रायपुर। प्रदेश की जीवनदायिनी तीन प्रमुख नदियाँ महानदी, अरपा और शिवनाथ का पानी प्रदूषण की सारी सीमाओं को लाँघ रहा है। हालात ये बन गए हैं कि अब जलीय जीव-जन्तुओं और पौधों का इनमें रहना मुश्किल हो रहा है और उनके जीवन के लिये खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इन नदियों में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर सामान्य से दस गुना ज्यादा हो चुका है। यही वजह है कि इन्हें यमुना जैसी देश की सबसे प्रदूषित नदियों की सूची में शामिल किया गया है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। बैक्टीरिया हजारों गुना ज्यादा सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार महानदी, अरपा और शिवनाथ जैसी नदियों का पानी स्वच्छता के पैरामीटर पर खरा नहीं उतरा। नियमों के मुताबिक 100 मिलीलीटर पानी में बैक्टीरिया की संख्या 500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन खतरनाक बात है कि इन नदियों में पैरामीटर से हजारों गुना ज्यादा बैक्टीरिया पाया गया है। सीपीसीबी ने विभिन्न स्थानों की जाँच में पाया कि कोलिफॉर्म की मौजूदगी के चलते इन तीनों नदियों में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब हुई है।
सीपीसीबी ने 2005 से 2013 तक के आँकड़ों को आधार बनाकर नदियों के प्रदूषण की जाँच की है। चार पैरामीटर पर फेल सीपीसीबी ने देश की प्रमुख नदियों के पानी में ऑक्सीजन को इस्तेमाल करने वाले तत्वों, ऑक्सीजन की मात्रा, बैक्टीरिया की उपस्थिति और पानी में मौजूद ठोस तत्वों की मात्रा के आधार पर प्रदूषण की जाँच की। इनमें प्रदेश की तीन प्रमुख नदियों सहित देश की 35 नदियाँ प्रदूषित पाई गईं। चौंकाने वाली बात है कि भारत में दुनिया का महज 2 प्रतिशत जल ही शुद्ध है।
अध्ययन के अनुसार पानी में बैक्टीरिया का ज्यादा होना सबसे खतरनाक है। वजह है कि बैक्टीरिया ज्यादा होने पर पानी को शुद्धिकरण के बावजूद पीने योग्य बनाना मुश्किल होता है। ऐसे में पानी को प्रोसेस करने पर भी बैक्टीरिया हो सकते हैं। यह पीने, नहाने या सब्जियों के जरिए हमारे शरीर में पहुँचकर सेहत के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
सीपीसीबी ने देश की 40 नदियों की प्रदूषण जाँच की। इनमें महज पाँच नदियाँ हैं, जो सभी पैरामीटर पर सही हैं। प्रदूषित नदियों की सूची में महानदी के अलावा गंगा, यमुना, सतलुज, नर्मदा, चम्बल, घग्घर, कोसी, इन्द्रावती, दामोदर, कृष्ण और तुंगभद्रा शामिल हैं। प्रदूषण जाँच में पास होने वाली नदियों में चार दक्षिण भारत और एक असम की नदी है। गोदावरी, कावेरी, पेन्नार और धनसारी नदियाँ स्वच्छता के पैरामीटर पर सही उतरीं।
कवर्धा जिले के सुदूर वनांचल बोड़ला मैकल श्रेणी के बीच दक्षिण व पश्चिम कोने के दुरुदुरी नामक स्थान से संकरी नदी का उद्गम हुआ है। 2007 में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने संकरी नदी के जल की शुद्धता बनाए रखने के लिये शहर के गन्दे नालों के पानी को साफ करके नदी में गिराए जाने की योजना का भूमि पूजन किया था। इस योजना के तहत एक फिल्टर प्लांट तैयार किया जाना था, जिसके जरिए शहर के नाले के पानी को साफ करके नदी में छोड़ना था। लेकिन भूमिपूजन को सात साल बीतने के बाद भी यह पूरा नहीं हो सका है।
