यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक हो गई है कि इसे साफ करना जलशोधक संयंत्रों के बस की बात भी नहीं रह गई है। यही नहीं अमोनिया के साथ अन्य धातक रसायन भी पानी में जहर घोल रहे हैं। पिछले कई दशकों से औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण देश की प्रमुख नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के पानी, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से चुनौती काफी बढ़ गई है। “ दुर्गम बीहड़ इलाकों में से प्रभावित हो कर बहने वाली चंबल नदी का पानी यदि उनके जिले इटावा में यमुना नदी में ना मिले तो यमुना नदी सूखी हुई ही नजर आयेगी” यह बयान है किसी साधारण इंसान का नहीं बल्कि पर्यावरण प्रेमी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का। जिन्होंने देश की अहम नदियों में से एक यमुना नदी की दुर्दशा को लेकर ना केवल बेहद गंभीर चिंता जताई है बल्कि उनके बयान ने एक बात साफ कर दी है यमुना नदी का भविष्य खतरे में पड़ता हुआ नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की यह ऐसी चिंता है जिस पर अगर समय रहते हुये अमल नहीं किया गया तो जाहिर है कि आने वाले दिनों में यमुना नदी का वजूद सिर्फ गंदे नाले के रूप मे रह जायेगा। अखिलेश यादव के बयान ने भले ही यमुना नदी पर संकट का एहसास कराया हो लेकिन चंबल नदी कहीं न कहीं एक नदी का जीवनदायिनी की भूमिका में जरूर प्रकट कर दिया है।
यमुना नदी का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव कहते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली के पास यह साफ है लेकिन उसके आगे मैली है जिसका कारण सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में छोड़ा जाना है। उनका कहना है कि उनके जिले इटावा में यदि चंबल का पानी यमुना में न मिले तो यमुना सूखी नजर आएगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस चंबल नदी को यमुना नदी का तारणहार माना वह चंबल नदी मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच सीमा रेखा बनाती है। यह पश्चिमी मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है। चम्बल इस पठार की एक प्रमुख नदी है। विदर्भ के राजा चेदि ने ही चम्बल और केन नदियों के बीच चेदि राज्य की स्थापना की थी। जिसे बाद में कुरू की पाँचवीं पीढ़ी में बसु ने यादवों के इसी चेदि राज्य पर विजय श्री प्राप्त की और केन नदी के तट पर शक्तिमति नगर को अपनी राजधानी बनाया। ऐसा कहा जाता है कि चेदि राज्य ईसा पूर्व का है। चम्बल नदी का उद्गम मालवा पठार में इन्दौर जिले के महू के पास जनपाव पहाड़ी से हुआ है जो समुद्र तल से 616 मीटर ऊँची है। इसी नदी को चर्मण्वती भी कहा जाता है। यह महू के निकट से निकलकर धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, शिवपुर, बूंदी, कोटा, धौलपुर होती हुई इटावा से 38 किलोमीटर दूर 1040 किलोमीटर की अपनी जीवन यात्रा पूरी करके यमुना में विसर्जित हो जाती है।
चम्बल के अन्तर्गत भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, शिवपुरी एवं मंदसौर जिलों के भाग आते हैं। भाग का कुल क्षेत्रफल 32896 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्य प्रदेश के पूरे भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.5 प्रतिशत है। इस पठारी भाग के पूर्व में बुन्देलखंड का पठार, पश्चिम में राजस्थान की उच्च भूमि, उत्तर में यमुना का मैदान और दक्षिण में मालवा का पठार स्थित है। चम्बल नदी पर लुप्त प्रायः वन्य प्राणी घड़ियाल के संरक्षण के उद्देश्य से चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण्य की स्थापना मुरैना में