छतरपुर जिला, पूर्वकालिक, रजवाड़ी रियासती क्षेत्र है, जिसकी भौमिक संरचना बड़ी विचित्र रही है। दक्षिणी भूभाग पहाड़ी, पठारी वनांचलीय क्षेत्र रहा है जिसमें बिजावर, किसानगढ़, बड़ा मलहरा एवं वक्स्वाहा परिक्षेत्र आता है। यह दक्षिणी क्षेत्र समुद्रतल से लगभग 600 फुट ऊँचा है। मध्य का भूभाग भी कुछ ऊँचा है तो उत्तरी पश्चिमी एवं पूर्वी भाग ढालू है। दक्षिणी एवं मध्य का पूर्वी भाग पहाड़ी है जो समुद्रतल से 1200 से 1600 फीट तक ऊँचे हैं। छतरपुर जिले की पश्चिमी सीमा पर काठन एवं धसान नदी प्रवाहित हैं तो पूर्वी सीमा पर केन नदी प्रवाहित है। केन नदी राजनगर के नारायणपुरा गाँव के पास लगभग 75 फीट ऊपर से गिरकर ‘स्नेह प्रपात’ बनाए हुए है। सागर से महोबा तक छतरपुर जिले से गुजरने वाली सड़क जिला के पानी को विभाजित करती है। बरसाती धरातलीय जल सड़क के पश्चिमी भाग (वाम पार्श्व) का धरातलीय जल काठन एवं धसान में बहकर पहुँचता है, जबकि पूर्वी अंचल का (दायीं ओर का) केन नदी में चला जाता है।
सामान्यतः जिले का ढाल उत्तर पश्चिम की ओर होने से जिले का धरातलीय जल केन एवं धसान नदियों के द्वारा उत्तर दिशा को क्षेत्र से बाहर ही चला जाता है। जिले का पानी जिले से बाहर निकल जाने से जिले की भूमि प्यासी ही रहती है। परिणामतः जिला की लगभग 40 प्रतिशत गरीब आबादी रोटी की तलाश में बुन्देलखण्ड क्षेत्र से बाहर भटकती फिरती रही है। छतरपुर जिले की बैंसकार एवं बरानों नदियों के अलावा अन्य सभी उरमल, भड़ार, कुटनी, सिंहारी, सैमरीं, बरैना, केल, वेसा, खोरार एवं कुटना जैसी छोटी नदियों का धरातलीय जल केन नदी में जा गिरता है।
पहाड़ों एवं टौरियों की पटारों में से बरसाती धरातलीय जल के प्रवाह को रोकने के लिये तालाबों के निर्माण की योजना सर्वप्रथम चन्देल राजाओं ने तत्पश्चात बुन्देला, परमार एवं पड़िहार राजाओं एवं जागीरदारों ने बनाई थी। उनके पूर्व बुन्देलखण्ड का यह दक्षिणी भूभाग मात्र चरागाही वनाच्छादित अविकसित क्षेत्र था। जहाँ कहीं पानी ग्रीष्म ऋतु तक नदियों-नालों में ठहरा रह जाता था, वहाँ लोग अस्थायी तौर के बगैर टपरे, झोपड़ियाँ बनाकर रहा करते थे। पशुपालन करते हुए खरीफ की वर्षा आधारित फसलें कोदों, धान, लठारा, समां, उर्द आदि पैदा कर अपना उदर पोषण कर लेते थे। महुआ, अचार, बेर, मकोरा, तैंदू आदि वनफल भी लोगों के जीवन के आधार थे। जहाँ का जल समाप्त हो जाता तो लोग अन्य जल स्रोत तलाश कर वहाँ बस जाते थे। तात्पर्य कि चन्देल युग के पूर्व दक्षिणी बुन्देलखण्ड के लोगों का जीवन घुमन्तू था।
चन्देल राजाओं ने बरसाती धरातलीय प्रवाहित होते जल को, पहाड़ियों, टौरियों की पटारों की नीची भूमि में पत्थर की बड़ी-बड़ी पैरीं सीढ़ी क्रम में आगे-पीछे लगवाकर मध्य में मिट्टी भरवा कर सुदृढ़ चौड़े बाँधों वाले तालाबों का निर्माण कराकर रोक दिया था। तालाबों में जल थमा तो क्षेत्र के लोगों का घुमन्तु जीवन थम गया। तालाबों के बाँधों पर अथवा बाँधों के पूँछा पर पानी के आश्रय से बस्तियाँ बसीं। तालाबों के पीछे बहारूं एवं टरेटे (खेती की भूमि) बने। क्षेत्र में तालाबों का जितना निर्माण होता गया, उतना अधिक विकास होता गया। विकास पानी पर निर्भर है। पानी है तो रोटी है। पानी रोटी है तो मानव का ठहराव है। मानव के ठहराव के लिये छतरपुर जिले में चन्देलों एवं बुन्देलों, परमारों ने गाँव-गाँव में एक अथवा एक से अधिक एक-दूसरे से जुड़े हुए (LINKED) तालाबों का निर्माण कराया था। जिनमें प्रमुख निम्नांकित हैं-