पहाड़, चट्टान, जंगल और न जाने कितने दर्जन गाँव की प्यास बुझाते हुए 47 किलोमीटर का सफर तय कर संकरी नदी शहर पहुँचती है। उद्गम स्थल से संकरी के जल का स्वरूप एकदम निर्मल, स्वच्छ और बेदाग रहती है, लेकिन जैसे ही यह गाँव की सीमा छूती है यह मैली होनी लगती है। कवर्धा शहर में प्रवेश करते ही इसे गन्दगी, कचरा और प्रदूषण से सराबोर कर दिया जाता है।
अब स्वच्छ व निर्मल संकरी नदी एक मैली व गन्दी नदी बन जाती है। इसके बाद भी हम इसका बेदर्दी से दुरूपयोग कर रहे हैं। शहर में केवल दो किलोमीटर की दूरी तक बहने वाली संकरी नदी में रोजाना लगभग 21 लाख लीटर गन्दा पानी बहा देते हैं। इसके बाद भी यह आगे जाकर लोगों को किसी-न-किसी रूप से अपनी सेवा दे रही है। नदी में रोजाना 21 लाख लीटर गन्दा पानी डाल रहे कभी इसके जल से सिंचित भूमि में फसल लहलहाते थे।
इसके जल का उपयोग लोग पवित्र गंगाजल की तरह करते। बारह महीने इसका स्वच्छ जल कल-कल, छल-छल की मधुर ध्वनि करता बहता रहता। इस जल से शहर के साथ ही गाँवों की भी प्यास बुझती थी। जल से जुड़ी हर आवश्यकताएँ इसके जरिए दूर हो जाती थी, लेकिन अब प्रदूषण की मार से इसका स्वच्छ जल भी प्रदूषित हो चुका है। इसका जल पीना तो दूर नहाने के लायक भी नहीं रहा।
शहर की जीवन रेखा यह 'संकरी गंगा' अब प्रदूषण व अन्य कारणों से अपने ही अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रही है। शहर की जीवनरेखा संकरी नदी में नालियों के जरिए प्रतिदिन लगभग 21 लाख लीटर गन्दा पानी बहा दिया जाता है। इस 21 लाख लीटर गन्दगी के चलते ही नदी जल के प्रदूषण का स्तर बेहद नीचे गिर चुका है और नदी जल का पीएच मान बढ़ने लगा है।
शासन ने गन्दे पानी को साफ करके नदी में बहाए जाने के लिये जल आवर्धन योजना तो बनाई है। लेकिन काम के कछुआ चाल के चलते नदी किनारे बन रहे जल शोधन संयंत्र ने सात साल बाद भी काम करना शुरू नहीं किया है।
संकरी नदी में प्रति महीने लगभग 630 लाख लीटर गन्दा पानी बहाया जाता है। इसके साथ ही वेस्ट मटेरियल भी नदी में ही फेंका जाता है। इसी के चलते संकरी नदी शहरी क्षेत्र में पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। आम निस्तार के साथ-साथ मवेशियों के पेयजल के लिये अब शुद्ध पानी नदी में नहीं है। संकरी नदी की 90 किमी की लम्बी यात्रा संकरी की कुल यात्रा 90 किलोमीटर की है।
कबीरधाम जिले में इसका बहाव क्षेत्र 83 किलोमीटर है। संकरी नदी के अन्तर्गत 40 कछार गाँव है। मतलब कुछ वर्षों पूर्व तक 40 गाँव नदी के भरोसे जीवित थे। लेकिन अब नदी के जरिए कुछ गाँवों में ही खेती के लिये पानी मिल पाता है। जबकि ईंट भट्ठों के लिये पूरा पानी ही निचोड़ दिया जाता है।
प्रदेशव्यापी जल संरक्षण व नदी तालाबों के जीर्णोंद्धार अभियान के तहत नदी के सकरहाघाट में हजारों हाथ नदी के गहरीकरण व सफाई के लिये उठे थे, लेकिन यह श्रमदान सिर्फ सांकेतिक बनकर ही रह गया। संकरी नदी के सकरहाघाट में अभियान के तहत नदी की साफ-सफाई के लिये जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी सबने मानव शृंखला बनाकर सफाई कार्य में अपनी प्रतिकात्मक भागीदारी निभाई थी, लेकिन यह प्रतिकात्मक बनकर ही रह गया।
बालको ने संकरी नदी की साफ-सफाई के नाम पर 25 लाख रुपए प्रशासन को दिये थे, जिसके तहत सकरहा घाट से बूढ़ामहादेव घाट तक दोनों ओर 400 फीट मिट्टी निकालकर सफाई करने की योजना थी। साथ ही सकरहाघाट के 5 एकड़ क्षेत्र में 5 फीट मिट्टी निकालकर जल रोकने के कार्य 25 लाख में होने थे, लेकिन महज कुछ स्थानों पर मिट्टी निकालकर इतिश्री कर ली गई।