की गई है। चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण्य 3902 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है जो मध्य प्रदेश के 23 अभ्यारण्यों में से एक है। इसमें घड़ियाल के अतिरिक्त मगर, कछुआ, डॉलफिन एवं अन्य प्रजातियों के जलचर पाये जाते हैं। घड़ियाल संरक्षण के प्रदेश में अन्य दो और अभ्यारण्य सोन धड़ियाल-अभ्यारण्य सीधी एवं केन घड़ियाल अभ्यारण्य-छतरपुर में भी है। चम्बल नदी सर्वाधिक मृदा अपरदन खासतौर से अवनालिका अपरदन का कार्य करती है। जिससे बीहड़ों का निर्माण हुआ है। बीहड़ों की मिट्टी भुरभुरी होने का कारण प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में एवं नदी के बहाव से कटाव के कारण यह क्षेत्र वन विहीन है।
अब बात कर लेते हैं कि देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदी के कगार पर पहुचने वाली यमुना नदी की जो सिर्फ एक नाले के तौर पर ही देखी जाती है इस नदी के जल को आज छुआ तक नहीं जा सकता है। केंद्र की यूपीए सरकार कहती है कि यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए पिछले चार साल में करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन बताती हैं कि सरकार ने यमुना कार्य योजना के तहत इस नदी के संरक्षण के लिए 2009,10 में 105 करोड़ रुपए जारी किए थे जबकि 2010,11 में 111.49 करोड़ रुपए और 2011,12 में 47.06 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। चालू वित्त वर्ष में अब तक 40.42 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। बताते चले कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने भी यमुना नदी के प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी संबंधित प्राधिकरणों से ठोस एवं सामूहिक प्रयास करने के लिए कहा था। अरबों खर्च करने के बावजूद यमुना मैली की मैली है। इस पर अपनी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद निराशाजनक स्थिति है। 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद यमुना नदी एक गंदा नाला बनी हुई है।
सर्वोच्च अदालत ने सलाह दी कि दिल्ली से सटे हुए शहरों से सारी गंदगी इसी नदी में डाली जा रही है, जिसे रोका जाना बेहद जरूरी है। स्वतंत्र कुमार और मदन बी लोकुर की बेंच ने अवलोकन किया कि दिल्ली में यमुना नदी में पानी नहीं गंदगी बहती है। बेंच ने आम आदमी के हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद नदी को साफ नहीं कर पाने के लिए सरकार को लताड़ लगाई। बेंच ने कहा, ‘क्या हम नालों को दिल्ली से 30-40 किमी बाहर ले जाकर इसके पानी को रिसाइकल कर सकते हैं। बंद नालों के रूप में इसे वहां पर भेजा जाना चाहिए, जहां पर सरकार को अपना प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए उपयुक्त जमीन मिल सके।’
यमुना नदी के जल को कभी राजतिलक करने के काम में प्रयोग किया जाता था लेकिन आज उसी यमुना नदी के जल को कोई छूना भी पसंद नहीं कर रहा है। वजह साफ है कि यमुना नदी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि वह एक नदी न होकर कचरे का नाला बनकर रह गयी है, धार्मिक नदी का दर्जा पाये यमुना नदी के इस हाल के लिये असल में जिम्मेदार हैं कौन? कहा जा रहा है कि यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने की दिशा में कोई अहम जनजागरूकता अभियान चलाने की जरूरत समझ में आ रही हैं, इस नदी को गंदा करने में सबसे खास योगदान नदी में फेंकी जाने वाली लाशें हैं, इनमें अनजान लाशों की सबसे बड़ी भूमिका रहती हैं, सबसे हैरत की बात तो यह है कि जिन अज्ञात लाशों के अंतिम संस्कार के लिए शासन पुलिस विभाग को लाखों रूपये प्रदान करता है?