छतरपुर नगर के तालाब- छतरपुर नगर की बस्ती सन 1707 ई. के बाद की यानी छत्रसाल बुन्देला के समय की ही है। नगर का विकास भी बुन्देल शासकों के समय से ही हुआ था। धसान नदी के पूर्व का डंगई भूभाग छत्रसाल बुन्देला ने अपने अधिकार में कर लिया था। उनकी राजधानी पन्ना थी। पन्ना नरेश हिन्दूपत (1758-76 ई.) ने छतरपुर में सुन्दर महल बनवाया था। कालान्तर में सरनेत सिंह राजनगर के निजी सचिव एवं प्रबन्धक सोने जू पंवार ने सरनेत सिंह (पन्ना-राजनगर) के मृत्योपरान्त केन-धसान के मध्य क्षेत्र पर अपना अधिकार कर छतरपुर को अपनी राजधानी बना लिया था। नगर विकास के साथ ही छतरपुर में जल सुविधा हेतु तालाबों का निर्माण हुआ था।
(1) राव सागर तालाब- यह तालाब राव हिम्मत राय कायस्थ ने सन 1736 ई. में बनवाया था। तालाब पर संकट मोचन मन्दिर भी राव साहब ने बनवाया था। इसी तालाब पर सन 1763 में महन्त आधारदास ने धनुषधारी मन्दिर बनवाया था।
(2) प्रताप सागर तालाब- प्रताप सागर तालाब का निर्माण छतरपुर के राजा प्रताप सिंह ने सन 1846 ई. में बनवाया था। तालाब के बाँध पर प्रतापेश्वर मन्दिर भी उन्हीं ने बनवाया था। महल के पास प्रताप सागर बाँध पर एक मन्दिर गौरीशंकर महादेव का है जो बूँदा हजूरन ने बनवाया था।
(3) किशोर सागर तालाब- किशोर सागर तालाब भी राजा प्रताप सिंह ने बनवाया था। यह तालाब पन्ना के राजा किशोर सिंह के नाम से बनवाया गया था। राजा प्रताप सिंह (1816-54), पन्ना के राजा किशोर सिंह के संरक्षक सन 1832 ई. में बनाए गए थे।
(4) ग्वाला मगरा तालाब- यह तालाब भी आधुनिक (परमार शासन कालीन) है, जो निस्तारी सुन्दर तालाब है।
इन बड़े तालाबों के अलावा 5. रानी तलैया : रामबाग के पास एवं 6. साँतरी तलैया हैं।
खजुराहो के तालाब- खजुराहो (खजूरपुरी) चन्देल काल से भी पूर्व की बस्ती रही है। सन 641 ई. में बौद्ध धर्म के मठों-विहारों के अवलोकनार्थ चीनी राजदूत ह्वेन च्यांग यहाँ आया था, जिसने अपने भ्रमण विवरण में खजूरपुरी जुझौति (ची. ची. टू.) ब्राम्हणों की राजधानी होने का उल्लेख किया है। वह लिखता है कि यहाँ ब्राम्हण धर्म के मन्दिर अधिक हैं। खजुराहो में बौद्ध मठ एवं विहार हैं जो जतकारी क्षेत्र में हैं 17वीं सदी में बस्ती कितनी कहाँ थी? इस पर इतिहास मौन है। यह निश्चित है कि जुझौती के पतन पश्चात खजुराहो को चन्देल राजाओं ने अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक राजधानी बनाकर विश्व में अनूठे, अजीब, चमत्कारिक और कलात्मक मन्दिर बनवाये थे, जो मानवीय भावनाओं और क्रियाओं की यथार्थता को दर्शाते हैं। यहाँ योग, भक्ति एवं भोग के दर्शन एक साथ होते हैं। तीर्थ क्षेत्र होने से यहाँ निस्तारी जल प्रबन्धन हेतु अनेक तालाबों का निर्माण चन्देल राजाओं ने कराया था।