यह मेहनत भी बेकार साबित हुई। करोड़ों की योजनाएँ, सालों से अधूरे शहर के गन्दे नालों के पानी से पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी संकरी नदी की सफाई के लिये नाली के पानी को साफ करके नदी में गिराए जाने को लेकर योजना तो बनाई गई, लेकिन इस योजना को मूर्त रूप लेते-लेते अब सात साल बीतने को हैं और नतीजा सिफर रहा है। जल आवर्धन योजना के तहत संकरी नदी के किनारे जल शोधन संयंत्र (वाटर फिल्टर प्लांट) की स्थापना की जानी है। यह कार्य लगभग 4 करोड़ 88 लाख रुपए खर्च कर अंजाम दिया जाना है।
पानी में बैक्टीरिया ज्यादा होने से संक्रमण की बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं। बैक्टीरिया युक्त पानी से पीलिया या लीवर से सम्बन्धित बीमारियाँ हो जाती हैं। टर्बिडिटी और हार्डनेस अधिक होने से पेट में भारीपन तथा गैस और अपच की शिकायत होती है।
डॉ.नवीन खूबचंदानी, एमबीबीएस
भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय वृहद स्तर पर एक गोपनीय सर्वे करा रहा है। इसमें कई राज्यों के जंगल व नदी की वर्तमान और अगले 50 साल बाद की स्थिति पर रिपोर्ट माँगी गई है। इसका उद्देश्य है समय रहते जंगल व नदी को बचाया जा सके। इसके लिये छत्तीसगढ़ में भी एक टीम तैयार की गई है। इसमें गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट के डीन प्रो. एसएस सिंह प्रमुख हैं।
तीन साल से वे इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। गोपनीयता का हवाला देते हुए उन्होंने आँकड़े उपलब्ध कराने से तो मना कर दिया, लेकिन प्रारम्भिक रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष बताए। उनके अनुसार कोल खदानें और थर्मल पावर प्लांट्स पर्यावरण पर काफी खराब प्रभाव डाल रहे हैं। पावर सरप्लस बनने के लिये राज्य में कोयले की खदानें और थर्मल पॉवर प्लांटों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
प्रदेश के 44 प्रतिशत भाग में जंगल है, जो खनिज सम्पदा से परिपूर्ण है। खदानों से कोयला निकालने के लिये पेड़ काटे जा रहे हैं। अकेले नकिया कोल ब्लॉक के लिये चार लाख पेड़ों की बलि दी गई है। इससे जैव विविधता को खतरा है। थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयला व पानी के उपयोग से वायुमण्डल गर्म हो रहा है।
रायपुर, बिलासपुर व कोरबा जिला इसका उदाहरण है। यहाँ गर्मी में सामान्य तापमान हर साल एक से दो डिग्री बढ़ रहा है। यही स्थिति रही तो आने वाले 80 साल बाद राज्य में जंगल ही नहीं बचेगा। नदियाँ सूख जाएँगी। इससे उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। शासन को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
प्रदेश में अभी 39 कोयला खदानें और 16 थर्मल पॉवर प्लांट हैं, वहीं 12 बन रहे हैं। कोरबा, कोरिया व सरगुजा जिले में ज़मीन के नीचे 50 हजार मिलियन टन कोयला है। देश के कोयला उत्पादन में हर साल छत्तीसगढ़ का योगदान 21 प्रतिशत से अधिक रहता है।
रायगढ़ व कोरबा में छह-छह, सुरजपुर व कोरिया में 11-11, सरगुजा में चार व बलरामपुर में एक कोयला खदान है। कोयले का उपयोग उद्योग-धन्धे व बिजली उत्पादन में ही किया जाता है। इसके चलते छत्तीसगढ़ पॉवर सरप्लस राज्य है। इसे बनाए रखने पेड़ों की बलि देकर खदानें बढ़ाई जा रही हैं।
