चंबल में अब डाकुओं का नहीं अजगरों का है खौफ

चंबल में अजगरों के निकलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। करीब 5 सैकड़ा निकल चुके अजगरों ने ऐसी दहशत मचाई है कि अब इटावा अजगरों का शहर कहा जाने लगा है। इस कारण गांव वालों में खासी दहशत देखी जा रही है। चकरनगर इलाके के खिरीटी गांव में 15 फुट लंबे एक अजगर ने 60 किलो वजनी एक बकरी का शिकार बना उसे निगल लिया लेकिन वन विभाग के अफसरों को गांव वालों ने खबर कर दी उसके बाद 15 घंटे की मशक्कत के बाद इस अजगर को पकड़ने में कामयाबी मिली। चंबल के डाकुओं पर बनी देश की सबसे लोकप्रिय फिल्मो में से एक “शोले” फिल्म में गब्बर सिंह के नाम के पात्र की जुबा से निकला एक डायलाग ........यहां से 50-50 कोस तक मां अपने बच्चों को गब्बर सिंह का नाम लेकर सुला देती है..........शोले फिल्म का यह डायलाग आज भी उतना ही लोकप्रिय जितना उस जमाने में हुआ करता था लेकिन आज इस डायलाग के बजाय चंबल घाटी रहने वाली बच्चो की माँ अपने बच्चों को इस डायलाग के बजाए चंबल में लगातार निकलते अजगरों को नाम लेकर बच्चों को सुलाने का काम करने वाली है भले ही इसे कल्पना करार दिया जाए लेकिन चंबल की हकीक़त यही है कि चंबल में लगातार निकल रहे अजगरों की वजह से चंबल के बच्चे ना केवल डर रहे हैं बल्कि घरों में कैद हो गए हैं बच्चों के माता-पिता को यह डर सता रहा है कि उनके बच्चों को कहीं कोई अजगर निवाला ना बना डाले।

इटावा में अजगरों का दहशतचंबल में खुला बीहड़ है जिसकी वजह से यहां पर तमाम किस्म के वन्य जीव जन्म लेते रहते हैं इन्हीं में एक अजगर चंबल के वासिंदों के लिए खासी मुसीबत का सबब बन गए हैं। खूंखार डाकुओं के शहर के रूप में विख्यात इटावा में अब दहशत का एक नया दानव अजगर खौफ के रूप में सामने आ गया है। इटावा में कभी डाकुओं की खासा खौफ हुआ करता था लेकिन उस खौफ से लोगों को भले ही निजात ना मिली हो ऐसे में अजगरों की दस्तक से लोग खासे दहशत जदा हो गए है। इटावा में अजगर इस कदर निकल रहे मानो देश दुनिया का सबसे बड़ा बसेरा अजगरों का इटावा की सरजमी बन गई हो। यहां पर जिस तरह से अजगर एक के बाद एक करके निकलते जा रहे हैं उसे देखकर यही कहा जा रहा है कि अजगरों की सबसे बडी शरणस्थली इटावा की जमी है।

दस्यु गतिविधियों के लिए कुख्यात समझी जाने वाली चंबल घाटी के लोगों ने दस्यु गिरोहों की दहशत से निजात मुश्किल से पाई ही थी कि अब घाटी में निकलने वाले अजगरों ने घाटी वासियों की दहशत और बढ़ा दी है। आबादी वाले क्षेत्रों में अजगरों के आ जाने के कारण यहां के बाशिंदों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित होने लगी है। अजगरों का खौफ यहां के लोगों में इस कदर बस गया है कि उन्होंने अपने जानवरों एवं बच्चों को भी गांव से बाहर भेजना बंद कर दिया है।

इटावा में अजगरों का दहशतचंबल घाटी में बच्चों का बचपन घरों की चाहरदीवारी में कैद होकर रह गया है। खेलने-कूदने व धमाल मचाने की तमन्ना तो दिल में हिलोरे मारती है परंतु परिजनों की बंदिशें उनकी तमन्नाओं को दमन कर देतीं हैं। परिजनों की अपनी मजबूरी है। वह अपने लाडलों को असमय ही खोना नहीं चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके लाडले कहीं किसी जहरीले सांप अथवा अजगर की चपेट में न आ जाएं। बच्चे तो बच्चे बड़ों में भी दहशत इस कदर पसरी हुई है कि उन्हें दिन-रात सिर्फ सर्प और अजगर ही नजर आते हैं। आलम यह है कि सुकून से वह दो वक्त की रोटी भी नहीं खा सकते हैं। कब कहां अजगर सामने आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है।

