वर्ष 2008 में पहली बार भारत ने चंद्रयान मिशन के तहत दुनिया को चंद्रमा में पानी होने की जानकारी दी थी। तभी से विश्वभर के वैज्ञानिक चाँद पर पानी के स्त्रोत को जानने के लिए शोध कर रहे है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गए नए शोध से यह बात निकलकर सामने आई है कि चांद पर पानी कहीं और से नहीं बल्कि धरती से गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि चंद्रमा पृथ्वी के वायुमंडल से पानी निकाल रहा है और उसमे मौजूद छोटे-छोटे छिद्रो में यही पानी हजारों-लाखों सालों से बर्फ के रूप में जमा हो रहा है।
शोध में चांद पर करीब 840 क्यूबिक मील पानी के मिलने की पुष्टि हुई है। जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये अमेरिका की विश्व की आठवीं सबसे बड़ी झील कही जाने वाली हूरोन को भरने के लिए काफी है। यूनिवर्सिटी ऑफ अलास्का फेयरबैक्स का शोध यह बताता है कि जब चंद्रमा पृथ्वी के मैग्रेटोस्फीयर के हिस्से के नजदीक से गुजरता है तब वह पानी बनाने के लिए जरूरी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को अपनी और खींचता है। और जब उस ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का मिश्रण होता है तो उससे चांद पर पानी बनता है और वह बर्फ के आकार में तब्दील हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में सबसे अधिक पानी बर्फ के रूप में मौजूद है। और चांद पर मौजूद अधिकतर पानी छोटे- छोटे ग्रहों और धूमकेतुओं से जमा किया जाता है।
अगर वैज्ञानिकों के इन दावों में सत्यता है तो वह उस थ्योरी को सही साबित करेगा जिसमें यह दवा किया गया था कि छोटे ग्रहों और सौर हवा के माध्यम से भी पानी आता है। जैसे ही छोटे ग्रह चंद्रमा की सतह से टकराते होंगे वैसे ही उनमें मौजूद पानी चंद्रमा के तल पर गिरता होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर पानी होने की अगर पूरी पुष्टि हो जाती है। तो यह हमारे लिए और मानव बस्तियाँ बसाने की कल्पना करने वालो के लिए भी सुखद होगा।
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