ओड़िशा का कोणार्क सूर्य मन्दिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। यूनेस्को ने इस मन्दिर को हेरिटेज का दर्जा दिया है। इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ भी प्रचलित हैं। चूँकि सूर्य मन्दिर अब भी शान से खड़ा है तो इसके पीछे की पौराणिक कहानियों पर लोगों को आसानी से भरोसा हो जाता है।
इन्हीं पौराणिक कथाओं में चन्द्रभागा नदी का भी जिक्र है। कहा जाता है कि कृष्ण के पुत्र साम्बा को कोढ़ का रोग था जिसे दूर करने के लिये उन्होंने इसी नदी के किनारे सूर्य देवता की आराधना की थी। इस नदी को लेकर और भी कई पौराणिक कथाएँ हैं लेकिन अभी इस नदी का कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसे में यह स्वीकार करना बहुत कठिन है कि चन्द्रभागा नाम की नदी सचमुच में कभी बहा करती थी या यह केवल दन्तकथा है लेकिन हाल ही में किये गए एक शोध ने इस मिथक को तोड़ दिया है।
इस शोध में कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो चन्द्रभागा नदी के अस्तित्व से जुड़े तर्कों को मजबूत करते हैं। यह शोध इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर के प्रोफेसरों ने किया है। करंट साइंस में ‘मल्टीप्रोलांग्ड सर्च फॉर प्लीओ-चैनल्स नीयर कोणार्क टेम्पल, ओड़िशा : इम्प्लिकेशन फॉर द माइथोलॉजिकल रीवर चन्द्रभागा’ शीर्षक से छपे इस शोध पत्र में शोध की तकनीकों और शोध से प्राप्त तथ्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है जो साबित करता है कि तेरहवीं शताब्दी में जब राजा लांगूल नृसिंह देव प्रथम ने कोणार्क सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया था तब नदी अविरल बहा करती थी।
उस समय कई तरह के धार्मिक कर्मकाण्ड इस नदी से जुड़े हुए थे। हालांकि मन्दिर के निकट ये कर्मकाण्ड अब भी आयोजित होते हैं लेकिन नदी का भौतिक अस्तित्व मिट चुका है। चन्द्रभागा नदी मन्दिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर बहती थी जो आगे जाकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती थी।
शोधपत्र के मुताबिक, मन्दिर के पास दलदली भूमि व प्लीओचैनल मिला है जिससे इस मान्यता को बल मिलता है कि नदी सचमुच बहा करती थी। अत्याधुनिक तकनीक फॉल्स कलर कम्पोजित इमेज से भी पुरातात्विक नदी मार्ग का पता चलता है।
नदी को जब पाट दिया जाता है या फिर गाद के चलते उसका अस्तित्व लगभग समाप्त हो जाता है तो उसका जो अवशेष बचा रह जाता है उसे प्लीओचैनल कहा जाता है। शोध में बार-बार प्लीओचैनल के सबूत मिले हैं। शोध में कहा गया है कि जीअाईएस की मदद से थीमेटिक मैप तैयार किये गए उसमें भी प्लीओचैनल मिला है जो गूगल अर्थ और सेटेलाइट डाटा के तथ्यों का समर्थन करता है।
सेटेलाइट ईमेज, फील्ड वैलिडेशन स्टडी, सब-सरफेस स्टडी और डाटा इंटिग्रेशन के जरिए शोध को अंजाम दिया गया और इसमें गूगल ईमेज का भी सहारा लिया गया। शोध पत्र के अनुसार चिन्हित स्थान पर वे पेड़ मिले हैं जो नदी क्षेत्रों में ही मिलते हैं और-तो-और यहाँ नदी क्षेत्र में पाई जाने वाली जलोढ़ या कछारी मिट्टी भी मिली है। टेक्टोनिक मैप से पता चला है कि नदी के तटीय क्षेत्रों का जो चरित्र होता है वही चरित्र चिन्हित स्थान पर मिला है। यही नहीं ‘वी’ आकार का डिप्रेशन भी मिला है जो नदी घाटी के अस्तित्व की गवाही देता है।
शोध की मानें तो चन्द्रभागा नदी की लम्बाई लगभग 10 किलोमीटर रही होगी और वह मन्दिर के उत्तर की तरफ बहती होगी। शोध में कहा गया है, ‘चन्द्रभागा झील से नदी का कोई सम्बन्ध शोध में नहीं मिला है लेकिन ऐसी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि समुद्र तट पर नदी अपना मार्ग बदलती रहती है।’
पूरा शोध इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (खड़गपुर) के जियोलॉजी व जियोफिजिक्स विभाग के प्रोफेसर विलियम कुमार मोहंती के नेतृत्व में किया गया है। शोध कार्य को पूरा करने में लगभग 1 साल का वक्त लगा। प्रो. विलियम कुमार मोहंती ने इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) को बताया, ‘पौराणिक कथाओं में इस नदी का जिक्र तो मिलता है लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, यह जानने के लिये यह शोध कार्य किया गया। शोध में जो तथ्य सामने आये हैं उससे यह साबित होता है कि चन्द्रभागा नदी का कभी अस्तित्व था।’
प्रो. मोहंती आगे कहते हैं, ‘पहले हमने सेटेलाइट ईमेज का अध्ययन किया जिसमें कुछ संकेत मिले। इसके बाद हम ग्राउंड (शोध स्थल) में उतरे और कई तरह के जमीनी शोध किये ताकि सेटेलाइट ईमेज से प्राप्त जानकारियों की सत्यतता को प्रमाणित कर सकें। ग्राउंड पर काम करने के बाद हमने उपकरणों की मदद से जिओफिजिकल सर्वे किया। इन सर्वेक्षणों के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चन्द्रभागा नदी कपोल कल्पना नहीं बल्कि सच है।’
इस नदी के अस्तित्व को लेकर सदियों से जो धुंध थी वो तो अब छँटती दिख रही है लेकिन इस नदी से जुड़े दूसरे पहलुओं पर अब भी काम करना बाकी है। मसलन यह नदी कब तक अविरल बहती रही और कब सूख गई, नदी अगर सूख गई तो इसके पीछे की वजहें क्या थीं, नदी ने आसपास के क्षेत्रों को कितना प्रभावित किया था, नदी सूख गई तो इससे आसपास के क्षेत्रों पर क्या असर पड़ा था आदि।
प्रो. मोहंती बताते हैं, ‘हम लोग इस नदी को लेकर आगे भी शोध करेंगे और हमारा अगला शोध इसी को लेकर होगा कि आखिर नदी कब और क्यों सूख गई। इस शोध से कई नई चीजें सामने आएँगी।’
चन्द्रभागा नदी को लेकर हुए शोध से आम लोगों को भी फायदा मिलेगा क्योंकि इस शोध में यह भी पता चलेगा कि नदी के डेल्टा क्षेत्र का भूजल पीने योग्य है कि नहीं। प्रो. मोहंती ने कहा, ‘शोध से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि डेल्टा क्षेत्र से पीने के लिये स्वच्छ पानी मिल सकता है या नहीं। शोध का उद्देश्य न केवल नदी के अस्तित्व की खोज है बल्कि इसके जरिए आम लोगों की भलाई भी है।’
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Post By: RuralWater