यमुना देश की राजधानी दिल्ली और इटावा होते हुए इलाहाबाद तक जाती है। इटावा जिले में यमुना भरेह गांव के पास चंबल नदी में मिलती है। दुर्लभ जलचरों की सेंचुरी के रूप मे विख्यात चंबल का पानी आज भी देश की दूसरी नदियों के मुकाबले इतना साफ माना जाता है कि लोग इसके साफ पानी की बानगी देखने के लिये दूर दराज से चंबल के बीहड़ों मे हमेशा आते रहते हैं। देश की सबसे धार्मिक और महत्वपूर्ण मानी जाने वाली गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने की तरह ही केन्द्र सरकार द्वारा जापान सरकार की सहायता से यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने के लिए एक अर्से पहले देश में यमुना एक्शन प्लान बड़ी जोर-शोर से चलाया गया था। इस प्लान से लगा कि यमुना नदी का प्रदूषण चुटकियों में दूर हो जाएगा लेकिन हकीकत में यमुना आज भी मैली ही है।
रही सही कसर पुलिस विभाग के जाबांज घूसखोर सिपाहियों ने पूरी कर दी है जिनके जिम्मे अनजान शवों का अंतिम संस्कार करने का दारोमदार होता है। यमुना नदी के किनारे रहने वाले इलाकाई लोग बताते हैं कि ट्रेन से कटे, मार्ग दुर्घटना और नदी नाले में पाये गये अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार के लिए उत्तर प्रदेश का पुलिस विभाग ने 1500 रूपये की राशि निर्धारित कर रखी है, लेकिन इन सबके बावजूद जो तस्वीरें कैमरे में कैद करने में कामयाबी हासिल हुई है, उनको देखकर ऐसा कहीं नहीं लगता है कि अनजान शवों के अंतिम संस्कार के लिए उत्तर प्रदेश का पुलिस विभाग द्वारा 1500 रुपए की मुहैया कराई जा रही राशि का वास्तव में इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर ऐसा होता तो इन शवों को नदी में खुले आम डंडों के सहारे बहाया नहीं जा रहा होता। इससे तो ऐसा अवश्य सिद्ध हो गया है कि पुलिस प्रशासन के जाबांज घूसखोर सिपाही अंतिम संस्कार की राशि हड़प जाते हैं।
संत समाज से ताल्लुक रखने वाले लाल बाबा मानते हैं कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए भी गंगा नदी की तरह देश भर में एक जन-जागरण अभियान शुरू करने की बेहद जरूरत है,लाल बाबा यह कहने से किसी भी सूरत में नहीं चूकते कि वे जल्द ही यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये देश भर में एक अभियान शुरू करने का मसौदा तैयार करने के लिए अपने साथ के संतों और आम जन मानस से मशवरा करेंगे। इटावा और इसके आसपास लम्बे समय से वन्यजीवों पर काम कर रही पर्यावरणीय संस्था सोसाइटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान कहते है कि यमुना नदी में अब पानी तो रहा नहीं, इस वजह से यमुना नदी में पाये जाने वाले जलचरों को भी भारी नुकसान की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि कभी यमुना नदी में इतना पानी हमेशा रहता रहा है कि तमाम प्रकार की मछलियाँ इसमें बड़े आराम से रहती रही हैं लेकिन आज यमुना मे कुछेक प्रकार की ही मछलियाँ ही देख जा रही है।
नदियों की सफाई की बात आए दिन होती ही रहती है और उनकी सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च भी होते हैं। इसके बावजूद आजतक नदियां साफ तो नहीं हो पाईं, लेकिन दिनों-दिन और गंदी जरूर होती जा रही हैं। उनमें प्रदूषण का आलम यह है कि नदियों का पानी पीने की बात तो छोड़िए, नहाने के योग्य भी नहीं रहा। यमुना की बात करें तो यह नदी हरियाणा तक तो अपने प्राकृतिक रूप में दिखाई देती है, लेकिन इसके बाद दिल्ली तक इसका रूप निरंतर विकृत होता चला जाता है। नदियों में प्रदूषण का मामला कई दशक पूर्व से जोर-शोर से उठ रहा है। पिछले 10 सालों में 20 राज्यों की 38 प्रमुख नदियों के संरक्षण और उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर एक अनुमान के अनुसार 26 अरब रुपये खर्च किए गए, लेकिन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। यमुना नदी की गंदगी दूर करने के लिए दिल्ली सरकार अब तक 4000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च कर चुकी है, लेकिन इससे यमुना की गंदगी दूर करने वालों ने अपनी गंदगी भले ही दूर कर ली हो यमुना का प्रदूषण तो