इटावा जनपद के सहसों थाना क्षेत्र के अजीत की गढ़िया में एक विशाल अजगर ने जब शिवराज सिंह की 12 वर्षीया बेटी मंदोदरी को निगलने का प्रयास किया तो समूचे इलाके में सनसनी फैल गई। यह हादसा उस वक्त हुआ जब मंदोदरी अपनी मां एवं पिता शिवराज सिंह के साथ खेतों में चारा काट रहे थे। अचानक तकरीबन 15 फुट लंबा एक विशाल अजगर निकला और उसने मंदोदरी को अपने आगोश में लेने का प्रयास किया। यह तो शुक्र था कि मंदोदरी के माता-पिता की सतर्कता के चलते अजगर अपनी कोशिशों में कामयाबी हासिल नहीं हो सका। अजीत की गढ़िया में निकले अजगर को लोगों ने बमुश्किल पकड़ कर उसे पेड़ से बांध दिया गया।

इटावा में अजगरों का दहशतप्रशासनिक अधिकारियों अथवा चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों के पास सिर्फ सतर्कता बरतने की अपील के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इटावा के प्रभागीय निदेशक वन अधिकारी मानिक चंद्र यादव का कहना है कि गांव वाले ग्रामवासी घर से निकलने से पहले सतर्कता बरतें और सुबह शाम विशेष रूप अलर्ट रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा जहरीले सांपों का खतरा भी चंबलवासियों के लिए कम नहीं हैं। उनका यह भी कहना है कि अजगर ऐसा सांप है जो सामान्यता लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाता है लेकिन जब उसकी जद में कोई आ जाता है तो बचना काफी मुश्किल हो जाता है। मानिक चंद्र का कहना है कि अजगरों के शहर की ओर आने के पीछे मुख्य कारण जंगलों का खासी तादाद में कटान माना जा रहा है कटान के चलते अजगरों के वास स्थलों को नुकसान हो रहा है इसलिए अजगरों को जहा भी थोड़ी बहुत हरियाली मिलती है वही पर अजगरों अपना बसेरा बना लेते हैं।

वह बताते हैं कि अजगर एक संरक्षित जीव है हिंदुस्तान में सुडूल-वन प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम है। अजगर एक संरक्षित प्राणी है। यह मानवीय जीवन के लिए बिलकुल खतरनाक नहीं है परंतु सरीसृप प्रजाति का होने के कारण लोगों की ऐसी धारणा बन गई और इसकी विशाल काया के कारण लोगों में अजगर के प्रति दहशत फैल गई है। हिंदुस्तान में इस प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम है, यही कारण है कि इन्हें संरक्षित घोषित कर दिया गया है परंतु इसके बावजूद इनके संरक्षण के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार ने कोई योजना नहीं की है।

इटावा में अजगरों का दहशतइटावा के आसपास पर्यावरण की दिशा में काम कर रही संस्था सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के सचिव डा. राजीव चौहान की बदौलत अभी तक करीब-करीब सभी अजगर पकड़े गए हैं डॉ.राजीव का कहना है कि चंबल घाटी के यमुना तथा चंबल क्षेत्र के मध्य तथा इन नदियों के किनारों पर सैकड़ों की संख्या में अजगर हैं। हालांकि इन अजगरों की कोई तथ्यात्मक गणना नहीं की गई है। वह बताते हैं कि इसके अलावा यहां के लोगों के लिए जहरीले सांपों का भी खतरा लगातार बना रहता है। वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. राजीव चौहान बताते हैं कि अजगरों के शहरी क्षेत्र में आने की प्रमुख वजह यह है कि जंगलों के कटान होने के कारण इनके प्राकृतिक वास स्थल समाप्त होते जा रहे हैं। जंगलों में जहां दूब घास पाई जाती है, वहीं यह अपने आशियाने बनाते हैं। अब जंगलों के कटान के कारण दूब घास खत्म होती जा रही है। इसके अलावा अजगर अपने वास स्थल उस स्थान पर बनाते हैं जहां नमी की अधिकता होती है परंतु जंगलों में तालाब खत्म होने से नमी भी खत्म होती जा रही है।

चंबल के बाशिंदे बताते हैं कि देश की आज़ादी के बाद वह लगातार कुख्यात दस्यु गिरोहों के खौफ से जूझते रहे हैं। इन डकैतों के संरक्षण के नाम पर पुलिस की दहशत भी हमने झेली है परंतु जब पुलिस ने दर्जनों कुख्यात दस्यु सरगनाओं को मार दिया अथवा समर्पण करने को मजबूर कर दिया तो अब अजगर सहित जहरीले सांपों की दहशत से निजात मिलने की संभावनाएं कम ही नजर आ रहीं हैं। इटावा में करीब 5 साल से एक के बाद एक करके खासी तादात में अजगर निकलते चले आ रहे हैं। इस अवधि में करीब 500 से अधिक अजगर निकल चुके है। करीब 2 फुट से लेकर 20 फुट और 5 किलो से लेकर 80 किलो से अधिक वजन वाले अजगर निकले हैं।