(1) निनौरा तालाब- खजुराहो के तब के एक टोला बस्ती ननौरा में निनौरा तालाब बनाया गया था, जो चन्देली है। निनौरा तालाब 30 हेक्टेयर भराव क्षेत्र का था। इसके पास ब्रम्हा मन्दिर था। इसे खजुराहो तालाब भी कहते हैं। वर्तमान में लोग ननौरा तालाब को पुरानी बस्ती का तालाब बतलाते हैं। कुछ लोग बतलाते हैं कि निनौरा तालाब के बाँध पर ब्रम्हा मन्दिर नहीं बल्कि शिव मन्दिर था। सन 1335 ई. में निनौरा को इब्नबतूता यात्री ने देखा था जोकि एक मील लम्बा था।
(2) शिवसागर तालाब- इसे प्राचीन काल में ‘बिलवा तड़ाग’ कहा जाता था, जिसे यशोवर्मन चन्देल राजा ने सन 1002 ई. में बनवाया था। इसका वर्णन राजा धंग के दूसरे शिलालेख में है। यह मतंगेश्वर मन्दिर के पास है जो 17 हक्टेयर भराव क्षेत्र का था। वर्तमान में इसे शिव सागर कहते हैं।
(3) खजुराहो - परिक्षेत्र में एक छोटे प्रेम सागर के अतिरिक्त 200 बावड़ियाँ हैं।
(4) ललगुवाँ सागर- यह चन्देली तालाब खजुराहो परिक्षेत्र के ललगुवाँ गाँव में है। पास में शिव मन्दिर है।
राजनगर के तालाब- राजनगर का पुराना नाम बमनी खेरा था। परन्तु कालान्तर में पन्ना राजघराने में राजगद्दी को लेकर विवाद हो गया था। राजा सरनेत सिंह क्रूर स्वभाव के थे जिस कारण उन्हें पन्ना के बजाय खजुराहो के पास बमनी खेरा में रखा गया था। उनकी सुरक्षा व्यवस्था एवं प्रबन्धक के तौर पर सोने जू पंवार की नियुक्ति की गई थी। राजा सरनेत सिंह के आने पर बमनी खेरा टौरिया पर किला बनवाया गया था जिसका नाम राजनगर किला एवं बस्ती राजनगर नाम से प्रसिद्ध हो गई थी।
राजनगर बस्ती का क्रमिक विकास हुआ। सुन्दर बगीचे एवं भव्य मन्दिर बनाए गए थे। उस समय राजनगर केन-धसान के मध्य भूभाग का मुख्य प्रशासनिक स्थान था।
जलसैन सागर तालाब- किला के पूर्वी अंचल में चूना-पत्थर के सुन्दर घाटों वाला, बस्ती से लगा मनोरम जलसैन सागर तालाब है। यह बड़ा तालाब है।
थनैरा तालाब- राजनगर में थनैरा दूसरा बड़ा तालाब है जो खजुराहो-महोबा मार्ग पर है। इनके अलावा 3 तालाब छोटे हैं।
ध्रुव सागर (धुवेला) मऊ महेवा- धुवेला तालाब का प्राचीन नाम ध्रुव सागर कहा जाता है। बुन्देलखण्ड गजेटियर के पृ. 5 (छतरपुर) पर उल्लिखित है कि मऊ सहानिया परिहार राज्य की राजधानी थी, जहाँ के राजा ध्रुव ने मऊ में अपने नाम पर ध्रुव सागर सरोवर का निर्माण कराया था। यह विशाल एवं मनोरम तालाब है। कालांतर में मऊ को छत्रसाल बुन्देला ने अपना ठिकाना बना लिया था। तालाब के बाँध पर दर्शनीय महल का निर्माण कराया था। वर्तमान में धुवेला बाँध पर निर्मित धुवेला महल में छत्रसाल संग्रहालय स्थापित है।
जगत सागर सहनिया (मऊ)- नौगाँव-छतरपुर बस मार्ग पर दायीं ओर ग्राम मऊ बस्ती है तो सड़क के बाएँ किनारे सहनिया ग्राम है। सहनिया में विशाल चन्देली तालाब है जिसके बाँध पर शिवजी का चन्देली मठ है। छतरपुर के दीवान धनपत राय के प्रबन्धक काल में सन 1878 ई. में इस तालाब से सिंचाई हेतु जल निकासी के लिये सुलूस लगवाकर नहर निकाली गई थी।