घटने के बजाय दिन पर दिन बढ़ा ही है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक हो गई है कि इसे साफ करना जलशोधक संयंत्रों के बस की बात भी नहीं रह गई है। यही नहीं अमोनिया के साथ अन्य धातक रसायन भी पानी में जहर घोल रहे हैं। दरअसल पिछले कई दशकों से औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के पानी, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से चुनौती काफी बढ़ गई है। नदियां नगर निगमों के शोधित एवं अपशिष्ट एवं औद्योगिक कचरे से प्रदूषित होती हैं। सभी बड़े एवं मझोले उद्योगों ने तरल अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगा रखे हैं और वे सामान्यतः जैव रसायन ऑक्सीजन रसायन मांग (बीओडी) के निर्धारित मानकों का पालन करते हैं। हालांकि कई औद्योगिक क्षेत्र देश के कई हिस्सों में प्रदूषण को काफी बढ़ा देते हैं। प्रदूषकों की उपस्थिति के आधार पर प्रमुख रूप से तीन प्रकार का प्रदूषण होता है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण।
जल प्रदूषण अपशिष्टों के सीधे जल में मिलने के कारण भी होता है और वायुमंडल में उपस्थित प्रदूषण के कारण वर्षा के द्वारा भी। नगर निगम अपशिष्ट के मामले में ऐसा अनुमान है कि प्रथम श्रेणी के शहर (423) और द्वितीय श्रेणी के शहर (449) प्रतिदिन 3,30,000 लाख लीटर तरल अपशिष्ट उत्सर्जित करते हैं, जबकि देश में प्रतिदिन तरल अपशिष्ट शोधन की क्षमता 70,000 लाख लीटर है। अपशिष्ट पदार्थों के शोधन का काम संबंधित नगर निगमों का होता है। जब तक ये निगम प्रशासन पूर्ण क्षमता तक अपशिष्टों का शोधन नहीं कर लेते तब तक डीओबी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आदिकाल से गंगा-यमुना को हम मां कहकर पुकारते आए हैं, लिहाजा इनसे बेटे के तौर पर ही जुड़ना होगा। गंगा और यमुना की सफाई के लिए हमें इसके दर्शन और दृष्टि को समझने की जरूरत है। यमुना में आज दिल्ली के बाद हमें जो पानी दिखाई देता है वह पानी नहीं, बल्कि सीवर की गंदगी है। यमुना भी गंगा की तरह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ी है। यमुना में स्नान या आचमन करना तो दूर कृषि कार्य योग्य पानी भी नहीं बचा है। इसके लिए जरूरी है कि दिल्ली और हरियाणा का औद्योगिक कचरा, सीवर की गंदगी और नालों का यमुना में गिरना बंद हो।
यमुना नदी का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव कहते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली के पास यह साफ है लेकिन उसके आगे मैली है जिसका कारण सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में छोड़ा जाना है। उनका कहना है कि उनके जिले इटावा में यदि चंबल का पानी यमुना में न मिले तो यमुना सूखी नजर आएगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस चंबल नदी को यमुना नदी का तारणहार माना वह चंबल नदी मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच सीमा रेखा बनाती है। यह पश्चिमी मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है। चम्बल इस पठार की एक प्रमुख नदी है। विदर्भ के राजा चेदि ने ही चम्बल और केन नदियों के बीच चेदि राज्य की स्थापना की थी। जिसे बाद में कुरू की पाँचवीं पीढ़ी में बसु ने यादवों के इसी चेदि राज्य पर विजय श्री प्राप्त की और केन नदी के तट पर शक्तिमति नगर को अपनी राजधानी बनाया। ऐसा कहा जाता है कि चेदि राज्य ईसा पूर्व का है। चम्बल नदी का उद्गम मालवा पठार में इन्दौर जिले के महू के पास जनपाव पहाड़ी से हुआ है जो समुद्र तल से 616 मीटर ऊँची है। इसी नदी को चर्मण्वती भी कहा जाता है। यह महू के निकट से निकलकर धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, शिवपुर, बूंदी, कोटा, धौलपुर होती हुई इटावा से 38 किलोमीटर दूर 1040 किलोमीटर की अपनी जीवन यात्रा पूरी करके यमुना में विसर्जित हो जाती है।