इटावा में अजगरों का दहशतचंबल में अजगरों के निकलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। करीब 5 सैकड़ा निकल चुके अजगरों ने ऐसी दहशत मचाई है कि अब इटावा अजगरों का शहर कहा जाने लगा है। इस कारण गांव वालों में खासी दहशत देखी जा रही है। चकरनगर इलाके के खिरीटी गांव में 15 फुट लंबे एक अजगर ने 60 किलो वजनी एक बकरी का शिकार बना उसे निगल लिया लेकिन वन विभाग के अफसरों को गांव वालों ने खबर कर दी उसके बाद 15 घंटे की मशक्कत के बाद इस अजगर को पकड़ने में कामयाबी मिली।

खेतों पर चर रही बकरी को करीब 15 फीट लंबे अजगर ने निगल लिया। अजगर की खबर पर ग्रामीणों में हड़कंप मच गया। एसडीएम की सूचना पर सेंचुरी व पुलिस विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे। करीब 15 घंटे की जद्दोजहद के बाद ग्रामीणों के साथ सेंचुरी कर्मियों ने अजगर पर काबू पाया। बोरे में रख कर अजगर को लायन सफारी भिजवाया गया। चकरनगर थाना क्षेत्र के गांव खिरीटी के शेर सिंह अपने खेतों पर बकरी चराने गया था। रोजाना की भांति शाम करीब 5 बजे जब अपनी बकरियों को एकत्र कर गिनती की तो उसमें एक बकरी कम थी। शेर सिंह जब बकरी को खोजता हुआ आगे बढ़ा तो वहां का नजारा कुछ और ही था। उसने देखा कि उसकी बकरी को एक अजगर निगल रहा था। इससे बुरी तरह से घबरा गया और गांव में भागकर पहुंचा तथा उक्त मामले से ग्रामीणों को अवगत कराया। एकत्र होकर सभी ग्रामीणों ने वह दृश्य अपनी आखों से देखा, लेकिन कोई बकरी को अजगर का शिकार बनने से नहीं रोक पाया। रात भर सभी ग्रामीण अजगर को घेरकर बैठे रहे। सुबह एसडीएम चकरनगर महेन्द्र कुमार को सूचना दी गई। इसी बीच ग्रामीणों के सहयोग से सेंचुरी विभाग के डिप्टी रेंजर एस वी मिश्र ने कर्मियों से लगभग 80 किलो के अजगर को बोरे में बांध लिया। इसके बाद एक लोडर द्वारा अजगर को लॉयन सफारी क्षेत्र में छुड़वाया गया।

पकड़े गए इस अजगर को देखने के लिए गांव के बड़ी तादात में लोग जुटे बुजुर्ग भी अजगर को देख हैरत में हैं वही छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी अजगर कौतूहल का विषय ही था। चंबल सेंचुरी के डिप्टी रेंजर अभी हाल में ही कीठम आगरा से इटावा के चकरनगर में तैनात हुए हैं वे खिरीटी गांव में निकले अजगर के बारे में बताते है कि शेर सिंह की बकरी को निकल लिए जाने के बाद एसडीएम महेंद्र सिंह ने उनको इस बाबत जानकारी दी तो मौके पर आकर देखा कि अजगर बकरी को निगले हुए है काफी कोशिश के बाद अजगर ने बकरी को तो पेट से बाहर कर दिया लेकिन तब तक बकरी की मौत हो चुकी थी क्योंकि 15 घंटे तक अजगर के पेट में रहने के बाद बकरी का जिंदा रहना संभव ही नहीं है। अजगर को पकड़वाने में मदद करने वाले खिरीटी गांव वासी का कहना है कि अजगर की फुर्ती देख करके उसको पकड़ पाना संभव नहीं लग रहा था लेकिन काफी मशक्कत के बाद अजगर को पकड़कर काबू कर लिया। गांव के बुजुर्ग सुधाकर सिंह बताते हैं कि उन्होंने इससे पहले तो अजगर देखा ही नहीं था लेकिन अजगर ने जिस अंदाज में बकरी को निवाला बना लिया उससे डर अब इस बात का लगने लगा है कि अगर कोई मासूम बच्चा गुजर रहा होता तो हो सकता अजगर उसे भी खा सकता था लेकिन अब जिस तरह से अजगर निकल रहे है उससे डर जरूर लगने लगा है। गांव की छात्रा अनुपमा तिवारी अपने कई साथी सलेहियों के साथ मोबाइल पर अजगर और भीड़ की क्लीप बनाने में मस्त थी उसने भी गांव में अजगर के निकलने पर डर का एहसास होने की बात दूसरे की तरह ही रखी। अनुपमा दो दर्जन लड़के लड़कियों के साथ अजगर को इसलिए देख रही थी क्योंकि उनके गांव में पहली बार अजगर निकला है। भारी भीड़ को देख कर चकरनगर थाना प्रभारी राकेश सिंह ने दो गश्ती पुलिस कर्मियों को इस लिहाज से खिरीटी गांव भेजा क्योंकि अमूमन भीड़ ऐसे जीवों को मार डालते है। इटावा में इतने अजगर निकल चुके है कि लोगो को यह भी कहते हुए सुना गया है कि अजगरों का चिड़ियाघर बन गया है इटावा।