सर्वे के मुताबिक प्रदेश में 21 छोटी- बड़ी नदियाँ हैं। इनमें महानदी, शिवनाथ, इन्द्रावती, हसदेव, केलो, बाघ व माघ प्रमुख हैं, जहाँ गर्मी के दिनों में भी पानी का बहाव रहता है। इसके अलावा अरपा, लीलागर, सोम व आगर व मनियारी जैसी नदियाँ गर्मी के दिनों में सूख जाती हैं। ऐसी परिस्थिति में इन नदियों को जोड़ने की योजना है।
बताया गया कि प्रदेश की सभी नदियाँ जंगलों से होकर बहती हैं। वहाँ पेड़ों की जड़ें पानी को रोक लेती हैं। वहीं, देश के अन्य राज्यों में नदियाँ मुख्य रूप से पहाड़ों से निकलती हैं, इसलिये यहाँ इन नदियों को जोड़ने में दिक्कत नहीं आएगी।
1. पौधरोपण के साथ वृक्षों को बचाने पर अधिक बल दिया जाए।
2. जंगल में खदानें, वृक्षों को बचाने नए प्लान की जरूरत।
3. थर्मल पावर से निकलने वाले संस्पेंडेट पार्टिकल्स खतरनाक।
4. नदियों में बाँध बनाकर रोके गए जल का सदुपयोग जरूरी।
5. जैव विविधता बनाए रखने पशु-पक्षियों का सरंक्षण महत्त्वपूर्ण।
इनका कहना है
भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जंगल व नदियों के संरक्षण को लेकर सर्वे कराया जा रहा है। प्रारम्भिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के पर्यावरण को बढ़ते कोयल खदानों व थर्मल पावर प्लांटों से खतरा है। उम्मीद है कि सर्वे पूरा होने के बाद केन्द्र व राज्य सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएँगी। इसमें नदियों को जोड़ने की भी योजना है।
प्रो. एसएस सिंह, डीन, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। बैक्टीरिया हजारों गुना ज्यादा सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार महानदी, अरपा और शिवनाथ जैसी नदियों का पानी स्वच्छता के पैरामीटर पर खरा नहीं उतरा। नियमों के मुताबिक 100 मिलीलीटर पानी में बैक्टीरिया की संख्या 500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन खतरनाक बात है कि इन नदियों में पैरामीटर से हजारों गुना ज्यादा बैक्टीरिया पाया गया है। सीपीसीबी ने विभिन्न स्थानों की जाँच में पाया कि कोलिफॉर्म की मौजूदगी के चलते इन तीनों नदियों में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब हुई है।
सीपीसीबी ने 2005 से 2013 तक के आँकड़ों को आधार बनाकर नदियों के प्रदूषण की जाँच की है। चार पैरामीटर पर फेल सीपीसीबी ने देश की प्रमुख नदियों के पानी में ऑक्सीजन को इस्तेमाल करने वाले तत्वों, ऑक्सीजन की मात्रा, बैक्टीरिया की उपस्थिति और पानी में मौजूद ठोस तत्वों की मात्रा के आधार पर प्रदूषण की जाँच की। इनमें प्रदेश की तीन प्रमुख नदियों सहित देश की 35 नदियाँ प्रदूषित पाई गईं। चौंकाने वाली बात है कि भारत में दुनिया का महज 2 प्रतिशत जल ही शुद्ध है।
अध्ययन के अनुसार पानी में बैक्टीरिया का ज्यादा होना सबसे खतरनाक है। वजह है कि बैक्टीरिया ज्यादा होने पर पानी को शुद्धिकरण के बावजूद पीने योग्य बनाना मुश्किल होता है। ऐसे में पानी को प्रोसेस करने पर भी बैक्टीरिया हो सकते हैं। यह पीने, नहाने या सब्जियों के जरिए हमारे शरीर में पहुँचकर सेहत के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
देश की 35 नदियाँ प्रदूषित
सीपीसीबी ने देश की 40 नदियों की प्रदूषण जाँच की। इनमें महज पाँच नदियाँ हैं, जो सभी पैरामीटर पर सही हैं। प्रदूषित नदियों की सूची में महानदी के अलावा गंगा, यमुना, सतलुज, नर्मदा, चम्बल, घग्घर, कोसी, इन्द्रावती, दामोदर, कृष्ण और तुंगभद्रा शामिल हैं। प्रदूषण जाँच में पास होने वाली नदियों में चार दक्षिण भारत और एक असम की नदी है। गोदावरी, कावेरी, पेन्नार और धनसारी नदियाँ स्वच्छता के पैरामीटर पर सही उतरीं।