आलीपुरा तालाब- आलीपुरा रियासत के जमाने का तालाब लगभग 30 एकड़ का बड़ा तालाब है। इससे आलीपुरा एवं धर्मपुरा के लोगों का निस्तार होता है।
इमलिया तालाब, इमलिया- राजनगर क्षेत्र के इमिलया ग्राम में एक चन्देली तालाब है जिससे थोड़ी-सी सिंचाई की जाती है। सामान्यतः यह जन निस्तारी तालाब है।
खौंप का तालाब- खौंप ग्राम छतरपुर नगर के उत्तर में है। यहाँ बड़ा चन्देली तालाब है। इससे छतरपुर नगर को जल प्रदाय किया जाता है।
हमा तालाब- छतरपुर नगर के उत्तर-पूर्व में हमा ग्राम है। यहाँ बड़ा चन्देली तालाब है। बाँध पर देवी-देवताओं के देवालय हैं।
द्रौड़ सागर तालाब- छतरपुर से उत्तर-पूर्व में द्रौंनी ग्राम है जो नौगाँव महोबा मार्ग पर 3 किलोमीटर पूर्व को अन्दर है। यहाँ प्राचीन चन्देली तालाब द्रौड़ सागर है। बाँध पर एक मन्दिर है।
निवारी तालाब- छतरपुर-महोबा बस मार्ग पर ग्राम निवारी में सुन्दर चन्देली तालाब है।
कुसुम सागर, बाल वरुण सागर- राजनगर क्षेत्र में है। कुसुम सागर से सौ हेक्टेयर एवं वरुण सागर से 450 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। यह दोनों चन्देल युगीन तालाब हैं।
राईपुरा एवं भैंसखार तालाब- इन दोनों तालाबों से थोड़ी-थोड़ी सिंचाई होती है। दोनों चन्देलकालीन हैं।
अँधयारा गाँव के तालाब- अँधयारा गाँव विजावर परिक्षेत्र में है। इस ग्राम के लोग तालाबों का ही पानी पीते हैं। अँधयारा गाँव में नन्नों तालाब है। गाँव के दायीं ओर गोबिन्द सागर तालाब है। गाँव से संलग्न तीसरा बड़ा तालाब है। चौथा तालाब नया तालाब है।
ईश्वर सागर ईशानगर- इसे बैद का ताल और बदौरा का ताल भी कहा जाता है। यह तालाब ग्राम के पूर्व में बैद के खेरे में है। यह तालाब जगतराज बुन्देला के समय का है। राजा जगतराज धसान नदी के किनारे की पहाड़ी पर बसे रामपुर कुर्रा में बने किले में रहा करते थे। एक बार जगतराज बीमार पड़े, जिनकी चिकित्सा यहाँ के वैद्य ने की थी। जब राजा जगतराज स्वस्थ हो गए तो वैद्य से प्रसन्न हो गए। जिन्होंने रामपुर कुर्रा से पूर्व में 6 किलोमीटर की दूरी पर वैद्य के पुरबा में वैद्य के नाम से सुन्दर बड़ा ‘वैद्य का ताल’ बनवा दिया था। तालाब के बाँध पर ईश्वर का मन्दिर भी जगतराज ने ही बनवाकर बस्ती का नाम ‘ईश्वर नगर’ रखा था जिसे लोग ईशा नगर कहने लगे थे।
राम सागर तालाब लौड़ी- लौड़ी को लवपुरी कहा जाता था। यहाँ एक सुन्दर तालाब ‘रामसागर टैंक’ है जो चन्देलकालीन है। झूमर तालाब झूमर, झिन्ना तालाब, तुला तालाब, गोपी तालाब एवं झरकुआ आदि चन्देलयुगीन हैं।
आमखेरा तालाब- चन्देली तालाब है जिससे लगभग 40 एकड़ भूमि की सिंचाई होती है।
भिटारिया तालाब बछौन- चन्देल काल में यह क्षेत्र बच्छराज के अधीन था। सर्वप्रथम इसे बछीनुस्थान (बनाफर) बोला जाता था, जिसे कालान्तर में बछौन कहा जाने लगा था। बछौन में सन 1376 ई. में राजा भिलमा देव ने एक बड़ा विशाल बाँध बनवाकर बड़ा तालाब बनवाया था जिसे भिटारिया तालाब कहा जाता है।
