छोटी नदियों का संरक्षण जरूरी

Nadi
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नदियों में ही मनुष्य का जीवन बसता है। इसलिए इसे जीवनदायिनी कहा जाता है। सारी सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुई हैं, जो अब तक हैं भी, इसलिए इसे जीवन से जोड़ा जाता है। लेकिन मसला यह है कि जहां देश की बड़ी नदियों को बचाने के लिए सरकार ने पूरा विभाग ही बना डाला तथा हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए लेकिन छोटी-छोटी नदियों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया और न ही जा रहा है। छोटी नदियों की उपेक्षा से किसानों को सूखे का दंभ झेलना पड़ रहा है।

नदी और सरोवर प्राकृतिक धरोहर हैं, इन्हें बचाने की जिम्मेदारी मानव समाज की है। यदि निजी स्वार्थ के चलते लोगों ने समझदारी न दिखाई तो इनसे भी हाथ धोना पड़ सकता है। फतेहपुर के द्वाबा क्षेत्र से निकलने वाली ससुर खदेरी नदी लगभग 42 ग्रामों की सीमाओं को छूती हुई सैदपुर ग्राम के पास यमुना नदी में मिलती है। यह नदी 42 गांवों के लगभग 1,32903 की जनसंख्या को लाभान्वित करती है। कालांतर में इस नदी से हजारों हेक्टेयर कृषि सिंचित होती थी। अब आलम है कि वह पानी के लिए तरसती है। कभी बरसात में यह नदी उग्र रूप धारण किया करती थी। लोगों की मान्यता है कि यह नदी अपने सतीत्व के लिए प्रसिद्ध थी। लेकिन अब यह हालत है कि भारी भरकम जलधारा नाले के रूप में सिमट गई है।

इस तरह की छोटी नदियां देश भर में बहुत हैं। अधिकतर नदियों के अब केवल नाम ही शेष हैं और बाकी कुछ की अंतिम सांसे चल रही हैं। कारण है बढ़ता प्रदूषण और इन छोटी नदियों के किनारे लोगों का अतिक्रमण। उसमें बरसाती नालों को गिरने की जगह रोका जा रहा है, जिससे नदी का पूर्ण रूप से शोषण हो रहा है। खदेरी नदी के साथ इसी तरह की समस्या है, इसे अगर नहीं रोका गया तो एक दिन इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। सरकार ने गंगा और यमुना नदियों को बचाने की मुहिम तो तेज की है, साथ में छोटी-छोटी नदियों को बचाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए। उत्तराखंड की प्रलय का एक कारण नदियों के किनारे अतिक्रमण का होना था।

छोटी नदियों को बचाने के लिए उनके प्रवाह को नियमित रूप से चलने देना चाहिए। जलप्रवाह रुकने से प्रदूषण फैलेगा। इन नदियों का साफ रहना जरूरी हैं, तभी गंगा या यमुना जैसी नदियां भी प्रदूषित होने से बचेंगी। उत्तर प्रदेश नदियों के मामले में धनी राज्य है। प्रदेश सरकार ने कुछ छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई है, छोटी नदियों से कृषि को बहुत फायदा होता है। सूखे की स्थिति में इन नदियों का जल उपयोगी साबित होता है, ऐसी नदियों को पुनर्जीवित करके किसानों का भला किया जा सकता है तथा पानी की कमी भी पूरी हो सकती है।

धरती की उथली पुथली परतों को साफ-सफाई का जिम्मा प्रकृति ने नदियों को सौंपा है। यह निरंतर धरती को साफ करती रहती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी लगातार मिलना जलप्रवाह को टिकाऊ बनाता है। वर्षा जल के धरती में रिसने से भूजल स्तर में बढ़ोतरी होती तथा नदी में उत्सर्जन से गिरावट आती है। वर्षाजल को नदियों तक निरंतर पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। प्रदूषण आदि के संकटों से नदियों को बचाने के लिए अलग रोड मैप तैयार करना होगा। ऐसा हुआ तो छोटी नदियां एक बार फिर जीवन संचार की संवाहक बनेंगी।

ईमेल :- vivektripathi@lucknowsatta.com
 

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