संकरी नदी का अस्तित्व खतरे में
कवर्धा जिले के सुदूर वनांचल बोड़ला मैकल श्रेणी के बीच दक्षिण व पश्चिम कोने के दुरुदुरी नामक स्थान से संकरी नदी का उद्गम हुआ है। 2007 में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने संकरी नदी के जल की शुद्धता बनाए रखने के लिये शहर के गन्दे नालों के पानी को साफ करके नदी में गिराए जाने की योजना का भूमि पूजन किया था। इस योजना के तहत एक फिल्टर प्लांट तैयार किया जाना था, जिसके जरिए शहर के नाले के पानी को साफ करके नदी में छोड़ना था। लेकिन भूमिपूजन को सात साल बीतने के बाद भी यह पूरा नहीं हो सका है।
पहाड़, चट्टान, जंगल और न जाने कितने दर्जन गाँव की प्यास बुझाते हुए 47 किलोमीटर का सफर तय कर संकरी नदी शहर पहुँचती है। उद्गम स्थल से संकरी के जल का स्वरूप एकदम निर्मल, स्वच्छ और बेदाग रहती है, लेकिन जैसे ही यह गाँव की सीमा छूती है यह मैली होनी लगती है। कवर्धा शहर में प्रवेश करते ही इसे गन्दगी, कचरा और प्रदूषण से सराबोर कर दिया जाता है।
अब स्वच्छ व निर्मल संकरी नदी एक मैली व गन्दी नदी बन जाती है। इसके बाद भी हम इसका बेदर्दी से दुरूपयोग कर रहे हैं। शहर में केवल दो किलोमीटर की दूरी तक बहने वाली संकरी नदी में रोजाना लगभग 21 लाख लीटर गन्दा पानी बहा देते हैं। इसके बाद भी यह आगे जाकर लोगों को किसी-न-किसी रूप से अपनी सेवा दे रही है। नदी में रोजाना 21 लाख लीटर गन्दा पानी डाल रहे कभी इसके जल से सिंचित भूमि में फसल लहलहाते थे।
इसके जल का उपयोग लोग पवित्र गंगाजल की तरह करते। बारह महीने इसका स्वच्छ जल कल-कल, छल-छल की मधुर ध्वनि करता बहता रहता। इस जल से शहर के साथ ही गाँवों की भी प्यास बुझती थी। जल से जुड़ी हर आवश्यकताएँ इसके जरिए दूर हो जाती थी, लेकिन अब प्रदूषण की मार से इसका स्वच्छ जल भी प्रदूषित हो चुका है। इसका जल पीना तो दूर नहाने के लायक भी नहीं रहा।
शहर की जीवन रेखा यह 'संकरी गंगा' अब प्रदूषण व अन्य कारणों से अपने ही अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रही है। शहर की जीवनरेखा संकरी नदी में नालियों के जरिए प्रतिदिन लगभग 21 लाख लीटर गन्दा पानी बहा दिया जाता है। इस 21 लाख लीटर गन्दगी के चलते ही नदी जल के प्रदूषण का स्तर बेहद नीचे गिर चुका है और नदी जल का पीएच मान बढ़ने लगा है।
शासन ने गन्दे पानी को साफ करके नदी में बहाए जाने के लिये जल आवर्धन योजना तो बनाई है। लेकिन काम के कछुआ चाल के चलते नदी किनारे बन रहे जल शोधन संयंत्र ने सात साल बाद भी काम करना शुरू नहीं किया है।
संकरी नदी में प्रति महीने लगभग 630 लाख लीटर गन्दा पानी बहाया जाता है। इसके साथ ही वेस्ट मटेरियल भी नदी में ही फेंका जाता है। इसी के चलते संकरी नदी शहरी क्षेत्र में पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। आम निस्तार के साथ-साथ मवेशियों के पेयजल के लिये अब शुद्ध पानी नदी में नहीं है। संकरी नदी की 90 किमी की लम्बी यात्रा संकरी की कुल यात्रा 90 किलोमीटर की है।
कबीरधाम जिले में इसका बहाव क्षेत्र 83 किलोमीटर है। संकरी नदी के अन्तर्गत 40 कछार गाँव है। मतलब कुछ वर्षों पूर्व तक 40 गाँव नदी के भरोसे जीवित थे। लेकिन अब नदी के जरिए कुछ गाँवों में ही खेती के लिये पानी मिल पाता है। जबकि ईंट भट्ठों के लिये पूरा पानी ही निचोड़ दिया जाता है।
