चंबल से रूठे प्रवासी पंरिदे

चंबल मे पर्याप्त पानी और भोजन की उपलब्धता व अनुकूल जैविकीय परिवेश होने के चलते इन बेजुबान प्रवासी पक्षियों के झुंड प्रतिवर्ष रूस, साइबेरिया, उत्तर चीन से पूर्वी पाकिस्तान व अफगानिस्तान के रास्ते भारत के सीमा में प्रवेश करके नवंबर के पहले सप्ताह में पंचनद इलाके में अपना डेरा जमा लेते हैं और गर्मियां शुरू होते ही यह सभी अपने वतन को लौट जाते हैं। सर्दी के मौसम में प्रवासी परिंदों की आवाजाही अब से कुछ सालों पहले तक चंबल घाटी को अर्से से गुलजार करती रही है लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि चबंल से प्रवासी परिंदे अपनी दूरी बना रहे हैं। इसके पीछे हैवीटाट को डिस्टर्ब होना माना तो जा ही रहा है साथ ही शिकार को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। दुर्दान्त बीहड़ की सुरम्य और शांत वादियों की खूबसूरती में सर्दियां बिताने के लिए हजारों मील की यात्रा तय करके चंबल-यमुना के तट पर प्रवासी पक्षी प्रतिवर्ष आते रहे हैं। अफसोस, इन विदेशी मेहमानों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। इसका एक कारण इनके समूहों पर शिकारियों की काली नजर पड़ना और दूसरा प्रकृतिवास से छेड़छाड़ है।

चंबल मे पर्याप्त पानी और भोजन की उपलब्धता व अनुकूल जैविकीय परिवेश होने के चलते इन बेजुबान प्रवासी पक्षियों के झुंड प्रतिवर्ष रूस, साइबेरिया, उत्तर चीन से पूर्वी पाकिस्तान व अफगानिस्तान के रास्ते भारत के सीमा में प्रवेश करके नवंबर के पहले सप्ताह में पंचनद इलाके में अपना डेरा जमा लेते हैं और गर्मियां शुरू होते ही यह सभी अपने वतन को लौट जाते हैं। इस दौरान कुछ प्रजातियां जैसे कि साइबेरियन क्रेन, डेमोसिल क्रेन, वारहैडिड व सोबलर प्रजनन के लिए चंबल के रेतीले इलाके में अंडाणुओं के निषेचन की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। एक दशक से प्रकृतिवास से छेड़छाड़ और शिकारियों की दृष्टि पड़ने से अब इनकी संख्या कम होने लगी है।

पर्यावरणीय संस्था सोसाइटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के जैव विविधता कार्यक्रम के विशेषज्ञ डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि प्रवासी पक्षियों की लगभग 60 प्रजातियाँ अनुकूल जलवायु और भोजन की उपलब्धता के कारण भारत का रुख करती हैं। इनमें एक दजर्न से अधिक प्रजनन के लिए चंबल यमुना के तटवर्तीय इलाके में आते हैं। चौहान प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या का कारण इनके अत्यधिक शिकार व प्रकृतिवास को ही मानते हैं। वर्ष 2000 के बाद से अप्रत्याशित रूप से प्रवासी पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है । साइबेरिया, रूस और चीन से आने वाले आधा सैकड़ा प्रजातियों के समूहों को भाता है पंचनद प्रमुख प्रवासी पक्षी पेलिंकस, बारहैडिड, स्पूनबिल, पिंगटिल, कारमोरेंक, सोबलजरर, कामन क्रेन, डेमोसिल क्रेन, टर्न, रफ, सेंटपाइपस, मरगेंजर, पावलर, गारजनी, रेड क्रिस्टिडकोजर, कामनपोचर्ड।

चंबल घाटी से रूठे प्रवासी पक्षीमौसम में बदलाव के साथ ही चंबल सेंचुरी में सुदूर देशों से बर्ड्स का आना शुरू हो गया है। सुदूर देशों से आने वाली कुछ बर्ड्स को चंबल सेंचुरी मे आते देखकर दिमाग में ये प्रश्न आना लाजमी है कि आखिर ये बर्ड्स हजारों किलोमीटर का सफर तय करके आखिर किसी विशेष जगह ही क्यों आते हैं? ऐसा माना जाता है कि कभी-कभी कुछ विशेष प्रजाति के पक्षी किसी जगह विशेष पर इसलिए पहुंच जाया करते हैं क्योंकि उनके पूर्वज वहां पर आया करते थे ।

चंबल नदी के किनारे रहने वाले सैकड़ों वासिंदों का कहना है कि पहले की तरह चंबल में अब प्रवासी पक्षियों की आमद नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि लगातार पक्षियों का शिकार से पक्षी उस जगह को छोड़ देते हैं। डॉ.राजीव चौहान का कहना है कि एक समय करीब 250 से लेकर 300 से अधिक की प्रजाति के प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला चंबल में रहता था लेकिन अब इस संख्या मे बड़ी तादाद मे एकाएक भारी गिरावट आती जा रही है। इटावा मुख्यालय पर रहने वाले लोग वैसे चंबल नदी मे आने वाले प्रवासी परिंदों को देखने के लिए बीहड़ की राह नापा करते थे लेकिन अब ऐसा देखा जा रहा है कि वे लोग बीहड़ का रूख नहीं कर रहे हैं इटावा के रहने वाले विनोद विधौलिया का कहना है कि वे हर साल अपने दोस्तों के साथ चंबल नदी के किनारे प्रवासी परिंदों को देखने के लिए जाया करते थे लेकिन अब दो सालों से देख रहे है कि पहले की तरह प्रवासी परिंदे हम लोगों को देखने के लिए नहीं मिल रहे हैं। इस परिवर्तन को देख कर पर्यावरण प्रेमी खतरे का संकेत मान रहे हैं क्योंकि उनको ऐसा लगता है कि अगर ऐसी ही राह रही तो एक ना एक दिन चंबल से प्रवासी परिंदों की विदाई तय है।

चंबल घाटी से रूठे प्रवासी पक्षी

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