चम्बल के अन्तर्गत भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, शिवपुरी एवं मंदसौर जिलों के भाग आते हैं। भाग का कुल क्षेत्रफल 32896 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्य प्रदेश के पूरे भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.5 प्रतिशत है। इस पठारी भाग के पूर्व में बुन्देलखंड का पठार, पश्चिम में राजस्थान की उच्च भूमि, उत्तर में यमुना का मैदान और दक्षिण में मालवा का पठार स्थित है। चम्बल नदी पर लुप्त प्रायः वन्य प्राणी घड़ियाल के संरक्षण के उद्देश्य से चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण्य की स्थापना मुरैना में की गई है। चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण्य 3902 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है जो मध्य प्रदेश के 23 अभ्यारण्यों में से एक है। इसमें घड़ियाल के अतिरिक्त मगर, कछुआ, डॉलफिन एवं अन्य प्रजातियों के जलचर पाये जाते हैं। घड़ियाल संरक्षण के प्रदेश में अन्य दो और अभ्यारण्य सोन धड़ियाल-अभ्यारण्य सीधी एवं केन घड़ियाल अभ्यारण्य-छतरपुर में भी है। चम्बल नदी सर्वाधिक मृदा अपरदन खासतौर से अवनालिका अपरदन का कार्य करती है। जिससे बीहड़ों का निर्माण हुआ है। बीहड़ों की मिट्टी भुरभुरी होने का कारण प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में एवं नदी के बहाव से कटाव के कारण यह क्षेत्र वन विहीन है।
अब बात कर लेते हैं कि देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदी के कगार पर पहुचने वाली यमुना नदी की जो सिर्फ एक नाले के तौर पर ही देखी जाती है इस नदी के जल को आज छुआ तक नहीं जा सकता है। केंद्र की यूपीए सरकार कहती है कि यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए पिछले चार साल में करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन बताती हैं कि सरकार ने यमुना कार्य योजना के तहत इस नदी के संरक्षण के लिए 2009,10 में 105 करोड़ रुपए जारी किए थे जबकि 2010,11 में 111.49 करोड़ रुपए और 2011,12 में 47.06 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। चालू वित्त वर्ष में अब तक 40.42 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। बताते चले कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने भी यमुना नदी के प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी संबंधित प्राधिकरणों से ठोस एवं सामूहिक प्रयास करने के लिए कहा था। अरबों खर्च करने के बावजूद यमुना मैली की मैली है। इस पर अपनी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद निराशाजनक स्थिति है। 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद यमुना नदी एक गंदा नाला बनी हुई है।
सर्वोच्च अदालत ने सलाह दी कि दिल्ली से सटे हुए शहरों से सारी गंदगी इसी नदी में डाली जा रही है, जिसे रोका जाना बेहद जरूरी है। स्वतंत्र कुमार और मदन बी लोकुर की बेंच ने अवलोकन किया कि दिल्ली में यमुना नदी में पानी नहीं गंदगी बहती है। बेंच ने आम आदमी के हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद नदी को साफ नहीं कर पाने के लिए सरकार को लताड़ लगाई। बेंच ने कहा, ‘क्या हम नालों को दिल्ली से 30-40 किमी बाहर ले जाकर इसके पानी को रिसाइकल कर सकते हैं। बंद नालों के रूप में इसे वहां पर भेजा जाना चाहिए, जहां पर सरकार को अपना प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए उपयुक्त जमीन मिल सके।’
यमुना नदी के जल को कभी राजतिलक करने के काम में प्रयोग किया जाता था लेकिन आज उसी यमुना नदी के जल को कोई छूना भी पसंद नहीं कर रहा है। वजह साफ है कि यमुना नदी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि वह एक नदी न होकर कचरे का नाला बनकर रह गयी है, धार्मिक नदी का दर्जा पाये यमुना नदी के इस हाल के लिये असल में जिम्मेदार हैं कौन? कहा जा रहा है कि यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने की दिशा में कोई अहम जनजागरूकता अभियान चलाने की जरूरत समझ में आ रही हैं, इस नदी को गंदा करने में सबसे खास योगदान नदी में फेंकी जाने वाली लाशें हैं, इनमें अनजान लाशों की सबसे बड़ी भूमिका रहती हैं, सबसे हैरत की बात तो यह है कि जिन अज्ञात लाशों के अंतिम संस्कार के लिए शासन पुलिस विभाग को लाखों रूपये प्रदान करता है?
