चुप हो गई धारा

प्राकृतिक सौंदर्य के डूबने से जो क्षति हुई है, वह बांध से बनने वाली बिजली और उससे होने वाली आय से कहीं अधिक है। एक ओर ‘अतुल्य भारत’ देश में पर्यटन बढ़ाने की ओर अग्रसर है, वहीं इतनी सुंदर प्राकृतिक धरोहर डुबा दी गई। यह एक धार्मिक स्थल तो था ही, इसे आसानी से थोड़ी बुद्धि और कल्पनाशीलता के उपयोग से पर्यटन विभाग एक महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल बना सकता था।

इंदौर में रहते हुए धारा जी का नाम सुना जरूर था पर जाना कभी न हो सका। वहां गोल पत्थर अपने आप बनते रहते हैं। वहीं नर्मदा नदी का सुंदर जल-प्रपात था। दूर-दूर से लोग छोटे-बड़े शिवलिंग और जल-प्रपात देखने वहां पहुंचते थे। धारा जी के दर्शन पहली बार कलाकार मित्र पंकज अग्रवाल की तस्वीरों के माध्यम से हुए। पत्थर और पानी का एक खूबसूरत संवाद। कुछ और तस्वीरें भी देखीं। धारा जी का धार्मिक महत्त्व जाना और नर्मदा के इस अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य को भी। मगर कुछ माह पहले जब अपने कलाकार मित्रों के साथ धारा जी पहुंचा तो पानी में वह विशाल जल-प्रपात डूबा हुआ था। पत्थर और पानी की अठखेलियां थम चुकी थीं। मन में अवसाद भर देने वाला विराट सन्नाटा नर्मदा के दोनों पाटों के बीच पसरा था। नदी को कभी इतना उदास नहीं देखा था। उसकी उदासी का असर यह हुआ कि लगभग चुप-सा रहने लगा। शायद अपने भीतर इस अनुभव को सहेजने का मौका और कोना तलाशने लगा। मन के बहुत भीतर सुरक्षित एकांत में एक अनुभव स्थापित हुआ।

कल्पना तक नहीं की थी कि इस तरह का अवसाद मेरी प्रिय नदी नर्मदा या प्रकृति से ही होगा। बिन आवाज की नदी और उसके भीतर समाया सुंदर और महत्त्वपूर्ण जल-प्रपात। मनुष्य अगर प्रकृति को सुंदर नहीं बना सकता तो उसे नष्ट करने का अधिकार उसे किसने दिया? बांध से रुके हुए पानी में न सिर्फ जल-प्रपात डूबा है, बल्कि कई एकड़ उपजाऊ भूमि और जंगल भी। वृक्षों के पालन-पोषण के काम में लगे वन विभाग से खामोशी से हजारों वृक्षों को जिंदा डूबते हुए कैसे देखा गया? इसी जल-प्रपात की वजह से नदी के किनारे बसे गांव का नाम भी धारा जी है। अब यह गांव भी डूबने वाला है। पर लोगों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं देखने को मिलती। गांव के लोग असमंजस की स्थिति में दिन काट रहे हैं। क्या उन्हें अपने पुरखों की जमीन और घर एक दिन अचानक छोड़ने पड़ेंगे?

हम चित्रकार पूरे गांव में बिखर गए। अपनी-अपनी दृष्टि और कल्पना से रचनाशील हो गए। पीड़ित नदी से अपने संवाद को महसूस किया और दृश्य बनाए। शाम को गाते-बजाते खुली छत पर असीम आकाश में तारे देखते-देखते सो गए।

प्रगति और विकास नाम के दो असुरों के लोभ में कुछ लोगों ने शायद नदी को तालाब में बदलने या उसे बंधक बनाने का ‘अधिकार’ हासिल कर लिया है! ये यहां के बाशिंदे भी नहीं हैं। बिना स्थानीय लोगों से सलाह लिए उन्हें अचानक अपने सैकड़ों साल पुराने पुरखों के घरों से निकाला जा रहा है। बिजली बनेगी, रोशनी होगी, व्यापार बढ़ेगा, सुविधाएं जुटेंगी, विकास होगा, लेकिन न नदी का, न आसपास के सैकड़ों गांवों और उनमें सदियों से एक परंपरा सहेजे लाखों लोगों का। वे लोग जो कपास, गेहूं, दाल, मिर्च आदि की फसलों से गरिमा के साथ अपना जीवन-यापन करते हैं, देश-प्रदेश के आर्थिक लोभ के सहचर हैं। निमाड़ की काली मिट्टी सोना उगलती है। मध्यप्रदेश का गेहूं पूरे देश में पहले नंबर पर है। किसान से उसकी जमीन और घर छीन लिया जाएगा तो उसके पास बचेगा क्या? किसानों के देश में किसान अब गरीब का और किसानी गरीबी का पर्याय बनती जा रही है। यह अच्छा संकेत नहीं है। जगह-जगह बिल्डरों ने अच्छे दाम चुका कर किसानों की जमीन खरीदनी शुरू कर दी है।

इधर मीडिया के लिए भी धारा जी का डूबना कोई बड़ी खबर नहीं है और न ही शहरी प्रजा को इससे कोई सरोकार है। शहरी मति घर में बिजली, पानी और विकास चाहती है और गांव के किसान अपनी जमीन। बिना प्रकृति का अहित किए भी तथाकथित विकास और प्रगति संभव है। बिजली पैदा करने के दूसरे भी कई रास्ते हैं, जो कम खर्चीले हैं। पर इनमें सरकार की कोई रुचि नहीं है। करोड़ों के बजट से एक बांध तैयार होता है। करोड़ों का घपला होता है। गरीब किसान की आवाज ऊपर नहीं पहुंच पाती।

खैर, प्राकृतिक सौंदर्य के डूबने से जो क्षति हुई है, वह बांध से बनने वाली बिजली और उससे होने वाली आय से कहीं अधिक है। एक ओर ‘अतुल्य भारत’ देश में पर्यटन बढ़ाने की ओर अग्रसर है, वहीं इतनी सुंदर प्राकृतिक धरोहर डुबा दी गई। यह एक धार्मिक स्थल तो था ही, इसे आसानी से थोड़ी बुद्धि और कल्पनाशीलता के उपयोग से पर्यटन विभाग एक महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल बना सकता था। दुख इस बात का नहीं है कि हमारी आज की पीढ़ी धारा जी का सुंदर प्रपात अब नहीं देख पाएगी, बल्कि इसका है कि हमारे पढ़े-लिखे बुजुर्ग, समाजसेवी और नागरिक इस मसले पर मौन रहे। उम्मीद अब भी है। अगर हम चाहें तो वह धारा फिर से बोल सकती है।

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