इटावा के एसएसपी नीलाब्जा चौधरी का कहना है कि चंबल घाटी में जब कोई अजगर निकलता है तो गांव वाले वन अफसरों को सुरक्षात्मक तौर पर अजगरों को पकड़ने के लिए बुलाते हैं ही साथ ही किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए स्थानीय पुलिस को भी बुलाते हैं ऐसे में पुलिस के सामने एक नया संकट खड़ा हो जाता है जिस जगह पर भी अजगर निकलता है वहां पर इतनी भीड़ जमा हो जाती है कि भीड को काबू में करना मुश्किल हो जाता है पुलिस को ऐसा लगने लगता है कि भीड़ कहीं विलुप्त प्रजाति के अजगर को मौत के मुह में ना डाल दे इसलिए जब तब वन विभाग का अमला मौके पर आकर अजगर को पकड़ने में कामयाब नहीं हो जाती है तब तक मौके पर पुलिस दल को रहने के साफ-साफ निर्देश दे दिए हैं।

चंबल घाटी के यमुना तथा चंबल क्षेत्र के मध्य तथा इन नदियों के किनारों पर सैकड़ों की संख्या में अजगर हैं। हालांकि इन अजगरों की कोई तथ्यात्मक गणना नहीं की गई है। इसके अलावा यहां के लोगों के लिए जहरीले सांपों का भी खतरा लगातार बना रहता है। अजगरों के शहरी क्षेत्र में आने की प्रमुख वजह यह है कि जंगलों के कटान होने के कारण इनके प्राकृतिक वास स्थल समाप्त होते जा रहे हैं। जंगलों में जहां दूब घास पाई जाती है, वहीं यह अपने आशियाने बनाते हैं। अब जंगलों के कटान के कारण दूब घास खत्म होती जा रही है। इसके अलावा अजगर अपने वास स्थल उस स्थान पर बनाते हैं जहां नमी की अधिकता होती है परंतु जंगलों में तालाब खत्म होने से नमी भी खत्म होती जा रही है। चंबल में अब तक निकले अजगरों की कहानी किसी भी तरह से विचित्रताओं से भरी कम नहीं लगती है जब चंबल में खूखार डाकुओं का आंतक था तब इस कदर अजगरों के निकलने का सिलसिला नहीं था लेकिन आज डाकुओं के आतंक की समाप्ति होते ही अजगरों ने अपना बसेरा बना लिया है।

इटावा में अजगरों का दहशतयमुना के बीहड़ क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याएं कम नहीं हो रहीं हैं। दस्युओं से निजात मिलने के बाद बीहड़ के आसपास के गाँवों में अब अजगरों का खौफ है। इकनौर व सारंगपुरा गांव के बीच जंगल में कई अजगर घूमते देखे गए हैं। कई पालतू पशुओं को निगल चुके हैं। यहां संरक्षित प्रजाति के अजगर छोड़े गए हैं। अजगर जमीन के भीतर से एक से दूसरे स्थान चला जाता है, बाड़ लगाकर इसे रोका नहीं जा सकता है। ऐसे में ग्रामीणों को सतर्कता बरतनी चाहिए।

यमुना और चंबल नदी की तलहटी में स्थित जंगल में इकनौर, सारंगपुरा मड़ैया और दिलीपनगर गाँवों के ग्रामीण अपने मवेशी चराते हैं। गांव वालों ने जंगल के आसपास अजगरों को घूमते देखा है। उनके मुताबिक अजगर मौका पाते ही छोटे पशुओं को दबोच लेते हैं। दस दिन पूर्व जंगल में सांरगपुरा के दशरथ के पडरा को बीस फीट लंबा अजगर निगल गया। इससे पूर्व ग्राम मड़ैया के कोमल की बकरी का अजगर ने शिकार किया था। अजगर अब तक दर्जन भर से अधिक मवेशियों का शिकार कर चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब पशुओं का अजगर शिकार कर रहे हैं तो बच्चे कहां सुरक्षित हैं। इसलिए ग्रामीण बच्चों को मवेशी चराने नहीं भेज रहे हैं।

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