मध्यप्रदेश का चुटकी जैसा दिखने वाला गांव चुटका, अब देश-दुनिया में मिसाल बन गया है। यहां के मामूली से दिखने वाले लोगों ने अपनी ताकत से सरकार को झुका दिया है। भारी जन दबाव को देखते हुए चुटका परमाणु बिजली-घर की पर्यावरण मंजूरी के लिए 24 मई को होने वाली जन सुनवाई को रद्द करना पड़ा। इसके लिए प्रशासन ने भारी खर्च करके सर्वसुविधायुक्त भव्य टेंट लगाया था लेकिन उसे उखाड़कर वापस ले जाना पड़ा।
जन सुनवाई रद्द होने पर 24 मई को ही करीब 2 हजार लोगों ने जुलूस निकाला। जुलूस में बड़ी संख्या में आदिवासियों ने हिस्सा लिया जिसमें बुजुर्गों से लेकर छोटे स्कूली बच्चे भी शामिल थे। लोगों ने विरोध जताने के लिए काली पट्टी बांधी हुई थी। तख्तियां लेकर चलने वाली महिलाएं हवा में हाथ लहराकर नारे लगा रही थीं। जुलूस के बाद एक जन सभा भी हुई जिसमें सभी ने परमाणु बिजली-घर नहीं लगने देने का संकल्प दुहराया।
मंडला जिले के चुटका में परमाणु बिजली-घर प्रस्तावित है। 1400 मेगावाट क्षमता वाले दो परमाणु संयंत्र लगाने की योजना है। लेकिन स्थानीय जनता इसे किसी भी कीमत पर नहीं चाहती और पूरी ताकत से इसका विरोध कर रही है। उन्हें विस्थापन के दर्द का अहसास है। इस इलाके के डेढ़ सौ से ज्यादा गांव 90 के दशक में बरगी बांध से उजड़ चुके हैं और न तो उन्हें पर्याप्त मुआवजा मिला है न ही ज़मीन। वादे हमेशा की तरह वादे ही रह गए और गांव के गांव बर्बाद हो गए।
यह अत्यंत निर्धन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। पहाड़ और जंगलों के बीच आदिवासी रहते हैं। नर्मदा नदी और बरगी बांध के किनारे होने के बावजूद इनके खेत प्यासे हैं। बारिश की खेती व डूब की खेती (यह खेती जैसे-जैसे जलाशय का पानी खाली होता जाता है, उस जमीन में की जाती है) करते हैं। कोदो, कुटकी, ज्वार, मक्का जैसे मोटे अनाज होते हैं। लेकिन इससे गुजारा नहीं होता। बडी संख्या में इधर-उधर पलायन करना भी पड़ता है। लेकिन रोज़गार, पढाई-लिखाई की व्यवस्था न करने के बजाय फिर एक बार इन पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन वे दोबारा विस्थापित होने के लिए तैयार नहीं हैं।
चुटका परमाणु बिजली-घर से तीन गांव विस्थापित होंगे और एक गांव को आवासीय कॉलोनी के लिए उजाड़ा जाएगा। और करीब 20 किलोमीटर दायरे के कई गांव इससे प्रभावित होंगे। यहां के झनकलाल परते कहते हैं सरकार ने पहले हमें बरगी बांध से उजाड़ा और अब परमाणु बिजली-घर से उजाड़ने की तैयारी कर रही है। हम इसका विरोध करेंगे।
इस परमाणु बिजलीघर का विरोध न केवल स्थानीय स्तर पर हो रहा है बल्कि जबलपुर व भोपाल के कई सामाजिक व जन संगठन विरोध के लिए सामने आ गए हैं। यहां इसके विरोध के लिए चुटका परमाणु संघर्ष समिति का गठन कर लिया है और उसके तहत कई विरोध प्रदर्शन व धरना किए जा रहे हैं। भोपाल के एक संगठन के कुछ नौजवान एक हफते से गांव-गांव घूमकर लोगों में चेतना जगाने का काम कर रहे थे।
यहां की चुटका,कुन्डा व टाटीघाट की ग्राम पंचायतों ने भी प्रस्ताव पारित कर इसका विरोध जताया है। इस संबंध में राष्ट्रपति से लेकर संबंधित विभागों को इसे परमाणु बिजलीघर की योजना रद्द करने का आग्रह किया गया है।
