चंबल में पीने का साफ पानी का मुद्दा गड़बड़ा सकता है सभी दलों का समीकरण

पीने के साफ पानी की गंभीर समस्या पर कई राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों से बात की गई तो करीब-करीब सबका एक ही जैसा जवाब मिला जिसमें कहा गया है कि कोई भी समस्या हो उसका निपटारा अधिकार मिलने पर ही खत्म कराया जा सकता है लेकिन कोई भी चंबल में पीने के साफ पानी को मुद्दा बनाने के पक्ष में नहीं है इसलिए सालों से साफ पानी की दरकार लिए मायूस बैठे चंबल के वासिंदो को चुनाव के बाद साफ पीने के पानी मिलने की कोई संभावना नहीं बनती दिख रही है।देश के सबसे बड़े जनमतीय महासमर संसदीय चुनाव के ऐलान के साथ ही हर ओर वोट मांगने का सिलसिला चल निकला है। मिनरल वाटर का इस्तेमाल करने वाले राजनेताओं के सामने चंबल के मतदाताओं की ओर से साफ पानी का मुद्दा उठा कर नई मुसीबत खड़ी कर दी गई है। ऐसा लगने लगा है कि चंबल में पीने का साफ पानी का मुद्दा अगर प्रभावी हो गया तो सभी दलों का समीकरण गड़बड़ा सकता है।

पांच नदियों के इकलौते संगम स्थल वाले इटावा जिले में अभी कोई अहम चुनावी मुद्दा राजनैतिक दलों के पास नहीं है। लेकिन चंबल घाटी में नदियों के किनारे रहने वाली एक बड़ी आबादी पीने के साफ पानी को लेकर राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों को घेरने की पूरी तरह से मना बना चुकी है क्योंकि आजादी के बाद से अभी तक बीहड़ी गांव में पीने के साफ पानी के नाम पर लोगों को यमुना,चंबल,क्वारी,सिंधु और पहुज नदियों का ही पानी पीना पड़ रहा है। पीने के साफ पानी का यह ऐसा मुद्दा हो सकता है जिससे हर राजनैतिक दलों का समीकरण गड़बड़ा सकता है।

इटावा संसदीय सीट के प्रत्येक दल के पत्याशी चंबल इलाके में वोट मांगने के लिए तो जा रहा हैं लेकिन कोई भी चंबल के किनारे जिंदगी बसर करने वालों के लिए साफ पानी मुहैया कराने का कोई भरोसा नहीं दे पा रहा है ऐसा लगने लगा है कि साफ पानी की समस्या जैसी आजादी के बाद से बरकरार है आज भी बरकरार बनी रहेगी। पीने के साफ पानी की समस्या से इटावा जिले की इटावा सदर, भरथना और जसवंतनगर तीनों विधानसभाओं के कुछ न कुछ हिस्से की आबादी जूझ रही है। वैसे तो हर गांव में पीने के पानी के लिए सरकारी हैंडपंपो को लगाया जा चुका है लेकिन इसके बावजूद यह सरकारी हैंडपंप साफ पानी दे पाने की दशा में नहीं है इस वजह से चंबल, यमुना, क्वारी, सिंधु और पहुज नदियों के किनारे रहने वाले इन्हीं नदियों के पानी का इस्तेमाल पीने के पानी के तौर करते आ रहे हैं। इन नदियों का पानी पीने से कई किस्म की यहां के वासिंदों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इन हालातों में गंभीर बीमारियों से तो लोग जूझते रहे हैं और आज भी जूझ रहे हैं।

नदियों के किनारे रहने वाली खासी तादात में आबादी आज भी इन्हीं पांचों नदियों के पानी को अपने पीने के लिए लिए तो इस्तेमाल तो करती है ही इसके अलावा दैनिक दिनचर्याएं भी इन्हीं नदियों के पानी से हो रही है।