धौला तालाब पिपट, मोती सागर, बंसिया तालाब बंसिया, जोरन तालाब, बक्सोई तालाब एवं नंदगाँव तालाब ऐसे तालाब हैं जिनसे 100 से 250 हेक्टेयर की सिंचाई होती है। यह सभी चन्देलकालीन तालाब हैं।
किशनगढ़ के तालाब- किशनगढ़ एक प्राचीन गाँव है। यहाँ एक प्राचीन गौंडवानी किला है, जिसका बुन्देला काल में कैदखाने के रूप में उपयोग होता रहा। किशनगढ़ में प्राचीन दो सुन्दर तालाब हैं। प्रथम तालाब ग्राम के उत्तरी पार्श्व में है जबकि दूसरा तालाब किला से संलग्न नदी का बना हुआ है। इसके घाट बड़े सुन्दर बने हुए हैं।
बगहा तालाब- ग्राम बगहा में बगहा तालाब है। इस तालाब से लगभग 350 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है।
लालपुर तालाब- छतरपुर के नजदीक लालपुर ग्राम है। यहाँ ग्राम नाम से एक बड़ा चन्देली तालाब है।
विजय सागर बारीगढ़- यह महोबा के चन्देल राजा विजय वर्मा का बनवाया हुआ है। यह बड़ा विशाल तालाब है। इसके तीन ओर बारीगढ़ किला है जिसे चन्देल काल में विजयगढ़ किला कहा जाता था। विजय सागर सरोवर को स्थानीय लोग कजलया तालाब भी कहते हैं।
कूंड़न तालाब, देरी- देरी ग्राम छतरपुर के पास ही है। यहाँ कूंड़न नाम का प्राचीन चन्देली तालाब है। तालाब के बाँध पर श्री हनुमानजी की लेटी हुई दर्शनीय प्रतिमा है।
उजरा तालाब, उजरा- उजरा ग्राम छतरपुर से लगभग 30 किमी. दूरी पर है। यहाँ उजरा नामक चन्देली तालाब है। तालाब में कमल खूब पैदा होता है। इससे थोड़ी-सी सिंचाई भी होती है।
हरिहर तालाब, हरपालपुर- आलीपुर के राजा हरिसिंह ने अपने नाम पर हरपालपुर नगर बसाया था तथा कस्बा के लोगों के निस्तार हेतु हरिहर तालाब का निर्माण कराया था। वर्तमान में देखभाल एवं सफाई-मरम्मत के अभाव में यह कचरा से पट रहा है।
गोरा सागर, गोरा- छतरपुर के पास ग्राम गोरा में प्राचीन बड़ा चन्देली तालाब है। इससे लगभग एक हजार हेक्टेयर की रबी की फसल की सिंचाई की जाती है।
भगवां गाँव में भगवा तालाब, धुवारा में गौंड कालीन तालाब, रगौली में बड़ा चन्देली तालाब, पथरगुवा एवं कसार में चन्देली तालाब हैं जो सुन्दर एवं बड़े तालाब हैं।
नैनागिरि का तालाब- बक्स्वाहा ग्राम से 24 किलोमीटर दक्षिण में नैनागिरि पहाड़ है। पहाड़ के शीर्ष पर पत्थर काटकर एक सुन्दर सरोवर का निर्माण चन्देल काल में हुआ था। तालाब के मध्य जैनमत का मन्दिर है। यह दर्शनीय स्थल है।
बिजावर नगर के तालाब- बिजावर बुन्देलों के पूर्व गौंड शासकों का क्षेत्र था जहाँ विजयशाह गौंड़ राजा था। उसी विजयशाह का बसाया हुआ बिजावर कस्बा है। कालान्तर में यह छत्रसाल बुन्देला के प्रपौत्र जगतराज जैतपुर के पौत्र एवं पहाड़सिंह के पुत्र वीरसिंह को स्वतन्त्र राज्य के रूप में दिया गया था। उन्हीं वीरसिंह ने किला बिजावर का निर्माण कराकर किले के पूर्वी भाग में किले से संलग्न विशाल एवं सुन्दर तालाब का निर्माण कराया था जिसका नाम ‘राजा सागर’ है। तालाब के मध्य में महादेव जी की मढ़िया है, जिस कारण इसे महादेव सागर भी कहते हैं।
