 हेक्टेयर है। प्रतिवेदित क्षेत्र का उपयोग के अनुसार वर्गीकरण तालिका 1.2 में प्रदर्शित है।
प्रदेश में कृषि के बाद वन दूसरा महत्त्वपूर्ण भूमि उपयोग है। वनों का वितरण अत्यन्त असमान है। मैदानी क्षेत्रों में वनों का विस्तार नगण्य तथा उच्च भूमि अधिकांश वनाच्छादित है। प्रदेश में 19.87% भू-भाग पर वन है। वनों का सर्वाधिक विस्तार बस्तर जिले में है जहाँ 35.89% भू-भाग पर वन है। तत्पश्चात सरगुजा में 21.34% भूमि वनाच्छादित है। जबकि दुर्ग जिले में वन क्षेत्र का विस्तार नगण्य मात्र 3.09% भू-भाग पर है जो सम्पूर्ण प्रदेश में सबसे कम है।
कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य में उपयोग में लाई गई भूमि के अन्तर्गत अधिवास, परिवहन, खनन, उद्योग, जलाशय आदि उपयोगों वाली भूमि तथा बंजर एवं कृषि के लिये अनुपयोगी भूमि सम्मिलित है। इसका विस्तार प्रदेश की 7.23% भूमि पर है। इसके अन्तर्गत न्यूनतम 4.43% भूमि बस्तर जिले में तथा अधिकतम 10.93% भूमि दुर्ग जिले में है।
अन्य अकृषित भूमि के अन्तर्गत 3.70% भू-भाग सम्मिलित है। रायगढ़ में 11.45% भूमि तथा रायपुर में 1.15% भूमि अकृषित भूमि के अन्तर्गत है।
तालिका 1.2 छत्तीसगढ़ प्रदेश : भूमि उपयोग 1997-98 | |||
क्रम | भूमि उपयोग | क्षेत्रफल हेक्टेयर में | कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत |
1. | वन | 1858596 | 19.87 |
2. | कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य में उपयोग में लाई गई भूमि | 675832 | 7.23 |
3. | अन्य अकृषित भूमि | 347004 | 3.70 |
4. | मुस्तकिल व दीगर चारागाह | 865963 | 9.26 |
5. | दीगर झाड़ों के झुण्ड तथा बाग जो कि फसलों के निरा क्षेत्रफल में शामिल नहीं है। | 347 | .0037 |
6. | काबिल काश्त पड़त भूमि | 326487 | 3.50 |
7. | पुरानी पड़ती | 215230 | 2.34 |
8. | चालू पड़ती | 227541 | 2.44 |
9. | फसलों का निरा क्षेत्रफल | 4836997 | 51.7 |
कुल क्षेत्रफल | 9356997 | 100 |
प्रदेश में चारागाह भूमि का विस्तार 9.25% भूमि पर है। यह सरगुजा में 17.29% से लेकर बस्तर में 5.22% क्षेत्र में है।
काबिल काश्त पड़त भूमि वह भूमि है जिस पर भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा तकनीकी बाधाओं के कारण कृषि नहीं की जाती, परन्तु जिसे उचित व्यय द्वारा कृषि योग्य बनाया जा सकता है। प्रदेश में इस भूमि का विस्तार 3.50% भू-भाग पर है। ऐसी भूमि रायगढ़ में 1.47% से लेकर बस्तर में 8.29% तक क्षेत्र में है।
ऐसी भूमि जिस पर पहले कृषि की जाती थी परन्तु पिछले एक से पाँच वर्ष तक कृषि नहीं की गई, पड़ती भूमि कही जाती है। प्रदेश में पुरानी पड़ती एवं चालू पड़ती भूमि 4.78% क्षेत्र में है। पड़ती भूमि बिलासपुर जिले में 3.44% से लेकर राजनांदगाँव जिले में 5.38% तक क्षेत्र में है।
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