आज रात 2.30 बजे दिल्ली एनसीआर में तेज भूंकप के झटके महसूस किये गए इसके कुछ घंटों बाद उत्तराखंड में भी सुबह 6:27, 4.3 तीव्रता का भूकंप आया। अभी तक राज्य में किसी के हताहत होने या संपत्ति के नुकसान की सूचना नहीं है।
नेपाल में बीती रात आए 6.6 तीव्रता के भूकंप में 6 लोगों की मौत हो गई। भूकंप के बाद कई अन्य लोग घायल हो गए है । दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र ने भी नेपाल को झकझोरने वाले उच्च तीव्रता वाले भूकंप के झटकों का अनुभव किया।भूकंप में मरने वाले छह लोग पश्चिमी जिले दोती के रहने वाले थे। तीन मृतक एक ही परिवार के थे। पांच अन्य घायलों का स्थानीय अस्पताल में इलाज चल रहा है। भूकंप में कुछ संपत्तियों और घरों को भी नुकसान पहुंचा है।
भूकंप का केंद्र उत्तर प्रदेश की आबादी वाले शहर पीलीभीत से करीब 158 किलोमीटर उत्तर पूर्व में था। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भूकंप बुधवार सुबह 1:57 बजे 10 किमी की गहराई पर आया। नेपाल में बड़े पैमाने पर भूकंप आने से पहले, देश के पश्चिमी हिस्से में पिछले दिन 10 किमी की गहराई पर 4.8 तीव्रता का एक और भूकंप आया था। नेपाल पिछले कुछ सालों से भूकंप की चपेट में रहा है। 2015 में नेपाल में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप में लगभग 9,000 लोगों की जान चली गई थी। इस दौरान भूकंप से देश की संपत्ति और संपत्ति को भी भारी नुकसान हुआ था। नेपाल में इस साल तरीबन 28 भूकंप आ चुके हैं. जिनमें यह भूकंप रिक्टर पैमाने पर सबसे ज्यादा तीव्र था. राष्ट्रीय राजधानी और उत्तराखंड में रविवार सुबह करीब 8:33 बजे 4.5 तीव्रता का भूकंप आया था । वही इससे पहले भी उत्तराखंड में भूकंप के छोटे छोटे झटके महसूस किया जा सके है
छोटे - छोटे भूकंप किस बात का संकेत दे रहे है
अब तक हम सभी जान चुके हैं कि भूखण्डों की सापेक्षीय गति में अन्तर के कारण इनके छोर पर निरन्तर जमा हो रही ऊर्जा ही भूकम्प का कारण है। ऐसे में यह विचार कि यदि इस ऊर्जा का सुरक्षित निस्तारण हो जाये तो भूकम्प का खतरा कम हो जायेगा औचित्यपूर्ण है। शायद आपने भी कभी इस बारे में ऐसा ही कुछ सोचा हो।
इसी तर्क को आधार बना कर कई बार छोटे भूकम्पों को क्षेत्र में जमा हो रही ऊर्जा को अवमुक्त करने में सहायक बताते हुये इनकी तुलना प्रेशर कुकर के सेफ्टी वाल्व से कर दी जाती है और छोटे भूकम्पों के आते रहने से बड़े भूकम्प के खतरे के कम होने से सम्बंधित तर्क दे दिये जाते हैं। शायद भूकम्प के परिमाण को नापने वाले लघुगणकीय पैमाने को ठीक से न समझ पाना इन तर्कों का कारण हो।
यह सच है कि बड़े भूकम्पों की ही तरह छोटे भूकम्प भी किसी क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलों के कारण जमा हो रही ऊर्जा को अवमुक्त करते हैं, परन्तु इन छोटे भूकम्पों द्वारा अवमुक्त की गयी ऊर्जा का परिमाण हमारी सोच से कहीं ज्यादा कम होता है।
जैसा कि हम जानते हैं ‘क’ परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा ‘क-1’ परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा का 31.6 गुना होती है। ऐसे में किसी भी स्थान पर आसन्न 8.0 परिमाण के भूकम्प के खतरे को कम करने के लिये 7.0 परिमाण के 32 या फिर 6.0 परिमाण के लगभग 1000 भूकम्पों की आवश्यकता होगी। अगर कम परिमाण के इतने भूकम्प आ जाते हैं तो तब शायद बड़े भूकम्प का खतरा निश्चित ही कम हो जायेगा परन्तु वास्तविकता में छोटे भूकम्प ज्यादा तो आते हैं पर इतने भी ज्यादा नहीं कि इनसे बड़े भूकम्प का खतरा कम हो पाये।
अतः छोटे भूकम्पों के आते रहने से बड़े भूकम्प का खतरा कम होने की धरणा गलत व भ्रामक है। छोटे भूकम्पों से बड़े भूकम्प का खतरा तो निश्चित ही कम नहीं होता परन्तु यह छोटे भूकम्प हमें अवश्य ही बड़े भूकम्प की याद दिलाते हैं और तैयार रहने की चेतावनी देते हैं। पृथ्वी की सतह पर अचानक महसूस किये जाने वाले कम्पनों को हम भूकम्प या भूचाल कहते हैं। यहाँ उत्तराखण्ड के लोग स्थानीय भाषा में इन्हें चलक कहते हैं जिसका तात्पर्य है कि यहाँ के लोग भूकम्प के झटके प्रायः महसूस करते रहे हैं।
इन कम्पनों के कारण कभी-कभी घरों, मकानों एवं अन्य संरचनाओं को भारी नुकसान होता है परन्तु भूकम्प के यह झटके हमेशा ही इतने तेज नहीं होते हैं। यह इतने धीमे भी हो सकते हैं कि संवेदनशील उपकरण न होने पर हमें इनके आने का पता ही न चल पाये। आपको शायद विश्वास न हो पर हमारे द्वारा महसूस न किये जाने वाले यह छोटे भूकम्प काफी बड़ी संख्या में नियमित रूप से आते हैं।
भूस्खलन या बाढ़ की तरह हमें अपने आस-पास भूकम्प आने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं दिखायी देता है और फिर यह आते भी तो काफी लम्बे समय के बाद हैं। शायद इसी के कारण कई बार लोगों को ऐसा लगने लगता है कि उनका क्षेत्र पहली बार भूकम्प से प्रभावित हो रहा है। ऐसे में भूकम्प के कारणों की खोज में वह प्रायः पिछले कुछ समय में क्षेत्र में हुयी घटनाओं की विवेचना करते हैं और भूकम्प को क्षेत्र में घटित किसी अपशकुन या मान्यता के टूटने या अन्य किसी असामान्य घटना से जोड़ कर देखने लगते हैं और इसे दैवीय प्रकोप मान लेते हैं।
भूकम्प आने के सबसे पुराने अभिलेख ईसा पूर्व 1831 में चीन के सैन्डोंग प्रान्त से मिलते हैं और ईसा पूर्व 780 में झो (Zhou) साम्राज्य के समय से चीन में आये भूकम्पों के नियमित अभिलेख उपलब्ध हैं।
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) |
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भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
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