यमुना देश की राजधानी दिल्ली और इटावा होते हुए इलाहाबाद तक जाती है। इटावा जिले में यमुना भरेह गांव के पास चंबल नदी में मिलती है। दुर्लभ जलचरों की सेंचुरी के रूप मे विख्यात चंबल का पानी आज भी देश की दूसरी नदियों के मुकाबले इतना साफ माना जाता है कि लोग इसके साफ पानी की बानगी देखने के लिये दूर दराज से चंबल के बीहड़ों मे हमेशा आते रहते हैं। देश की सबसे धार्मिक और महत्वपूर्ण मानी जाने वाली गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने की तरह ही केन्द्र सरकार द्वारा जापान सरकार की सहायता से यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने के लिए एक अर्से पहले देश में यमुना एक्शन प्लान बड़ी जोर-शोर से चलाया गया था। इस प्लान से लगा कि यमुना नदी का प्रदूषण चुटकियों में दूर हो जाएगा लेकिन हकीकत में यमुना आज भी मैली ही है।
रही सही कसर पुलिस विभाग के जाबांज घूसखोर सिपाहियों ने पूरी कर दी है जिनके जिम्मे अनजान शवों का अंतिम संस्कार करने का दारोमदार होता है। यमुना नदी के किनारे रहने वाले इलाकाई लोग बताते हैं कि ट्रेन से कटे, मार्ग दुर्घटना और नदी नाले में पाये गये अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार के लिए उत्तर प्रदेश का पुलिस विभाग ने 1500 रूपये की राशि निर्धारित कर रखी है, लेकिन इन सबके बावजूद जो तस्वीरें कैमरे में कैद करने में कामयाबी हासिल हुई है, उनको देखकर ऐसा कहीं नहीं लगता है कि अनजान शवों के अंतिम संस्कार के लिए उत्तर प्रदेश का पुलिस विभाग द्वारा 1500 रुपए की मुहैया कराई जा रही राशि का वास्तव में इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर ऐसा होता तो इन शवों को नदी में खुले आम डंडों के सहारे बहाया नहीं जा रहा होता। इससे तो ऐसा अवश्य सिद्ध हो गया है कि पुलिस प्रशासन के जाबांज घूसखोर सिपाही अंतिम संस्कार की राशि हड़प जाते हैं।
संत समाज से ताल्लुक रखने वाले लाल बाबा मानते हैं कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए भी गंगा नदी की तरह देश भर में एक जन-जागरण अभियान शुरू करने की बेहद जरूरत है,लाल बाबा यह कहने से किसी भी सूरत में नहीं चूकते कि वे जल्द ही यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये देश भर में एक अभियान शुरू करने का मसौदा तैयार करने के लिए अपने साथ के संतों और आम जन मानस से मशवरा करेंगे। इटावा और इसके आसपास लम्बे समय से वन्यजीवों पर काम कर रही पर्यावरणीय संस्था सोसाइटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान कहते है कि यमुना नदी में अब पानी तो रहा नहीं, इस वजह से यमुना नदी में पाये जाने वाले जलचरों को भी भारी नुकसान की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि कभी यमुना नदी में इतना पानी हमेशा रहता रहा है कि तमाम प्रकार की मछलियाँ इसमें बड़े आराम से रहती रही हैं लेकिन आज यमुना मे कुछेक प्रकार की ही मछलियाँ ही देख जा रही है।