प्रदेशव्यापी जल संरक्षण व नदी तालाबों के जीर्णोंद्धार अभियान के तहत नदी के सकरहाघाट में हजारों हाथ नदी के गहरीकरण व सफाई के लिये उठे थे, लेकिन यह श्रमदान सिर्फ सांकेतिक बनकर ही रह गया। संकरी नदी के सकरहाघाट में अभियान के तहत नदी की साफ-सफाई के लिये जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी सबने मानव शृंखला बनाकर सफाई कार्य में अपनी प्रतिकात्मक भागीदारी निभाई थी, लेकिन यह प्रतिकात्मक बनकर ही रह गया।
बालको ने संकरी नदी की साफ-सफाई के नाम पर 25 लाख रुपए प्रशासन को दिये थे, जिसके तहत सकरहा घाट से बूढ़ामहादेव घाट तक दोनों ओर 400 फीट मिट्टी निकालकर सफाई करने की योजना थी। साथ ही सकरहाघाट के 5 एकड़ क्षेत्र में 5 फीट मिट्टी निकालकर जल रोकने के कार्य 25 लाख में होने थे, लेकिन महज कुछ स्थानों पर मिट्टी निकालकर इतिश्री कर ली गई।
यह मेहनत भी बेकार साबित हुई। करोड़ों की योजनाएँ, सालों से अधूरे शहर के गन्दे नालों के पानी से पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी संकरी नदी की सफाई के लिये नाली के पानी को साफ करके नदी में गिराए जाने को लेकर योजना तो बनाई गई, लेकिन इस योजना को मूर्त रूप लेते-लेते अब सात साल बीतने को हैं और नतीजा सिफर रहा है। जल आवर्धन योजना के तहत संकरी नदी के किनारे जल शोधन संयंत्र (वाटर फिल्टर प्लांट) की स्थापना की जानी है। यह कार्य लगभग 4 करोड़ 88 लाख रुपए खर्च कर अंजाम दिया जाना है।
फैल रही हैं बीमारियाँ
पानी में बैक्टीरिया ज्यादा होने से संक्रमण की बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं। बैक्टीरिया युक्त पानी से पीलिया या लीवर से सम्बन्धित बीमारियाँ हो जाती हैं। टर्बिडिटी और हार्डनेस अधिक होने से पेट में भारीपन तथा गैस और अपच की शिकायत होती है।
डॉ.नवीन खूबचंदानी, एमबीबीएस
खनन से तबाह हो जाएँगी प्रदेश की नदियाँ
पहाड़, चट्टान, जंगल और न जाने कितने दर्जन गाँव की प्यास बुझाते हुए 47 किलोमीटर का सफर तय कर संकरी नदी शहर पहुँचती है। उद्गम स्थल से संकरी के जल का स्वरूप एकदम निर्मल, स्वच्छ और बेदाग रहती है, लेकिन जैसे ही यह गाँव की सीमा छूती है यह मैली होनी लगती है। कवर्धा शहर में प्रवेश करते ही इसे गन्दगी, कचरा और प्रदूषण से सराबोर कर दिया जाता है।
पॉवर सरप्लस की दौड़ ने छत्तीसगढ़ के जंगलों और नदियों को खतरे में डाल दिया है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कराए जा रहे सर्वे की प्रारम्भिक रिपोर्ट के मुताबिक कोयला खदान और थर्मल पावर प्लांट्स पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। यही हाल रहा तो 80 साल में राज्य में जंगल पूरी तरह नष्ट हो जाएगा। इसकी वजह से नदियों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। साथ ही सामान्य तापमान के तीन से चार डिग्री सेल्सियस बढ़ने की आशंका है।भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय वृहद स्तर पर एक गोपनीय सर्वे करा रहा है। इसमें कई राज्यों के जंगल व नदी की वर्तमान और अगले 50 साल बाद की स्थिति पर रिपोर्ट माँगी गई है। इसका उद्देश्य है समय रहते जंगल व नदी को बचाया जा सके। इसके लिये छत्तीसगढ़ में भी एक टीम तैयार की गई है। इसमें गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट के डीन प्रो. एसएस सिंह प्रमुख हैं।