बरगी बांध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा कहते हैं कि हम इस परमाणु संयंत्र का विरोध बहुत दिनों से कर रहे हैं लेकिन पहले लोग हमें नोटिस में नहीं लेते थे। लेकिन जापान में फुकुशिमा के बाद लोगों ने हमारी बात सुनी और अब तो गांवों में भी महिलाएं अपने प्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों से सवाल करने लगी हैं।
जन आंदोलन के समन्वय से जुड़े व चुटका परमाणु संघर्ष समिति को अपना समर्थन देने आए संदीप पांडे कहते हैं दुनिया के कई देशों में जब परमाणु बिजली-घर बंद किए जा रहे हैं और नए संयंत्र नहीं खोलने के निर्णय लिए जा रहे हैं तब भारत में इन्हें खोलना, किसी भी तरह से उचित नहीं है। परमाणु संयंत्रों के खतरों से बचा नहीं जा सकता।
समाजवादी जन परिषद से जुड़े सुनील ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि रावतभाटा में परमाणु संयंत्र के विकिरण से कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं। उन्हें इसका प्रत्यक्ष अनुभव है क्योंकि वे उसी इलाके से ताल्लुक रखते हैं।
हाल ही में आंदोलन को समर्थन देने के लिए जबलपुर आए भारत जन विज्ञान जत्था के राष्ट्रीय संयोजक व परमाणु विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा, नई दिल्ली के डॉ. सौम्या दत्ता का कहना है कि यह भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र है। इसे न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया तथा राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) नागपुर द्वारा तैयार रिपोर्ट में इसे छुपाया गया है।
जबकि सरकार की आपदा प्रबंधन संस्था, भोपाल द्वारा मध्यप्रदेश की भूकंप संवेदी क्षेत्रों का जो विवरण तैयार किया गया है, उसके अनुसार मंडला व जबलपुर अति संवेदनशील क्षेत्र हैं। उल्लेखनीय है कि 1997 में इसी क्षेत्र में भूकंप आ चुका है, जिससे मकान ध्वस्त हुए थे और कुछ मौतें भी हुई थीं। इस खतरे को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।
उनके मुताबिक इस परमाणु संयंत्र को करीब 7 करोड़ 25 लाख 76 हजार घन मीटर पानी प्रतिवर्ष की आवश्यकता होगी। जिससे बरगी बांध की सिंचाई क्षमता घट जाएगी। और सबसे बड़ा खतरा है जो प्रदूषण युक्त पानी जलाशय में वापस छोड़ा जाएगा उससे जलाशय की मछलियां व विकिरण फैल जाएगा। प्रदूषित मछलियों को खाने व नर्मदा में पहुंचने वाले इस पानी को पीने से मनुष्य, पशु व फसलें विकिरण से प्रभावित होंगी। इससे कैंसर, विकलांगता जैसी बीमारियां होने की आशंका है। ऐसा और भी अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है।
अगला सवाल है कि परमाणु बिजली का विकल्प क्या है? जानकारों के मुताबिक इसके कई विकल्प मौजूद हैं। देश में सौर उर्जा, पवन उर्जा में अकूत संभावनाएं हैं। फिर देश में जितना बिजली उत्पादन होता है उसमें परमाणु बिजली का ढाई से तीन फीसदी योगदान है। इसे छोड़ने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, ऐसा कई विशेषज्ञ कहते हैं। इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए जिससे हम इन खतरों से बच सकें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और विकास संबंधी मुद्दों पर लिखते हैं)
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