एक दूसरा तालाब कृष्ण सागर तालाब है जो बिजावर नगर के पश्चिमी भाग में है। यह निस्तारी तालाब तो रहा ही है। वर्तमान में कृष्ण सागर के पानी से 200 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई भी होती है।
इनके अतिरिक्त रमना तालाब, पठार तालाब एवं नया तालाब बिजावर के नजदीकी संलग्न जंगली भूभाग में हैं।
महाराजगंज के तालाब- महाराजगंज, बड़ा मलहरा से 5 किमी. की दूरी पर पूर्व दिशा में है। यहाँ पन्ना के राजा हिन्दूपत ने एक छोटा किला एवं किले के पूर्वी पार्श्व में संलग्न तालाब बनवाया था। एक दूसरा तालाब महाराजगंज से खटोला मार्ग पर जंगल में है।
खटोला के तालाब- खटोला महाराजगंज से लगा हुआ स्थल है। आज यह वीरान है। गौंडवाना शासनकाल में यह सूरज शाह गौंड राजा की राजधानी था। राजा बाबू पहाड़ पर सूरजशाह गौंड़ के किले के भग्नावशेष खड़े हैं। खटोला नगर के चारों ओर 7 तालाब थे जो नगर परकोटा के अन्दर थे। राजा बाबू पहाड़ की पटार में किले के उत्तरी भाग में 3 तालाब थे जो फूट चुके हैं। शेष बिलाई तालाब, नया तालाब, गढ़ी तलैया एवं कनकुआ तालाब अभी भी दृष्टव्य हैं।
सटई तालाब- सटई ग्राम बिजावर-छतरपुर बस मार्ग पर है। यहाँ एक सुन्दर चन्देलकालीन तालाब है। इसमें सिंघाड़ा पैदा होता है। तालाब से कुछ सिंचाई भी की जाती है।
गढ़ी मलहरा के तालाब- गढ़ी मलहरा छतरपुर-महोबा बस मार्ग पर प्राचीन प्रसिद्ध गाँव रहा है। यहाँ प्राचीन चन्देलकालीन एक विशाल तालाब है। इसके अलावा यहाँ से दो छोटे तालाब भी हैं।
गढ़ी मलहरा गाँव के पूर्व दिशा में महाराजपुर गाँव हैं, वहाँ भी विशाल एवं मनोरम चन्देली तालाब है। यहाँ पानी की खेती अधिक होती है। इनके अतिरिक्त हिम्मतपुरा, बूढ़ा बाँध, अतरार, राईपुरा, बूदौर गाँवों में भी सुन्दर तालाब हैं। बरोही गाँव में भवानी सागर तालाब है।
बसारी तालाब- बसारी प्राचीन ग्राम है। यहाँ चन्देलकालीन सुन्दर सरोवर है। इसका जल निर्मल रहता है। तालाब में नौकायन भी हो सकता है। यह साफ-सुथरा सरोवर है। पर्यटन गाँव बसारी का यह एक आकर्षण है।
बैनी सागर तालाब, बैनीगंज- वमीठा के पश्चिमी पार्श्व में बैनीगंज के पास बैनी सागर (तालाब) बाँध सन 1974 में बनवाया गया था, जिससे क्षेत्र की 4168 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है।
राजगढ़ (चन्द्र नगर) के तालाब- छतरपुर-पन्ना बस मार्ग पर स्थित चन्द्रनगर कस्बा के दक्षिणी पार्श्व में मनियागढ़ पर्वत की तलहटी में राजगढ़ पैलेस स्थित है। पहले यहाँ अच्छी सुन्दर बस्ती थी। अब यहाँ की बस्ती के खण्डहर ही हैं। यदि कुछ शेष है तो पन्ना के राजा हिन्दूपत बुन्देला का बनवाया हुआ आलीशान महल है और परिसर में निर्मित सुन्दर सरोवर हैं। यहाँ के सरोवरों में तकिया तालाब, भवानी तालाब एवं कजलया मुख्य हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते रहते हैं। मनियागढ़ पहाड़ के ऊपर भी चन्देली किले के अन्दर पहाड़ का पत्थर काटकर निर्मित किए गए तालाब हैं। पहाड़ के दक्षिणी एवं पश्चिमी भागों में भी चन्देलकालीन तालाब हैं।
उपर्युक्त तालाबों के अलावा भी चन्देलकालीन प्राचीन बस्तियों में सुन्दर सरोवर रहे हैं जिनके नाम हैं-