तीन साल से वे इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। गोपनीयता का हवाला देते हुए उन्होंने आँकड़े उपलब्ध कराने से तो मना कर दिया, लेकिन प्रारम्भिक रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष बताए। उनके अनुसार कोल खदानें और थर्मल पावर प्लांट्स पर्यावरण पर काफी खराब प्रभाव डाल रहे हैं। पावर सरप्लस बनने के लिये राज्य में कोयले की खदानें और थर्मल पॉवर प्लांटों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
प्रदेश के 44 प्रतिशत भाग में जंगल है, जो खनिज सम्पदा से परिपूर्ण है। खदानों से कोयला निकालने के लिये पेड़ काटे जा रहे हैं। अकेले नकिया कोल ब्लॉक के लिये चार लाख पेड़ों की बलि दी गई है। इससे जैव विविधता को खतरा है। थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयला व पानी के उपयोग से वायुमण्डल गर्म हो रहा है।
रायपुर, बिलासपुर व कोरबा जिला इसका उदाहरण है। यहाँ गर्मी में सामान्य तापमान हर साल एक से दो डिग्री बढ़ रहा है। यही स्थिति रही तो आने वाले 80 साल बाद राज्य में जंगल ही नहीं बचेगा। नदियाँ सूख जाएँगी। इससे उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। शासन को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
प्रदेश में वर्तमान स्थिति
प्रदेश में अभी 39 कोयला खदानें और 16 थर्मल पॉवर प्लांट हैं, वहीं 12 बन रहे हैं। कोरबा, कोरिया व सरगुजा जिले में ज़मीन के नीचे 50 हजार मिलियन टन कोयला है। देश के कोयला उत्पादन में हर साल छत्तीसगढ़ का योगदान 21 प्रतिशत से अधिक रहता है।
रायगढ़ व कोरबा में छह-छह, सुरजपुर व कोरिया में 11-11, सरगुजा में चार व बलरामपुर में एक कोयला खदान है। कोयले का उपयोग उद्योग-धन्धे व बिजली उत्पादन में ही किया जाता है। इसके चलते छत्तीसगढ़ पॉवर सरप्लस राज्य है। इसे बनाए रखने पेड़ों की बलि देकर खदानें बढ़ाई जा रही हैं।
नदियों को जोड़ने की कवायद
सर्वे के मुताबिक प्रदेश में 21 छोटी- बड़ी नदियाँ हैं। इनमें महानदी, शिवनाथ, इन्द्रावती, हसदेव, केलो, बाघ व माघ प्रमुख हैं, जहाँ गर्मी के दिनों में भी पानी का बहाव रहता है। इसके अलावा अरपा, लीलागर, सोम व आगर व मनियारी जैसी नदियाँ गर्मी के दिनों में सूख जाती हैं। ऐसी परिस्थिति में इन नदियों को जोड़ने की योजना है।
बताया गया कि प्रदेश की सभी नदियाँ जंगलों से होकर बहती हैं। वहाँ पेड़ों की जड़ें पानी को रोक लेती हैं। वहीं, देश के अन्य राज्यों में नदियाँ मुख्य रूप से पहाड़ों से निकलती हैं, इसलिये यहाँ इन नदियों को जोड़ने में दिक्कत नहीं आएगी।
सर्वे रिपोर्ट के 5 बिन्दु
1. पौधरोपण के साथ वृक्षों को बचाने पर अधिक बल दिया जाए।
2. जंगल में खदानें, वृक्षों को बचाने नए प्लान की जरूरत।
3. थर्मल पावर से निकलने वाले संस्पेंडेट पार्टिकल्स खतरनाक।
4. नदियों में बाँध बनाकर रोके गए जल का सदुपयोग जरूरी।
5. जैव विविधता बनाए रखने पशु-पक्षियों का सरंक्षण महत्त्वपूर्ण।
इनका कहना है
भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जंगल व नदियों के संरक्षण को लेकर सर्वे कराया जा रहा है। प्रारम्भिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के पर्यावरण को बढ़ते कोयल खदानों व थर्मल पावर प्लांटों से खतरा है। उम्मीद है कि सर्वे पूरा होने के बाद केन्द्र व राज्य सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएँगी। इसमें नदियों को जोड़ने की भी योजना है।
प्रो. एसएस सिंह, डीन, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय
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