साफ पानी हमारे लिए कितना जरुरी है, जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर कोई आज साफ पानी पाने के लिए मिनरल वाटर का इस्तेमाल करने में जुटा हुआ है। शहरी इलाके में मिनरल वाटर का इस्तेमाल तो आम बात है लेकिन बेचारे क्या करें गाँव वाले जो दो जून की रोटी जुटा पाने में कामयाब नहीं हो सकते साफ पानी आखिरकार जुटाऐंगे कहाँ से।

चंबल घाटी में पानी के लिए तरसते लोगदेश का इकलौता ऐसा जिला इटावा माना जा सकता है जहां पर पांच नदियों का संगम होने के कारण पंचनदा कहा जाता है इन नदियों में चंबल, यमुना, क्वारी, सिंधु और पहुज हैं। इन नदियों के किनारे रहने वाले अधिकांश लोग पीने के पानी के तौर पर इन्हीं नदियों पर आश्रित रहते हैं। सबसे अधिक पानी का इस्तेमाल चंबल नदी से किया जाता है।

चम्बल नदी के किनारे बसे सैकड़ों गाँव के बासिन्दे साफ पानी के लिए चम्बल नदी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं, चंबल नदी का पानी साफ है या नहीं ये सवाल बहस का नहीं है सवाल ये है कि जब सरकार कि ज़िम्मेदारी है कि वो अपनी प्रजा को साफ पानी मुहैया कराएगी फिर साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है। ये पानी किस तरह से मुहैया होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है, सरकारी आला अफसरानों ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है, कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है।

नतीजन इटावा जिले के चंबल नदी के आसपास के तकरीबन दो सौ गांवों के ग्रामीण अपना गला तर करने के लिए चंबल नदी का वह पानी पीने को बाध्य हो गए हैं, जहां जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं व शरीर की गर्मी शांत करते हैं।

करीब 10 सालों से चंबल घाटी के विकास के लिए करोड़ों रुपए के पैकेज की मांग करके सुर्खियों में आए लोक समिति के अध्यक्ष सुल्तान सिंह का कहना है कि वैसे तो चंबल में कई अहम समस्याएं हैं लेकिन इंसानी जीवन के मद्देनज़र अगर सरकार अपने वादे के अनुसार उसे पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा पाती है तो इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। चंबल इलाके में आजादी के पहले और बाद भी आज तक नदियों के पानी के सहारे अपना जीवन बसर कर रहे हैं लेकिन उनको सरकार की हीलाहवाली के कारण साफ पानी पीने के लिए नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अगर घाटी वासी चुनाव में राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों के सामने साफ पानी की दरकार वाली मांग रखते हैं तो कोई गलत नहीं है क्योंकि हर आदमी को साफ पानी मांगने का हक है।

डा.भीमराव अंबेडकर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय के पूर्व वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. के.एस. भदौरिया का कहना है कि अगर किसी भी इंसान को साफ पानी पीने के लिए शुरूआती दिनों से ना दिया जाए तो जाहिर है सामान्य इंसान की तरह से उसकी शारीरिक बनावट नहीं हो सकती। यह सब कुछ किसी भी आम इंसान के लिए सबसे घातक ही कहा जाएगा।

चंबल घाटी में पानी के लिए तरसते लोगवैसे तो पानी के लिए समरपंपों का इजादीकरण कर लिया गया है लेकिन गांव के लोग इतने संपन्न नहीं हैं कि समरपंपों को लगवा सकें इसलिए राजनेताओं के सामने इन मांगों को रखने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है।

पीने के साफ पानी की गंभीर समस्या पर कई राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों से बात की गई तो करीब-करीब सबका एक ही जैसा जवाब मिला जिसमें कहा गया है कि कोई भी समस्या हो उसका निपटारा अधिकार मिलने पर ही खत्म कराया जा सकता है लेकिन कोई भी चंबल में पीने के साफ पानी को मुद्दा बनाने के पक्ष में नहीं है इसलिए सालों से साफ पानी की दरकार लिए मायूस बैठे चंबल के वासिंदो को चुनाव के बाद साफ पीने के पानी मिलने की कोई संभावना नहीं बनती दिख रही है।

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