सड़वा तालाब, चौपरा तालाब, भीमकुण्ड तालाब, कांगड़ा तालाब, शायगढ़ तालाब, ग्योलारा तालाब, बक्सोई तालाब, महर कुआँ तालाब, पनिया तालाब, पनवारी तालाब, बंधा का लक्ष्मण सागर, दलीपुर तालाब, बमनौरा तालाब, कम्मोद पुरा तालाब, मलगुवां तालाब, सारनी तालाब, पुर का तालाब, बड़ा तालाब बड़ा मलहरा, घुवारा तालाब, अनगौर तालाब, झींझन तालाब, बगौता तालाब, मातगुवाँ तालाब, ठकुर्रा तालाब, बकतला तालाब, ओटा पुरवा तालाब, बत्तयारा तालाब, मछरया तालाब, रायचूरा तालाब, लामटी तालाब मोतीगढ़ तालाब, दिलारी तालाब, सिद्ध सागर तालाब, फुटवारी तालाब, कीरत सागर बृजपुर, बरम सागर तालाब, रामनगर तालाब, भूरे पुरा तालाब, खड्डी तालाब, कितपुरा तालाब, चुरपारी तालाब, पलटा तालाब, परेई तालाब, पहरा में 2 तालाब, चौवारा तालाब, जोरन तालाब, रक्षपुरवा तालाब, कैंडी तालाब, वदौरा तालाब, गुढ़ का तालाब, भगवारा तालाब, चन्दला तालाब, मनौरा का तालाब, सैंधपा तालाब, गकरया तालाब, हर्ष नगर तालाब, दिलारी तालाब, पड़रिया तालाब, नया गाँव तालाब, लखैरा तालाब थरा तालाब, तुला तालाब, गोपी तालाब, खर्रोही तालाब एवं मड़देवरा तालाब हैं। हन्नापुरवा में 6 एकड़ भराव का तालाब भी खजुराहो के पास है।
छतरपुर जिला पूर्व कालीन छतरपुर, बिजावर, आलीपुर, नैगुवां रिवई लुगासी, गर्रौली, गौरिहार, चरखारी (ईशानगर) और घुवारा मलहरा (पन्ना) राज्यों का एक कम्पाउंड क्षेत्र है। जिला के सिंचाई विभाग रजिस्टर में कुल 84-85 तालाब पंजीबद्ध हैं। जबकि ग्राम पंचायत बार चन्देली, बुन्देली राजाओं के समय बने छोटे-बड़े तालाबों की सूची बनाई जाए तो तालाबों की संख्या 300 से अधिक ही है। कुछ फूट गए, कुछ मिट्टी से पट गए तो कुछ चलते दारों ने अपने निजी हक में करा लिये। पुराने तालाबों की उम्र लगभग 800 से 1000 वर्ष हो चुकी है। उनमें गौंडर भर चुकी है। बाँधों से रिसन होती है। मरम्मत कागजों पर हो जाती है। गाँव का तालाब, गाँव-समाज का प्राण होता है। गाँव का अमृतकुण्ड होता है। व्यक्ति अपने घर के चुआना सुधार लेता परन्तु अपने तालाब की मिटती दशा को क्यों नहीं देखता? गाँव वाले सामूहिक तौर पर उसका गहरीकरण, दुरुस्तीकरण क्यों नहीं कर लेते? तालाब में पानी नहीं रहेगा अथवा कम भरेगा तो रोटी की तलाश में गाँव वाले ही गाँव छोड़कर भागेंगे। सरकारें और कर्मचारी कभी भी नहीं भागेंगे। आजादी के इस युग में जल संग्रहण-संरक्षण गाँव वाले ही करें। यह पुण्य का कार्य है। किसान भी जागरूक रहें एवं पानी होते समय, पानी की बर्बादी नहीं होने दें। सिंचाई करते समय, पानी को खेतों से बाहर नालों में न बहने दें।
छतरपुर जिला के प्रभावी नेता और जनता पानी को सहेजकर अपने क्षेत्र में बनाए रखने को पहले भी सचेत नहीं रहे। सन 1912 ई. में यूनाइटिड प्रॉविन्स की ब्रिटिश सरकार ने छतरपुर-पन्ना सीमा पर प्रवाहित केन नदी के गंगऊ स्थान पर बाँध बनाया और बाँध के पानी का लाभ बाँदा जिले के किसानों का दिलाया था, सन 1978 ई. में अर्थात जब जिले के लोग स्वतंत्र थे। अपना भला-बुरा के अपुन ही जिम्मेदार थे। तब उत्तर-प्रदेश सरकार ने बन्ने नदी पर रनगुवां गाँव (छतरपुर) में रनगुवां बाँध बना लिया था। भूमि छतरपुर की, नदी छतरपुर की, पानी छतरपुर की भूमि पर संग्रहीत हुआ, परन्तु लाभ उत्तर प्रदेश के किसानों को हुआ। हमारा पानी परन्तु हम प्यासे ही रहे।