नदियों की सफाई की बात आए दिन होती ही रहती है और उनकी सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च भी होते हैं। इसके बावजूद आजतक नदियां साफ तो नहीं हो पाईं, लेकिन दिनों-दिन और गंदी जरूर होती जा रही हैं। उनमें प्रदूषण का आलम यह है कि नदियों का पानी पीने की बात तो छोड़िए, नहाने के योग्य भी नहीं रहा। यमुना की बात करें तो यह नदी हरियाणा तक तो अपने प्राकृतिक रूप में दिखाई देती है, लेकिन इसके बाद दिल्ली तक इसका रूप निरंतर विकृत होता चला जाता है। नदियों में प्रदूषण का मामला कई दशक पूर्व से जोर-शोर से उठ रहा है। पिछले 10 सालों में 20 राज्यों की 38 प्रमुख नदियों के संरक्षण और उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर एक अनुमान के अनुसार 26 अरब रुपये खर्च किए गए, लेकिन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। यमुना नदी की गंदगी दूर करने के लिए दिल्ली सरकार अब तक 4000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च कर चुकी है, लेकिन इससे यमुना की गंदगी दूर करने वालों ने अपनी गंदगी भले ही दूर कर ली हो यमुना का प्रदूषण तो घटने के बजाय दिन पर दिन बढ़ा ही है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि यमुना के पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक हो गई है कि इसे साफ करना जलशोधक संयंत्रों के बस की बात भी नहीं रह गई है। यही नहीं अमोनिया के साथ अन्य धातक रसायन भी पानी में जहर घोल रहे हैं। दरअसल पिछले कई दशकों से औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के पानी, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से चुनौती काफी बढ़ गई है। नदियां नगर निगमों के शोधित एवं अपशिष्ट एवं औद्योगिक कचरे से प्रदूषित होती हैं। सभी बड़े एवं मझोले उद्योगों ने तरल अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगा रखे हैं और वे सामान्यतः जैव रसायन ऑक्सीजन रसायन मांग (बीओडी) के निर्धारित मानकों का पालन करते हैं। हालांकि कई औद्योगिक क्षेत्र देश के कई हिस्सों में प्रदूषण को काफी बढ़ा देते हैं। प्रदूषकों की उपस्थिति के आधार पर प्रमुख रूप से तीन प्रकार का प्रदूषण होता है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण।
जल प्रदूषण अपशिष्टों के सीधे जल में मिलने के कारण भी होता है और वायुमंडल में उपस्थित प्रदूषण के कारण वर्षा के द्वारा भी। नगर निगम अपशिष्ट के मामले में ऐसा अनुमान है कि प्रथम श्रेणी के शहर (423) और द्वितीय श्रेणी के शहर (449) प्रतिदिन 3,30,000 लाख लीटर तरल अपशिष्ट उत्सर्जित करते हैं, जबकि देश में प्रतिदिन तरल अपशिष्ट शोधन की क्षमता 70,000 लाख लीटर है। अपशिष्ट पदार्थों के शोधन का काम संबंधित नगर निगमों का होता है। जब तक ये निगम प्रशासन पूर्ण क्षमता तक अपशिष्टों का शोधन नहीं कर लेते तब तक डीओबी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आदिकाल से गंगा-यमुना को हम मां कहकर पुकारते आए हैं, लिहाजा इनसे बेटे के तौर पर ही जुड़ना होगा। गंगा और यमुना की सफाई के लिए हमें इसके दर्शन और दृष्टि को समझने की जरूरत है। यमुना में आज दिल्ली के बाद हमें जो पानी दिखाई देता है वह पानी नहीं, बल्कि सीवर की गंदगी है। यमुना भी गंगा की तरह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ी है। यमुना में स्नान या आचमन करना तो दूर कृषि कार्य योग्य पानी भी नहीं बचा है। इसके लिए जरूरी है कि दिल्ली और हरियाणा का औद्योगिक कचरा, सीवर की गंदगी और नालों का यमुना में गिरना बंद हो।
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