बुन्देलखण्ड जो विन्ध्यांचल का शिखर भूभाग, ऊँट की कूबड़ पर बसा जनपद है। जो वर्षा होती रही है, उसका धरातलीय जल ऊँचाई से प्रवाहित होकर नालियों-नालों के द्वारा पुराने तालाबों में इकट्ठा हो जाता रहा। लेकिन अब वर्षा कम या अनियमित होने लगी। कारण कि वर्षा लाने वाले जंगलों के ऊँचे लम्बे पेड़ (ऐंटीना) हम सबने नष्ट कर दिए, जिससे नियमित भारी पानी कम ही बरसने लगा है। अस्तु पानी का संकट बढ़ेगा ही।
बुन्देलखण्ड में भविष्य में पानी के संकट को मद्देनजर रखते हुए ‘नदी जोड़ो’ योजना के क्रियान्वयन की प्रक्रिया चालू की गई है। उक्त ‘नदी जोड़ो’ योजना भी छतरपुर जिला के उत्तरी ढालू भूभाग से क्रियान्वित की जा रही है जिसका नाम है ‘केन-बेतवा लिंकिंग प्लान’।
बुन्देलखण्ड का ढाल दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व को है। दक्षिण-पश्चिम से सम्पूर्ण धरातलीय बरसाती जल उत्तर को प्रवाहित होता है। केन नदी बछौन के आस-पास से लौड़ी परगने होकर, महोबा के दक्षिणी भाग से एक बड़ी नहर द्वारा बेतवा नदी से लिंक होगी। तात्पर्य कि यह लिंकिंग छतरपुर जिले के निचले उत्तरी भूभाग से होने जा रही है। कहा जा रहा है और जनता-किसानों को बतलाया जा रहा है कि इस लिंकिंग से पूरे दक्षिणी बुन्देलखण्ड (छतरपुर टीकमगढ़ जिला) की भूमि सिंचित होगी। शायद सम्भव हो जाए, जबकि मैं इसे एक बड़ी अफवाह मानता हूँ, क्योंकि इससे केवल यू.पी. के महोबा-बाँदा क्षेत्र को ही लाभ मिलेगा। हाँ, वर्तमान में इंजीनियरिंग की अजीब-अजीब तरकीबें चल पड़ी हैं जिनसे गंगा बंगाल की खाड़ी से उल्टे ऊँचे हिमालय पर चढ़ा दी जाए। शायद पैर (चरण) धोने का जल सिर (शीर्ष) पर पहुँचकर शरीर को स्नान कराने लगे। परन्तु मैं कहता हूँ कि वर्तमान केन-बेतवा लिंकिंग से छतरपुर, बिजावर, बड़ा मलहरा, बल्देवगढ़, टीकमगढ़, निवाड़ी जतारा को पानी नहीं दिया जा सकेगा।
हाँ, ‘बेतवा-केन लिंक’ करना है तो चन्दैरी के राजघाट बाँध के वाम भाग से एक बड़ी नहर ललितपुर महरौनी, टीकमगढ़ के पूर्वी अंचल से गुलगंज, बिजावर अंचल के सटई क्षेत्र से बसारी के पूर्वी अंचल से बरियारपुर पर केन नदी से लिंक कर दिया जाए। ताकि बेतवा की बाढ़ का अतिरिक्त जल राजघाट बाँध से नहर द्वारा केन में, मध्य क्षेत्र के तालाबों-नालों को भरता हुआ जा पहुँचेगा। पानी ऊपरी भाग से नीचे ढाल की ओर भागता ही है। ऐसा न होने से बुन्देलखण्ड हमेशा सूखा अकाल भोगता रहेगा। बेतवा-केन लिंकिंग चंदेरी से बरयारपुर के क्षेत्र के हित में रहेगी। इसी से क्षेत्र के लोगों की रोटी-रोजी की समस्या हल होगी।
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बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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